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अमीबा क्या है ? (Amoeba in hindi) , अमीबा प्रोटियस की खोज किसने किया था , विखंडन , कोशिका नाम
Amoeba in hindi , अमीबा क्या है ? किसे कहते है , परिभाषा अमीबा प्रोटियस की खोज किसने किया था , विखंडन , कोशिका नाम ?
अमीबा (Amoeba)
वर्गीकरण
संघ – प्रोटोजोआ
उपसंघ – प्लाज्मोड्रोमा
वर्ग – सार्कोडिना
उपवर्ग – राइजोपोडिया
गण – लोबोसिआ
वंश – अमीबा
जाति – प्रोटिअस
अमीबा प्रोटिअस शब्द ग्रीक भाषा का एक शब्द है , ग्रीक भाषा में इसका मतलब निम्न होता है –
अमाइबे – बदलना + प्रोटियस – समुद्री देवता।
प्राय: पौराणिक कहानियो और गाथाओं में यह समुद्री समुद्री देवता होता है जो अपना आकार बदलता रहता है ठीक उसी प्रकार अमीबा भी अपना आकार बदलता रहता है अत: अमीबा का यह नाम प्रचलित हो गया।
खोज : अमीबा को सर्वप्रथम “रसेल वान रोसेनहोफ (russell von rosenhoff 1755)” ने खोजा था।
अमीबा का स्वभाव और आवास
यह सामान्यतया अलवण जलीय तालाबों , खाइयो , झीलों तथा वसंत तालों की जल धाराओं में और गीली मिट्टी में पाया जाता है। मुख्य रूप से यह उन स्थानों पर अधिक पाया जाता है जहाँ पर जीवाणु , शैवाल , जलीय वनस्पतियों और अन्य जैविक पदार्थो की प्रचुरता पायी जाती है क्योंकि यह सभी इसकी वृद्धि में सहायक होते है। इनका संवर्धन हम प्रयोगशाला में भी आसानी से कर सकते है। अमीबा को ‘हे इन्फ्यूजन विधि’ के द्वारा प्रयोगशाला में संवर्धित किया जाता है।
अमीबा सूक्ष्मदर्शीय , एककोशिक , रंगहीन और अनियमित आकार का जन्तु होता है। फिर भी इसके अग्र और पश्च सिरे सुनिश्चित होते है क्योंकि अग्र भाग से गमन के लिए ‘कूटपाद’ निकलते है और पश्च सिरे पर ये समाप्त हो जाते है जिसके कारण पश्च सिरे पर झुर्रियां पड़ जाती है जिन्हें ‘यूरोयड’ कहते है। इसका आकार कोमल , दृढ , लचीली , अर्धपारगम्य झिल्ली प्लाज्मा कला या जीवद्रव्य कला द्वारा घिरा रहता है। इसका कोशिकाद्रव्य दो स्पष्ट भागों – बाहरी बहि:प्रद्रव्य और भीतरी अंत:प्रद्रव्य में बंटा होता है। जीवद्रव्य कला पारगम्य होती है और इसमें से जल एवं कुछ छोटे घुलनशील अणु आर-पार जा सकते है। इस जीवद्रव्य कला में पुनर्जनन की असीम क्षमता होती है।
यह वसा और प्रोटीन की बनी होती है जिस पर सुक्ष्मांकुर के रूप में म्यूकोप्रोटीन के छोटे छोटे उभार होते है। यह वसा और प्रोटीन की बनी होने के कारण जल में भीगती नहीं है। जीवद्रव्य में केन्द्रक , खाद्य रिक्तियों , संकुचनशील रिक्तिकायें , जल रिक्तिकायें माइटोकोंड्रिया , गाल्जीकाय , एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम , राइबोसोम , लाइसोसोम आदि कोशिकांग पाए जाते है। जीवद्रव्य एक कोलाइडी पदार्थ है जिसमे सभी जैविक क्रियाएँ होती है। बहि:प्रद्रव्य परिधि के निकट गाढ़ा , जेली सदृश , पारदर्शी , स्थिर और कणविहीन होता है , इस भाग को काचाभ स्तर कहते है। अन्त:द्रव्य तरल , कणदार एवं अर्धपारदर्शी होता है। अंत:द्रव्य में एक गोलाकार , उभयोत्तल केन्द्रक पाया जाता है इस केन्द्रक का स्थान अनिश्चित होता है।
केन्द्रकद्रव्य में कई गुणसूत्र (लगभग 500-550) तथा अनगिनत केन्द्रिकाएँ पाए जाते है। इन गुणसूत्रों को क्रोमीडिया कहते है। ये अमीबा की सारी कार्यिकी को नियंत्रित करते है।
अमीबा सामान्यतया अकशेरुकी जंतुओं की संरचना और कार्यिकी में एकरूपता प्रदर्शित करता है। जिससे पता चलता है कि सभी जंतुओं की मूल रासायनिक संरचना समान होती है। इनमे पायी जाने वाली उत्तेजनशीलता यह प्रदर्शित करती है कि जीवद्रव्य संवेदनशील और उत्तेजनशील होता है।
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