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Categories: chemistry

हाइड्रोकार्बन : एल्केन (alkane in hindi) , एल्केन बनाने की सामान्य विधियाँ , वुर्टज अभिक्रिया , गुण 

हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) : कार्बन तथा हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते है।

हाइड्रोकार्बन कोयला तथा पेट्रोलियम से प्राप्त होते है जो ऊर्जा के मुख्य स्रोत है।

घरेलु ईंधन L.P.G तथा स्वचालित वाहनों के प्रमुख ऊर्जा स्रोत द्रवित पेट्रोलियम गैस (CNG) आदि सभी ईंधन हाइड्रोकार्बन के मिश्रण होते है , ये ऊर्जा के स्रोत है।

[I] एल्केन (alkane) : एलिफेटिक संतृप्त हाइड्रोकार्बन को पैराफिन या एल्केन कहते है।

इन हाइड्रोकार्बनों में सभी कार्बन परमाणु एक दुसरे से एकल सहसंयोजक बन्धो से जुड़े रहते है।

एल्केन का सामान्य सूत्र CnH2n+2 होता है।

एल्केन बनाने की सामान्य विधियाँ

(1) असंतृप्त हाइड्रोकार्बनो के हाइड्रोजनीकरण द्वारा :

जब एल्किन व एल्काइन की क्रिया H2 के साथ Ni उत्प्रेरक की उपस्थिति में 300 डिग्री सेल्सियस ताप पर की जाती है तो एल्केन का निर्माण होता है।

यह अभिक्रिया ‘साब्त्ये सेंडेरेन्स’ अपचयन कहलाती है।

R-CH=CH2 + H2 → R-CH2-CH3

CH3-CH=CH2 + H2 → CH3-CH2-CH3

R-C≡CH + 2H2 → R-CH2-CH3

CH3-C≡CH + 2H2 → CH3-CH2-CH3

(2) एल्किल हैलाइड के अपचयन द्वारा : 

जब एल्किल हैलाइड की क्रिया Zn व HCl के साथ क्रिया की जाती है तो एल्केन का निर्माण होता है।

R-Cl + Zn + HCl → R-H + ZnCl2

CH3-Cl + Zn + HCl → CH4 + ZnCl2

(3) वुर्टज अभिक्रिया : 

जब एल्किल हैलाइड की क्रिया सोडियम के साथ शुष्क ईथर की उपस्थिति में की जाती है तो उच्च एल्केन का निर्माण होता है , इस अभिक्रिया को “वुर्टज अभिक्रिया” कहते है।

R-X + 2Na + X-R → R-R + 2NaX

C2H5-Br + 2Na + Br-C2H5 → C2H5-C2H5 + 2NaBr

नोट : यह अभिक्रिया कार्बन परमाणुओं की संख्या में वृद्धि के काम में आती है।

(4) संतृप्त मोनो कार्बोक्सिल अम्लों के वि-कार्बोक्सिलिकरण द्वारा :

जब संतृप्त मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो के सोडियम लवण की क्रिया सोडा लाइम के साथ की जाती है तो एल्केन प्राप्त होती है।

NaH व COCl के मिश्रण को ‘सोडा लाइम’ कहते है।

यह अभिक्रिया कार्बन परमाणुओं की संख्या कम करने के काम में आती है।

(5) एल्कोहल के अपचयन द्वारा : जब एल्कोहल की क्रिया HI के साथ लाल फास्फोरस की उपस्थिति में की जाती है तो एल्केन प्राप्त होती है।

R-OH + 2HI → R-H + H2O + I2

CH3-CH2-OH + 2HI → CH3-CH3 + H2O + I2

(6) एल्डिहाइड व कीटोन के अपचयन द्वारा : जब एल्डिहाइड व कीटोन का अपचयन Zn व अम्लगम व सान्द्र HCl की उपस्थिति में किया जाता है तो एल्केन प्राप्त होती है।

यह अभिक्रिया “क्लिमेन्सन” अपचयन कहलाती है।

(7) कोल्वे विद्युत अपघटनी विधि :

जब किसी संतृप्त मोनो कार्बोक्सिलिक अम्लो के सोडियम तथा पोटेशियम लवण के जलीय विलयन का विद्युत अपघटन किया जाता है तो एल्केन प्राप्त होती है।

2RCOOK + 2H2O → R-R + 2CO2 + H2 + 2KOH

पोटेशियम एसिटेट के जलीय विलयन का विद्युत अपघटन करने पर एनोड पर एथेन व CO2 तथा कैथोड पर H2 व KOH प्राप्त होता है।

2CH3COOK + 2H2O → CH3-CH3 + CO2 + 2KOH + H2

भौतिक गुण

  • सामान्य ताप पर एक-चार कार्बन परमाणु युक्त एल्केन रंगहीन गैस तथा पाँच -सत्रह कार्बन परमाणु युक्त एल्केन रंगहीन द्रव एवं इससे उच्च एल्केन रंगहीन ठोस होते है।
  • एल्केन के अणु अध्रुवीय होते है अत: ये अध्रुवीय विलायको में विलेय होती है।
  • द्रव एल्केन जल से हल्की होती है एवं अणुभार बढ़ने के साथ साथ धीरे धीरे घनत्व में वृद्धि होती जाती है।

एल्केन के रासायनिक गुण

(I) दहन : एल्केन ऑक्सीजन या वायु के साथ जलकर CO2 व H2O का निर्माण करते है।

CH4 + 2O2 → CO2 + 2H2O

(II) प्रतिस्थापन अभिक्रिया : वह अभिक्रिया जिसमें किसी अणु के एक या अधिक परमाणु या समूह अन्य परमाणु या समूह द्वारा विस्थापित होते है तो वह अभिक्रिया प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहलाती है।

उदाहरण : हैलोजनीकरण।

हैलोजनीकरण : एल्केन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में हैलोजन से क्रिया करके प्रतिस्थापन अभिक्रिया दर्शाते है।

किसी हाइड्रोकार्बन के H परमाणुओं का हैलोजन परमाणुओं के द्वारा विस्थापन “हैलोजनीकरण” कहलाता है।

मेथेन (CH4) व क्लोरिन अणु सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्रिया करके उत्पाद बनाते है।

CH4 + Cl2 → CH3-Cl + HCl

CH3-Cl + Cl2 → CH2Cl2 + HCl

CH2Cl2 + Cl2 → CHCl3 + HCl

CHCl3 + Cl2 → CCl4 + HCl

क्रियाविधि :उपरोक्त अभिक्रिया मुक्त मूलक प्रतिस्थापन क्रिया विधि द्वारा संपन्न होती है , इस क्रिया विधि के निम्न पद है –

(i) श्रृंखला प्रारम्भिक पद : इस पद में क्लोरिन आयन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में समांश विखंडन द्वारा क्लोरिन मुक्त मूलक बनता है।

Cl-Cl → Cl.

(ii) श्रृंखला संचरण पद : इस पद में क्लोरिन मुक्त मूलक [Cl.] CH4 से क्रिया करके HCl व मैथिल मुक्त मूलक बनता है।

CH4 +  Cl.  → .CH3 + HCl

मैथिल मुक्त मूलक क्लोरिन अणु के दुसरे अणु से क्रिया करके मैथिल क्लोराइड , क्लोरिन मुक्त मूलक बनाता है , इस प्रकार श्रृंखला आगे बढती जाती है।

.CH3 + Cl2 → .CH3-Cl + Cl.

.CH3-Cl + Cl→ .CH2-Cl + HCl

.CH2-Cl + Cl2 → CH2Cl2 + Cl.

CH2Cl2 + Cl→ .CHCl2 + HCl

.CHCl2 + Cl2 → CHCl3 + Cl.

CHCl3 + Cl. → .CCl3 + HCl

.CCl+ Cl2 → CCl4 + Cl.

(iii) श्रृंखला समापन पद : इस पद में विभिन्न मुक्त मूलक आपस में क्रिया करके बहुत से उत्पादों का निर्माण करते है , ये सह-उत्पाद कहलाते है।

Cl. + Cl. → Cl2

.CH3 + Cl. → CH3-Cl

.CH3 + .CH3 → CH3-CH3

[ III] समावयवीकरण : अशाखित एल्केनो को निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में 300′ C ताप पर गर्म करने पर ये समावयवी शाखित एल्केन में परिवर्तित हो जाते है , यह क्रिया समावयवीकरण कहलाती है।

[IV] ताप अपघटन : वायु की अनुपस्थिति में एल्केन को उच्च ताप पर गर्म करने पर ये कम अणुभार वाली एल्केन में परिवर्तित हो जाते है।

2CH3-CH2-CH3 → CH2=CH2 + CH4 + CH3-CH=CH2 + H2

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