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Categories: chemistry
पर्यावरण , वायु प्रदूषण (air pollution) , भू मण्डलीय ताप वृद्धि तथा हरित गृह प्रभाव , अम्ल वर्षा
पर्यावरण : पर्यावरण शब्द “परि + आवरण” से मिलकर बना है अर्थात हमारे चारो ओर के आवरण को पर्यावरण कहते है।
पर्यावरण में अनेक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिक्रियाएँ होती है , इन रासायनिक अभिक्रियाओं का अध्ययन पर्यावरणीय रसायन कहलाता है।
इनमें वायुमण्डलीय संरचना का अध्ययन किया जाता है तथा ये संरचायें निम्न होती है।
1. क्षोभमण्डल (troposphere)
2. समताप मण्डल (stratosphere)
3. ओजोन मंडल (ozonosphere)
4. आयन मण्डल (mesosphere )
5. मध्य मण्डल
1. क्षोभमण्डल (troposphere)
2. समताप मण्डल (stratosphere)
3. ओजोन मंडल (ozonosphere)
4. आयन मण्डल (mesosphere )
5. मध्य मण्डल
पर्यावरण प्रदुषण
पर्यावरण प्रदूषण वर्तमान समय की विश्व की सर्वाधिक ज्वलन समस्या है , तकनिकी विकास एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण समय के साथ साथ मानव की आवश्यकता बढती जाती है जिनकी पूर्ती के लिए मानव ने प्रकृति संसाधनों का शोषण प्रारंभ कर दिया , जिसके परिणामस्वरूप मानव एवं प्रकृति का सामंजस्य गडबडाने लगा है।
वे पदार्थ जिनसे पर्यावरण प्रदूषित होता है प्रदूषक कहलाते है।
मुख्य रूप से वातावरण के प्रदूषक को निम्न भागो में बांटा जा सकता है –
1. वायु प्रदूषण (air pollution)
2. जल प्रदूषण (water pollution)
3. मृदा प्रदुषण (soil pollution)
4. नाभिकीय प्रदुषण (nuclear pollution)
5. समुद्री प्रदुषण (sea pollution)
6. तापीय प्रदूषण (temperature pollution)
7. ध्वनी प्रदूषण (noise pollution)
1. वायु प्रदूषण (air pollution)
सामान्य वायु प्रदूषको का निम्न आधार पर अध्ययन किया जाता है –
i. उत्पत्ति के आधार पर : इस आधार पर या दो प्रकार का होता है –
- प्राथमिक प्रदूषक : वे प्रदूषक जो वातावरण में ज्ञात प्रत्यक्ष श्रोतो से निष्कासित होते है तथा उसी अवस्था में अधिक समय तक स्थिर रहते है , प्राथमिक प्रदूषक कहलाते है। उदाहरण : सल्फर डाईऑक्साइड , हाइड्रोकार्बन आदि।
- द्वितीयक प्रदूषक : वे प्रदूषक जो प्राथमिक प्रदूषको की आंतरिक क्रियाओं से बनते हो या वायुमण्डल के साथ अभिक्रियाओं से निर्मित हो द्वितीयक प्रदूषक कहलाते है।
ii. गैसीय वायु प्रदूषक : इस आधार पर यह निम्न प्रकार का होता है –
- सल्फर के ऑक्साइड : जीवाश्म इंधन के दहन के परिणाम स्वरूप सल्फर के ऑक्साइड प्राप्त होते है , इसमें मुख्यतः SO2 है। यह मनुष्य व जंतुओं के लिए विषैली होती है। जब SO2 की क्रिया ऑक्सीजन के साथ की जाती है तो सल्फर ट्राई ऑक्साइड (SO3) प्राप्त होती है।
2SO2 + O2 → 2SO3
वायुमण्डल में उपस्थित ओजोन तथा हाइड्रोजन परऑक्साइड भी SO3 बनने की दर को बढ़ा देते है।
SO2 + O3 → SO3 + O2
SO2 + H2O2
→ H2SO4
- नाट्रोजन ऑक्साइड : उच्च ताप पर नाइट्रोजन व ऑक्सीजन परस्पर क्रिया करके नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनाती है।
N2 + O2 → 2NO
नाइट्रिक ऑक्साइड , ऑक्सीजन से आसानी से क्रिया करके NO2 बनाती है।
2NO + O2 → 2NO2
NO2 एक अत्यंत विषैली गैस है , यह फेफड़ो में उत्तेजना उत्पन्न करती है।
जब समताप मण्डल में नाइट्रिक ऑक्साइड , O3 से क्रिया करती है तो NO2 का निर्माण होता है।
- कार्बन ऑक्साइड : कार्बन के तीन ऑक्साइड होते है।
(a) कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO)
(b) कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2)
(c) कार्बन सब ऑक्साइड (C3O2)
(a) कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO) : यह एक गंभीर वायु प्रदूषक है , यह रंगहीन , गंधहीन गैस है। पेट्रोल , लकड़ी , कोयला आदि के अपूर्ण दहन से इनका निर्माण होता है। रक्त में उपस्थित हिमोग्लोबिन से यह ऑक्सीजन से भी अधिक तेजी से संयुक्त होती है।
(b) कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) : जीवाश्म कार्बनिक पदार्थ , चुना , पत्थर आदि के पूर्ण दहन से वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड प्राप्त होती है।
प्राणियों के श्वसन में भी कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकलती है। पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण में CO2 का प्रयोग करते है।
- हाइड्रो कार्बन : स्वचलित वाहनों के ईंधन के अपूर्ण दहन से हाइड्रोकार्बन का निर्माण होता है , अधिकतम हाइड्रो कार्बन कैंसर को जन्म देते है।
भू मण्डलीय ताप वृद्धि तथा हरित गृह प्रभाव
सौर ऊर्जा का तीन चौथाई भाग पृथ्वी की सतह के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है जिससे पृथ्वी के ताप में वृद्धि हो जाती है , शेष ऊर्जा वायुमण्डल में पुनः वितरित हो जाती है।
ऊष्मा का कुछ भाग वायुमण्डल में उपस्थित गैसों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है जिससे वायु मंडल के ताप में वृद्धि हो जाती है इसे ही भूमण्डलीय ताप कहते है।
हमारे चारो ओर का वायुमंडल पृथ्वी का ताप स्थिर रखे हुए है।
हरित गृह प्रभाव (green house effect)
पृथ्वी के वातावरण में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड , मैथैन व नाइट्रस ऑक्साइड आदि गैसे दीर्घ तरंग दैर्ध्य वाली विकिरणों को वायुमण्डल से बाहर नहीं जाने देती। इस कारण तापमान में वृद्धि होने को हरित ग्रह प्रभाव कहते है।
ठण्डे देशों में पौधों को उचित तापमान देने के लिए काँच के हरित गृहों का निर्माण किया जाता है।
हरित गृह प्रभाव के परिणाम
प्रदूषणों के बढ़ने से वायुमण्डल हरित गृह प्रभाव को बढ़ाने वाली गैसों में वृद्धि हुई है। जिसके कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई है।
पृथ्वी के इस बढ़े हुए तापमान के कारण बर्फ पिघलने लगी है , जिसके कारण समुद्रो के जल स्तरों में वृद्धि होकर बाढ़ आने की संभावनाएं अधिक हो गयी है।
खाद्यनों के उत्पादन में भी हरित गृह प्रभाव का असर पड़ा है एक निश्चित तापमान न मिलने के कारण उत्पादन में भी कमी हुई है।
हरित गृह प्रभाव के संरक्षण के उपाय तंत्र
- वृक्षारोपण अधिक से अधिक किया जाना चाहिए।
- विश्व की जनसंख्या वृद्धि पर रोक होनी चाहिए।
- जीवाश्म ईंधन के स्थान पर सौर ऊर्जा , पवन ऊर्जा आदि का उपयोग होना चाहिए। स्वचालित वाहनों में पेट्रोल , डीजल के स्थान पर CNG व LPG का उपयोग होना चाहिए।
- मोलर व गोबर गैस प्लान को बढ़ावा देना चाहिए।
- अधिक से अधिक पशुपालन होना चाहिए।
- c.t.c. पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
acid rain (अम्ल वर्षा)
वह वर्षा जिसमें वायुमण्डल में उपस्थित रासायनिक तत्व अथवा प्रदूषक उपस्थित होते है तथा जो पृथ्वी पर एक हल्के अम्लीय सांद्रण के रूप में गिरती है अम्ल वर्षा कहलाती है।
वर्षा के जल का pH 5.6 से 6 के मध्य होता है क्योंकि वर्षा के जल व वायुमण्डलीय कार्बन डाई ऑक्साइड के मध्य अभिक्रिया होती है व H आयन उत्पन्न होते है।
H2O + CO2 → H2CO3
H2CO3 → 2H+ + CO32-
वायुमण्डल में सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड जल में विलेय होकर वर्षा के जल को और अधिक अम्लीय बना देते है जिससे pH का मान 5.6 से कम हो जाता है। जब कम pH वाली बुँदे पृथ्वी पर गिरती है तो इसे अम्ल वर्षा कहते है।
मानव द्वारा निर्मित स्रोतों में से उत्सर्जित SO2 व NO2 गैसें वायुमंडल की जलवाष्प के साथ मिलकर H2SO4 व HNO3 का निर्माण करती है।
जब ये पानी के साथ पृथ्वी पर गिरती है तो इस प्रकार की वर्षा को भी अम्लीय वर्षा कहते है।
H2O + CO2 → H2CO3
2SO2 + O2 + 2H2O → 2H2SO4
NO + O3 → NO2 + O2
4NO2 + O2 + 2H2O → 4HNO3
अम्लीय वर्षा के दुष्प्रभाव
- जलीय प्राणियों की मृत्यु।
- पेड़ पौधों की वृद्धि में गिरावट।
- ताम्बा , सीसा आदि घातक तत्वों का पानी में मिल जाना।
- अम्लीय वर्षा से जमीन की मिटटी में उपस्थित तत्व वर्षा के साथ बह जाते है जिससे मिट्टी की उर्वरक शक्ति में कमी हो जाती है।
- अम्लीय वर्षा से संगमरमर , चूने के पत्थरों से बनी इमारतों व स्मारकों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है क्योंकि H2SO4 व HNO3 दोनों ही चुने के पत्थर से क्रिया कर लेते है।
CaCO3 + H2SO4 → CaSO4 + H2CO3
CaCO3 + 2HNO3 → Ca(NO3)2 + H2SO4
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