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यूरोप में प्रबोधन काल के मुख्य विचारों पर एक टिप्पणी लिखिए , age of enlightenment philosophers list in hindi
age of enlightenment philosophers list in hindi thinkers यूरोप में प्रबोधन काल के मुख्य विचारों पर एक टिप्पणी लिखिए ?
प्रश्न: प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक जॉन लॉक का दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक तथाशिक्षा के संबंध में क्या दृष्टिकोण था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जॉन लॉक (1632-1704) आंग्ल दार्शनिक एवं राजनैतिक विचारक थे। इनके विविध पक्षों पर निम्नलिखित दृष्टिकोण थे-
(1) दार्शनिक विचार : उनके दार्शनिक विचार ‘ऐसेज कंसर्निग ह्यूमन अंडरस्टैडिंग‘ में स्पष्ट हैं। यह पुस्तक आधुनिकसिदवाद का आधार है। ‘बिना विचारों के ज्ञान असंभव है, परंतु विचार न सत्य है न असत्य, वे केवल आकृति रूप हैं। सत्य अथवा असत्य विचार को दृढ़तापूर्वक स्वीकार अथवा अस्वीकार करना निषिद्ध है। विचार के पूर्व मानव मस्तिष्क कोरे कागज के समान है जिस पर अनुभव समस्त विचारों को लिखता है।‘
वे ज्ञान को चार प्रकार का बताते हैं :
1. विश्लेषणात्मक जहाँ हम विचारों की भिन्नता तथा समानता का पता लगाते हैं। जैसे काला सफेद नहीं है।
2. गणित संबंधी – जैसे दो त्रिकोण जो अनरूप है और जो समानांतर रेखाओं के बीच है वे परस्पर समान होते हैं।
3. भौतिक विज्ञान के आधार पर – जहाँ हम यह निश्चय करते हैं कि एक गुण का दूसरे गुण के साथ सहअस्तित्व है अथवा नहीं। जैसे आग ठंडी नहीं है।
4. आत्मा और परमात्मा का ज्ञान वास्तविक है।
(2) धार्मिक विचार : उनके धार्मिक विचार उनके चार पत्रों ‘लेटर्स कंसनिंग टालरेशन‘ द्वारा व्यक्त हैं। वे धार्मिक सहिष्णुता में विश्वास करते थे, यदि इसके द्वारा उत्तम का विकास होता हो, किंतु वे नास्तिकवाद के समर्थक न ही थे।
(3) सामाजिक एवं राजनीतिक विचार : उनके सामाजिक एवं राजनीतिक विचार उनकी प्रख्यात पुस्तक ‘टू ट्रीटाइजेज ऑव गवर्नमेंट‘ (1690) में व्यक्त किए गए हैं।
उनके समय में प्रजातंत्र एवं सहनशीलता के सिद्धांत राजा के दैवी अधिकारों से टकरा रहे थे। राज्य संविदा का परिणाम था। मनुष्य के प्राकृतिक अवस्था से राज्य तथा समाज की व्यवस्था में आने से नैसर्गिक अधिकारों का अपहरण नहीं हुआ। इन नैसर्गिक अधिकारों में संपत्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भी सम्मिलित है। जनसमुदाय को सार्वजनिक भलाई के लिए किसी भी प्रकार से, स्वशासन करने का अधिकार है। सरकार को किसी के उन धार्मिक विश्वासों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है जो समाज के अनुकूल हैं। ये विचार उनके राजनीतिक दर्शन की मूल है। समाज संविदा पर आधारित है और संविदा की शर्तों में, परिस्थिति के अनुसार जनता की सर्वोच्च इच्छा द्वारा परिवर्तन किया जा सकता है। समाज के शासकों की सत्ता निरंकुश नहीं है अपितु वह एक धरोहर है। शासक उसका अधिकारी तभी तक है जब तक कि वह अपने उत्तरदायित्व को निभाता है। विद्रोह करने की स्वाधीनता के अधिकार का लॉक ने समर्थन किया जो अमरीका, भारत तथा अन्य उपनिवेशों के स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक रहा। इस प्रकार उनका प्रशासन के सिद्धांतों संबंधी विचार आज तक सुदृढ़ और प्रजातंत्र की आधारशिला बना हुआ है।
(4) शिक्षा पर विचार : शिक्षा पर उनके विचार ‘थॉट्स ऑन एजूकेशन‘ (1691) में व्यक्त किए गए हैं। उनके उपयोगितावादी दृष्टिकोण से शिक्षा का उद्देश्य बुद्धि व चरित्र का विकास है और उसके साथ ही साथ एक स्वस्थ शरीर का निर्माण भी है। बच्चों को शिक्षा देते समय उनके आनंद का भी ध्यान रखना चाहिए। अध्यापक में पांडित्य की अपेक्षा बुद्धि की अधिक आवश्यकता है।
प्रश्न: प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक वोल्टेयर का परिचय दीजिए. तथा उनकी प्रमुख कृतियां कौन-कौनसी थी? बताइए।
उत्तर: वोल्टेयर (21 नवम्बर 1694-30 मई 1778) फ्रांस के बौद्धिक जागरण (Enlightenment) युग के महान लेखक, नाटककार एवं दार्शनिक थे। उनका वास्तविक नाम श्फ्रांक्वा-मैरी अरेटश् था। वे अपनी प्रत्युत्पन्नमति (wit), दार्शनिक भावना तथा नागरिक स्वतंत्रता (धर्म की स्वतंत्रता एवं मुक्त व्यापार) के समर्थन के लिये भी विख्यात हैं।
वोल्टेयर ने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया। उन्होंने नाटक, कविता, उपन्यास, निबन्ध, ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक लेखन और बीस हजार से अधिक पत्र और पत्रक (pamphlet) लिखे। यद्यपि उनके समय में फ्रांस में अभिव्यक्ति पर तरह-तरह की बंदिशे थीं फिर भी वह सामाजिक सुधारों के पक्ष में खुलकर बोलते थे। अपनी रचनाओं के माध्यम से वह रोमन कैथोलिक चर्च के कठमुल्लापन एवं अन्य फ्रांसीसी संस्थाओं की खुलकर खिल्ली उड़ाते थे।
बौद्धिक जागरण युग की अन्य हस्तियों (मांटेस्क्यू, जॉन लॉक, थॉमस हॉब्स, रूसो आदि) के साथ-साथ वोल्टेयर की कृतियों एवं विचारों का अमेरिकी क्रान्ति तथा फ्रांसीसी क्रान्ति के प्रमुख विचारकों पर गहरा असर पड़ा था।
प्रमुख कृतियाँ
ऽ Lettres philosophiques sur les Anglais (1733), जिसका नया नाम Letters on the English (सन् 1778) है।
ऽ Le Mondain (1736)
ऽ Sept Discours en Vers sur l’Homme (1738)
ऽ j~ adig (1747)
ऽ MicromUugas (1752)
ऽ Candide (1759)
ऽ Ce qui plaV-;t auÛ dames (1764)
ऽ Dictionnaire philosophique (1764)
ऽ L’IngUunu (1767) La Princesse de Babylone (1768)
ऽ fpaZître à l’Auteur du Livre des Trois Imposteurs
वोल्टेयर ने पचास-साठ नाटकों की रचना की जिसमें से कुछ अपूर्ण ही रह गये। उनके प्रमुख नाटक हैं
ऽ CEdipe (1718)
ऽ j~ aire (1732)
ऽ Eriphile (1732)
ऽ Ir/ne
ऽ Socrates
ऽ Mahomet
ऽ MUurope
ऽ Nanine
ऽ The Orphan of China (1755)
प्रश्न: प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक इमानुएल कांट का परिचय दीजिए तथा उनकी प्रमुख कृतियां कौन-कौनसी थी? बताइए।
उत्तर: इमानुएल कांट (1724-1804) जर्मन वैज्ञानिक, नीतिशास्त्री एवं दार्शनिक थे। उनका वैज्ञानिक मत ‘कांट-लाप्लास परिकल्पना‘ के नाम से विख्यात है। इस परिकल्पना के अनुसार संतप्त वाष्पराशि नेबुला से सौरमंडल उत्पन्न हुआ। कांट का नैतिक मत ‘नैतिक शुद्धता‘ (मॉरल प्योरिज्म) का सिद्धांत, ‘कर्तव्य के लिए कर्तव्य‘ का सिद्धांत अथवा ‘कठोरतावाद‘ (रिगॉरिज्म) कहा जाता है। उनका दार्शनिक मत ‘आलोचनात्मक दर्शन‘ (क्रिटिकल फिलॉसफी) के नाम से प्रसिद्ध है। इमानुएल कांट अपने इस प्रचार से प्रसिद्ध हुये कि मनुष्य को ऐसे कर्म और कथन करने चाहिये जो अगर सभी करें तो वे मनुष्यता के लिये अच्छे हों। उनके बहुत से लेख तथा लघुग्रंथ प्रकाशित हुए, जिनमें से दो- ‘थाट्स अपॉन द टू एस्टिमेशन ऑव लिविंग फोर्सेज‘, (1747 ई.) तथा ‘जनरल नैचुरल हिस्ट्री ऐंड थ्योरी ऑव हेवेन‘ (1755 ई.) विशेष उल्लेखनीय हैं। इनमें से प्रथम में उन्होंने रीने दकार्त (1596-1650 ई.) तथा गॉटफ्रीड विल्हेल्म लीबनित्स (1646-1716 ई.) के सत्ता संबंधी विचारों का तथा दूसरे में न्यूटन तथा लीबनित्स के यांत्रिक एवं प्रयोजनतावादी विचारों में समन्वय करने का प्रयत्न किया था। उन्होंने ‘डाक्टर लेजेंस‘ की उपाधि 1755 ई. कोनिग्जबर्ग विश्वविद्यालय से प्राप्त की। विश्वविद्यालय ने उनके नौ वर्ष के परिश्रम से प्रसन्न होकर विशिष्ट व्याख्याता (प्राइवेट डोजेंट) नियुक्त कर लिया था, किंतु इस कार्य के लिए उन्हें वेतन कुछ भी नहीं मिलता । था। ‘प्राइवेट डोजेंट‘ नियुक्त होने के बाद से 1770ई तक उसके पाँच प्रकरण ग्रंथ प्रकाशित हुए-
(1) ऑन द फाल्स सटिलटी ऑव द फोर सिलोजिस्टिक फिगर्स, (1762)
(2) अटेंप्ट टु इंट्रोडयूस द नोशन ऑव नेगेटिव क्वांटिटी इंटु, फिलॉसफी, (1763)
(3) ओन्ली पॉसिब्ल् प्रूफ ऑव द एग्जिस्टेंस ऑव गॉड, (1763)
(4) ड्रीम्स ऑव ए स्पिरिचुअलिस्ट बाइ द ड्रीम्स ऑव मेटाफिजिक, (1766)
(5) ऑन द फर्स्ट ग्राउंड ऑव द डिस्टिंक्शन ऑव ऑबजेक्ट्स् इन स्पेस, (1768)।
उपर्युक्त ग्रंथों के शीर्षकों से पता चलता है कि 1755 और 1770 ई. के बीच का समय कांट के विचारों के निर्माण का था। सन 1770 ई. में प्रकाशित लातीनी स्थापनालेख दी मुंदी सेंसिबिलिस एत इंतेलीजिबिलिस फार्मा एत प्रिंसिपिइस स उनका चिंतन व्यवस्थित रूप में विकसित होता दिखाई देता है। इसी वर्ष, वें कोनिग्जबर्ग विश्वविद्यालय में तर्क और दशन के उसी अध्यापक पद पर नियुक्त हुए, जिसके लिए उन्हें 12 वर्ष पूर्व निराश होना पड़ा था।
इन 26 वर्षों में से आगे के 12 वर्ष उन्होंने केवल एक पुस्तक क्रिटिक ऑव प्योर रीजन के लिखने में व्यतीत किए। उक्त 1781 ई में प्रकाशित हुआ था। कांट के प्रौढ़ ग्रंथों में यह सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है। इस काल के अन्य ग्रंथ प्रोलेगोमेना टु एव्री फ्यूचर मेटाफिजिक, (1783), द ग्राउंड वर्क ऑव द मेटाफिजिक्स ऑव मॉरल्स, (1786),
मेटाफिजिकल फाउंडेशंस ऑव नैचुरल साइस, (1787), क्रिटोक ऑव प्रैक्टिकल रीजन, (1788), क्रिटाक ऑव जजमेंट, (1790), रिलीजन विदिन द लिमिट्स ऑव मिअर रीजन, (1793), आन एवरलास्टिंग पीस, (1795)।
मेटाफिजिक्स ऑव मॉरल्स, (1797),
मेटाफिजिकल फाउंडेशंस ऑव द थ्योरी ऑव वर्च, (1796-97),
द कॉन्फ्लिक्ट ऑव फैकल्टीज, (1798),
ऐंथ्रपॉलॉजी फ्रॉम द प्रैक्टिकल प्वाइंट ऑव व्यू, (1798),
लॉजिक, (1800), श्भौतिक भूगोलश् (1802) तथा पेडॉगॉजिक्स (1802)।
12 फरवरी 1804 ई. को कोनिग्जबर्ग में उनकी मृत्यु हुई। वे केवल बौद्धिक चिंतक न था, उन्होंने सुकरात और पाइथागोरस की भाँति जीवन में अपने दार्शनिक विचारों को स्थान दिया था। हाइने नामक जर्मन कवि ने कांट के दार्शनिक जीवन की प्रशंसा में ऐसी बातें कही हैं जो उसे सनकी सिद्ध करती हैं, किंतु, उसके विचारों ने उत्तरवर्ती दर्शन को इतना प्रभावित किया कि कांट के अध्येता उसे दर्शन में एक नवीन युग का प्रवर्तक मानते हैं।
प्रश्न: प्रबोधन युग का आधुनिक विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा? विवेचना कीजिए।
उत्तर: आधुनिक विश्व के निर्माण में प्रबोधन युग का प्रभाव दूरगामी रहा। ये प्रभाव निम्नलिखित है-
ऽ आधुनिक विश्व के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
ऽ वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने औद्योगीकरण के नए युग को आधार तैयार किया।
ऽ निरकुश राजतंत्र पर चोट, फलतः लोकप्रिय सरकारों की स्थापना।।
ऽ चिंतकों के द्वारा प्रतिपादित व्यक्ति स्वातंर्य की बात ने उदारवादी सरकार के निर्माण मार्ग को प्रशस्त किया।
ऽ व्यक्ति स्वतंत्र पैदा हुआ है। नारी और व्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग ने आर्थिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया। इस तरह वाणिज्यवादी आर्थिक नीति से मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर जाने की बात की जाने लगी और इसकी अभिव्यक्ति एडम स्मिथ के श्द वेल्थ ऑफ नेशन्सश् (1776) में देखी जा सकती है। एडम स्मिथ का कहना था कि प्रकृति के नियम की तरह बाजार के भी अपने शाश्वत् नियम है। अतः इसमें बाह्य हस्तक्षेप की गुजाइश नहीं है और बाजार के ये शाश्वत् नियम मांग और पूर्ति पर आधारित है। इस तरह विश्व के समक्ष ‘मुक्त अर्थव्यवस्था‘ का सिद्धान्त प्रतिपादित हुआ जिसे वर्तमान में काफी महत्व दिया जाता है।
ऽ भारत में 19वीं सदी में चले सामाजिक सुधार आंदोलन पर भी इसका असर दिखाई पड़ता है। आधुनिकीकरण के सिद्धांतों ने समाजों को वर्गीकृत करने और आधुनिक लोकतांत्रिक शासन का मॉडल खड़ा करने के लिए अतीत और वर्तमान, परम्परा और आधुनिकता संबंधी ज्ञानोदय की समझदारी से मदद ली। समाज सुधार आंदोलनों ने ज्ञानोदय के मानवतावादी विचारों से प्रेरणा ली और धर्म तथा रीति-रिवाजों को मानव विवेक के सिद्धान्तों के अनुरूप ढालने की कोशिश की। उन्होंने पारंपरिक रस्मों रिवाजों की आलोचनात्मक परीक्षा की और उन रीतियों को बदलने की लड़ाई लड़ी जो समानता और सहिष्णुता के बुनियादी सिद्धान्तों के खिलाफ थी। इन समाज सुधारकों पर प्रबोधन का इतना गहरा असर था कि उन्होंने अंग्रेजी शासन के साथ आने वाले नए विचारों का स्वागत किया और उन्हें विश्वास था कि जब कभी वे स्वशासन की मांग करेंगे उन्हें मिल जाएगा। हालांकि औपनिवेशिक शासन के शोषण चरित्र को सब लोग मानते हैं लेकिन प्रबोधनकालीन व्यक्ति की धारणा, वैज्ञानिक ज्ञान और स्वतंत्र उद्यम में तत्कालीन विश्वास आज भी लोकप्रिय कल्पना को प्रभावित करता है।
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