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वन संसाधन के उपयोग क्या है ? वनों के लाभ पर एक निबंध लिखिए महत्व advantages of forest resources in hindi

advantages of forest resources in hindi वन संसाधन के उपयोग क्या है ? वनों के लाभ पर एक निबंध लिखिए महत्व ?

वन एवं वन्य जीवन संसाधन एवं उनका सरंक्षण
(Forest and Wild Life Resources and their Conservation)
वन संसाधन (Forest Resources)
भारत में वन संसाधन जलवायु तथा धरातलीय परिस्थितियों पानी करते हैं। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सदाबहार उष्णकटिबन्धीय का पाए जाते हैं जबकि राजस्थान की थार मरुभमूमि में केवल कांदा झाड़ियां ही उगती हैं। हिमालय एवं प्रायद्वीपीय भारत में प्राचीन काल के मूल वन पाए जाते हैं। उत्तरी भारत के विशाल मैदान में अधिकांश वन क्षेत्र पर वनों को साफ करके भूमि को खेती योग्य बनाया गया है।
भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है। जिसमें से 2005 की वन संस्थिति रिपोर्ट (ैजंजम व िथ्वतमेज त्मचवतज 2005) के अनुसार 6,77,088 वर्ग किमी. अर्थात कुल क्षेत्रफल के 20.59 प्रतिशत भाग पर वन उगे हुए हैं। भारत की राष्ट्रीय वन नीति 1952 (National Forest Policy, 1952) के अनुसार देश के 33ः भाग पर वन होने चाहिए। भारत के कुल वन क्षेत्र में से 3.87 216 वर्ग किमी. क्षेत्र पर घने वन तथा 289872 वर्ग किमी. क्षेत्र पर छितर वन उगे हुए हैं। देश की भागौलिक परिस्थितियों का अध्ययन करन से यह विदित होता है कि देश के कुल क्षेत्रफल का बड़ा भाग उच्च पर्वतीय क्षेत्र है जहां स्थायी बर्फ हिमनदियां, तीव्र ढाल आदि के कारण वनस्पति का उगना संभव नहीं है। भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग (Forest Survey of India-FSI) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड तथा सिक्किम में 1,83,135 वर्ग किमी. क्षेत्र 4000 मीटर से अधिक ऊंचा है और ऐसे क्षेत्र में जलवायु तथा धरातलीय परिस्थितियां वनस्पति उगने के अनुकूल नहीं हैं। यदि इस क्षेत्र को भारत के कुल क्षेत्रफल से निकाल दिया जाए तो वन क्षेत्र, कुल क्षेत्र का 21.81% हो जाएगा।
तालिका 2.29 को देखने से विदित होता है कि मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र है जहां पर 76 हजार वर्ग किमी. से भी अधिक क्षेत्र पर वन उगे हुए हैं। इसके पश्चात् अरुणाचल प्रदेश (67.7 हजार वर्ग कि.मी.), छत्तीसगढ (55.8 हजार वर्ग किमी.). उड़ीसा (48.4 वर्ग मी.), महाराष्ट्र (47.5 हजार वर्ग किमी.) तथा आंध्र प्रदेश (44.4 हजार वर्ग किमी.) राज्यों के स्थान है। इन से अधिकांश बड़े आकार के राज्य हैं, जिनमें कुल वन क्षेत्र वन सम्पदा का अच्छा सूचक नहीं है।
कुल क्षेत्रफल के अनुपात में वन क्षेत्र की प्रतिशत मात्रा अच्छा सूचक है। इस दृष्टि से मिजोरम सबसे आगे है जहा पर 8.03 प्रतिशत भूमि पर वन उगे हुए हैं। अन्य राज्य केंद्र शासित प्रदेश, जहा 80ः से अधिक भूमि पर वन उगे हुए हैं, हैं अरुणाचल प्रदेश नागालैंड तथा अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह! गोवा, मणिपुर, मेघालय, तमिलनाडु, लक्षद्वीप आदि राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश भी वन संसाधनों के दृष्टि से बड़े भाग्याशील है। इन राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक भूमि पर वन उगे हुए है। दुर्भाग्य से वनों का उन क्षेत्रों में अभाव है जहां पर वनों की सबसे अधिक आवश्यकता है। उदाहरणयता गंगा के मैदान में 5 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र पर वन मिलते है। यहां पर जनसंख्या अधिक है और विशाल जन-समूह की उदर-पूर्ति के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्नों की आवश्यकता है। अतः कई भागों में वनों को साफ करके वहां पर कृषि शुरू की गई है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि इलाकों में 10 प्रतिशत से भी कम क्षेत्रफल पर वन मिलते हैं। गुजरात के शुष्क क्षेत्रों, जम्मू-कश्मीर के ऊबड़-खाबड एवं तीव्र ढाल वाले तथा हिमाच्छादित क्षेत्रों में भी 10 प्रतिशत से कम क्षेत्र पर वन उगे हुए हैं। हरित क्रांति का उद्गम स्थान कहलाने वाले पंजाब में न्यूनतम 3 प्रतिशत क्षेत्र पर वन पाए जाते हैं। पश्चिमी घाट के वर्षा छाया प्रदेश में आने वाले महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के विस्तृत इलाकों में भी वन कम ही मिलते हैं।
वनों के लाभ (Advantages of Forests)
वनों से मनुष्य को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से कई लाभ होते हैंः
प्रत्यक्ष लाभ
वनों से निम्नलिखित प्रत्यक्ष लाभ हैंः
1. भोजनः आदि मानव वनों में रहता था और वहीं से कंद-मल फल अथवा पशु-पक्षियों के आखेट से अपनी उदर-पूर्ति करता था। आज भी कई आदिम जातियां अपने भोजन के लिए वनों पर ही निर्भर करती हैं।
2. औद्योगिक कच्चा मालः वनों से बहुत से उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध होता है। कागज, दियासलाई, लाख, प्लाईवुड, रेशम, खेलों का सामान आदि कई उद्योग वनों पर ही निर्भर करते हैं।
3. जड़ी-बूटियांः वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलती हैं, जिनसे विभिन्न प्रकार की औषधियां बनती हैं।
4. ईंधन की लकड़ीः लकड़ी वनों की सबसे बड़ी उपज है और ईंधन का सबसे बड़ा साधन है। प्राचीन काल में तो मानव जाति ईंधन के लिए पूर्णतया लकड़ी पर ही निर्भर करती थी। आज जबकि कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत आदि ईंधन के कई विकल्प उपलब्ध हैं तो भी लकड़ी एक महत्वपूर्ण ईधन है।
5. पशुओं के लिए चाराः कई वनों में विस्तृत क्षेत्र पर घास उगती है जो पशुओं के चारे का काम करती है। कई पशु पेड़-पौधों को खाकर अपना निर्वाह करते हैं।
6. आजीविकाः वन असंख्य व्यक्तियों को आजीविका प्रदान करते हैं। लकड़ी को काटने, चीरने तथा वनों पर आधारित उद्योगों से लाखों को आजीविका मिलती है। भारत में लगभग 35 लाख व्यक्ति वनों से अपनी आजीविका कमाते हैं।
7. सरकारी आयः वन्य उत्पादों से कर के रूप में सरकार को काफी आय होती है। सन् 1951-52 में सरकार को वनों से 15.22 करोड़ रुपये की आय हुई जो बढ़कर 2000-2001 में 250 करोड़ रुपये हो गई। इसके अतिरिक्त, प्रतिवर्ष लगभग 100 करोड़ रुपये मूल्य क वन उत्पादों का किया जाता है।
अप्रत्यक्ष लाभ
उपर्युक्त प्रत्यक्ष लाभों के अतिरिक्त वनों के अप्रत्यक्ष जो निम्नलिखित हैं:
1. मृदा-अपरदन पर नियन्त्रणः वृक्षों की जड़ें मिल दृढता से जकड़े रखती हैं अतः जब कभी वर्षा होती मिट्टी अपने स्थान पर ही बनी रहती है। इस प्रकार मृदा अपरदन को रोकने के लिए वन महत्वपर्ण जान निभाते हैं। आजकल देश के विभिन्न प्रदेशों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए वन लगाए जाते हैं।
2. बाढ़ों की रोकथामः जब वर्षा होती है तो पेडों की जो बहुत-सा पानी चूस लेती हैं और बाद में धीरे-धीरे उसे प्रयोग करती रहती हैं। इस प्रकार वन बाढ़ों की रोकथाम में भी बड़ी सहायता करते हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों में वनों को काटने के कारण बाढ़ों का प्रकोप बढ़ गया है।
3. मरुस्थलों के प्रसार पर नियन्त्रणः वन मरुस्थलों के प्रसार को रोकते हैं क्योंकि वृक्षों की जड़ें रेत के कणों को परस्पर जकड़े रखती हैं तथा रेत को आगे नहीं बढ़ने देती। दूसरे, मरुस्थल की जलवायु को धीरे-धीरे आर्द्र बनाने में वन प्रयत्नशील रहते हैं। दक्षिण-पश्चिमी हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब तथा राजस्थान में मरुस्थलों को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर वन लगाए जा रहे हैं।
4. जलवायु पर प्रभाव: वनाच्छादित क्षेत्रों में पत्तों से वाष्पीकरण होता रहता है जिससे तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है। अतः जब आर्द्र वायु इनके ऊपर से गुजरती है तो संघनन होता है जिससे बादलों का निर्माण होता है और वर्षा होती है।
5. मिट्टी की उर्वरता को बढ़ानाः भूमि पर गिरे हुए पेड़ों के पत्ते कुछ देर के बाद गल-सड़ जाते हैं और मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे मिट्टी में जीवांश (Humus) की मात्रा में वृद्धि होती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
भारत में कुल क्षेत्रफल के केवल 20.59 प्रतिशत भाग पर ही वन पाए
जाते हैं। अच्छे वनों के क्षेत्र और भी कम हैं। देश के सन्तुलित विकास के लिए देश के लगभग एक-तिहाई भाग पर वन पाए जाने चाहिए। जनसंख्या और पशुओं की अत्यधिक वृद्धि के कारण वन-सम्पदा का ह्रास तेजी से हुआ है। परन्तु अब वना की संरक्षण एवं विकास आवश्यक हो गया है जिसके लिए उत्तम तरीका की खोज करने तथा उन्हें अपनाने की आवश्यकता है। साथ ही तेजी से उगने वाले पेड़ों की जातियाँ लगाकर वनों के क्षेत्र का विस्तार करना चाहिए।
भारतीय वनों की समस्याएँ
भारतीय वनों की सबसे बड़ी समस्या उनका तेजी से ह्रास है। वन हमें विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ प्रदान करते हैं। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ वन्य पदार्थों की माँग भी बढ़ती जाती है। वनों का सबसे महत्वपूर्ण उत्पाद लकड़ी है जिसे ईंधन, भवन-निर्माण, फर्नीचर तथा अन्य कई कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में प्रतिवर्ष 20.34 करोड़ घन मीटर लकड़ी वनों से प्राप्त की जाती है। इसके लिए बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जाते हैं। कई वनों को साफ करके वहाँ कृषि शुरू की गई है। देश के उत्तर-पूर्वी भागों में स्थानान्तरीय कृषि की जाती है जिससे वनों की बहुत हानि होती है। बहुत से उद्योग वनों पर ही निर्भर करते हैं और उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराने के लिए वनों का ह्रास किया जाता है। ।
दूसरी समस्या वन्य प्रदेशों में परिवहन की है। बहुत से क्षेत्रों में परिवहन की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं जिस कारण वनों का उचित दोहन करने में कठिनाई आती है। भारत के वन क्षेत्र का 16% दुर्गम है। इसके अतिरिक्त शीतोष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन बड़े घने हैं और इनकी लकड़ी सख्त होती है। एक ही स्थान पर कई प्रकार के वृक्ष उगते हैं। इसलिए ये वन आर्थिक दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं।
वनों की उपयोगिता तथा उनके ह्रास को देखते हुए भारत में वनों के विकास तथा उनके संरक्षण की बहुत आवश्यकता है। भारत की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है कि देश का 33ः भाग वनों से ढंका होना चाहिए। इसके अनुसार पर्वतीय क्षेत्र 60% तथा मैदानी भाग के 20% भाग पर वन होने चाहिए। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई अभियान चलाए गए। सन् 1950 से अब तक प्रतिवर्ष ‘वन महोत्सव‘ मनाया जाता है। इसके अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में वृक्षारोपण किया जाता है। कृषि के लिए अनुपयुक्त क्षेत्रों, नहरों, सड़कों तथा रेल-मार्गों के किनारों पर वृक्ष लगाए जाते हैं। 1950 में ही चार करोड़ पेड़ लगाए गए, जिनमें से एक-चैथाई वृक्ष पनप कर बड़े हुए। अगले वर्ष 1951 में भी चार करोड़ वृक्ष लगाए गए। 12 मई, 1952 को वन नीति (थ्वतमेज च्वसपबल) निर्धारित की गई, जिसका 1988 में संशोधन किया गया। इसके अन्तर्गत देश के एक-तिहाई भाग पर वन लगाने की बात कही गई।
राजस्थान में मरुस्थल को आगे बढ़ने से रोकने के लिए 650 किमी. लम्बी तथा 8 किमी. चैड़ी पट्टी में पाकिस्तानी सीमा के साथ-साथ वृक्ष लगाए गए हैं।
देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान (Forest Research Institute) वनों के विकास में विशेष योगदान दे रहा है। जोधपुर, जबलपुर, जोरहाट, बंगलुरू तथा कोयम्बटूर स्थित इस संस्थान के पाँच कॉलेज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। मार्च 1981 में भोपाल में Indian Institute of Forest Management की स्थापना की गई। अगस्त 1999 में National Forestry Action Programme (NFAP) तैयार किया गया। इससे वनों के संरक्षण तथा विकास में बड़ी सहायता मिलने की संभावना है।

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