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रुद्धोष्म प्रक्रम , रुद्धोष्म प्रक्रम एवं समतापी प्रक्रम क्या है , अंतर , उदाहरण , adiabatic process and isothermal process difference
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ऊष्मागतिकी : भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत ऊष्मा एवं ताप की अवधारणा को समझाया जाता है तथा ऊष्मा ऊर्जा का अन्य उर्जाओं के रूपांतरण तथा अन्य ऊर्जाओं का ऊष्मा ऊर्जा का अध्ययन ऊष्मागतिकी में किया जाता है।
तापीय साम्य या तापीय संतुलन अवस्था
ऊष्मा का स्थानान्तरण उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है। ऊष्मा का स्थानान्तरण जब तक होता रहता है जब तक की दोनों निकायों का ताप समान नहीं हो जाए , इस अवस्था को तापीय साम्य या तापीय संतुलन अवस्था कहते है।
तापीय साम्य की स्थिति में ऊष्मा स्थानांतरित नहीं होती है।
ऊष्मागतिकी का शून्यांकी नियम : यह नियम उष्मागतिकी का मूल सिद्धांत है , यह नियम तापीय साम्य की स्थिति को स्पष्ट करता है।
इस नियम के अनुसार यदि दो निकाय किसी तीसरे निकाय के साथ तापीय साम्य में है तो वे दोनों निकाय आपस में भी तापीय साम्यावस्था में होंगे।
माना निकाय A व C तापीय साम्य में है अत:
TA = Tc . . . . . . . . . समीकरण-1
निकाय B व C तापीय साम्य में है –
TB – TC . . . . . . . . समीकरण-2
समीकरण-1 और समीकरण-2 की तुलना करने पर –
TA = TB
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम : इस नियम के अनुसार किसी निकाय को दी गयी ऊष्मा का भाग आंतरिक ऊष्मा में वृद्धि करता है जबकि शेष भाग कार्य में परिवर्तित हो जाता है , इसे उष्मागतिकी का प्रथम नियम कहते है।
ऊष्मा गतिकी का प्रथम नियम ऊष्मा संचरण के सिद्धांत पर आधारित है।
माना किसी निकाय को dθ ऊष्मा दी जाती है , ऊष्मा का कुछ भाग निकाय की आंतरिक ऊर्जा (dV) में वृद्धि करता है , शेष ऊष्मा कार्य में परिवर्ती हो जाती है।
ऊर्जा संरक्षण नियम से –
dθ = dV + dW
= ( बल/क्षेत्रफल ) x विस्थापन x क्षेत्रफल
= दाब x आयतन
W = PV
चूँकि dW = Pdw
dθ = dV + PdV
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुप्रयोग –
- समतापी प्रक्रम
- समआयतनी प्रक्रम
- समदाबी प्रक्रम
- चक्रीय प्रक्रम
- रुद्धोष्म प्रक्रम
- समतापी प्रक्रम: वे प्रक्रम जो स्थिर ताप पर होते है , समतापीय प्रक्रम कहते है। समतापीय प्रक्रम पर किसी निकाय को दी गयी सम्पूर्ण ऊष्मा कार्य में परिवर्तित हो जाती है।
अर्थात समतापीय प्रक्रम की स्थिति में निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन का मान शून्य होता है अत: ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से –
dθ = dV + dW
यदि T = नियत
चूँकि dU = 0
dθ = 0 + dW
dθ = dW
- समआयतनी प्रक्रम: स्थिर आयतन पर होने वाले प्रक्रम को समआयतनी प्रक्रम कहा जाता है।
समआयतनी प्रक्रम की स्थिति में आयतन में होने वाले परिवर्तन का मान शून्य होता है।
ऊष्मा गतिकी के प्रथम नियम से –
dθ = dV + dW
चूँकि V = नियत
चूँकि dV = शून्य
dθ = dV + 0
dθ = dV
- समदाबीय प्रक्रम: स्थिर दाब पर होने वाले प्रक्रम समदाबीय प्रक्रम कहलाते है।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से –
dθ = dV + dW
dθ = dV + PdV
यदि P = नियत
- चक्रीय प्रक्रम: वह प्रक्रम जो विभिन्न अवस्थाओ से होता हुआ अपनी प्रारंभिक अवस्था में पहुँच जाता है , चक्रीय प्रक्रम कहलाता है।
चक्रीय प्रक्रम के दौरान आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन का मान शून्य होता है , क्योंकि आंतरिक ऊर्जा प्रक्रम की प्रारंभ अवस्था व अंतिम अवस्था पर निर्भर करती है।
उष्मागतिकी के प्रथम नियम से –
dθ = dV + dW
चूँकि dV = 0
dθ = dW
- रुद्धोष्म प्रक्रम: वह प्रक्रम जो अपने चारो ओर के परिवेश के साथ उष्मीय रूप से विलगित रहता है अर्थात परिवेश के साथ ऊष्मा का आदान प्रदान नहीं करता है , रुद्धोष्म प्रक्रम कहलाता है।
रुद्धोष्म प्रक्रम के दौरान किसी निकाय के द्वारा ग्रहण की गयी ऊष्मा dθ का मान शून्य होता है।
उष्मागतिकी के प्रथम नियम से –
dθ = dV + dW
चूँकि dθ = 0
0 = dV + dW
dW = -dV
यदि रुद्धोष्म प्रक्रम की स्थिति में निकाय के द्वारा कार्य किया जाता है तो निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में कमी होती है। यदि निकाय पर कार्य किया जाता है तो इस स्थिति में निकाय की आंतरिक उर्जा में वृद्धि होती है।
ऊष्मागतिकी निकाय में किया गया कार्य –
W = PdV
यदि आयतन V1 व V2 तक परिवर्तित होता है तो –
W = v1∫v2 PdV
समतापीय प्रक्रम में किया गया कार्य –
उष्मागतिकी निकाय में किया गया कार्य –
W = v1∫v2 PdV . . . . . . . समीकरण-1
गैस अवस्था समीकरण –
PV = nRT
P = nRT/V . . . . . . . समीकरण-2
समीकरण-2 का मान समीकरण-1 में रखने पर –
W = v1∫v2 (nRT/V)dV
W =nRT v1∫v2 (1 /V)dV
W = nRT [logeV]v1v2
W = nRT [logeV2 – logeV1]
चूँकि logeM/N = logeM – logeN
W = nRT logeV2/V1
Loge को log10 में बदलने के लिए 2.303 से गुणा करते है |
W = 2.303 nRT log10V2/V1 समीकरण-3
समतापीय प्रक्रम केल्विन –
PV = nRT
यदि T = नियत
PV = नियत
P1V1 = P2V2
P1/P2 = V2/V1 समीकरण-4
समीकरण-3 व समीकरण-4 से –
W = 2.303 nRT log10P1/P2
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