JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: sociology

आदिम साम्यवादी समाज क्या है | परिभाषा क्या है aadim samyavad samaj in hindi किसे कहते है ?

aadim samyavad samaj in hindi आदिम साम्यवादी समाज क्या है | समाजवाद परिभाषा क्या है किसे कहते है ?

आदिम साम्यवादी समाज
आदिम साम्यवादी समाज उत्पादन प्रणाली का सर्वप्रथम, सरलतम तथा निम्नतम स्वरूप था। इस उत्पादन प्रणाली के काल में नये तथा उन्नत किस्म के औजारों जैसे कि तीर-कमान आदि का विकास हुआ तथा मनुष्य ने आग का प्रयोग करना सीखा। वाद-संवाद प्रक्रियापरक भौतिकवाद के नियमों के संदर्भ में, ये परिवर्तन मात्रात्मक परिवर्तन के उदाहरण थे। कृषि एवं पशुपालन की शुरूआत भी इसी प्रकार के परिवर्तनों के उदाहरण थे। उत्पादन शक्तियां अत्यधिक निम्न स्तर की थी तथा उत्पादन अनुरूप ही संबंध थे। समाज में उत्पादन के साधनों पर समान व सामुदायिक स्वामित्व था। अतः उत्पादन के संबंध सहकारिता और परस्पर सहायता पर आधारित थे। ये संबंध इस तथ्य से निर्धारित होते थे कि प्रकृति की महाकाय शक्तियों का मुकाबला आदिम व्यक्ति अपने आदिम औजारों के साथ सामूहिक रूप से ही कर सकता था।

आदिम समाज में भी उत्पादक शक्तियाँ निरंतर विकसित होती रहीं। नये औजार बनाए गये और कार्य कौशल को धीरे-धीरे बढ़ाया गया। इस समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिवर्तन था, धातु के औजार बनाना। उत्पादकता के विकास के साथ-साथ समाज की सामुदायिक संरचना टूट कर परिवारों के रूप में फैलने लगी। ऐसी स्थिति में निजी सम्पत्ति की अवधारणा विकसित हुई तथा धीरे-धीरे उत्पादन के साधनों पर परिवारों का स्वामित्व होने लगा। यहां पर उत्पादन के सामुदायिक संबंधों तथा शोषक वर्ग के संभावित स्वरूपों के मध्य विरोधाभास के कारण गुणात्मक परिवर्तन हुआ, अर्थात् आदिम साम्यवादी उत्पादन प्रणाली का प्राचीन उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन हुआ। इस व्यवस्था में विपरीत शक्तियों के मध्य संघर्ष था जिसके परिणामस्वरूप आदिम साम्यवादी व्यवस्था का निषेध हुआ। इसके फलस्वरूप दास प्रथा की एक नई अवस्था अस्तित्व में आई। दास प्रथा को आदिम साम्यवादी व्यवस्था के निषेध के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

दास प्रथावादी समाज
समाज के इस स्वरूप में आदिम समानता का स्थान सामाजिक असमानता ने ले लिया तथा दासों और मालिकों के वर्गों का उदय हुआ। उत्पादन शक्तियों में और अधिक मात्रात्मक परिवर्तन हुए। दास प्रथावादी समाज में उत्पादन के संबंध मालिकों के सम्पूर्ण स्वामित्व पर आधारित थे। मालिकों का उत्पादन के साधनों, दासों तथा उनके द्वारा किए गए उत्पादन पर स्वामित्व होता था।

इस समाज में मालिक और दासों के मध्य विरोध मौजूद था। जब इन विरोधाभासों के मध्य संघर्ष परिपक्व दशाओं तक पहुंच गया तो समाज में गुणात्मक परिवर्तन हुआ। अर्थात् दास प्रथावादी समाज का निषेध हुआ, जिसके फलस्वरूप यह समाज सामन्तवादी समाज में बदल गया। विपरीतों के संघर्ष अर्थात् मालिक और दासों के बीच संघर्ष के कारण हिंसक दास क्रांतियां हुई, यह दास प्रथावादी समाज का निषेध था। अतः सामंतवादी व्यवस्था को निषेध का निषेध कहा जा सकता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि यहां पर सामंतवादी समाज को दास प्रथावादी समाज के निषेध के उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है, जो कि स्वयं आदिम साम्यवादी समाज का निषेध है।

 सामंतवादी समाज
दास प्रथा पहली अवस्था थी, जिसमें मालिक वर्ग द्वारा दास वर्ग के शोषण तथा अधिपत्य पर उत्पादन के संबंध आधारित थे। यह वह अवस्था थी, जहां से वर्ग असमानता और वर्ग संघर्ष का इतिहास शुरू हुआ है। पूर्व अवस्था की तुलना में, इस अवस्था में ही उत्पादन के संबंधों में मौलिक गुणात्मक अंतर आये। सामंतवादी अवस्था के दौरान उत्पादन की शक्तियों में तीव्र मात्रात्मक परिवर्तन हुये, जिनके अंतर्गत पहली बार ऊर्जा के, जल तथा वायु जैसे अजैवकीय साधनों का प्रयोग हुआ। इन उत्पादक शक्तियों के विकास में सामंतवादी उत्पादन के संबंधों से सहायता मिली। सामंतवादी भूपतियों ने भूमिहीन किसानों को उत्पीड़ित एवं शोषित किया। कालांतर में नगरों का विकास हुआ। इस अवस्था में व्यापार व वाणिज्य तथा उत्पादन भी बढ़ा।

ऐसी स्थिति में सामंतवादी जागीरों से अनेक भूमिहीन किसान नवविकसित नगरों में भाग गये ताकि वे वहां व्यापार कर सकें। सामंतवादी व्यवस्थायें विपरीतों का संघर्ष, (अर्थात् भूमिहीन किसानों और सामंतवादी भूपतियों के बीच संघर्ष) अपनी परिपक्वता पर पहुंच गया। सामंतवादी व्यवस्था का पतन हुआ तथा इसका निषेध पूंजीवादी व्यवस्था थी।

 पूंजीवादी समाज
निजी पूंजीवादी स्वामित्व पर आधारित पूंजीवादी उत्पादन संबंधों ने उत्पादक शक्तियों की अत्यधिक तेज प्रगति में सहायता दी। उत्पादक शक्तियों के इस तीव्र विकास के बाद उत्पादन के पूंजीवादी संबंध इन शक्तियों के अनुरूप नहीं रह गये थे। धीरे-धीरे ये संबंध शक्तियों के विकास में बाधा बन गए। पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विरोधाभास उत्पादन के सामाजिक स्वरूप तथा उपभाग के निजी पूंजीवादी स्वरूप में निहित है। पूंजीवादी समाज में उत्पादन का स्पष्ट सामाजिक स्वरूप होता है। विशालकाय फैक्ट्रियों के लाखों श्रमिक एक साथ मिलकर काम करते हैं तथा सामाजिक उत्पादन में भाग लेते हैं, जबकि उत्पादन के साधनों के स्वामियों का एक छोटा सा समूह उनके श्रम के लाभ हड़प लेता है। यह पूंजीवाद का मूलभूत आर्थिक विरोधाभास है। ये विरोधाभास अथवा विपरीतों के संघर्ष, आर्थिक संकट और बेरोजगारी को जन्म देते हैं। यह स्थिति पूंजीवादी और सर्वहारा वर्गों के बीच जबरदस्त वर्ग संघर्ष का कारण बनती है, अर्थात् दूसरे शब्दों में मात्रात्मक परिवर्तनों का कारण बनती है। यह श्रमिक वर्ग एक सामाजवादी क्रांति लाएगा। मार्क्स के अनुसार, यह क्रांति पूंजीवादी उत्पादन के संबंधों को समाप्त कर देगी तथा एक नया गुणात्मक परिवर्तन लायेगी अर्थात् साम्यवादी सामाजिक-आर्थिक संरचना स्थापित होगी।

जैसे कि हमने पहले देखा नई साम्यवादी सामाजिक-आर्थिक संरचना समाजवाद एवं साम्यवाद की दो अवस्थाओं से गुजरकर विकसित हुई है। समाजवाद में उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व समाप्त हो जाता है और साथ ही साथ सभी प्रकार के असमानता और उत्पीड़न के स्वरूप और शोषण भी समाप्त हो जाते हैं। इसमें उत्पादन के साधनों का सार्वजनिक स्वामित्व होता है। इस प्रकार का समाज वर्गविहीन होता है। ऐसे समाज मे सर्वहारा वर्ग सामूहिक रूप से उत्पादन के साधनों का स्वामी होगा तथा समाज के सदस्यों की आवश्यकता के अनुसार उत्पादन वितरित होगा। यह अवस्था सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व (कपबजंजवतेीपच व िचतवसमजंतपंज) की अवस्था है, जो कि बाद में राज्य व्यवस्था को भी समाप्त करके राज्यविहीन समाज की स्थापना करेगी। राज्यविहीन समाज की यह अवस्था साम्यवाद में संभव होगी। जहां कि वाद-संवाद प्रक्रिया अन्ततः समाप्त हो जाएगी और एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना होगी जो किसी भी प्रकार के विरोधाभास से मुक्त होगी। लेकिन वाद-संवाद प्रक्रिया के नियमों के अनुसार विरोधाभास बने रहेंगे, क्योंकि ये विकास के मूल आधार है। साम्यवाद के अंतर्गत मानव तथा प्रकृति के बीच विरोधाभास उत्पन्न होंगे। जैसा कि आदिम साम्यवाद में होता था। वर्तमान स्थिति में अंतर केवल इतना है कि उच्च तकनीकी से प्रकृति का अधिक प्रभावशाली तरीके से शोषण किया जाएगा। इस प्रकार हमने देखा कि वाद-संवाद प्रक्रिया के ये तीन नियम मार्क्स द्वारा दी गई समाज के इतिहास की व्याख्या में क्या भूमिका निभाते हैं।

अब समय है बोध प्रश्न 2 को हल करने का, आइये, अगले भाग (9.5) पर जाने से पहले इसे पूरा कर लें।

बोध प्रश्न 2
प) उत्पादन की चार प्रणालियों के नाम बताइये ।
अ) ब)
स) द)
पप) वर्ग संघर्ष चरमोत्कर्ष पर पहुंचकर किस अवस्था में बदलता है?
अ) क्रांति ब) दास प्रथा
स) बुर्जुआ द) सर्वहारा वर्ग (प्रोलितेरियत)
पपप) वर्गविहीन समाज किस अवस्था में होता है ?
पअ) कौन सी अवस्था समाजवाद के बाद आती है तथा इसकी विशेषता क्या होती है ?

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 2
प) अ) एशियाटिक उत्पादन प्रणाली
ब) प्राचीन उत्पादन प्रणाली
स) सामंतवादी उत्पादन प्रणाली
द) पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली
पप) अ)
पपप) समाजवाद
पअ) समाजवाद के बाद साम्यवाद अवस्था आती है, इसकी एक विशेषता है सर्वहारा वर्ग का अधिनायकत्त्व।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

7 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

7 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

7 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now