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द्विअपवर्तन की परिभाषा क्या है , कंपन तल एवं ध्रुवण तल , O-किरण व E-किरण , प्रतिबिम्ब , द्विअपवर्तक क्रिस्टल birefringence in hindi

birefringence in hindi , द्विअपवर्तन की परिभाषा क्या है , कंपन तल एवं ध्रुवण तल , O-किरण व E-किरण , प्रतिबिम्ब , द्विअपवर्तक क्रिस्टल :-

ध्रुवण (polarization in hindi): मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धांत के अनुसार प्रकाश के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती , प्रकाश निर्वात में भी गमन करता है। प्रकाश में विद्युत सदिश एवं चुम्बकीय सदिश के कण विद्यमान होते है जो तरंग संचरण के लम्बवत व एक दूसरे के लम्बवत कम्पन्न करते है जिसके कारण प्रकाश की प्रकृति अनुपृष्ठ होती है।

प्रकाश में विद्युत सदिश का गुण अधिक पाया जाता है एवं चुम्बकीय सदिश का गुण कम पाया जाता है इसलिए चुम्बकीय सदिश के कण को नगण्य मान लिया जाता है और प्रकाश को विद्युत सदिश या प्रकाश सदिश कहा जाता है।

प्रकाश के विद्युत चुम्बकीय तरंग संचरण को चित्र में दर्शाया गया है –

प्रकाश दो प्रकार का होता है –

  1. अध्रुवित प्रकाश
  2. ध्रुवित प्रकाश
  3. अध्रुवित प्रकाश (unpolarized light): ऐसा प्रकाश जिसमे विद्युत सदिश के कण सभी संभव दिशाओ में कम्पन्न करते है , इस प्रकार के प्रकाश को अध्रुवित प्रकाश कहते है। जैसे – सूर्य का प्रकाश , वाहनों की हैण्ड लाइट से आने वाला प्रकाश , LED का प्रकाश आदि।

अध्रुवित प्रकाश को चित्र में दर्शाया गया है –

  1. ध्रुवित प्रकाश (polarized light): ऐसा प्रकाश जिसमे विद्युत सदिश के कण केवल एक ही तल में कम्पन्न करते है अथवा एक ही तल में सिमित होते है।

इस प्रकार के प्रकाश को ध्रुवित प्रकाश कहते है।

उदाहरण : चन्द्रमा का प्रकाश , ट्यूबलाइट का प्रकाश आदि।

अध्रुवित प्रकाश को ध्रुवित प्रकाश में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को ध्रुवण कहते है।

कंपन तल एवं ध्रुवण तल (vibration plane and polarization plane)

जब अध्रुवित प्रकाश को टुरमेलिन के क्रिस्टल पर आपतित किया जाता है तो टुरमेलिन के क्रिस्टल से निर्गत होने वाला प्रकाश पूर्णतया ध्रुवित हो जाते है।

ध्रुवित प्रकाश के कण जिस तल में कम्पन्न करते है उस तल को कम्पन्न तल कहते है।

इसे चित्र में ABCD द्वारा दर्शाया गया है।

ऐसा तल जिसमे ध्रुवित प्रकाश के कण कम्पन्न नहीं करते , इस तल को ध्रुवण तल कहते है इसे चित्र में EFGH द्वारा दर्शाया गया है।

कम्पन्न तल एवं ध्रुवण तल एक दुसरे के लम्बवत होते है।

नोट : ध्रुवित प्रकाश को समतल ध्रुवित प्रकाश भी कहा जाता है।

समतल ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करने की विधियाँ

समतल ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करने की निम्न पाँच विधियाँ होती है –

  1. परावर्तन द्वारा
  2. अपवर्तन द्वारा
  3. द्विअपवर्तन द्वारा
  4. द्विवर्णता द्वारा
  5. प्रकीर्णन द्वारा

1.परावर्तन द्वारा समतल ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करना (booster (बूस्टर) का नियम)

बुस्टर के अनुसार जब अध्रुवित प्रकाश को परावर्तक तल या सतह पर आपतित किया जाता है तो परावर्तित एवं अपवर्तित प्रकाश आंशिक रूप से ध्रुवित हो जाता है।

जब अध्रुवित प्रकाश को एक निश्चित आपतन कोण पर आपतित किया जाता है तो परावर्तित प्रकाश पूर्णतया ध्रुवित हो जाता है। इस निश्चित आपतन कोण को ध्रुवण कोण या ब्रूस्टर कोण कहते है। इसे ipसे व्यक्त करते है।

ध्रुवण कोण का मान माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है। अलग अलग माध्यम के लिए ध्रुवण कोण का मान भी अलग अलग होता है।

ब्रूस्टर के अनुसार जब अध्रुवित प्रकाश को ध्रुवण कोण पर आपतित किया जाता है तो परावर्तित प्रकाश माध्यम एवं ध्रुवण कोण की स्पर्श ज्या (tan थीटा) माध्यम के अपवर्तनांक के बराबर होती है ,इसे ब्रूस्टर का नियम कहते है।

अपवर्तित प्रकाश एक दुसरे के अभिलम्बवत गमन करते है।

चित्र से –

900+ ip+ r = 180

ip+ r = 180 – 90

ip+ r = 90

r = 90 – ipसमीकरण-1

स्नेल के नियम से –

n = sin ip/sin r

समीकरण-1 से

n = sin ip/sin(90 – ip)

चूँकि sin (90 – ip) = cos ip

n = sin ip/ cos ip

n = tan ipसमीकरण-2

जो कि ब्रूस्टर के नियम का गणितीय रूप है।

2. अपवर्तन द्वारा समतल ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करना

जब अध्रुवित प्रकाश को काँच की पट्टिका पर ध्रुवण कोण पर आपतित किया जाता है तो परावर्तित प्रकाश पूर्णतया ध्रुवित हो जाता है एवं कांच की पट्टिका से अपवर्तित प्रकाश आंशिक ध्रुवित हो जाता है। जैसे जैसे कांच की पट्टिकाओ की संख्या बढ़ाई जाती है वैसे वैसे अपवर्तित होने वाले प्रकाश में ध्रुवण की मात्रा बढती जाती है अन्तत: निर्गत प्रकाश पूर्णतया ध्रुवित हो जाता है , इस प्रकार अपवर्तन द्वारा ध्रुवित प्रकाश प्राप्त कर लिया जाता है एवं पट्टिकाओ के समूह को पट्टिका पुंज कहते है।

3. द्विअपवर्तन द्वारा समतल ध्रुवित प्रकाश प्राप्त करना

जब आइस्लेंड स्पार या कैलसाइड के क्रिस्टल पर अध्रुवित प्रकाश को आपतित किया जाता है तो यह प्रकाश अपवर्तित होकर दो किरणों में विभक्त हो जाता है , इस घटना को द्विअपवर्तन कहते है एवं क्रिस्टल को द्विअपवर्तक क्रिस्टल कहा जाता है एवं दोनों अपवर्तित प्रकाश किरणें समतल ध्रुवित होती है।

द्विअपवर्तन को समझने के लिए एक कागज पर एक स्याही का बिंदु बनाते है एवं इस कागज पर कैलसाइड के क्रिस्टल को रखते है एवं उर्ध्वाधर ऊपर से देखने पर दो बिंदु दिखाई देते है। जब कैलसाइड के क्रिस्टल को घुमाया जाता है तो एक बिंदु स्थिर रहता है तथा दूसरा बिंदु स्थिर बिंदु के चारो ओर गति करता है जो बिंदु स्थिर होता है वह प्रकाश के अपवर्तन के सामान्य नियम की पालना करता है।

अर्थात यह बिंदु साधारण किरण से मिलकर बना होता है जिसे O-किरण कहते है एवं इस बिंदु को O-प्रतिबिम्ब कहा जाता है तथा जो बिंदु स्थिर बिंदु के चारो ओर गति करता है वह अपवर्तन के नियम की पालना नहीं करता इसलिए इससे प्राप्त होने वाली किरणों को असाधारण किरण या E-किरण कहते है एवं इससे बनने वाले प्रतिबिम्ब को E-प्रतिबिम्ब कहा जाता है।

O-किरण व E-किरण से प्राप्त होने वाला प्रकाश समतल ध्रुवित होता है। कैलसाइड के क्रिस्टल में पृष्ठों के मध्य कोण क्रमशः 70 व 109 डिग्री होता है।

उदाहरण : निकोल प्रिज्म