लाइगेज एंजाइम (ligase enzyme in hindi) , DNA खंड का पृथक्करण एवं विलगन , पोलीमरेज एंजाइम , क्लोनिंग संवाहक

2. (ligase enzyme in hindi) लाइगेज एंजाइम : एक ही प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा काटने पर वाहक व विदेशी डीएनए में प्रलम्बी फैलाव चिपचिपे सिरे (स्टिकी सिरे) कहलाते है।  क्योंकि ये अपने पूरक कटे प्रतिरूप के साथ हाइड्रोजन बंध बना लेते है।

सिरों का यह चिपचिपापन लाइगेज एंजाइम द्वारा दोनों डीएनए को जोड़ने में सहायक होता है।

DNA खंड का पृथक्करण एवं विलगन

एंडोन्यूक्लिऐज द्वारा डीएनए को छोटे छोटे खण्डो में विभाजित किया जाता है।

इन टुकडो को इलेक्ट्रोफोरेसिस (जैल विद्युत का संचालन) तकनीक द्वारा अलग किया जा सकता है।

इस प्रक्रिया में समुद्री घास (सी विड्स) से प्राकृतिक बहुलक के रूप में प्राप्त ऐगारोज जेल माध्यम का उपयोग किया जाता है।

ऐगारोज जेल के छलनी प्रभाव के कारण डीएनए के खंड आकार के अनुसार पृथक होते है।

डीएनए के ऋणावेशित खण्ड या टुकडो को एनोड की तरफ भेज कर अलग कर सकते है।

DNA खंड जितने छोटे होते है , वे जेल में उतने ही दूर तक जाते है।

इन खंडो को देखने के लिए इथीडीयम ब्रोयाइड से अभिरंजित करके पराबैंगनी प्रकाश के प्रभाव में लाया जाता है।

अभिरंजित डीएनए खण्ड पराबैंगनी विकिरणों के प्रभाव से चमकीले नारंगी रंग की पट्टियों के रूप में दिखाई देते है।

पट्टियों को काट कर अलग कर लिया जाता है तथा जैल को निष्कर्षित कर दिया जाता है , इस प्रक्रिया को क्षालन कहते है।

अलग किये हुए वांछित डीएनए खण्ड को फ्लोनिंग संवाहक से जोड़कर पुनर्योगज DNA का निर्माण किया जाता है।

3. पोलीमरेज एंजाइम : इस एंजाइम की सहायता से पुनर्योग्ज डीएनए (संकर या काइमेरिक DNA) के गुणन द्वारा अनेक प्रतियाँ तैयार की जा सकती है।  इन प्रतीपो को C-DNA (copy डीएनए या complementry DNA) कहते है।

4. क्लोनिंग संवाहक (Cloning vectors) : क्लोनिंग वाहक के रूप में मुख्यतः प्लाज्मिड एवं जीवाणुभोजी को काम में लिया जाता है।  ये वाहक जीवाणुकोशिकाओ में स्वतंत्र रूप से प्रतिकृतियाँ बनाने में सक्षम होते है।

जीवाणु कोशिकाओ में जीवाणुभोजी के जीनोम की अनेक प्रतिकृतियाँ बन जाती है।

कुछ प्लाज्मिड की जीवाणुकोशिकाओ में एक या दो प्रतिकृतियां जबकि कुछ प्लाज्मिड की 15-100 तक प्रतिकृतियाँ बन सकती है।

यदि विदेशी या वांछित डीएनए खंड को इन वाहको से जोड़ दिया जाए तो वाहक के साथ साथ विदेशी DNA की संख्या भी गुणित हो जाती है।

वाहक में क्लोनिंग हेतु निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

(i) प्रतिकृतियन का उद्गम : जब कोई डीएनए खंड इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब ही उसका परपोषी कोशिका में प्रतिकृतियन संभव है।  यह अनुक्रम DNA प्रतिरूपों की संख्या के नियंत्रण के लिए भी उत्तरदायी है।

(ii) वरण योग्य चिन्हक : ori के साथ साथ संवाहक को वरण योग्य चिन्हक की भी आवश्यकता होती है।

वरण योग्य चिन्हक अरुपान्तरजो की पहचान व उन्हें नष्ट करने में सहायक होते है।

ये रूपान्तरजो की चयनात्मक वृद्धि में भी सहायक होते है।  रूपांतरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा डीएनए खण्ड को परपोषी जीवाणु में प्रवेश कराते है।

एंपिसिलिन , क्लोरैम्फे निकोल , टेट्रासाइक्लिन या केनामाइसिन जैसे एंटीबायोटिक के प्रतिरोध करने वाले जीनो को ई. कोलाई के लिए वरण योग्य चिन्हक माना जाता है।

  • PBR : P-प्लाज्मिड , B-बोलिवर , R-rodriguez : इस संवाहक में 4361 क्षारक युग्म होते है।
  • प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन – amp , tet
  • प्रतिबंधन एंजाइम हेतु स्थल – Hind-III , eco R-I , Bam H-I , Sol-I , PVU-II , Pst I , Cla-I
  • प्लाज्मिड प्रतिकृतियन में भाग लेने वाले प्रोटीन का कोड- rop