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मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है ?

प्रमुख इतिहासकार

मुहणोत नैणसी : इनकी इतिहास विषयक घटनाओं में बचपन से ही रूचि थी। चारण भाटों से प्राप्त जानकारी को ये लिपिबद्ध कर लेते थे मुहणोत नैणसी का जन्म ओसवाल वैश्यों की मुहणोत शाखा में 1610 ई. में हुआ। इनके पिता जयमल एवं माता स्वरूप देवी थी मुंहणोत घराना कई पीढ़ियों से मारवाड़ राजघराने की सेवा में काम करता आया था युवावस्था में नैणसी को भी राज्य की सेवा में नियुक्त कर लिया गया। 1657-58 ई. में नैणसी की सैनिक एवं राजनीतिक योग्यता को देखकर महाराजा जसवन्त सिंह ने उसे अपना दीवान नियुक्त किया। उन्होंने दस वर्ष तक राज्य की सेवा की जब औरंगजेब ने महाराजा जसवन्त सिंह को शिवाजी का दमन करने के लिए औरंगाबाद भेजा तो वे अपने साथ नैणसी तथा उसके भाई सुन्दरदास को भी लेते गये। वहाँ महाराजा जसवन्त सिंह उनसे नाराज हो गये तथा दोनों भाइयों को बन्दी बना लिया गया तथा अन्त में उन्हें जोधपुर भेजते समय मरवा दिया गया। यह विस्मय जनक घटना है।

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नैणसी ने दो महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे हैं

(1) मुहतो नैणसी मुहणोत नैणसी री ख्यात

(2) मारवाड़ रा परगना री विगत

इनमें ख्यात अधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ सिद्ध हुआ है।

कर्नल जेम्स : टॉड 20 मार्च 1782 ई. को इंग्लैण्ड में जन्मा टॉड 1798 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी में एक सैनिक रंगरूट बनकर भारत आया उसने 1801 ई. में उसने दिल्ली के निकट एक पुरानी नहर की पैमाइश का काम किया तथा 1805 ई. में वह दौलतराव सिंधिया के दरबार में एक सैनिक टुकड़ी में नियुक्त किया 1817 से 1822 ई. के मध्य टॉड को पश्चिमी राजपूत राज्यों में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का पॉलिटीकल एजेन्ट बनाकर भेजा गया। इस अवधि में टॉड ने वहाँ की इतिहास विषयक जानकारी एकत्र की उसे राजपूत शासकों से इतना अधिक लगाव हो गया था कि उसके अधिकारियों को भी उसकी स्वामी भक्ति पर संदेह उत्पन्न हो गया उसे 1822 ई. में स्वास्थ्य के आधार पर त्यागपत्र देना पड़ा। तत्पश्चात् टॉड इंग्लैण्ड चला गया और 1829 ई. में उसके प्रसिद्ध ग्रंथ “एनल्स का प्रथम खण्ड तथा 1832 ई. में द्वितीय खण्ड प्रकाशित हुआ। पश्चिमी भारत की यात्रा” नामक ग्रंथ उसकी मृत्यु (1835 ई) के पश्चात् 1839 ई. में प्रकाशित हुआ।

टॉड द्वारा रचित एनल्स राजस्थान के राजपूतों के विषय में विश्वकोष है। एनल्स के प्रथम खण्ड में राजपूताने की भौगोलिक स्थिति, राजपूतों की वंशावली. सामन्ती व्यवस्था और वीर भूमि मेवाड़ का इतिहास है द्वितीय खण्ड में मारवाड़, बीकानेर, जैसलमेर, आमेर और हाड़ौती के राज्य का इतिहास है। पश्चिमी भारत की यात्रा नामक ग्रंथ में भ्रमण करते समय व्यक्तिगत अनुभवों के साथ साथ राजपूती. परम्पराओं, अन्धविश्वासों, आदिवासियों के जीवन मंदिरों, मूर्तियों, पण्डे-पुजारियों और अन्हिलवाड़ा, अहमदाबाद तथा बड़ौदा का इतिहास लिखा है एक विदेशी होते हुए उसने राजपूती समाज के विषय विस्तृत विवरण दिया है। टॉड की मान्यता ने कि “राजस्थान में कोई छोटा सा राज्य भी ऐसा नहीं जिसमें धर्मोपोली जैसी रणभूमि न हो और शायद अन्य सहायकों की नियुक्ति की कोई ऐसा नगर मिले जहाँ लियोनियस जैसा वीर पुरु पैदा न हुआ हो”।

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टॉड का ग्रन्थ इतना महत्वपूर्ण होते हुए दोष युक्त है। उसने राजपूत जाति के विषय में विवरण दिया है। यह वैज्ञानिक पद्धति द्वारा ग्रंथ नहीं है। संभवतः राजस्थान के इतिहास सम्बन्धित टॉड को इतनी सामग्री उपलब्ध नहीं हो पा थी, जितनी वर्तमान में उपलब्ध है। वह संस्कृत, प्राकृत अरबी, फारसी भाषाओं का जानकर भी नहीं था समय यह अनुवादकों पर निर्भर था। अनुवादको त्रुटियों का समावेश भी उसके लेखन को दोषपूर्ण बन है।

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