द्वितीयक वृद्धि , संवहन कैम्बियम , बसंत दारु और शरद दारु / अग्र दारू तथा पश्च दारू

Secondary growth in hindi द्वितीयक वृद्धि : मूल व तने की लम्बाई में वृद्धि शीर्षस्थ विभज्योत्तक द्वारा होती है , जिसे प्राथमिक वृद्धि कहते है , द्विबीजपत्री पादपो में प्राथमिक वृद्धि के अतिरिक्त मोटाई में वृद्धि भी होती है , जिसे द्वितीयक वृद्धि कहते है।  द्वितीयक वृद्धि में पाश्र्विय मेरिस्टेमी , संवहन कैम्बियम व कोर्क कैम्बियम भाग लेते है।

संवहन कैम्बियम :

जाइलम व फ्लोएम के मध्य से गुजरती हुई मेरिस्टेमी सतह को संवहन कैम्बियम कहते है।
कैम्बियम छल्ले का निर्माण :
द्विबीजपत्री तने में प्राथमिक जाइलम व फ्लोएम के मध्य स्थित कैम्बियम अन्त: पुलिय कैम्बियम कहलाता है , इसकी मध्यांश कोशिकाएं विभज्योत्तकी होकर अन्तरा पुलिय कैम्बियम बनाती है , जो एक छल्ले के रूप में पाया जाता है।
कैम्बियम छल्ले की क्रिया :
कैम्बियम छल्ला सक्रीय होकर बाहर व भीतर दोनों ओर नयी कोशिकाएं बनाता है , जो कोशिकाएँ मज्जा की ओर बनती है।  द्वितीयक जाइलम बनाती है तथा जो कोशिकाएं परिधि की ओर बनती है द्वितीयक फ्लोएम बनाती है।
कैम्बियम भीतर की ओर अधिक सक्रीय होता है जिससे द्वितीयक जाइलम अधिक बनता है जबकि परिधि की ओर कम सक्रीय होता है जिससे द्वितीयक फ्लोएम कम बनता है।  द्वितीयक जाइलम मज्जा की ओर जबकि द्वितीयक फ्लोएम परिधि की ओर बढ़ता जाता है।
इस दौरान कैम्बियम पेरेन्काइमा द्वितीयक जाइलम व द्वितीयक फ्लोएम से होकर अरीय संकरी पट्टियाँ बना लेती है जिन्हें मज्जा किरणें कहते है।
बसंत दारु और शरद दारु / अग्र दारू तथा पश्च दारू (spring wood and autumn wood / early wood and late wood)

कैम्बियम की संक्रियता पर्यावरणीय कारकों द्वारा नियंत्रित होती है , उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में जलवायु समान नहीं होती है।

बसन्त व शरद ऋतू एकांतर क्रम में आती है , बसंत ऋतु में कैम्बियम अधिक सक्रीय होकर अधिक संख्या में तथा चौड़ी वाहिकाएं बनाता है।  इस ऋतु में बनने वाले जाइलम को बसंत दारु या अग्र दारु कहते है।

शरद ऋतु में कैम्बियम कम सक्रीय होता है जिससे संकरी व कम संख्या में वाहिकाएँ बनती है।  इस ऋतु में बनने वाले जाइलम को शरद दारू या पश्च दारू कहते है।

बसन्त दारू का रंग गहरा व घनत्व अधिक होता है जबकि शरद दारू का रंग हल्का व घनत्व कम होता है।  दोनों जाइलम एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होकर एक वलय बनाते है जिसे वार्षिक वलय कहते है।

वार्षिक वलय को गिनकर वृक्ष की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है।

रस काष्ठ  :  परिधि की स्थित द्वितीयक जाइलम को रस दारू या रस काष्ठ कहते है।  इसमें सजीव पेरेन्काइमा कोशिकाएं होती है , यह हल्के रंग का होता है , यह जल व खनिज लवणों का संवहन करता है।

छाल वल्क (Bark) : कॉर्क कैम्बियम की सक्रियता से वल्कुट की बाहरी परत व बाह्य त्वचा पर दबाव पड़ने के कारण ये मृत होकर उतरने लगती है।  ये मृत कोशिकाएँ छाल वल्क बनाती है।  मौसम के प्रारम्भ में बनने वाली छाल को प्रारम्भिक या कोमल छाल कहते है व मौसम के अन्त में बनने वाली छाल पश्च या कठोर छाल कहलाती है।
वातरन्ध्र (conticels) : तने पर कुछ क्षेत्रों में कॉर्क कैम्बियम , कॉर्क कोशिकाएं बनाने के बजाय पेरेन्काइमा कोशिकाएँ बना लेता है , ये कोशिकाएं बाह्यत्वचा पर फट जाती है व लेंस के आकार के छिद्र बनाती है। जिन्हें  वात रन्ध्र कहते है।  ये गैसों के आदान प्रदान में सहायक होते है।
मूल में द्वितीयक वृद्धि : द्विबीजपत्री में संवहन कैम्बियम फ्लोएम के नीचे व जाइलम के ऊपर परिरम्भ का भाग होता है , यह एक अखण्ड लहरदार छल्ला बनाता है जो बाद में वृताकार हो जाता है इससे आगे की क्रियाएं द्विबीजपत्री तने के समान होती है।