Theory of Paramagnetism in hindi अनुचुम्बकत्व का सिद्धांत क्या है सूत्र लिखिए सिद्ध कीजिये
जानिये Theory of Paramagnetism in hindi अनुचुम्बकत्व का सिद्धांत क्या है सूत्र लिखिए सिद्ध कीजिये ?
ठोस पदार्थों की विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat of Solids )
एक ठोस की विशिष्ट ऊष्मा के लिए चिरसम्मत सिद्धान्त में यह कल्पना की जाती है कि उसके अणु, जब अपनी संतुलन स्थितियों से विस्थापित कर दिये जाते हैं तो उन पर एक रैखिक प्रत्यानयन बल कार्य करता है और वे संतुलन स्थितियों के प्रति सरल आवर्त गति करते हैं। ताप में वृद्धि से दोलन गति के आयाम, और परिणामत: उनकी ऊर्जा में वृद्धि होती है। नियत आयतन पर विशिष्ट ऊष्मा, उस ऊर्जा की एक माप है जो इन आण्विक कम्पनों की ऊर्जा में वृद्धि के लिए देनी आवश्यक है। चूँकि एक सरल आवर्ती दोलित्र की गतिज एवं स्थितिज, दोनों ऊजाएँ संगत निर्देशांकों के द्विघाती फलन हैं, अत: समविभाजन सिद्धान्त अनुप्रयुक्त होता है तथा माध्य कुल ऊर्जा KT होती है, (गतिज ऊर्जा के लिए KT/2 , स्थितिज ऊर्जा के लिए – KT/2)। परन्तु एक ठोस के अणु तीन विमाओं में दोलन के लिए स्वतंत्र होते हैं और एक सीधी रेखा में गति करने के लिए सीमित नहीं होते हैं, इसलिए प्रत्येक के लिए माध्य ऊर्जा 3kT निर्धारित की जाती है। अत: ताप T पर ऊष्मीय संतुलन में N अणुओं के एक समुच्चय की कुल ऊर्जा होगी
का एक अंग है।
चित्र (6.11-2) डिबाई सिद्धान्त के अनुसार Cv/R का T/θ के फलन के रूप में एक ग्राफ है। इसकी चित्र (6.11-1) से समरूपता स्पष्ट है।
अनुचुम्बकत्व का सिद्धान्त (Theory of Paramagnetism)
अणुओं में अपनी कक्षाओं में चक्कर काटते हुये तथा अपनी अक्षों के प्रति चक्रण करते हुए एक या अधिक इलेक्ट्रॉन होते हैं जिसके फलस्वरूप अणुओं में चुम्बकीय आघूर्ण एवं कोणीय संवेग होते हैं। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभावस्वरूप आण्विक चुम्बकों पर बल आघूर्ण कार्य करता है तथा अणुओं के मध्य संघट्टन व ऊर्जा के पुनर्वितरण द्वारा उनका सरैखण होता है। साथ ही आण्विक संघट्ट नियमित व्यवस्था को यादृच्छिक व्यवस्था में परिवर्तित करने का कार्य भी करते हैं। गुणात्मक रूप से जितना अधिक ताप होगा उतनी ही अधिक प्रचंड ऊष्मीय गति होगी और उतना ही अणुओं का क्षेत्र के साथ रेखाबद्ध होना दुष्कर होगा । नियत ताप पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता में वृद्धि के साथ चुम्बकन तीव्रता में वृद्धि होगी तथा नियत चुम्बकीय क्षेत्र के लिए ताप में वृद्धि से चुम्बकन तीव्रता में ह्रास होगा।
क्यूरी (Curie ) ने 1895 में प्रयोगों के आधार पर ज्ञात किया कि अनेक पदार्थों के लिए चुम्बकन M, चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B के अनुक्रमानुपाती व ताप T के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात्
M = CB/T
जहाँ C क्यूरी नियतांक है।
क्यूरी के नियमानुसार चुम्बकन चुम्बकीय क्षेत्र में वृद्धि व ताप में कमी के साथ अनिश्चित रूप से वृद्धि करेगा, जो संभव नहीं है, क्योंकि M का मान एक अधिकतम (संतृप्त ) मान तक ही जा सकता है जब समस्त आण्विक चुम्बक चुम्बकन क्षेत्र के समान्तर संरेखित हो जायें ।
लांजेवां (Langevin) ने 1905 में अनुचुम्बकन का एक सिद्धान्त विकसित किया जो उन तंत्रों के लिए सीमित है जिनमें अणुओं के मध्य पारस्परिक क्रियाओं की उपेक्षा की जा सकती हो। अतः यह अनिवार्यतः अनुचुम्बकीय गैस का सिद्धान्त है परन्तु इसके परिणाम अनेक द्रव एवं ठोसा पदार्थों के लिए भी यथार्थ सिद्ध होते हैं।
अनुचुम्बकीय गैस के एक प्रतिदर्श पर विचार कीजिये जिसके प्रत्येक अणु का चुम्बकीय आघूर्ण है तथा जिसे फ्लक्स घनत्व B के चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया है। यदि किसी आण्विक चुम्बक के चुम्बकीय आघूर्ण ॥ व चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा के मध्य कोण 8 है तो उस पर कार्यरत बल आघूर्ण होगा-
τ = uB sinθ
तथा इस स्थिति में आण्विक चुम्बक की स्थितिज ऊर्जा होगी-
ω =- μВ cosθ
μ
जहाँ θ = 90° की स्थिति को निर्देश स्थिति माना गया है। चुम्बकीय ऊर्जा में उसकी गतिज ऊर्जा या अन्य आंतरिक ऊर्जा सम्मिलित नहीं होती है अतः केवल चुम्बकीय ऊर्जा पर विचार करते हुए संवितरण फलन होगा-
Z = Σ exp – (-uB cos θ /kT)]
क्वान्टम यांत्रिकी के सिद्धान्तों के फलस्वरूप दो परिवर्तन अपेक्षित हैं :
(i) अणु का प्रभावी चुम्बकीय आघूर्ण इलेक्ट्रॉनों की संख्या एवं व्यवस्था से निर्धारित होता है।
(ii) अणु के चुम्बकीय आघूर्ण की कोई भी यादृच्छिक दिशा न होकर केवल कुछ निश्चित दिशायें ही अनुमत
हैं। यह प्रभाव आकाशीय क्वांटीकरण (space quantization) कहलाता है।








