पर्णहरित किसे कहते है , chlorophyll in hindi आरनोफ एवं एमेन (Arnoff and Abhen) प्रकार

जाने पर्णहरित किसे कहते है , chlorophyll in hindi आरनोफ एवं एमेन (Arnoff and Abhen) प्रकार ?

पर्णहरित (Chlorophyll)

पादप शरीर क्रिया विज्ञान एवं जैव रसायन

आरनोफ एवं एमेन (Arnoff and Abhen) ने 9 प्रकार के पर्णहरित बताये हैं। ये पर्णहरित a, b, c, d, e, जीवाणु पर्णहरित a, b (bacterio chlorophyll a, b), जीवाणुविरिडन अथवा क्लोरोबियम पर्णहरित 650 एवं 666 (bacterio viridin of Chlorobium chlorophyll 650 and 666) है। उच्च पादपों में मुख्यतः पर्णहरित a एवं b बहुतायत से मिलता है।

पर्णहरित की संरचना (Structure of chlorophyll)

विल्स्टेटर एवं स्टॉल (Willstatter and Stoll) ने पर्णहरित की विस्तृत संरचना दी। सभी पर्णहरित लगभग एक समान होते हैं। इनके दो भाग यथा (i) पोरफायरिन शीर्ष (phorphyrin head) एवं (ii) एक फायटोल पूंछ (phytol tail) होती है। पर्णहरित अणु में एक चक्रिक टेट्रापायरोलिक संरचना (पोरफायरिन) एक समचक्रिक वलय जिसके केन्द्र में Mg परमाणु होता है के साथ होती है। पायरोल अणु में 4 कार्बन एवं N होते है जो चक्रिय संरचना बनाते हैं। इनमें से एक पायरोल चक्र से एक लम्बी एल्काहॉल (फायटोल) (alchohol, phytol) श्रृंखला होती है जो पूंछ बनाती है। पर्णहरित c में पूंछ अनुपस्थित होती है।

पर्णहरित की पार्श्व शृंखला अलग-अलग पर्णहरितों में भिन्न होती है जैसे पर्णहरित a में मेथिल समूह (methyl grou –CH3) एवं पर्णहरित b में एल्डीहाइड समूह (aldehyde group, -CHO) होता है। इन पार्श्व शृंखलाओं के कारण इनके  अवशोषण स्पेक्ट्रम भिन्न होते हैं।

  1. केसटिनायड्स (Carotenoids)

ये सहायक वर्णक होते हैं जो दो प्रकार के होते हैं। यथा (1) केरोटीन (carotenes)-नारंगी एवं (2) जैन्थोफिल (Xanthophylls)- पीले। ये क्रमश: PS I और PS II में पाये जाते हैं।

ये पानी में अघुलनशील तथा कार्बनिक विलायकों में घुलनशील होते हैं। विभिन्न प्रकार के केरोटीन, उच्च पादपों, हरे, लाल, भूरे, नीले-हरे शैवालों, क्रिप्टोमॉनाड एवं प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं से विमुक्त किये गये हैं।

क्रेोटिनायड्स हमेशा क्लोरोफिल संबंधित होते हैं तथा पटलिकाओं में क्रोमोप्रोटीन के रूप में पाये जाते हैं। ये आइसोप्रिनोइड यौगिक होते हैं जिनमें असंतृप्त हाइड्रोकार्बन होते हैं।

ये नीला एवं हरा प्रकाश अवशोषित करते हैं तथा लाल एवं पीला प्रकाश परावर्तित करते हैं।

केरोटीन में B केरोटीन सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। यह गाजर को नारंगी रंग प्रदान करता है। यह मुख्यतः नीले- बैंगनी, क्षेत्र के प्रकाश अवशोषित करते हैं (450-500 nm)।

जैन्थोफिल भी केरोटीन अथवा ऑक्सीजन युक्त केरोटीन होते हैं। उदाहरण- लायकोपीन (lycopene)।

केरोटीन फल तथा पुष्पों को रंग प्रदान करते हैं। यह अवशोषित प्रकाश को पर्णहरित a तक स्थानान्तरित करते हैं। केरोटोन पर्णहरित को अत्यधिक प्रकाश एवं ऑक्सीजन में ऑक्सीकृत होने से बचाते हैं। इसे फोटो ऑक्सीकरण (photo oxidation) कहते हैं।

  1. फायकोबिलिन (Phycobilins)

यह लाल, नील हरित शैवाल एवं क्रिप्टोमोनाड में मिलते हैं। ये पानी में घुलनशील होते हैं। यह तीन प्रकार के होते हैं यथा (1) फाइकोइरिथ्रिन (phycoerythrin), (2) फायकोसायनिन (phycocynin) एवं एलोफायकोसायनिन (allophycocynin) होते हैं।

सभी फायकोसायनिन प्रोटीन से जुड़े रहते हैं इसलिए इन्हें फाइकोबिलीप्रोटीन (phycobiliproteins) भी कहते हैं। यह U एवं लघु तरंगदैर्घ्य के प्रकाश को अवशोषित करते हैं। फाइकोबिलिन्स दो प्रकार के होते हैं-

(i) फाइकोसायानिन्स (नीले) तथा फाइकोइरीथ्रिन्स (लाल) 1 रोडोफायसी, सायनोपायसी एवं क्रिप्टोफायसी से वियुक्त किए गए हैं। ये दृश्य पटल के 500-600 nm का प्रकाश अवशोषित करते हैं। फाइकोबिलिस व्युत्पन्न प्रोटीन (conjugated proteins) के रूप में स्थित होते हैं। जिन्हें बिलीप्रोटीन

प्रोस्थेटिक समूह *(Biliproteins) कहते हैं। फाइकोबिलिन एवं एपोप्रोटीन के बीच संबंध एक सह-बंध प्रकार का होता है।

अवशोषण वर्णक्रम (Absorption spectrum)

दृश्य पटल की तरंगदैर्घ्य 390-700 nm की परास में होती है। किसी वस्तु द्वारा विभिन्न तरंगदैघ्यों पर अवशोषित प्रकाश की मात्रा इसका अवशोषण वर्णक्रम कहलाती है। क्लोरोप्लास्ट को वियुक्त करके विभिन्न तरंगदैघ्यों का प्रकाश इसमें ATM गुजारा जावे तो, स्पेक्ट्रोफोटो मीटर की सहायता से प्रत्येक तरंगदैर्घ्य पर प्रकाश अवशोषण की मात्रा को अंकित किया जा सकता है। विभिन्न वर्णक अलग-अलग तरंगदैर्घ्य का प्रकाश अवशोषित करते हैं। इसी प्रकार किसी एक वर्णक द्वारा विभिन्न तरंगदैघ्यों के सापेक्ष प्रकाश अवशोषण की मात्रा को ग्राफ में अंकित करके उस वर्णक का अवशोषण वर्णक्रम अंकित किया जा सकता है।

 

क्लोरोफिल-a का अवशोषण स्पेक्ट्रम दर्शाता है कि इसके द्वारा प्रकाश मुख्यतः नीले एवं लाल क्षेत्र में अवशोषित हो है। अन्य प्रकाश जैसे- हरे, पीले, एवं नांरगी इत्यादि कुछ ही मात्रा में अवशोषित होते हैं। चूँकि क्लोरोफिल हरे रंग के होते हैं अतः ये हरे रंग के प्रकाश को अवशोषित नहीं करते वरन् इसे परावर्तित करते हैं। अवशो” की अधिकतम मान (peaks), वर्णकों के वियुक्त करने में प्रयुक्त विलायक पर भी निर्भर करता है। ईथर के विलयन में, क्लोरोफिल-a लाल क्षेत्र के 662 mp तथा नीले क्षेत्र के 430 m ́ पर अधिकतम प्रकाश अवशोषित करता है। पादपों में क्लोरोफिल 683mp पर अधिकतम प्रकाश अवशोषण करता है। ईथर के विलयन में क्लोरोफिल-b लाल क्षेत्र के 644 mp एवं नीले क्षेत्र के 455 mu में अधिकतम प्रकाश अवशोषित करता है। जीवाणु-क्लोरोफिल इन्फ्रा रेड एवं नीले- बैंगनी क्षेत्रों में अधिकतम प्रकाश अवशोषित करता है।

सक्रिय वर्णक्रम (Action spectrum)

किसी अभिक्रिया की सक्रियता में प्रकाश की विभिन्न तरंगदैघ्यों के प्रभाव को सक्रिय वर्णक्रम कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण में, यह CO2  स्थिरीकरण, O2  उत्पादन एवं NADP+ का अपचयन इत्यादि में प्रयुक्त होता है तथा प्रकाश संश्लेषण का सक्रिय वर्णक्रम कहलाता है। इसके अध्ययन से पता चलता है कि प्रकाश संश्लेषण दृश्य पटल के लाल एवं नीले क्षेत्रों से प्रकाश का अधिकतम अवशोषण होता है तथा हरे, पीले, एवं नांरगी क्षेत्रों वाले प्रकाश का कुछ ही अवशोषण होता है।

विभिन्न तरंगदैयों के प्रकाश संश्लेषण पर प्रभाव का अध्ययन करने पर पता चलता है कि प्रकाश संश्लेषण का सक्रिय वर्णक्रम, अवशोषण वर्णक्रम से भिन्न हैं। वर्णक्रम के उन क्षेत्रों से जहां क्लोरोफिल- a बहुत ही कम मात्रा में प्रकाश अवशोषित करता है उनमें भी अत्यधिक प्रकाश संश्लेषण होता रहता है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि अन्य वर्णकों जैसे- कैरोटीन, जैन्थोफिल, अन्य क्लोरोफिल द्वारा अवशोषित प्रकाशीय ऊर्जा भी क्लोरोफिल- a तक पहुंचती है।

प्रकाश संश्लेषण के उपकरण (Photosynthetic Apparatus )

हरित लवक कोशिक द्रव्य में पायी जाने वाली स्पष्ट संरचना होती है जिसमें पर्णहरित ( chlorophyll) एवं केरोटिनाइड (carotenoids) होते हैं। ये छोटी एवं हरी संरचनाऐं उच्च पादपों एवं हरे शैवालों में पायी जाती हैं। उच्च पादपों में यह पर्ण के खम्म (palisade) एवं स्पॉन्जी (spongy ) उत्तकों में पायी जाती है जो विभिन्न आकार की जैसे गोल, बिम्बाकार, अण्डाकार अथवा बिम्ब समान होती है। एक कोशिका में इनकी संख्या कुछ से सैकड़ों अथवा अधिक भी हो सकती हैं। यदि पृथक किये गये हरित लवकों को प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त उप कारक प्रदान कर दिये जायें तो ये कोशिका के बाहर भी प्रकाश संश्लेषण में सक्षम होते हैं। इसलिए इन्हें प्रकाश संश्लेषी इकाई ( photosynthetic unit) भी कहते हैं।

हरित लवकों की संरचना (Sturcture of chloroplast )

हरित लवक कोशिकाओं में उपस्थित दोहरी कलाबद्ध कोशिकांग होते हैं जो अपने भीतर तरल आधारीय पदार्थ जिसे स्ट्रोमा (stroma) कहते हैं को घेरे रहती हैं स्ट्रोमा के अन्दर श्रृंखलाबद्ध तंत्र में बहुत सी तरल पदार्थ से भरी चपटी पट्टालिकाएँ (lamellae) होती हैं जिन्हें थायलेकाइड्स (thylakoids) कहते हैं। प्रत्येक थायलेकाइड लिपिड एवं प्रोटीन परत के बने होते हैं। थायलेकाइड्स एक के ऊपर एक सिक्कों के चट्टे की तरह विन्यासित रहते हैं जिसे ग्रेना (grana, ग्रेनम) कहते हैं। ग्रेना विभिन्न प्रजातियों में 0.3 से 1.7 u तक भिन्नता दर्शाते हैं।

शैवालों के हरित लवकों में ग्रेना नहीं होते इनमें पर्णहरित एकल अणु परत में विन्यासित होते हैं।

दो ग्रेना के मध्य झिल्ली मय पटलिका (membranous lamellae) होती है। इसे पीठिका पटलिका (stroma lamellae) अथवा फ्रेट (frets) कहते हैं। पीठिका पटलिका अनेक ग्रेना को जोड़ती है अतः इसे इन्टरनेनम पटलिका (intergranum lamellae) कहते हैं। यह विभिन्न प्रकाश संश्लेषी उत्पादों के अभिगमन (transportation) के लिए माध्यम (channel) के रूप में कार्य करते हैं।

केल्विन (Calvin, 1959) ने प्रस्तावित किया कि पर्णहरित अणु ग्रेनम थायेलेकोइड्स की विभाजन (partition) कला में एकल परत (monolayer) के रूप में द्विपरतीय फासफोलिपिडस को घेरे रहते हैं। यह दो प्रोटीन परतों के मध्य स्थित रह हैं। हाल ही में यह बताया गया है कि सभी पर्णहरित अणु प्रोटीन से असहसंयोजी बंध (non-covalentaly associated) द्वारा सम्बन्धित होते हैं (मेथिकॉस एवं फेना 1980) तथा पर्णहरित प्रोटीन संकुल बनाते हैं। यह संकुल वसा की द्विपरत में अन्तःस्थापित रहते हैं। परत तंत्र ( laminar system) में दो प्रोटीन संकुल यथा प्रकाश निकाय-I ( photosystem I, PS-I) एवं प्रकाश निकाय-II ( photosystem-II, PS-II) होते हैं ।

थायलेकाइडस की सतह पर बहुत सी कणिकामय संरचनाऐं पायी जाती हैं जिन्हें क्वान्टासोम्स (quantasomes) कहते हैं। इनकी आमाप 100 × 200 À होती हैं जिनमें 230 पर्णहरित अणु विद्यमान होते हैं। हरित लवक, माइटोकॉन्ड्रिया के समान अर्ध स्वायत्त (semi autonomous) कोशिकांग होते हैं क्योंकि इनमें डीएनए (DNA, 0.5%) एवं आरएनए (RNA, 3-5%) होते हैं जिससे ये स्वयं की प्रतिकृति (replicate) बना सकते हैं। हरित लवक में प्रोटीन (40-50%), फास्फोलिपिड 23-25%), पर्णहरित (5-10%) एवं केरोटिनाइड्स ( 1-2%) होते हैं। इसमें विकर, कोएन्जाइम्स, विटामिन ‘ई’ ‘के’, K तथा कुछ मात्रा में धातु (metals) विशेषकर Mg, Fe, Cu, Mn, Zn इत्यादि भी होते हैं।