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फ्लोएम में स्थानांतरण की क्रियाविधि क्या है , दर एवं मात्रा (Mechanism of phloem transport in hindi)

जाने फ्लोएम में स्थानांतरण की क्रियाविधि क्या है , दर एवं मात्रा (Mechanism of phloem transport in hindi) ?

स्थानांतरण की दर एवं मात्रा (Rate and amount of translocation )

स्थानांतरण की दर एवं मात्रा विभिन्न पादपों एवं मौसम तथा सिंक की प्रकृति के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। फल एवं संचयी मूल (storage roots) में अन्य भागों की अपेक्षा अधिक स्थानांतरण होता है। स्थानांतरण की मात्रा फलों एवं बीजों के आकार पर भी निर्भर करती है। सीताफल, तरबूज इत्यादि फलों में लगभग 30 दिन के अल्प समय में 4 से 6-7 kg तक कार्बनिक पदार्थों का संचय होता है।

फ्लोएम में स्थानांतरण की दर अनेक वैज्ञानिकों ने ज्ञात की है। समस्थानिक C+ युक्त CO2 के उपयोग के द्वारा स्थानांतरण की दर ज्ञात की जा सकती है। भिन्न-भिन्न दूरी पर C युक्त कार्बोहाइट्रेट्स की पहचान कर स्थानांतरण की दर ज्ञात की जा सकती है। कैनी (Canny, 1971) ने फ्लोएम में 4g / cm – शुष्क कार्बनिक पदार्थ के स्थानांतरण का आकलन किया। शर्करा की अधिक सांद्रता युक्त विलयन की स्थानांतरण दर अपेक्षाकृत कम होती है परन्तु निम्न सांद्रता पर वेग अधिक होता है। सामान्यतः स्थानांतरण दर लगभग 0.3-1.5 Metre / hr हो सकती है। ये दरें शर्करा की सामान्य विसरण दर से कई गुना अधिक होती है।

पादपों में दिन व रात के समय भी कार्बनिक पदार्थों की स्थानांतरण दर भिन्न होती है। सामान्यतः दिन की अपेक्षा रात में स्थानांतरण कम होता है। दिन के समय प्रकाश संश्लेषण के कारण कार्बनिक विलेयों की मात्रा बढ़ जाने से सांद्रता की प्रवणता बढ़ जाती है, अतः स्थानांतरण दर बढ़ जाती है।

स्थानांतरण की विधियाँ: स्रोत से सिंक की ओर स्थानांतरण

(Patterns of translocation: Translocation from source to sink)

फ्लोएम से कार्बनिक पदार्थों का स्थानांतरण उनके संश्लेषण के स्थल अर्थात पत्तियों से ऊपर एवं नीचे की ओर होता है परन्तु स्थानांतरण की दिशा निर्धारण स्रोत एवं सिंक की स्थिति के अनुसार होता है क्योंकि यह स्रोत से सिंक की ओर होता है। स्रोत अर्थात जहाँ से पदार्थों की आपूर्ति होती है एवं सिंक अर्थात पदार्थों के संचय अथवा उपापचय (metabolism) का स्थल ।

स्रोत (Source)– सामान्यतः पूर्ण रूप से फैली हुई परिपक्व पत्ती तथा कभी-कभी संचय स्थल भी स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण के तौर पर संचयी मूल (storage root) एवं बीज प्रथम वर्ष में सिंक की तरह कार्य करते हैं एवं • पत्तियां स्रोत होती है, जबकि अगले वर्ष में मूल एवं बीज स्रोत के रूप में कार्य करते हैं तथा नव निर्मित हो रहे पादपक अंग सिंक के रूप में कार्य करते हैं।

सिंक (Sink ) – सभी क्लोरोफिल रहित पादप अंग एवं ऊतक सिंक में समाहित किये जाते हैं क्योंकि वे स्वयं भोजन संश्लेषण नहीं कर पाते अथवा स्वयं की वृद्धि को समन्वित कर पाने लायक संश्लेषण नहीं कर पाते। तरुण एवं वृद्धि कर रही पत्तियाँ, पुष्प, फल एवं बीज, पादप मूल इत्यादि सभी सिंक के उदाहरण हैं। भोजन संग्रह करने वाले विभिन्न पादप अंग जैसे संग्रहण मूल (storage roots), कन्द (tubers). प्रकन्द (rhizome) इत्यादि भी सिंक के उदाहरण हैं।

स्रोत- सिंक संबंध (Source-sink relationship)

सामान्यतः सभी पत्तियां स्रोत व सभी संग्रहण करने वाले वृद्धि कर रहे एवं उपापचयी रूप से सक्रिय ऊतक सिंक का रूप होते हैं। विभिन्न प्रयोगों जैसे वलयन प्रयोग एवं समस्थानिक ( isotopes) के उपयोग से यह तो सिद्ध है कि स्थानांतरण स्रोत से सिंक की ओर होता है परन्तु स्थानांतरण के विभिन्न पैटर्न दिखाई देते हैं जो विभिन्न कारकों पर निर्भर करते हैं।

  1. सन्निकटता (Proximity)- सामान्यतः पत्तियों के निकटतम सिंक ऊतकों की ओर स्वांगीकृत पदार्थों (assimilates) का स्थानांतरण होता है अर्थात् पादप प्ररोह के ऊपर की ओर पूर्ण विकसित पत्तियों से प्ररोह शीर्ष एवं तरुण अल्पविकसित पत्तियों की ओर तथा निचली पूर्ण विकसित पत्तियों से तने एवं मूल तंत्र की ओर स्थानांतरण होता है। मध्य में उपस्थित पत्तियों से दोनों दिशाओं में स्थानांतरण होता है।
  2. परिवर्धन प्रावस्था (Developmental stage)- पादप की परिवर्धन की विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न ऊतक अथवा अंग सिंक के रूप में कार्य करते हैं। कायिक वृद्धि के दौरान प्ररोह शीर्ष एवं तरूण पतियाँ तथा जनन अवस्था में पुष्प एवं फल इत्यादि मुख्य सिंक के रूप में कार्य करते हैं।
  3. संवहन संबद्धता (Vascular connectivity)- स्थानांतरण के लिए उन ऊतकों व अंगों को वरीयता दी जाती है जो संवहन पूल अथवा ऊतक के द्वारा स्रोत पत्ती से सीधे जुड़े हुए होते हैं। एक स्रोत पत्ती के कुछ समय तक C140, द्वारा आपूर्ति करने के बाद विभिन्न पत्तियों में रेडियोधर्मिता के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि सामान्यतः पत्ती के ठीक ऊपर स्थित पत्ती में सर्वाधिक स्थानांतरण होता है, फिर उसके सर्वाधिक निकटस्थ पत्तियों में स्थानांतरण होता है।. स्थानांतरण का सामान्य पैटर्न शाखाओं को काटने (pruning) अथवा घाव (wounding) होने पर बदल जाता है।

चालनी नलिका में स्थानांतरण (Translocation in the sieve tube).

चालनी तत्वों में मुख्य रूप से सूक्रोस का स्थानांतरण होता है। इसके अतिरिक्त रैफिनोज (raffinose), स्टैकिओस (stachiose) एवं वर्बेस्कोस (verbascose) (जो क्रमशः ट्राई, ट्रैटा एवं पेन्टा सैकराइड हैं) का भी स्थानांतरण होता है। इन सभी में सूक्रोज अवशेष (sucrose residue) अवश्य होता है।

पत्तियों के पर्णमध्योतक के क्लोरोप्लास्ट में संश्लेषित सूक्रोस चालनी तत्वों तक पहुँचने से पूर्व अनेक मृदूतकी कोशिकाओं से गुजरती है। यह प्रक्रिया शिरा भारण (vein loading) कहलाती है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं के जीवद्रव्य में सूक्रोस बनता है तथा सूक्रोस यहाँ से सबसे नजदीक चालनी तत्व के पास की कोशिका में पहुँचती है। इससे सूक्रोस चालनी कोशिका में पहुँच जाती है। चालनी कोशिका में पहुँचने के बाद इनका स्थानांतरण अथवा गमन सिंक की तरफ होने लगता है। चालनी तत्वों में सूक्रोस की सांद्रता स्रोत की तरफ सबसे अधिक तथा सिंक की तरफ सबसे कम होती है एवं सूक्रोस का संचलन सूक्रोस की सांद्रता प्रवणता (concentration gradient) के अनुरूप होती है। चालनी तत्वों में सूक्रोस की सांद्रता सदा समान नहीं होती तथा मौसम, प्रकाश संश्लेषण की दर, तापमान इत्यादि के अनुरूप बदलती रहती है। सूक्रोस का चालन (movement) एपोप्लास्ट एवं सिम्पलास्ट दोनों के माध्यम से हो सकता है।

सिंक स्थल पर पहुँचने पर फ्लोएम की चालनी कोशिकाओं का अपभारण (unloading) होता है तथा सिंक की कोशिकाओं तक शर्करा का स्थानांतरण होता है। अंत में कार्बनिक विलेय का सिंक की कोशिकाओं में संचय अथवा उपापचयी रूपान्तरण (metabolized) होता है। ये तीनों प्रक्रियाएं मिलकर फ्लोएम अपभारण (phloem unloading) कहलाती हैं। चालनी नलिका से सिंक में पदार्थों के स्थानांतरण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पादप की पत्तियां एक प्रकार से विशिष्ट होती हैं क्योंकि अपनी तरुण अवस्था में वे प्रभावी सिंक (efficient sink) होती हैं एवं धीरे-धीरे स्रोत के रूप में परिवर्तित हो जातीं हैं।

फ्लोएम में स्थानांतरण की क्रियाविधि (Mechanism of phloem transport)

“अनेक वैज्ञानिकों ने फ्लोएम द्वारा कार्बनिक विलेयों के स्थानांतरण की क्रियाविधि को समझने के लिए भिन्न-भिन्न सिद्धान्त एवं परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की हैं। कुछ के समर्थन में प्रायोगिक प्रमाण हैं तो कुछ आपत्तियाँ भी हैं। अभी भी फ्लोएम के स्थानांतरण को समझने व स्पष्ट करने के लिए कोई पूर्णतः संतुष्ट करने वाली (satisfactory) परिकल्पना नहीं दी गई है तथा अध्ययन जारी है। इनमें से कुछ के बारे में नीचे दिया जा रहा है

  1. विसरण परिकल्पना (Diffusion hypothesis)

इस परिकल्पना के अनुसार कार्बनिक विलेयों का स्थानांतरण उनकी उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता अर्थात स्रोत से सिंक की और सरल भौतिक प्रक्रिया विसरण द्वारा ही सम्पन्न होता है। पर्णमध्योतक कोशिकाओं में उच्च शर्करा सान्द्रता होती है । इन से यह अन्य मृदूतकी कोशिकाओं में जीव द्रव्यतंतुओं द्वारा स्थानांतरित हो जाती है। चालनी नलिका में शर्करा की सान्द्रता कम होती है। अतः मृदूतक से चालनी नलिका में शर्करा का चालन होता है। एक चालनी से दूसरी तथा इससे अगली कोशिका में सान्द्रता प्रवणता के अनुसार चालन होता है। इसे अधिक स्वीकृति नहीं मिल पाई क्योंकि कार्बनिक विलेयों की स्थानांतरण दर (लगभग 100 सेमी/घंटा) सामान्य विसरण की दर से कहीं अधिक है। सरल विसरण के आधार पर इसे नहीं समझा जा सकता। अनेक बार सान्द्रता प्रवणता के विरूद्ध भी शर्करा का स्थानांतरण होता है। इसके पक्ष में कोई प्रयोग नहीं दिये गये हैं ।

  1. सक्रियित विसरण परिकल्पना (Activated diffusion hypothesis)

यह परिकल्पना मैसन एवं मास्कैल (Mason and Maskell, 1928) तथा मैसन एवं फिलिप (Mason and Philip. 1937) ने दी थी। उन्होनें बताया कि विलेय अणुओं को या तो उत्तेजित कर दिया जाता है. अथवा उनके विसरण में प्रतिरोध को कम करके स्थानांतरण को तीव्र (activate) किया जाता है। उन्होनें बताया कि चालनी नलिकाओं में कुछ निश्चित दूरी पर स्थित पंप केन्द्रों (pump station) के कारण चालनी नलिका में क्रमांकुचन गति (peristaltic movement) होती है जिससे विलेय अणुओं की गति बढ़ जाती है। पंपिंग के लिए वांछित ऊर्जा सहचर कोशिकाओं (companion cells) एवं चालनी कोशिकाओं से मिलती है। इस प्रकार के पम्प केन्द्रों के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं।

संभवतः फैनसम एवं विलियम्स् (Fensom and Williams, 1974) ने P- प्रोटीन से निर्मित संकुचनशील (contractile) तंतुमय जालिका (fibrillar network) चालनी नलिकाओं में देखी। संभवतः इन तंतुओं से क्रमाकुंचन गति होती है तथा विलेय गति करते हैं। इस बारे में अभी और अध्ययन की आवश्यकता है।

  1. वैद्युत परासरण सिद्धान्त (Electro osmotic theory)

स्पैनर (Spanner, 1958) एवं फैन्सम (Fensom, 1957) के द्वारा प्रस्तुत इस परिकल्पना के अनुसार विलेयों का स्थानांतरण अथवा परासरण चालनी पट्टिका के दोनों ओर वैद्युत प्रवणता (electric gradient) के अनुसार होता है।

चालनी पट्टिका के छिद्रों के आसपास झिल्ली में ऋणात्मक आवेश होता है तथा उनकी ओर धनायन (cations) आकर्षित होते हैं। आंशिक धनावेश युक्त जल के अणु इसमें से सरलतापूर्वक गुजर सकते हैं, साथ ही विलेय भी उनके साथ गति करते हैं। सूक्रोस अणु पोटाशियम आयन (K+) के साथ दृढ़तापूर्वक संलग्न रहते हैं तथा उनके साथ ही गति करते हैं। ये K+ आयन बाद में विलग होकर फिर से संलग्न कोशिकाओं (जैसे सहचर कोशिकाएं व मृदूतकी कोशिकाएं) से होते हुए चालनी नलिका में वापस दूसरी ओर पम्प कर दिये जाते हैं। K+ के इस परिसंचरीय (circulatory ) प्रवाह को बनाये रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा ATP के रूप में संलग्न सहचर कोशिकाओं से मिलती है। इस प्रकार प्रत्येक चांलनी पट्टिका ‘वैद्युत परासरणी’ (electro osmotic) पम्पिंग स्टेशन के रूप में कार्य करती है, जो शर्करा विलयन के प्रवाह का अभिवर्धन (boost ) करते हैं।

इस परिकल्पना के समर्थन में कोई प्रायोगिक प्रमाण नहीं है, हालांकि ऐसा बताया गया है कि पादप में पोटाशियम की कमी होने पर स्थानांतरण की गति कम हो जाती है। यह मात्र धनात्मक आयनों एवं पदार्थों के स्थानांतरण के बारे में स्पष्टीकरण देता है जबकि अन्य के बारे में कोई संकेत नहीं देता। इस परिकल्पना के अनुसार पदार्थों का स्थानांतरण एक ही दिशा में होता है जबकि रेडियोधर्मी समस्थानिकों (radio isotopes) के उपयोग द्वारा सिद्ध हो चुका है कि फ्लोएम में पदार्थों का स्थानांतरण ऊपर व नीचे दोनों ओर होता है।

  1. कोशिका द्रव्य प्रवाहगति वाद (Protoplasmic streaming hypothesis)

यह वाद डी ब्रीज (De Vries, 1885) ने प्रतिपादित किया था जिसे कर्टिस (Curtis, 1935) ने समर्थन दिया था । इसके अनुसार फ्लोएम में स्थानांतरण कोशिकाद्रव्य की प्रवाह गति (streaming movement), जीवद्रव्यभ्रमण (cyclosis) एवं विसरण के संयोजन से होती है। चालनी नलिका की एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पदार्थों का विसरण चालनी पट्टिका (sieve plates) के छिद्रों के माध्यम से होता है। विसरण को तीव्रता कोशिकाद्रव्य की प्रवाह गति (protoplasmic streaming) के कारण मिलती है। एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पहुँचने के बाद जीवद्रव्यभ्रमण (cyclosis) अथवा प्रवाह गति की दिशा के अनुरूप कार्बनिक विलेय ऊपर अथवा नीचे की ओर गति करते हैं ।

यह वाद विलेय की दोनों दिशाओं (ऊपर व नीचे) में गति को स्पष्ट करता है। जीवद्रव्य भ्रमण की गति (1-5 cm/hr) की अपेक्षा स्थानांतरण की गति बहुत अधिक (100 cm/hr) होती है। इस विधि द्वारा स्थानांतरण के द्वारा बहुत कम मात्रा का स्थानातंरण हो सकता है। थैने (Thaine, 1964) के अनुसार परिपक्व चालनी तत्वों में जीवद्रव्य भ्रमण नहीं होता ।

  1. अन्तरकोशिकीय द्रव्य प्रवाह गति (Transcellular streaming)

थैने (Thaine, 1964) ने कोशिकाद्रव्य प्रवाहगति को रूपान्तरित किया व कहा कि पदार्थों का चालन चालनी कोशिकाओं में उपस्थित प्रोटीनी अन्तराकोशिकीय स्ट्रैंड (transcellular strands ) के माध्यम में होता है। इनके अनुसार क्रमाकुंचन संकुचन (peristaltic contractions) लहर की भांति लंबाई में गति करता है। ये स्ट्रैंड ऊपर व नीचे गति कर सकते हैं अतः दोनों दिशाओं में स्थानान्तरण की व्याख्या की जा सकती है । परन्तु इन स्ट्रैडों की प्रकृति तथा विलेय एवं विलायकों के स्थानांतरण व इन के संबंध के बारे में स्पष्टता नहीं है ।