आपेक्षिकता का विशिष्ट सिद्धांत क्या हैं , special theory of relativity in hindi , प्रथम और द्वितीय अभिगृहीत
विस्तारपूर्वक जाने आपेक्षिकता का विशिष्ट सिद्धांत क्या हैं , special theory of relativity in hindi , प्रथम और द्वितीय अभिगृहीत किसे कहते हैं , परिभाषा समझाइये ?
आपेक्षिकता का विशिष्ट सिद्धान्त (Special Theory of Relativity)
आइन्सटीन के अनुसार पिण्डों की निरपेक्ष गति को कभी भी ज्ञात नहीं किया जा सकता है इसलिए प्रायोगिक तथ्यों के आधार पर आइन्सटीन ने नियत वेग से एक दूसरे के सापेक्ष गतिशील पिण्डों के सम्बन्धों के लिए निम्न दो मूलभूत अभिगृहीतों का प्रतिपादन किया जो आपेक्षिकता के विशिष्ट सिद्धान्त के मूल आधार हैं –
(1) प्रथम अभिगृहीत (First postulate)
मुक्ताकाश में घटित भौतिक घटनाओं के सभी नियम परस्पर नियत सापेक्ष वेग से गतिशील निर्देश तन्त्रों में समान होते हैं।
यह अभिगृहीत जिसे तुल्यता का सिद्धान्त (Principle of equivalence) भी कहते हैं, भौतिक अनुभवों पर आधारित सिद्धान्त है। इसकी सत्यता प्रयोगों द्वारा सिद्ध होती है। यह सिद्धान्त न्यूटन के आपेक्षिकता के सिद्धान्त (Newtonian theory of relativity) के समान हैं। इसके अनुसार सभी भौतिक घटनाऐं यान्त्रिकी के मूलभूत नियमों पर आधारित है। यदि यान्त्रिकी के सभी मूलभूत नियम किसी एक निदश तन्त्र में सत्य है तो इस तन्त्र के सापेक्ष एकसमान वेग से गतिशील सभी निर्देश तन्लों में गाली के ये मूलभूत नियम सत्य रहेंगे अर्थात सभी भौतिक घटनायें नियत वेग से गतिशील निर्देश तन्त्रों में तुल्यता के सिद्धान्त का पालन करती हैं।
(ii) द्वितीय अभिगृहीत (Second postulate)
मुक्ताकाश में सभी प्रेक्षकों के लिए प्रकाश का वेग अचर रहता है अर्थात् प्रकाश का वेग एक सार्वत्रिक नियतांक (Universal constant) होता है। यह वेग न तो दिशा पर निर्भर करता है और न ही प्रकाश स्रोत एवं प्रेक्षक की गति पर निर्भर करता है। अन्य रूप में सब जड़त्वीय निर्देश तन्त्रों में प्रकाश का वेग सब दिशाओं में समान होता है।
यह अभिगृहीत आकाश (space) तथा समय (time) सम्बन्धी चिरसम्मत धारणाओं के पूर्णतया विपरीत है। इस अभिगृहीत के पूर्व समय को निरपेक्ष (absolute) माना जाता था। यह विश्वास किया जाता था कि समय में परिवर्तन प्रेक्षक की गति पर निर्भर नहीं होता है। परन्तु इस अभिगृहीत के द्वारा एकसमान आपेक्षिक वेग से गतिशील सभी प्रेक्षकों के लिए प्रकाश का वेग नियत माना जाता है जिससे आइन्सटीन ने यह निष्कर्ष निकाला कि जो घटनायें एक प्रेक्षक के लिए समकालीन (simultaneous) हैं, उनका दूसरे प्रेक्षक के लिए समकालीन होना आवश्यक नहीं है अर्थात् समकालीनता सम्बन्धी विचार भी सापेक्ष है। इसे समकालीनता का आपेक्षिक सिद्धान्त (Theory of relativity of simultaneity) भी कहते हैं।
आपेक्षिकता के विशिष्ट सिद्धान्त के दोनों अभिगृहीतों के अनुरूप एकसमान आपेक्षिक वेग से गतिशील तन्त्रों में परस्पर सम्बन्ध व्यक्त करने वाले समीकरणों को सर्वप्रथम लॉरेन्ज (Lorentz) ने प्राप्त किया था इसलिए इन्हें लॉरेन्ज रूपान्तरण समीकरण कहते हैं।
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