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चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ या चुंबकीय बल रेखाएं क्या है , परिभाषा , गुण Magnetic field lines in hindi

Magnetic field lines or magnetic lines of force in hindi चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ या चुंबकीय बल रेखाएं क्या है , किसे कहते है , परिभाषा , गुण बताइये ? चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण 2 गुणों को लिखें ? की सूची बनाइए ?

परिभाषा : यदि एक चुम्बक के पास कोई चुम्बकीय सुई (कम्पास सूई ) लायी जाए तो चुंबकीय सुई एक निश्चित दिशा में ठहरती है , अब यदि चुम्बकीय सुई की स्थिति बदल दी जाए तो इसके ठहरने की दिशा भी बदल जाती है इसी प्रकार सुई एक वक्र पथ में विचलित होती रहती है।

इससे यह सिद्ध होता है की चुम्बकीय क्षेत्र की रेखा वक्र के रूप में होती है इन्हीं वक्र रेखाओं को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ या बल रेखाएं कहते है।
परिभाषा : किसी भी चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमे चुम्बकीय प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है उसे क्षेत्र को उस चुंबक का क्षेत्र कहते है।

दूसरे शब्दों में कहे
” जब किसी चुम्बकीय क्षेत्र में एकांक उत्तरी ध्रुव को रखा जाए तो तो इस एकांक ध्रुव पर एक बल कार्य करता है , इस बल के कारण यह ध्रुव गति करता है , गति करने के लिए यह जिस पथ का अनुसरण करता है इस पर काल्पनिक रेखाएं खींचने पर यह पथ वक्र के रूप में प्राप्त होता है , इन वक्र रेखाओ को ही चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएं कहते है “

चुम्बकीय क्षेत्र रेखा या चुंबकीय बल रेखाओं के गुण (Properties of magnetic field line or magnetic force lines)

1. चुम्बकीय रेखाएं बंद वक्र के रूप में होती है
किसी भी चुम्बक के बाहर चुम्बकीय रेखाएं उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर चलती है तथा चुम्बक के भीतर दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर चलती है , चुम्बकीय क्षेत्र बल रेखाओ का अंत नहीं है।
2. किसी भी चुम्बकीय बल रेखा पर खिंची गयी स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को व्यक्त करती है।
3. दो चुम्बकीय बल रेखाये कभी भी एक दूसरे को नही काटती है , क्योंकि अगर ये एक दूसरे को काटे तो कटान बिन्दु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएं प्राप्त होती है जो की असंभव है।
4. जिस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है वहां सघन रेखाओ से दर्शाया जाता है तथा जहाँ चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मान कम होता है वहाँ कम रेखाओ से प्रदर्शित किया जाता है।

चुम्बकीय बल रेखाएँ– चुम्बकीय क्षेत्र में बल रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ है, जो उस स्थान मे चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का सतत प्रदर्शन करती हैं। चुम्बकीय बल-रेखा के किसी भी बिन्दु पर खीची गई स्पर्श-रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है।

चुम्बकीय बल-रेखाओ के गुण

– चुम्बकीय बल-रेखाएँ सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलती है तथा वक्र बनाती हुई दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश कर पाती है और चुम्बक के अन्दर से होती हुई पुनः उत्तरी ध्रुव पर वापस आती है।

– दो बल-रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती है।

– चुम्बकीय क्षेत्र जहाँ प्रबल होती है, वहाँ बल-रेखाएँ पास-पास होती है।

– एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर एंव बराबर-बराबर दुरियों पर होती हैं।

चुम्बकशीलता- जब किसी चुम्बकीय क्षेत्र में कोई चुम्बकीय पदार्थ रखा जाता है, तो उससे होकर अधिक-से-अधिक चुम्बकीय बल रेखाएँ गुजरती हैं। जैसे- यदि एक कच्चे लोहे की छड़ को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रख दिया जाता है, तो क्षेत्र की बल रेखाएँ, जो लोहे के छड़ के अगल-बगल की हवा में रहती है, मुड़कर लोहे के छड़ से होकर जाती है। अर्थात लोहे की छड़ जितना स्थान छेकती है, उस स्थान पर हवा रहने तक जितनी बल रेखाएँ रहती है, उनसे अधिक बल रेखाएँ उस स्थान पर लोहे की छड़ के रहने से रहती है। इससे स्पष्ट है कि लोहा बल-रेखाओं का बहुत अच्छा चालक है। पदार्थ की इस चालक-शक्ति को चुम्बकशीलता कहते हैं। अतः किसी पदार्थ की चुम्बकशीलता हवा की तुलना में बल-रेखाओं के चालन की उसकी शक्ति है। अर्थात पदार्थ का वह गुण जिसके कारण उसके भीतर चुम्बकीय बल-रेखाओं की सघनता बढ़ या घटा जाती है चुम्बकशीलता कहलाती है। चुम्बकशीलता को (म्यू) से निरूपित करते है।

जहाँ भ् = हवा में प्रति वर्ग मी. बल रेखाओं की संख्या।

ठ = चम्बकीय पदार्थ में प्रति वर्ग मी. से गुजरने वाली बल रेखाएँ।

चुम्बकशीलता का मात्रक हेनरी/मी. होता है।

नोट- ऐलुमिनियम की चुम्बकशीलता लोहे से कम होती है।

गतिमान आवेश से चुम्बकीय क्षेत्र की उत्पत्ति (production of magnetic field due to moving charge): प्रयोगों से यह देखा गया है कि जिस प्रकार एक चुम्बक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है , ठीक उसी प्रकार एक धारावाही चालक के चारों ओर भी एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। चूँकि विद्युत धारा गतिशील आवेश का परिणाम होती है अत: हम कह सकते है कि गतिशील आवेश के कारण एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यह तथ्य आगे दिए गए प्रयोगों द्वारा पुष्ट हो जाता है –

(1) ऑसर्टेड का प्रयोग (oersted experiment): डेनमार्क के एक स्कूल अध्यापक ऑर्सटेड ने सन 1819 में यह ज्ञात किया कि किसी तार में धारा बहाने पर उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। जब एक लोहे की कील पर पृथक्कृत तांबे के तारों को लपेटकर धारा प्रवाहित की जाती है तो यह कील चुम्बकित होकर लोहे की छोटी छोटी अन्य कीलों को अपनी ओर आकर्षित करने लगती है। जब किसी तार में धारा प्रवाहित की जाती है तो उस तार के निचे रखी दिक्सूचक सुई में विक्षेप उत्पन्न हो जाता है। तार में धारा का मान शून्य हो जाने पर सुई में विक्षेप भी शून्य हो जाता है और धारा की दिशा विपरीत कर देने पर विक्षेप भी विपरीत दिशा में हो जाता है।
उक्त प्रयोग से यह निष्कर्ष निकलता है कि तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर , इसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जिसकी दिशा धारा की दिशा पर निर्भर करती है और चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता धारा की प्रबलता पर निर्भर करती है।
नोट: धारावाही चालक में ध्रुवों को पहचानना –
(i) जब किसी चालक में धारा प्रवाहित होती है तो उसका प्रत्येक बिंदु उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की भाँती कार्य करता है।
(ii) उत्तरी ध्रुव धनात्मक आवेश की तरह कार्य करेगा। N → (+)
(iii) दक्षिणी ध्रुव ऋणात्मक आवेश की तरह कार्य करेगा। S → (-)
(iv) धारा की दिशा S-ध्रुव से N-ध्रुव की तरफ होती है।
(v) अर्थात जहाँ धारा प्रवेश करती है वहां दक्षिणी ध्रुव और जहाँ धारा निकलती है वहां उत्तरी ध्रुव बनता है।