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पुष्पों द्वारा स्व-परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्यनीति का विवरण दें। एकलिंगता , स्वबन्ध्यता

प्रश्न 8. पुष्पों द्वारा स्व-परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्यनीति का विवरण दें।
उत्तर : पुष्पीय पादपों में अनेक ऐसी युक्तियाँ पायी जाती हैं जो स्वपरागण को रोकने में सहायक होती हैं और पर-परागण को प्रेरित करती है। स्वपरागण को रोकने के लिए पुष्पीय पादपों में निम्नलिखित युक्तियाँ पायी जाती है –
(i) एकलिंगता (Unisexuality or Dicliny) – एकलिंगी पुष्पों में नर तथा मादा जननांग दोनों पृथक पृथक पुष्पों में पाए जाते हैं। जब नर तथा मादा पुष्प अलग अलग पौधों पर पाए जाने के कारण पौधे एकलिंगाश्रयी (dioecious) कहलाते हैं | जैसे — पपीता, भाँग आदि के पौधे या पुष्प एकलिंगता के उदाहरण है | इनमें स्वपरागण नहीं हो पाता है।
(ii) स्वबन्ध्यता (Self-sterility or Incompatibility) – इस प्रकार के पौधों या पुष्पों में एक पुष्प के परागकण , उसी पुष्प या उसी पौधे के अन्य पुष्पों पर पहुंचते हैं तो परागकणों का अंकुरण अथवा पराग नलिका वृद्धि नहीं होता इसे स्वबन्ध्यता (self-sterility) कहते हैं | जैसे-तम्बाकू, आलू, झूमकलता आदि में स्वबन्ध्यता पायी जाती है ।

इस प्रकार हम कह सकते है कि पुष्पों द्वारा स्व परागण रोकने के लिए दो कार्य निति विकसित की गयी है जो निम्नलिखित है –

(i) एकलिंगता

(ii) स्वबन्ध्यता