जरथुष्ट्र धर्म किसे कहते हैं ? जरथुष्ट्र धर्म का दूसरा नाम क्या होता है ? संस्थापक प्रवर्तक कौन थे नाम बताइए

संस्थापक प्रवर्तक कौन थे नाम बताइए जरथुष्ट्र धर्म किसे कहते हैं ? जरथुष्ट्र धर्म का दूसरा नाम क्या होता है ?

जरथुष्ट्र धर्म
जरथुष्ट्र धर्म के संस्थापक प्रवर्तक थे पारसी संत जरथुष्ट्र, जिनका समय ई.पू. 6ठी सदी या 7वीं सदी माना जाता है। इस धर्म का केंद्र बिंदु यह विश्वास है कि अच्छे और बुरे के बीच संघर्ष होता है। इनके अनुसार एक शाश्वत ईश्वर है अहुर मजदा, जो प्रज्ञ, न्यायप्रिय और सर्वपालक है। दूसरी तरफ तमाम बुराइयों से भरी दुष्टात्मा अंग्रा मेन्यू है। इस धर्म के अनुयायियों को विश्वास है कि अंततः अच्छाई की जीत होगी और बुराइयों को पराजित होना पड़ेगा। वह दिन अवश्य आएगा। जरथुष्ट्रों की उपासना पद्धति में अग्नि का विशेष महत्व है। वस्तुतः पृथ्वी, अग्नि और वायु को पवित्र माना जाता है, जबकि बुराइयों (अधर्म) का परिणाम मृत्यु है। इनका मानना है कि मरी या नष्ट हो गई वस्तुएं प्रदूषित करती हैं, इसीलिए वे मृतक को खुले स्थान में रखते हैं ताकि चील-कौवे उसे खा जाएं (जैसा बम्बई के टावर आॅफ साइलेंस में होता है)। तथापि, गाड़ने और जलाने की सामान्य प्रथा है।
जरथुष्ट्रों ने 17 गाथाओं और अथना वैरयो की रचना की, जिसे पुरानी भाषा अवेस्थन में पढ़ा जाता है। बाद की रचनाएं अवेस्ता कहलाती हैं। टीका-टिप्पणियों सहित अवेस्थन रचनाओं के अनुवाद को जेंद के नाम से जागा जाता है।
इस्लामी अरबों द्वारा ईरान से भगाए जागे पर 936 ई. में भारत के पश्चिमी तट पर जरथुष्ट्रों के आगमन का उल्लेख है। उन्हें आज के प्रचलित नाम पारसी से जागा गया। हालांकि पारसियों की संख्या कम है, किंतु जहां कहीं भी वे शहरों में हैं, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से उनका बड़ा प्रभाव है। इन्होंने पश्चिमी रीति-रिवाजों को अपनाया और औपनिवेशिक काल में औद्योगीकरण से उपजे अवसरों का लाभ उठाया। भारत में इन्होंने आठ अतश बहरम प्रमुख अग्नि मंदिरों का निर्माण किया।