साध्य मूल्य और साधन मूल्य क्या होते है ? अंतर राज्य साधन है या साध्य विवेचना कीजिये परिवार के प्रत्येक सदस्य को साधन नहीं साध्य माना जाना चाहिए

परिवार के प्रत्येक सदस्य को साधन नहीं साध्य माना जाना चाहिए साध्य मूल्य और साधन मूल्य क्या होते है ? अंतर राज्य साधन है या साध्य विवेचना कीजिये ?
साध्यमूल्य और साधनमूल्य
नैतिक मूल्यों पर उनकी महत्ता के परिप्रेक्ष्य में भी विचार किया जा सकता है। नैतिक मूल्य वस्तुतः मानवीय अनुभव है जिसकी व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः नैतिक मूल्य उनकी महत्ता के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं- साध्यमूल्य तथा साधनमूल्य। साध्यमूल्य स्वतः मूल्यवान होते हैं। ये स्वतः साध्य हैं और किसी साध्य के साधन नहीं कहे जा सकते। साध्यमूल्य अपने आप में और अपने कारण ही मूल्यवान होते हैं न कि अपने परिणाम के कारण। ये स्वतः शुभ है। अतः इन्हें निरपेक्ष मूल्य भी कहा जाता है। सत्य, शील, सौन्दर्य, साहस आदि साध्यमूल्य के उदाहरण हैं।
साधनमूल्य अपने परिणामों के कारण मूल्यवान होते हैं। साधनमूल्य इसलिए मूल्यवान हैं क्योंकि इनसे किसी अन्य लक्ष्य की सिद्धि होती है। ये स्वयं साध्य नहीं होते बल्कि अन्य साध्यों के साधन हैं। उदाहरण के लिए, चश्मा की महत्ता तभी है जब आंखों को इसकी आवश्यकता हो। धन, वस्त्र आदि किसी अन्य लक्ष्य के साधन हैं और इसलिए इनका साधनमूल्य है। इनका मूल्य इनके परिणामों पर निर्भर करता है।
साध्यमूल्य और साधनमूल्य इन दो पदों का प्रयोग सापेक्ष रूप से किया जाता है। ये हमेशा परस्पर विशिष्ट अथवा नियत नहीं होते। एक ही वस्तु किसी व्यक्ति विशेष के लिए साध्य हो सकती है तो दूसरे व्यक्ति के लिए साधन।
नैतिक मूल्यों को अन्य प्रकार से भी वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे विधायक अथवा भावात्मक मूल्य और विघातक अथवा अभावात्मक मूल्य, उत्पादक मूल्य और अनुत्पादक मूल्य तथा स्थायी मूल्य और अस्थायी मूल्य।
जो वस्तु आदर्श की प्राप्ति में सहायक हो, उसका भावात्मक मूल्य होता है और जो वस्तु आदर्श की प्राप्ति में बाधक हो उसका विघातक अथवा अभावात्मक मूल्य होता है। इन दोनों मूल्यों को क्रमशः शुभ-अशुभ की श्रेणी में रखा जाता है। प्रयोग करने से जो वस्तुएं घट जाती हैं, उनका अनुत्पादक मूल्य होता है जैसे- भौतिक वस्तुएँ। प्रयोग करने से जिन वस्तुओं की वृद्धि हो, उनका उत्पादक मूल्य होता है, जैसे- ज्ञान जिसका जितना ही उपयोग हो इसमें उतनी ही वृद्धि होती है।
जिन वस्तुओं से स्थायी सुख की प्राप्ति हो उनका स्थायी मूल्य और जिन वस्तुओं से क्षणिक या अस्थायी सुख मिले उनका अस्थायी मूल्य होता है। बुद्धि द्वारा प्राप्त सुख स्थायी होता है परन्तु इन्द्रियजन्य सुख अस्थायी होता है।
नैतिक मूल्यों को उच्च एवं निम्न मूल्यों की कोटि में भी वर्गीकृत किया जाता है। साधारणतया साध्यमूल्य को साधनमूल्य की अपेक्षा उच्चतर मूल्य के रूप में माना जाता है। भावात्मक मूल्य अभावात्मक मूल्य की अपेक्षा अधिक वांछनीय माना जाता है। मूल्यों का संबंध मानव विवेक से है। नैतिक मूल्य कुछ और नहीं बल्कि आस-पास के वातावरण के प्रति एक अनुक्रिया है। मानव मस्तिष्क के तीन पक्ष हैं चिन्तन, अनुभव तथा इच्छा। चिन्तन का संबंध बौद्धिक मूल्यों से है जिसका प्रमुख उदाहरण है सत्य, अनुभव का संबंध सौन्दर्य संबंधी मूल्यों से है जिसका प्रमुख उदाहरण है सौन्दर्य तथा इच्छा का संबंध नैतिक मूल्यों से है जिसका प्रमुख उदाहरण है शील इस प्रकार सत्य, सौन्दर्य और शील सार्वभौम मूल्य माने जाते हैं दूसरे शब्दों में, सत्य आत्मा के बौद्धिक स्वभाव की सौन्दर्य उसके संवेगात्मक स्वभाव की और शुभ सदाचार अथवा नैतिक उत्कृष्टता उसके व्यवसायात्मक क्रियात्मक स्वभाव की तृप्ति करते हैं।