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मराठी भाषा का आधुनिक साहित्य क्या हैं ? brief history of marathi language literature in hindi

brief history of marathi language literature in hindi मराठी भाषा का आधुनिक साहित्य क्या हैं ?

मराठी भाषा का आधुनिक साहित्य
मध्ययुगीन भारत मराठी भाषा, महाराष्ट्र की भूमि में राष्ट्रीय चेतना जगाने की एक शक्ति सिद्ध हुई थी। यह भाषा न केवल विभिन्न वर्गों के लिए लोंगों में एकता का सूत्र बनी बल्कि इसनें धार्मिक-आध्यात्मिक पुनर्जागरण के लिए भी नींव तैयार की। महान मराठा संतों ने जनता की भाषा में अपने गीतों और प्रवचनां से मराठी भाषा को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया।
जिस प्रकार सारे भारत में हुआ उसी तरह महाराष्ट्र में भी नई परिस्थितियों ने नए साहित्यिक आंदोलन के लिए अनुकूल वातावरण पैदा किया। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मराठी साहित्य एक नए युग के द्वार पर खड़ा था।
पद्य के क्षेत्र में केशव सत (1866-1905) की कविताओं ने पुरानी परंपरागत शैली को तोडा और नए विचारों का समावस किया। पश्चिम की प्रमुख प्रवृत्तियों-उदारतावाद, राष्ट्रवाद और स्वच्छंद भावनावाद-ने कवियों पर बहत प्रभाव डाला। इस अलावा मुदतीय पुनरूत्थान का भी प्रभाव पड़ा। कविता को नए रूप में परिवर्तन करने वाले अन्य कवियों में थे नारायण वामन तिलक, विनायक और रामगणेश गडकरी। इनमें से प्रत्येक ने अपने विशिष्ट ढंग से मराठी कविता में आधुनिकता के लिए स्थान बनाया। बाद के जो कवि मराठी कविता में और विकास लाए उनमें थे बालकवि नारायण मुरलीधर गुप, भास्कर रामचंद्र ताम्बे और चन्द्रशेखर। इन सबकी अपनी ही दृष्टि, कल्पना और मौलिकता थी।
मराठी उपन्यासों ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान काफी प्रगति के और 20वीं शताब्दी में पर्णता के उच्च शिखर पहंचे। उपन्यास लेखन कला को एक निश्चित आकार देने वाले लेखक थे हरिनारायण आप्टे (1864-1919)। उन्होंने अपने उपन्यासों के लिए सामाजिक जीवन के विषय चुने और समुचित सुधारों की आवश्यकताओं की ओर ध्यान आकर्शित किया। उदाहरण के लिए उनके उपन्यास ‘पण लक्ष्यंत कोण घेतो‘ में बाल विधवा के जीवन का चित्रण है। ऐतिहासिक उपन्यास लिखने वाले अन्य लोगों में थे सी. वी. वैद्य, एस. एम. परांजपे, और सी. जी. भानु। उनका साहित्य का सामाजिक उद्देश्य की प्राप्ति का माध्यम बनाने का एक और क्रांतिकारी तरीका अपनाने वाले लेखक थे वी. एम. (1882-1943)। उनके उपन्यास ‘सुशील चा देख‘ आर ‘इंदुकाले अनिसरलाभोले‘ बहुत उच्च कोटि के थे, जिन्होंने गंभीर और बद्धिजीवी पाठको मे लोकप्रियता प्राप्त की। एम. वी. केतकर (1884-1937) ने इससे भी गंभीर उपन्यास लिखी। साधारण पाठक की मांग को पूरा किया मामा बररकर जैसे लेखकों ने जिन्होंने कई उपन्यास और जासूसी कहानियां भी लिखी। एन. एस. फड़के ने उपन्यास लेखक का कलात्मक शैली का विकास करने पर विशेष ध्यान दिया। वी.एस. खांडेकर ने आधुनिक जीवन की वास्तविकताओं को विशेष रूप से उभारा।
19वीं शताब्दी के मध्य में आधुनिक रंगमंच के उदय से मराठी साहित्य में नाटक को बहुत प्रोत्साहन मिला। मराठी नाटक को सफल प्रयास बनाने का श्रेय बी. पी. किरलोस्कर (1843-1885) को है। उनका नाटक ‘सौभद्र‘ रंगमंचा पर बहुत सफल हुआ। जी. बी. देवल (1854-1916) ने मराठी रंगमंच पर अंग्रेजी नाटक के तत्वों का उपयोग करने के प्रयोग किए। साथ ही उन्होंने संस्कृत नाटक की विशेषताओं के पुनरूज्जीवित किया। उनके नाटक ‘शारदा‘ का समाज पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। बाद के मराठी नाटकों में अंग्रेज नाटक लेखकों का प्रभाव, विशेषकर संवाद लेखन पर स्पष्ट रूप से पड़ा। मराठी नाटक संगीत से भरपूर था और इसलिए यह मनोरंजन के साधन के रूप में लोकप्रिय था। इस तरह के कुछ प्रमुख नाटक लेखक थे-के. पी. खाडिलकर, एस. के. कोलहाटकर गडकारी और एन सी केलकर उन्होंने मराठी नाठक के साहित्यिक, शिक्षाप्रद और व्यावसायिक मूल्य के द्वारा मराठी रंगमंचा के एक समद्ध संस्था बनाया।
अधिकाधिक यथार्थवादी गद्य शैली में लेखन से, लोगों को सामाजिक-राज-नीतिक परिस्थितियों के प्रति और ज्यादा सचेत करने में सहायता मिली है। इस दिशा मे मराठी साहित्य में बालगंगाधर तिलक का महन योगदान है। उनका प्रसिद्ध साप्ताहिक ‘केसरी‘ न केवल उस युग की महत्वाकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता था बल्कि उसने ऐसी समस्याएमा उजागर की जो तात्कालिक महत्व की थीं और और जिन्हें हल किया जाना आवश्यक था। गोपाल गणेश आगरकर न अपने साप्ताहिक ‘सुधारक‘ के जरिए समाज के अधविश्वासों और बुराइयों का पर्दाफाश करने और आमूल परिवर्तनों का आवाज उठाने का प्रयत्न किया। तिलक का लिखने का ढंग बहुत साहसपूर्ण, स्पष्ट और शालीन होने के साथ-साथ उनका बुद्धिमत्ता और शास्त्र ज्ञान से भरा हुआ था और उनके कारण मराठी गद्य का राष्ट्रीय स्तर पर बहुत स्पष्ट प्रभाव पड़ा। विष्णु शास्त्री चिपलंकर और शिवराम महादेव परांजपे जैसे अन्य लेखकों ने पाठकों की भावनाओं को झकझोरने के लिए सामाजिक राष्ट्रीय मामलों पर प्रभावोत्पादक अलंकारपूर्ण शैली का विकास किया। आकर्षक गद्य शैली विकसित करने के लिए पत्रकारों में एन. जी. केलकर का नाम उल्लेखनीय है।
हाल के वर्षों में सामाजिक, राजनीतिक सुधाररवाद की पृष्ठभूमि में गद्य और पद्य दोनों में प्रगतिवादी प्रवृत्तियां और शैलिया विकसित हुई हैं।