सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं क्या है , शिक्षक की भूमिका , महत्व आवश्यकता continuous and comprehensive evaluation in hindi

continuous and comprehensive evaluation in hindi सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं क्या है , शिक्षक की भूमिका , महत्व आवश्यकता ?

सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन से क्या अभिप्राय है ? इसका महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
What is meant by Continuous and comprehensive Evaluation (CCE) ? Explain its importance.
अथवा
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
Describe the concept of CCE.
उत्तर-सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की अवधारणा (Concept of continuous and comprehensive evaluation (CCE)) – मूल्यांकन का अभिप्राय बालकों को उसकी सफलता या असफलता का प्रमाण-पत्र देना ही नहीं, बल्कि उसकी योग्यता को बढ़ावा देते हुए सही दिशा प्रदान करना है। इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों का सतत् आकलन किया जाए जिससे यह पता चल सके कि बच्चे के विकास की गति ठीक है या नहीं, यदि ठीक नहीं है तो उसे किस प्रकार के बाह्य मदद की आवश्यकता है ? सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का मूल विचार इस तथ्य पर आधारित है कि सभी बच्चे एक से नहीं होते। बच्चों में सोचने-समझने और तर्क करने की क्षमता भिन्न-भिन्न होती है जिसके आधार पर उनका विकास होता है । इसके अलावा यह भी एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि विकास टुकड़ों में नहीं होता है बल्कि समग्र एवं निरन्तर होता रहता है । मूल्यांकन प्रक्रिया में हम इस बात के प्रमाण जुटाते है कि बच्चों की योग्यता या व्यवहार में कितना अंतर आया है, उसने कितनी प्रगति की है।
शिक्षा अधिकार अधिनियम-2009 में भी परीक्षा के भय और तनाव को दूर करने के लिए कक्षा 5वीं और 8वीं की बोर्ड परीक्षा की अनिवार्यता को समाप्त कर सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन को अनिवार्य करने की बात की गई। सुझावों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न राज्यों में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की प्रक्रिया आंशिक रूप से लागू की गई। वर्तमान में इस मूल्यांकन पद्धति में शिक्षा के अधिकारर अधिनियम-2009 के संदर्भ में सुधार कर सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास किया गया है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का आशय (Means of Continuous and iprehensive Evaluation) – सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन छात्रों के विकास के समस्त क्षेत्रों का सतत् एवं नियमित आकलन है जिसमें विभिन्न विधियों एवं उपकरणों के माध्यम से छात्रों का आकलन किया जाता है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में तीन शब्द हैं, सतत, व्यापक एवं मूल्यांकन।
1. सतत् मूल्यांकन (Continuous Evaluation) – सतत् मूल्यांकन (continuous evaluation) से तात्पर्य नियमित एवं निरन्तर होने वाले मूल्यांकन से है। सतत् शब्द का प्रयोग शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया के सम्पूर्ण, समन्वित आकलन के लिये किया गया है। शिक्षा की प्रक्रिया विद्यार्थी के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती हुई निरन्तर आगे बढ़ती रहती है और यही निरन्तरता मूल्यांकन में भी होनी चाहिये। इसलिये सतत् मूल्यांकन योजना को निरन्तर मूल्यांकन योजना भी कहते हैं । सतत् मूल्यांकन का आशय उस परीक्षण से है, जिसमें छात्र के अध्ययन एवं उपलब्धियों का प्रतिमाह लेखा-जोखा लिया जाता है । सतत् मूल्यांकन पद्धति में आमतौर पर सम्पूर्ण पाठयक्रम को दस इकाइयों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक माह उस इकाई का अध्यापन कराने के बाद स्वाभाविक रूप से परीक्षण किया जाता है, जिसका व्यवस्थित अभिलेख रखा जाता है। वर्ष के अन्त में सम्पूर्ण मूल्यांकन के प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक कक्षाओं में सतत् मूल्यांकन पद्धति कही-कही प्रचलित है, किन्तु यह उस रूप में नहीं है, जैसा कि सतत मूल्यांकन के मौलिक स्वरूप में होनी चाहिये। इससे मात्र ज्ञानार्जन के शैक्षिक कौशल का ही मूल्यांकन किया जाता है।
कक्षोन्नति का एकमात्र साधन वार्षिक परीक्षा और उसके परिणाम होते हैं । इस प्रथा के अवांछित परिणामों से सभी भली-भाँति परिचित हैं। सत्रान्त में विद्यार्थियों द्वारा चुनिन्दा पाठ्यांशों की पढ़ाई स्पष्टतः शैक्षिक लाभ के विपरीत है। सम्पूर्ण स्कूल संकल्पना के कार्यक्रम में अन्तनिर्हित सतत् मूल्यांकन इस समस्या का एक सम्भावित समाधान है। सतत् मूल्यांकन के माध्यम से छात्र की योग्यता तथा अयोग्यता के बारे में नियमित रूप से उपयोगी तथ्यों का संकलन सम्भव हो सकेगा। इन तथ्यों का प्रयोग एक ऐसे उपचारात्मक शिक्षण यन्त्र तथा समृद्ध शिक्षण के रूप में किया जा सकेगा, जिससे कि बच्चों के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का अधिकतम विकास किया जा सके और शिक्षा के उद्घोषित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। इन पृष्ठपोषण (फीडबैक) से न केवल विद्यार्थी को मापन, वर्गीकरण एवं प्रमाणीकरण में सहायता मिलेगी, अपितु उसको कार्यकुशलता एवं सफलता के स्तर को सुधारने की तथा इस प्रकार के रचनात्मक मूल्यांकन के द्वारा उसके अधिकतम विकास की व्यवस्था को भी सक्षम बनाया जा सकेगा।
2. व्यापक मूल्यांकन (Comprehensive Evaluation) व्यापक (Comprehensive evaluation) ऐसी प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है जो विद्यार्थी के ज्ञानात्मक, भावात्मक, एवं संज्ञानात्मक सभी पक्षों का सम्पूर्ण एवं व्यापक आकलन करती है। इसमें शिक्षार्थी के आकलन के विविध उपकरण एवं तकनीकें काम में ली जाती हैं। सभी शैक्षिक क्षेत्रों से सम्बन्धित योग्यताएँ तथा सभी गैर शैक्षिक व्यवहार के क्षेत्रों की प्रगति के मूल्य निर्धारण को व्यापक मल्यांकन कहा जा सकता है । दक्षता आधारित मूल्यांकन के अन्तर्गत प्रतिदिन कक्षा में शिक्षण के अन्तर्गत छात्रों को दक्षता सिखाने के बाद उसका मूल्यांकन किया जाता है, किन्तु छात्रों की दक्षता के अतिरिक्त उनमें संज्ञानात्मक पक्ष, भाव पक्ष तथा क्रियात्मक पक्ष भी सम्मिलित होते हैं, जिनका मूल्यांकन दक्षताधारित विधि से सम्भव नहीं होता। इसलिये छात्रों के चहुंमुखी विकास हेतु व्यापक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
व्यापक मूल्यांकन की दृष्टि से छात्रों के निम्नलिखित पक्षों पर ध्यान दिया जाता है-
(1) वैयक्तिक एवं सामाजिक सद्गुण-इनके अन्तर्गत समयबद्धता, नियमबद्धता, नैतिकता, उत्तरदायित्व की भावना, स्वच्छता एवं सहयोग, सत्यनिष्ठता, नियमितता, समाज-सेवा आदि गुण सम्मिलित हैं।
(2) यकम सम्बन्धी क्रियाएँ-इनके अन्तर्गत वाद-विवाद, खेलकुद, भाषण. नाटक, तैरना, स्काउटिंग तथा कार्यानुभव क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जिनका मूल्यांकन अति आवश्यक होता है।
(3) स्वास्थ्य विवरण-इनके अन्तर्गत लम्बाई, भार, स्वास्थ्य तथा शारीरिक विकास आदि सम्मिलित है।
(4) छात्र की अभिरुचियाँ-इसके अन्तर्गत साहित्य, संगीत कला तथा प्रकृति दर्शन सम्मिलित हैं।
(5) अभिवृत्तियाँ- इनके अन्तर्गत समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता सम्मिलित हैं।
3. मूल्यांकन (म्अंसनंजपवद)- मूल्यांकन, कक्षा अधिगम प्रक्रिया के साथ-साथ छात्रों के सीखने की गति, अवधारणा, ज्ञान, अभिवृत्ति, कौशल, व्यवहार, अनुभव आदि को जानने के लिए योजनाबद्ध रूप-से-साक्ष्यों का संकलन, विश्लेषण, व्याख्या एवं सुझाव देने की प्रक्रिया है। साक्ष्यों का यह संकलन कक्षा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के समय शिक्षकों द्वारा उपयोग में लाए गए उपकरणों के माध्यम से किया जाता है, क्योंकि मूल्यांकन के आधार पर आवश्यक सुधार कर उपलब्धि स्तर को बढ़ाया जा सकता है। मूल्यांकन प्रक्रिया जितनी बेहतर होगी विकास की गति उतनी ही बेहतर होगी।
सतत्् एवं व्यापक मूल्यांकन का आशय यह नहीं है (CCE doesn’t mean)-
1. यह परीक्षा का पर्याय नहीं है और न ही बच्चों का नियमित परीक्षण है।
2. बच्चों को ग्रेड या अंक देना, फेल-पास का सटिफिकेट देना।
3. बच्चों को नाम देना जैसे धीमी गति से सीखने वाला, कमजोर, होशियार, समस्या मूलक विद्यार्थी आदि।
4. बच्चों को भय व दबाव में अध्ययन के लिए प्रेरित करना।
5. बच्चे की प्रगति की तुलना अन्य बच्चे से करना।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के सिद्धान्त (Principles of CCE)-
1. सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन तथा सीखने की प्रक्रिया साथ-साथ चलती है, जिसमें बच्चे को सीखने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने के बाद ही मूल्यांकन किया जाता है।
2. सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में बच्चे की प्रगति की तुलना उसके स्वयं की पिछली प्रगति से की जाती है न कि अन्य बच्चों की प्रगति से।
3. सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में बच्चे के सीखने की गति एवं क्षमता के अनुसार अलग-अलग गतिविधियों का उपयोग किया जाता है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का महत्व (Importance of Continuous and comprehensive Evaluation)-
1. यह अध्यापक को प्रभावी अध्यापन कार्यनीतियाँ बनाने में सहायता देती हैं।
2. निरन्तर मूल्यांकन से छात्र की प्रगति (विशिष्ट शैक्षिक और सह शैक्षिक क्षेत्रों में संदर्भ सहित क्षमता और उपलब्धि) सीमा और स्तर के नियमित मूल्यांकन सहायता मिलती है।
3. निरन्तर मूल्यांकन से कमियों का निदान किया जा सकता है और अध्यापक छात्र की क्षमताओं, कमियों और जरूरतों को इससे सुनिश्चित कर सकते हैं। इससे अध्यापकों को तत्काल फीडबैक मिलता है, जो यह निर्णय ले सकते हैं कि एक विशेष इकाई या संकल्पना पूरी कक्षा को दोबारा पढ़ाने की जरूरत है या कुछ ही छात्रों को उपचारात्मक अनुदेशन की आवश्यकता है।
4. निरन्तर मूल्यांकन द्वारा बच्चे अपने क्षमताओं और कमियों को जान सकते हैं । इससे बच्चे को अपने अध्ययन का वास्तविक स्वयं मूल्यांकन करने में सहायता मिलती है। इससे बच्चों को पढ़ाई की अच्छी आदतें विकसित करने, गलतियों को सुधारने और अपने कार्यकलापों को वांछित लक्ष्यों की प्राप्तियों की ओर निर्देशित करने की प्रेरणा मिलती है। यह अनुदेशन के उन क्षेत्रों को निर्धारण करने में छात्र की सहायता करता है, जिस पर और अधिक बल देने की आवश्यकता है।
5. निरन्तर और व्यापक मूल्यांकन मनोवृत्ति और रुचि के क्षेत्रों को अभिज्ञात कराता है। … यह मनोवृत्तियों व मूल्य प्रणालियों में बदलावों को अभिज्ञान करने में सहायता देता है।
6. यह भविष्य में विषयों, पाठ्यक्रमों और कैरियर के विषय में निर्णय लेने में सहायता देता है।
7. इससे शैक्षिक और सह शैक्षिक क्षेत्रों में छात्रों की प्रगति पर सूचना/रिपोर्ट मिलती है और इस प्रकार छात्रों की भावी सफलताओं का अनुमान लगाने में मदद मिलती है।