market definition in hindi meaning बाजार किसे कहते हैं | बाजार की परिभाषा क्या है अर्थ अवधारणा मतलब ?
बाजार की अवधारणा
आदर्श रूप में बाजार की परिभाषा वह है कि जिसमें सजातीय उत्पाद के खरीदार और विक्रेता सम्मिलित हैं, उनमें पर्याप्त परस्पर निकट संबंध है कि उनके बीच एकल खरीद या बिक्री मूल्य प्रचलित है।
सैद्धान्तिक विश्लेषण में यह अवधारणा बिल्कुल स्पष्ट है किंतु व्यावहारिक परिस्थितियों में पहचान की समस्या खड़ी हो जाती है। इसके मुख्यतः दो कारण हैंः (क) उत्पाद विभेदीकरण और (ख) आर्थिक कार्यकलाप में स्थानिक आयाम।
1) उत्पाद विभेदीकरण: उत्पाद के अपेक्षाकृत कम क्षेत्रों में क्या बाजार के अंदर एक सजातीय उत्पाद की बिक्री का उल्लेख करना सार्थक है। इसलिए, उत्पादों के बीच विभेद करने की समस्या आती है, जो यद्यपि कि विभेदीकृत हैं, एक ही बाजार के हैं और अन्य उत्पाद जो, क्योंकि पर्याप्त रूप से अलग हैं, अन्य बाजारों के हैं। यह भेद मुख्य रूप से मात्रा का है न कि प्रकार का- यह उत्पादों के बीच स्थानापन्नता की सीमा से संबंधित है, जो कम से कम सिद्धान्त में माँग की प्रति लोच के रूप में माप योग्य है।
माँग की प्रति लोच = वस्तु की माँगी गई मात्रा में समानुपातिक परिवर्तन दृग्
वस्तु के मूल्य में समानुपातिक परिवर्तन -ल्
जहाँ माँग की प्रति लोच अधिक और सकारात्मक है, उत्पादों के बीच स्थानापन्नता अधिक होती है और इस तरह के उत्पादों को एक ही बाजार में बिक्री के लिए विभेदीकृत उत्पाद माना जाता है।
जहाँ प्रति लोच कम है उत्पादों को पृथक माना जाता है और अलग-अलग बाजारों में उनकी बिक्री होती है।
2) स्थानिक आयाम: सामान्यतया एक बाजार की स्थानिक इकाइयों को राष्ट्रीय बाजारों के समविस्तारी माना जाता है किंतु व्यवहार में यह या तो अत्यधिक संकीर्ण होगा अथवा, प्रायः खुदरा व्यवसाय की भाँति, अत्यन्त ही विस्तृत ।
बाजार की चाहे जो भी परिभाषा स्वीकार की जाए यह सामान्यतया उद्योग की परिभाषा से संकीर्ण ही होगी। इसका अभिप्राय यह है कि जो मुख्य रूप से सुपरिभाषित उद्योग आधार पर एकत्र किया जाता है, बाजार संरचना के मूल्यांकन के लिए उत्पाद अथवा स्थानिक आधार पर अपर्याप्त रूप से विसमुच्चयित है। इसलिए, व्यवहार में, बाजार संरचना का विश्लेषण प्रायः बाजार की उस परिभाषा पर आधारित है जो सैद्धान्तिक विचार से कहीं ज्यादा व्यापक है।
उद्देश्य
निर्गत का मूल्य निर्धारण सभी व्यापारिक निर्णयों की चरम पराकाष्ठा है। मूल्य निर्धारण सभी अन्य व्यापारिक निर्णयों की प्रकृति निश्चित करता है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ यह समझ सकेंगे कि व्यापार के लिए मूल्य निर्धारण निर्णय कितना महत्त्वपूर्ण है;
ऽ विभिन्न बाजार संरचनाओं में मूल्य निर्धारण निर्णयों की प्रक्रिया की पहचान कर सकेंगे;
ऽ उत्पादकों को सम्यक् मूल्य निर्धारण निर्णय करने में सहायता हेतु विकसित सैद्धान्तिक मॉडलों
के महत्त्व को समझ सकेंगे;
ऽ यह समझ सकेंगे कि क्यों प्रत्येक उत्पादक सदैव ही सैद्धान्तिक मॉडलों द्वारा निर्देशित नहीं होता
है; और
ऽ अलग-अलग उत्पादकों द्वारा अपनाए गए वैकल्पिक मूल्य निर्धारण व्यवहारों का विश्लेषण कर सकेंगे।
सारांश
किसी भी उत्पादक के लिए मूल्य निर्धारण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण निर्णय है। एक उत्पादक के सम्मुख हमेशा विभिन्न सैद्धान्तिक मॉडल उपलब्ध होते हैं जो अनुकूलतम निर्णय लेने में उसकी सहायता करते हैं। निःसंदेह, सैद्धान्तिक मॉडल, विभिन्न बाजार संरचनाओं के अन्तर्गत मूल्य और निर्गत निर्धारण की प्रक्रिया का अवधारणात्मक बोध प्रस्तुत करते हैं। तथापि, फर्म द्वारा वास्तविक निर्णय करने में ये बहुत ही कम उपयोगी होते हैं। व्यवहार में, उत्पादक मूल्य निर्धारण के लिए सरल तदर्थ प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं जिसमें मुख्य रूप से कीमत-लागत अंतर पद्धति, या तो ‘‘पूर्ण लागत‘‘ अथवा ‘‘लागतोपरि‘‘ मूल्य निर्धारण अथवा लक्षित निर्धारित प्रतिलाभ दर मॉडल है। किंतु मूल्य निर्धारण में अधिक विविधता होने और अनुभव सिद्ध सरल नियमों के व्यापक अनुसरण के बावजूद भी मूल्य और लाभ-गुंजाइश में सिद्धान्त के अनुरूप लागत और माँग परिवर्तन में कमी-वृद्धि होती रहती है।
शब्दावली
मूल्य ः वस्तु अथवा आदान के मूल्य से यह पता चलता है कि वस्तु अथवा सेवा प्राप्त करने के लिए कितना परित्याग करना है।
बाजार ः कोई भी संदर्भ जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री और खरीद की जाती है।
बाजार शक्तियाँ ः बाजार आपूर्ति और माँग के निर्बाध होने से उत्पन्न दबाव जो मूल्यों औरध्अथवा कारोबार की मात्रा में समायोजन प्रेरित करती है।
कीमत लागत अंतर ः मूल्य का वह भाग जो एक विक्रेता उपरिव्ययों को पूरा करने और शुद्ध लाभ गुंजाइश अर्जित करने के लिए औसत परिवर्ती लागतों में जोड़ता है।
मूल्य विभेदीकरण ः फर्म द्वारा खरीदारों के विभिन्न समूहों से अलग-अलग मूल्य वसूल करने की प्रथा ।
मूल्य नेतृत्व ः एक उद्योग में वह स्थिति जिसमें एक फर्म मूल्य परिवर्तन करने में पहल करती है और अन्य फर्म उसका अनसरण करती हैं।
मुल्य तंत्र ः मुक्त बाजार प्रणाली के संदर्भ में इसका उपयोग किया जाता है और वह रीति जिसमें मूल्य स्वचालित संकेत के रूप में काम करता है जो अलग-अलग निर्णय करने वाली इकाइयों के कार्रवाइयों में समन्वय करता है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें और संदर्भ
डोनाल्ड ए. हे और डेरेक आई मॉरिस, (1984). इण्डस्ट्रियल इकनॉमिक्स – थ्योरी एण्ड एवीडेन्स, ऑक्सफोर्ड, लंदन अध्याय 3, 4 और 5
पी.आई. डिवाइन इत्यादि, (1976). ऐन इण्ट्रोडक्शन टू इण्डस्ट्रियल इकनॉमिक्स, (जॉर्ज एलेन, लंदन, अध्याय 2 और 6)
आर.आर. बर्थवाल, (1984). इण्डस्ट्रियल इकनॉमिक्स, विली ईस्टर्न, नई दिल्ली, अध्याय 9 और 14
श्रीनिवास वाई. ठाकुर, (1985). इण्डस्ट्रियलाइजेशन एण्ड इकनॉमिक डेवलपमेण्ट, पॉपुलर, बॉम्बे
आई.सी. धींगरा, (2001). एलीमेण्ट्स ऑफ इकोनॉमिक्स, सुल्तान चंद, नई दिल्ली, अध्याय 6 से 9