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जयगढ़ किले का निर्माण किसने करवाया | jaigarh fort built by whom in hindi जयगढ दुर्ग किसने बनाया

जयगढ दुर्ग किसने बनाया jaigarh fort built by whom in hindi जयगढ़ किले का निर्माण किसने करवाया बनवाया ?

प्रश्न: जयगढ़ के बारे में जानकारी बताइए ?
उत्तर: जयपुर राज्य का सबसे दुर्गम गढ़ जयगढ़ था। इसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम (1620-1667 ई.) ने करवाया था तथा इसका परिवर्द्धन सवाई जयसिंह द्वितीय ने किया। यह 500 मीटर ऊंची पर्वतीय चोटी पर स्थित है। दुर्ग का शस्त्रागार ‘विजय गढ़ी‘ कहलाता है। उसी के पास तिलक की बारी है। इसी प्रांगण में दीया बुर्ज तथा जय बाण है। ‘जय बाण‘ नामक तोप का निर्माण 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जयगढ़ के शस्त्र कारखाने (तोपखाने) में हआ। यह एशिया की सबसे बडी तोप है। दुर्ग परिसर में कई सुरंगे है। जिन्हें गुप्तचरी तथा आपातकाल के लिये काम में लिया जाता था पर दुर्ग आमेर के कच्छवाहा शासकों को संकटकाल में सुरक्षा प्रदान करता था।
प्रश्न: चिड़ियाटूक, मेहरानगढ़
उत्तर: जोधपर नगर की उत्तरी पहाडी चिडियाट्रंक पर बना हुआ है मेहरानगढ़। यह भी पार्वत्य दुर्ग की श्रेणी स्थापना मई, 1459 को राव जोधा ने की थी जो मण्डोर के राठौड़ शासकों का वंशज था। दुर्ग में मुख्य द्वार है- लोहा पोल व जय पोल। दुर्ग की सुदृढ़ दीवारों के नीचे बाहर की ओर रानीसर व पद्मसर नामक तालाब बने हुए है। दुर्ग के भीतर महाराजा सूरसिंह के बनवाये हुए मोती महल, अजीतसिंह के बनवाये हुए फतह महल, अभयत सिंह केे बनवाये हुए फुूल महल, बखतसिंह के बनावाये हुए सिंगार महल दर्शनीय हैं। महाराजा मानसिंह द्वारा ‘पुस्तक प्रकाश‘ नामक पुस्तकालय आज भी कायरत है। प्रसिद्ध विदशा लेखक लार्ड किपलिंग लिए कहा कि यह दुर्ग परियों एवं देवताओं द्वारा बनवाया गया है। दुर्ग परिसर में स्थित मंदिरों में चामुण्डा माता, मुरली मनोहर और आनंदघन के प्राचीन मंदिर है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित मेहरानगढ़ वास्तुकला की दृष्टि से बेजोड़ है।
प्रश्न: रणथंभौर दुर्ग का सैन्य महत्व समझाइए।
उत्तर: रणथंभौर का दुर्ग सवाईमाधोपर से लगभग 9 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत मालाओं से घिरा हुआ एक पार्वत्य दुर्ग एवं वन दुर्ग है। इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में अजमेर के चैहान शासकों द्वारा करवाया गया था। एक मान्यता के अनुसार इसका निर्माण रणथान देव चैहान ने करवाया था। यह दुर्ग विषम आकार वाली सात पहाड़ियों से घिरा हुआा है। अबुल फजल ने लिखा है कि ‘अन्य सब दुर्ग नंगे हैं, जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है‘। दुर्ग परिसर में हम्मीर महल, रानी महल हम्मार की कचहरी, सुपारी महल, बादल महल, जौरां-भौरा, 32 खम्भों की छतरी, रनिहाड़ तालाब, जोगी महल. पी सछःद्दीन की दरगाह, लक्ष्मी नारायण मंदिर, जैन मंदिर तथा भारत प्रसिद्ध गणेश मंदिर स्थित है। किले के पार्श्व में पद्मला तालाब तथा अन्य जलाशय देखे जा सकते हैं। रणथम्भौर दुर्ग राणा हम्मीर देव चैहान की शौर्यगाथा का साक्षी रहा है। वह सन् 1301 में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए बलिदान हुआ।

प्रश्न: राजस्थान के जैन शैली के मंदिर

उत्तर: अपने विकसित रूप में जैन मंदिर एक जगती पर अवस्थित, गर्भगृह प्रायः निरंधार, मुखचतुष्की युक्त द्वार, गूढ, नृत्य तथा रंग मण्डप। जगती के किनारे देवकुलिकाएं एवं अलंकृत भरपूर तथा आमलक युक्त पिरामिडनुमा शिखर आदि मुख्य विशेषताएं हैं। राजस्थान में ओसियां, सेवाडी, नारलाई, नाकौड़ा (मेवानगर), लोद्रवा, रणकपुरं, देलवाड़ा आदि के जैन मंदिर बड़े प्रसिद्ध हैं। जिनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध देलवाडा के विमलशाही व लूणवशाही मंदिर हैं। इनमें बड़े पैमाने पर श्वेत संगमरमर पर बारीक तक्षणकला बेजोड़ है।
प्रश्न: रणकपुर मंदिर स्थापत्य

उत्तर: रणकपुर में जैन, वैष्णव व शैव मंदिर समूह कुंभाकालीन हैं। जिनमें सबसे सुन्दर एवं विशाल मंदिर चैमुखा मंदिर है जिसमें कल 24 मण्डप, 84 शिखर और 1444 स्तम्भ हैं। किसी भी स्तम्भ का अलंकरण दूसरे स्तम्भ से साम्यता नहीं रखता। ऊँची जागता, तोरणदार, सभामण्डप, गर्भगह, देवकलिकाएं विभिन्न मद्राओं में उत्कीर्ण नृत्यांगनाएं आदि सभा विशेषताए इस मंदिर में मौजूद हैं। इस प्रकार रणकपुर के मंदिर अपनी विशालता. कलात्मकता एवं उत्कीर्ण कला के लिए प्रसिद्ध है।