जड़ क्या है ? what is root in hindi difinition जड़ किसे कहते हैं जड की परिभाषा लिखिए कार्य root in plants

(what is root in hindi difinition) जड़ क्या है ? जड़ किसे कहते हैं जड की परिभाषा लिखिए कार्य root in plants function.

जड़ क्या है ? : मूल या जड़ संवहनी पौधे का आधारीय हरिमाहीन (non green) और बेलनाकार भूमिगत अक्ष होता है , जो प्रकाश से दूर और जमीन की सतह के नीचे अन्धकार की तरफ वृद्धि करता है।

जड ही सर्वप्रथम पादप संरचना है जो कि बीज के अंकुरण के पश्चात् विकसित होती है। यह एक शाखित संरचना है जिससे पाशर्वीय शाखाएँ उत्पन्न होती है। इन शाखाओं की उत्पत्ति अन्तर्जात प्रकार की होती है अर्थात ये परिरंभ से उत्पन्न होती है।
प्ररोह या स्तम्भ के विपरीत जड़ें पर्व और पर्वसंधियों में विभेदित नहीं होती। इसके अतिरिक्त जड़ों में पत्तियाँ और कलिकाएँ भी विकसित नहीं होती। मूल प्रारूपिक पौधे का एक महत्वपूर्ण और आधारभूत अंग है जो कि पौधे के लिए दो प्रमुख कार्यो क्रमशः मृदा से जल और खनिज पदार्थो का अवशोषण और पौधे को जमीन में स्थिरीकृत करने का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न पौधों की जड़ें रूपान्तरित होकर संचित खाद्य पदार्थो के भण्डार गृह का कार्य भी करती है।

जड़ के प्रमुख लक्षण (characteristics of root)

  1. ये अहरित और बेलनाकार संरचनाएँ होती है।
  2. सामान्यतया ये पौधे के आधारीय अथवा अधोवर्ती अक्ष का गठन करती है।
  3. इनमें पर्व और पर्वसंधियों का विभेदन नहीं होता।
  4. इनमें पत्तियाँ और कलिकाएँ अनुपस्थित होती है।
  5. इनमें अग्रस्थ सिरे अथवा वृद्धिशील बिंदु को आवरित करते हुए एक विशेष प्रकार की संरचनाएँ जिसे मूल गोप (root cap) कहते है , पायी जाती है। इसका प्रमुख कार्य जड के वृद्धिशील बिन्दु को सुरक्षा प्रदान करने का होता है। परन्तु जलीय पौधों की जड़ों में प्राय: मूल गोप अनुपस्थित होती है और इसके स्थान पर एक अन्य विशेष प्रकार की संरचनाएँ जिनको “रूट पॉकेट्स” (root pockets) कहते है , पायी जाती है।
  6. प्रारूपिक जड़ों में उपस्थित एक विशिष्ट हिस्से , मूलरोम क्षेत्र में असंख्य , एक कोशीय नलिकाकार और अशाखित मूल रोम विकसित होते है।
  7. जडें प्राय: धनात्मक जलानुवर्ती (positively hydrotropic) होती है।
  8. ये ऋणात्मक प्रकाशानुवर्ती (negatively phototropic) होती है।
  9. इनमें शाखाओं के रूप में पाशर्वीय जड़ें उत्पन्न होती है , इनकी उत्पत्ति अन्तर्जात होती है अर्थात ये परिरंभ से उत्पन्न होती है। इसके विपरीत तने अर्थात प्ररोह में शाखाओं की उत्पत्ति बहिर्जात प्रकार की होती है अर्थात इनकी शाखाएँ वल्कुट ऊतक से उत्पन्न होती है।
  10. जड़ों का मूलभूत अथवा प्रमुख कार्य पौधे को जमीन में मजबूती से स्थिर करने का और पौधे के लिए मृदा से जल और खनिज पदार्थो के अवशोषण करने का होता है। हालाँकि प्लावी (floating) अथवा निमग्न जलीय पौधों जैसे – माइरियोफिल्लम , सिरेटोफिल्लम और युट्रिक्यूलेरिया आदि में जल के अवशोषण अथवा पौधे के स्थिरीकरण जैसे कार्य जड़ों के द्वारा संपन्न नहीं होते क्योंकि इनकी आवश्यकता ही नहीं पडती अत: उपर्युक्त उदाहरणों और अधिकांश पूर्णतया जल निमग्न जलोदभिदो में जड़ें अल्प विकसित होती है अथवा पूर्णतया अनुपस्थित होती है।

पादप में मूलतन्त्रों के प्रकार (types of root system in plants)

अपनी विभिन्न शाखाओं से युक्त जड़ों को मूलतंत्र कहा जाता है। विभिन्न संवहनी पौधों में प्रमुखतया दो प्रकार के मूलतंत्र पाए जाते है –
1. मूसला जड़ तंत्र (tap root system)
2. अपस्थानिक जड़ तंत्र (adventitious root system)
1. मूसला जड़ तंत्र (tap root system) : इसका विकास मुलान्कुर से होता है। सर्वप्रथम मुलान्कुर की वृद्धि के द्वारा प्राथमिक अथवा मूसला जड़ का विकास होता है। यह प्राथमिक जड सक्रीय रूप से निरंतर वृद्धि करती है और पाशर्वीय शाखाओं अथवा द्वितीयक जड़ों का विकास करती है। द्वितीयक जड़ें शाखित होकर तृतीयक जड़ों का निर्माण करती है। इन तृतीयक जड़ों के पुनः शाखित हो जाने से , महीन और पतली जड़ों अथवा मूल प्रसारिकाओं का निर्माण होता है। इस प्रकार मूसला जड़ अपनी विभिन्न शाखाओं यथा द्वितीयक और तृतीयक जड़ों के साथ मिलकर संयुक्त रूप से मूसला जड़ तंत्र का निर्माण करती है। इस तंत्र में प्राथमिक जड़ सुस्पष्ट और सुविकसित और अन्य मूलशाखाओं की तुलना में बड़ी और सबल होती है। यह आधारीय सिरे पर मोटी और शीर्ष सिरे पर नुकीली और संकरी होती है। मूसला जड़ों की उपस्थिति अधिकांश द्विबीजपत्री पौधों का अभिलाक्षणिक गुण कहा जा सकता है। सामान्यतया मूसला जड़ों को गूढ़ पोषक (deep feeders) भी कहा जाता है , क्योंकि ये जमीन में बहुत अधिक गहराई तक वृद्धि करती है। इस प्रकार के गूढ़ अथवा गहराई वाले मूल तंत्र को असीमाक्षी मूल तंत्र (racemose tap root system) भी कहते है।
हालांकि कुछ पौधों में मूसला जड़ें छोटी होती है और जमीन में बहुत अधिक गहराई तक वृद्धि नहीं करती। इसकी अपेक्षा इनसे उत्पन्न द्वितीयक जड़ें और इनकी शाखाएँ जमीन की सतह के समानान्तर क्षैतिज रूप से फैल जाती है। इस प्रकार के मूलतंत्र को सतही पोषक अथवा अवशोषक मूसला जड़ तंत्र भी कहते है। दूसरे शब्दों में ऐसी जड़ें ससीमाक्षी मूल तंत्र (cymose tap root system) का निर्माण करती है। सामान्यतया अधिकांश एकवर्षीय शाकीय पौधों में इस प्रकार की जड़ें पायी जाती है।
2. अपस्थानिक अथवा झकड़ा तंत्र (adventitious root systems) : अपस्थानिक जड़ों का विकास मुलांकुर से नहीं होकर इसके अतिरिक्त पौधे के अन्य किसी हिस्से के द्वारा होता है। अधिकांश पौधों विशेषकर एकबीजपत्री पौधों में प्राथमिक जड़ की वृद्धि रुक जाती है और यह अल्पविकसित , छोटी और अस्पष्ट रह जाती है। इस प्रकार यह पौधे की मुख्य जड़ के तौर पर निरुपित नहीं होती अपितु तने के आधारीय भाग पर उत्पन्न अनेक सुस्पष्ट और प्रबल मूलीय संरचनाओं द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है। ऐसी जड़ों को अपस्थानिक जड़ें कहते है। ये जड़ें अपनी शाखाओं सहित एक मोटे गुच्छे जैसी संरचना निर्मित कर लेती है और इस प्रकार एक अपस्थानिक मूल तंत्र का गठन करती है। अपस्थानिक जड़ों का विकास तने अथवा उसकी शाखाओं के पर्व और पर्वसंधियों के द्वारा यहाँ तक कि तने अथवा पत्तियों के द्वारा (जैसे – पत्थरचिटा में) भी हो सकता है। महीन और पतली अपस्थानिक जड़ों और इनकी शाखाओं के गुच्छे को संयुक्त रूप से रेशेदार मूल तन्त्र (fibrous root system) कहा जाता है। अपस्थानिक जड़ें अधिकांशतया सतही पोषक होती है , क्योंकि ये भूमि में गहराई तक भेदन नहीं करती। प्राय: ये घासों में पायी जाती है और अधिकांश एकबीजपत्री पौधों में अपस्थानिक जड़ों की उपस्थिति इन पौधों का अभिलाक्षणिक गुण कही जा सकती है।

मूल के विभिन्न क्षेत्र (regions of root)

मूल की बाह्य आकारिकी संरचना या लम्बवत काट का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाए तो शीर्ष से आधार की तरफ निम्नलिखित क्षेत्र विभेदित किये जा सकते है –
1. मूल गोप (root cap) : यह जड़ के अग्रस्थ सिरे पर उपस्थित एक छोटी सी टोपी के समान संरचना होती है , इसलिए इसे मूलगोप कहते है। इसका प्रमुख कार्य जड के वृद्धिशील बिन्दु को सुरक्षा प्रदान करने का होता है। सामान्यतया पौधे में एक ही मूल गोप पायी जाती है , लेकिन कुछ पौधों जैसे – केवड़ा में इनकी संख्या एक से अधिक होती है। इसके विपरीत विभिन्न जलीय पौधों जैसे – पिस्टिया और आईकोर्निया (जलकुम्भी) की जड़ों के अग्रस्थ सिरे पर , मूल गोप के स्थान पर एक थैली के समान संरचना पायी जाती है , जिसे रूट पॉकेट अथवा मूल कोटरिका कहते है।
मूल गोप कोशिकाएँ विशेष प्रकार के श्लेष्मीय पदार्थो का स्त्राव करती है जो कि जड़ों को मृदा की गहराई को भेदने में विशेष सहायता प्रदान करते है।