short stories for kids in hindi | अन्तर्कथा कहानी हिंदी में | students , best motivational with moral
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अन्तर्कथाएँ
अजामिल
अजामिल एक पापी ब्राह्मण था। उसके नारायण नाम का एक पुत्र था । मरते समय उसने अपने पुत्र श्नारायणश् को पुकारा । इससे भगवान् ने उसे मुक्ति प्रदान की।
अम्बरीष
राजा अम्बरीष प्रत्येक एकादशी को व्रत रहकर द्वादशी को पारायण करते थे। एक बार राजा ने द्वादशी को दुर्वासा ऋषि को निमंत्रण दिया । ऋषि गंगा स्नान के लिये चले गये। राजा ने देखा कि द्वादशी की तिथि समाप्त होने वाली है, अतएव ब्राह्मणों की आज्ञा से आचमन कर लिया । ऋषि को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने कृत्या नाम की राक्षसी उत्पन्न की। भय के कारण राजा बेहोश हो गये। भक्त को कष्ट में देखकर विष्णु का चक्रसुदर्शन कृत्या को मारकर ऋषि के पीछे पड़ गया । जब तीनों लोकों में किसी ने शरण न दी, तब वह राजा अम्बरीष के पास गये और उनसे क्षमा याचना की ।
अगस्त्य मुनि
एक बार समुद्र ने टिटिहरी के अंडे को बहा लिया । इसके अतिरिक्त अगस्त्य मुनि की पूजा सामग्री भी बहा ले गया । इससे मुनि अत्यन्त क्रोधित हुए और समुद्र का सारा जल पी गये । देवताओं की प्रार्थना पर उन्होंने मूत्र द्वारा सारा जल निकाल दिया । इसलिए समुद्र का पानी खारा है।
अघासुर
अघासुर एक राक्षस था । कंस ने इसे कृष्ण को मारने के लिये भेजा था । कृष्ण ग्वाल बाल सहित जंगल में गाय चराते थे। अघासुर उसी वन में विशालकाय अजगर का रूप धारण करके आया और अपने मुँह को फैला दिया । श्रीकृष्ण, ग्वाल बाल सहित उसके मुँह में घुस गये । जब उन्हें मालूम हुआ तो अपने शरीर को इतना बढ़ा दिया कि वह राक्षस मर गया और श्रीकृष्ण ने अपने सभी साथियों को बचा लिया।
एकलव्य
यह एक निषाद का पुत्र था । द्रोणाचार्य ने उसे शूद्र कह कर धनुर्विद्या सिखाने से अस्वीकार कर दिया । अन्त में एकलव्य, द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर स्वयं धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा और इस विद्या में वह निपुण हो गया । एक बार पांडव वन में शिकार के लिए आये । एकलव्य ने सात वाण इस प्रकार मारे कि पाण्डवों के कुत्ते का भौंकना तो बन्द हो गया और उसे चोट भी न लगी । अर्जुन को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ । अर्जुन ने उनके गुरु का नाम पूछा । श्द्रोणाचार्यश् एकलव्य ने उत्तर दिया। द्रोणाचार्य ने उसके पास पहुँचकर दक्षिणा के रूप में उसके दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया। एकलव्य ने अँगूठा काट कर दे दिया ।
कर्ण
दुर्वासा ऋषि ने कुन्ती की सेवा से प्रसन्न होकर उसे देवताओं के आह्वान का मंत्र सिखा दिया। कुमारी कुन्ती ने सूर्य का आह्वान किया और उससे कर्ण उत्पन्न हुए । कुन्ती ने लज्जा के कारण बच्चे को सन्दूक में रखकर गंगा में बहा दिया । दुर्योधन के सारथी अधिरथ ने उस सन्दूक को देखा । सन्दूक को खोलने पर एक नवजात शिशु मिला । अधिरथ ने उसका पालन-पोषण किया । कर्ण वीर, बहादुर और पराक्रमी था । अर्जुन ने कर्ण को महाभारत युद्ध में मारा था ।
कुब्जा
वह कंस की कुबड़ी दासी थी। जब भगवान कृष्ण कंस का वध करने जा रहे थे, तब इसने चन्दन आदि से उनका भव्य स्वागत किया। इस पर श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर उसका कूबड़ ठीक कर दिया और वह एक सुन्दर स्त्री बन गई । कहा जाता है बाद को यही श्रीकृष्ण की प्रेयसी बन गई।
कैकयी
यह राजा दशरथ की पत्नी तथा भरत की मां थी। एक बार देवासुर संग्राम में राजा दशरथ के रथ के पहिए की धुरी टूट गई । उस समय कैकयी ने अपनी उँगली से पहिये को रोक लिया । राजा दशरथ ने इस कार्य से प्रसन्न होकर किसी समय दो वर मांग लेने का वचन दिया । कैकयी ने राम के राज्याभिषेक के समय दो वर एक तो राम को 14 वर्ष का वनवास तथा दूसरा भरत को राजगद्दी मिले, मांग लिया।
गज-प्रह
एक मस्त हाथी प्रति-दिन सरोवर में पानी पीने आया करता था। उसी तालाब में एक प्राह भी। रहता था जिससे हाथी की पुरानी शत्रुता थी। एक दिन प्राह ने हाथी को पकड़कर पानी में खींच लिया। इस पर गज ने भगवान से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना की। भगवान पैदल ही उसकी सहायता के लिए दौड़ पड़े और उस संकट-ग्रस्त गज को बचा लिया।
गणिका
वाराणसी में एक गणिका रहती थी। उसने एक तोता पाल रखा था। जिसे प्रतिदिन राम-राम पढ़ाती थी। इसी नाम के प्रभाव से अन्त में उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
गुणनिधि
यह जाति के ब्राह्मण थे। चोरी की इनकी आदत पड़ गई थी। एक दिन इन्होंने शिवाला के विशाल घंटा को चुराने की व्यवस्था की । घंटा कुछ ऊँचा था । अतएव उसने शिव जी की मूर्ति पर चढ़कर घंटा चुराना चाहा । भूतभावन शंकर जी ने समझा कि इसने सर्वस्व निछावर कर दिया । अतएव गुणनिधि ने प्रसन्न होकर उसे अपने लोक में भेज दिया।
जरासन्ध
जरासन्ध, मगध के राजा वृहद्रथ का पुत्र तथा कंस का ससुर था। पैदा होने के समय यह दो फांकों में था । जरा नामक दासी ने इसे जोड़ दिया, इसीलिए इसका नाम जरासन्ध पड़ गया । कंस के मरने के बाद इसने मथुरा पर 18 बार आक्रमण किया । इसी के डर के कारण कृष्ण द्वारिका चले गए। युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया वीर राजाओं को जीतते हुए जरासन्ध की राजधानी गिरिब्रज में पहुँचे। 27 दिन युद्ध करने के बाद भी जब भीम उसे परास्त न कर सके तो श्रीकृष्ण ने एक तिनका चीर कर बताया कि उसे भी बीच से चीर डालो। भीम ने वैसा ही किया ।
दधीचि
वृत्रासुर एक पराक्रमी राक्षस था। उसने देवताओं को अत्यन्त कष्ट दिया और उनके अस्त्र-शस्त्र को निगल लिया । अन्त में सभी देवता आदि विष्णु के पास गए और वृत्रासुर के वध का उपाय पूछा। भगवान् ने उत्तर दिया कि दधीचि की हड्डी से विश्वकर्मा द्वारा वज्र तैयार किया जाय तो उसी से उसका वध हो सकता है । सभी ने जाकर दधीचि से हड्डी देने के लिए प्रार्थना की। वह तैयार हो गए। इस प्रकार इन्द्र ने वज से वृत्रासुर का संहार किया ।
दक्षयज्ञ
सती दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं । शिवजी के साथ इनकी शादी हुई थी। एक बार दक्ष ब्रह्मा की सभा में गए । वहाँ पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश किसी ने उनका स्वागत न किया । इससे दक्ष को बहुत दुःख हुआ । सती बिना निमंत्रण के ही अपने पिता के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए गई, लेकिन अपने पति के भाग को न देखकर क्रुद्ध हुई और अपने को यज्ञ कुंड में डालकर भस्म कर दिया । सती अगले जन्म में पार्वती के रूप में शिव की पत्नी हुई।
ध्रुव
राजा उत्तानपाद के दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी से ध्रुव और छोटी रानी से उत्तम उत्पन्न हुए। एक दिन ध्रुव उत्तानपाद की गोद में बैठा था। उसे बैठा हुआ देखकर छोटी रानी ने, जिसे राजा बहुत चाहते थे, कहा ध्रुव उस गोद में बैठने के तुम अधिकारी नहीं हो मेरा पुत्र उसमें बैठेगा। ध्रुव को हटा दिया । धुव रोता हुआ अपनी माँ के पास गया। माँ ने समझाया, ‘बेटा, सर्वश्रेष्ठ ईश्वर की गोद में बैठने का प्रयास करो।’ वह तपस्या करने चला गया और नारद जी के उपदेश से उसे अचल लोक प्राप्त हुआ।
निशुम्भ
निशुम्भ, शुम्भ और निमुचि तीन भाई थे । इन्द्र ने निमुचि को मार डाला और दो भाइयों ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार करना प्रारम्भ कर दिया । इन्होंने दुर्गा का वध करना चाहा क्योंकि दुर्गा ने महिषासुर का वध कर डाला था। दोनों ने दुर्गा के पास संदेश कहलवाया कि वह इन दोनों भाइयों में से किसी एक को अपना पति स्वीकार कर लें । दुर्गा ने उत्तर दिया, ‘जो हमें युद्ध में पराजित कर देगा, उसी के साथ शादी कर लूँगी।‘ युद्ध हुआ। दुर्गा ने दोनों को हरा दिया और इन्द्र स्वर्ग का राज्य करने लगे।
नृग
नृग एक दानी राजा थे । प्रतिदिन एक करोड़ गाय दान देते थे । एक दिन दान दी हुई गाय राजा की गायों में आकर मिल गई और भूल से उन्होंने उसे दूसरे ब्राह्मण को दान में दे दिया । पहिला ब्राह्मण दूसरे से लड़ने लगा । राजा ने बहुत कुछ समझाया और धन तथा दूसरी गाय खरीदने को कहा लेकिन वह नहीं माना । अन्त में दोनों ने राजा को शाप दे दिया कि तू गिरगिट की योनि प्राप्त कर एक हजार वर्ष तक द्वारिका के एक कुएँ में पड़ा रहा।
बलि
राजा बलि दानी और योग्य थे । इन्द्र उसकी प्रसिद्धि से घबरा गया । इन्द्र ने विष्णु से उसदे दान की परीक्षा करने के लिये कहा । विष्णु ने 52 अंगुलि का अपना शरीर बना लिया और इन्होंने बलि से साढ़े तीन डग स्थान मांगा । तीन डगों में तो तीनों लोकों को नाप लिया और आधे डग बलि के शरीर को नाप दिया । भगवान् विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का स्वामी बन दिया ।
बेनु तथा पृथु
बेनु, राजा अंग की पत्नी, सुनीता का पुत्र था । बेनु बड़ा अत्याचारी एवं अधर्मी था। इसदे अत्याचारों से राजा अंग राज्य छोड़कर वन को चले गए । ऋषियों ने शाप दिया कि बेनु की मृत्यु हो जाय। देश में उपद्रव होने लगा। बेनु की दाहिनी भुजा का मंचन किया गया और भगवान के अंश पृथु का जन्म हुआ । पृथु के राज्य में प्रजा सुख से जीवन व्यतीत करने लगी।
वाराहावतार
हिरण्यकशिपु का भाई हिरण्याक्ष राक्षस था । इसने पृथ्वी को छिपा कर पाताल में रखा था देवताओं की प्रार्थना पर विष्णु ने वाराह का रूप धारण करके हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी क उद्धार किया ।
वाल्मीकि
वाल्मीकि पहिले व्याध थे और यात्रियों को मार-पीटकर उनका सामान आदि लूट लेते थे। एक बार सप्तर्षियों को लूटना चाहा । इस पर सप्तर्षियों ने कहा, ‘क्या तुम्हारे इस पाप कर्म में तुम्हारे घर वाले भी साथी होंगे ? वाल्मीकि के पूछने पर घरवालों ने नकारात्मक उत्तर दिया । फिर ऋषियों ने कहा ‘तुम अपने पेट के लिये क्यों पाप कार्य कर रहे हो?‘ वाल्मीकि की समझ में बात आ गई और उन्होंने इस कर्म को छोड़ दिया और फिर तो ‘उल्टा नाम (मरा, मरा) जपत जग जाना । वाल्मीकि भए ब्रह्म माना।।’
भस्मासुर
यह एक राक्षस था । इसने कठिन तपस्या की । फलतः महादेव ने उसे वरदान दिया कि वह जिसके सिर पर हाथ रख देगा वह भस्म हो जायेगा और तभी से वह ‘भस्मासुर‘ कहलाया । उसने पार्वती पर मोहित होकर शिव के ही सिर पर हाथ रखना चाहा । शिवजी परेशानी में पड़ गए और सहायता के लिए विष्णु के पास गए । विष्णु ने कपट से उसका हाथ उसके ही ऊपर रख दिया जिससे वह स्वयं भस्म हो गया।
रन्तिदेव
राजा रन्तिदेव सकुटुम्ब वन में रहते थे। 48 दिन निराहार रह गए और 49 वें दिन कुछ भोजन प्राप्त हुआ । उसी समय एक अतिथि आ गया और अपना भोजन उन्होंने उसे दे दिया । जब उसने और भोजन मांगा तब स्त्री और बच्चों के भाग को भी दे दिया । इस पर भगवान् अत्यन्त प्रसन्न हुए और कुटुम्ब को दर्शन दिया ।
राहु-केतु
समुद्र मंथन के समय अमृत निकला था । उसे देवताओं ने बाँट लिया । राहु दैत्य ने भी छल से अमृतपान कर लिया । सूर्य तथा चन्द्रमा ने विष्णु से इसकी शिकायत की । अतएव भगवान् विष्णु ने उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया । सिर का भाग राहु तथा धड़ केतु कहलाता है । इसी वैर के कारण राहु, सूर्य तथा चन्द्रमा को निगलता है तब ग्रहण लगता है।
बकासुर
एक दिन जब श्रीकृष्ण ग्वालों के साथ गाय चराने गए थे तब कंस ने वकासुर राक्षस को उन्हें मारने के लिए भेजा । उसने एक भयंकर बगुले का रूप धारण किया और श्रीकृष्ण को मुख में दबा लिया । तत्पश्चात् श्रीकृष्ण जी इतने गर्म हुए कि बगुला उनको मुख में न रख सका और उन्हें उगल दिया। तदनन्तर श्रीकृष्ण ने उसके दो टुकड़े कर डाले ।
राजा शिवि
शिवि, उशीनर देश के राजा थे । इन्द्र ने इनकी प्रसिद्धि से परेशान होकर परीक्षा लेनी चाही । इन्द्र ने स्वयं बाज और अग्नि को कबूतर बनाया । बाज ने कबूतर का पीछा किया । कबूतर राजा शिवि की शरण में जा पहुँचा । बाज ने राजा से कहा, ‘‘यह मेरा भोजन है। इसे छोड़ दीजिए।’’ राजा ने कहा, ‘इसके बदले में मेरे शरीर से गोश्त ले लो।’ तुला पर अपना गोश्त रखने लगे । अन्त में राजा स्वयं तुला पर बैठ गए । इस पर भगवान् ने प्रसन्न होकर उन्हें मुक्ति प्रदान की।
शिशुपाल
चेदि नरेश शिशुपाल श्रीकृष्ण का फुफेरा भाई था । यही पूर्व जन्म में रावण था । इसकी माता को यह मालूम हो गया कि यह श्रीकृष्ण द्वारा मारा जायगा । माता ने श्रीकृष्ण से उसके 100 अपराधों को क्षमा कर देने का वचन ले लिया । शिशुपाल ने युधिष्ठिर के यज्ञ में जब श्रीकृष्ण को 100 से अधिक गालियाँ दी तो उन्होंने उसका वध कर डाला ।
त्रिशंकु
राजा त्रिशंकु ने सदेह स्वर्ग जाने की इच्छा प्रकट की । इस कार्य के लिये वह गुरु वशिष्ठ के पास गए । गुरु ने इसे शास्त्र विरुद्ध बताया । तदनन्तर वह विश्वामित्र के पास गए। विश्वामित्र ने उन्हें अपने तपोबल से स्वर्ग भेज दिया लेकिन इन्द्र ने वहाँ से ढकेल दिया। विश्वामित्र ने अपने योगबल से त्रिशंकु को बीच में ही फेंक दिया और वह लटका हुआ है । कहा जाता है कि उसकी लार से है. कर्मनाशा नदी बनी है।
बाणासुर
यह राजा बलि का पुत्र था । इसके सहस्र बाहु थे। यह शिव का परम भक्त था । इसकी पुर्व ऊषा, श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध पर मोहित हो गई । जब यह समाचार बाणासुर को मालूम हुआ तो उन्होंने अनिरुद्ध को कैद कर लिया । बाणासुर और श्रीकृष्ण में घोर युद्ध हुआ। शिवजी बाणासुर की ओर थे। जब बाणासुर को केवल चार भुजाएं ही रह गई तब वह भगवान का भक्त हो गया । तदनन्त अनिरुद्ध और ऊषा का विवाह हो गया ।
नमुचि
यह एक दैत्य था । इसने तपस्या करके ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त किया कि मैं न किसी अस्त्र-शस्त्र से मरूँ और न किसी शुष्क या आर्द्र पदार्थ से । देवासुर संग्राम में सभी देवता परेशान हो गए । भगवान ने कहा, यह किसी अस्त्र-शस्त्र से न मरेगा, यह समुद्र के फेन से मरेगा । अन्त में समुद्र के फेन ही उसकी मृत्यु हो गई।
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