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1911 के चीनी क्रांति के कारणों का वर्णन , 1911 की चीनी क्रांति का नेतृत्व किसने किया 1911 china revolution in hindi

1911 china revolution in hindi 1911 के चीनी क्रांति के कारणों का वर्णन , 1911 की चीनी क्रांति का नेतृत्व किसने किया ?

प्रश्नः 1911 की चीन की क्रांति के क्या कारण थे ? चीनी क्रांति में डॉ. सनयात सेन की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्त्रः. 15 नवम्बर, 1908 को साम्राज्ञी त्यु शी की मृत्यु हो गई। वह मंचू राजवंश की एक विलक्षण महिला थी। साम्राज्ञी की मृत्यु के एक दिन पहले सम्राट कुआंग शू की भी मृत्यु हो चुकी थी। चारों ओर अराजकता और अव्यवस्था फैल गई। ऐसी विघटनकारी परिस्थितियों में 1911 ई. की चीनी क्रांति हुई और इस क्रांति के फलस्वरूप मंचू शासन की समाप्ति हो गई।

1911 ई. की चीनी क्रांति के कारण
चीन की प्राचीन राजनीतिक विचारधारा ने वहां के राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया था। कन्फ्यूशियसश् ने कहा था कि ष्पाप और दुराचार की अवस्था में पत्र का कर्तव्य पिता का विरोध और मंत्री का कर्तव्य राजा का विरोध करना है।  1911 ई. की चीनी क्रांति के संदर्भ में चीन की राजनीति विचारधारा को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 1911 ई. की चीनी क्रांति के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
(1) विदेशी शोषण की विरुद्ध प्रतिक्रिया : दो अफीम युद्धों में पराजय के बाद चीन का सारा आत्माभिमान एवं गर्व चकनाचूर हो गया। 19वीं शताब्दी के अंत तक विदेशियों का शोषण अत्यधिक बढ़ गया। अतः 1900 ई. में चीन में बॉक्सर विद्रोह हुआ जिसके मूल में चीनियों के हृदय में विदेश-विरोधी भावना थी किन्तु जब बॉक्सर विद्रोह को भी दबा दिया गया, तब चीनियों ने समझ लिया कि विदेशी शोषण से छुटकारा पाने के लिए एक व्यापक क्राति के अतिरिक्त अन्य कोई चारा नहीं रह गया था। ,
(2) सुधारों की असफलता : चीन में सुधारों की मांग प्रबल होती जा रही थी। अक्टूबर, 1910 ई. में सम्पूर्ण चीन के लिए पहली बार राष्ट्रीय महासभा की स्थापना की गई। इस राष्ट्रीय महासभा में उग्रवादियों का बहुमत था, जिन्होंने शासन सुधारों के साथ-साथ चीन में संसदीय व्यवस्था तथा वैध राजसत्ता की मांग की। उसने संसदीय शासन स्थापित करने की मांग ठुकरा दी।
(3) नवीन पीढ़ी और नवीन विचार : चीनी युवकों में नए विचार चीन क्रांति का एक आधारभूत कारण था। चीनी विद्यार्थी अमेरिका और यूरोप जाने लगे तथा जो लोग यूरोप और अमेरिका नहीं जा सके वे जापान में शिक्षा ग्रहण करने लगे। इस प्रकार चीनी विद्यार्थियों का विदेशों से सम्पर्क स्थापित हुआ, जिससे वे अपने देश के उद्धार के लिए पाश्चात्य देशों के नमूने पर सुधारों के पक्षपाती हो गए।
लियोग-छी-छाओ का विचार था कि जापान पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों का मिलन स्थल है। उसने जापान में रहकर पाश्चात्य विद्याओं का अध्ययन किया तथा व्यक्तिवाद, नागरिकता, स्वतंत्र उद्योग व्यापार, सम्राट के स्थान पर राष्ट्र का प्रभुत्व, पारिवारिक संबंधों के स्थान पर सार्वजनिक कानूनों का महत्व और संसद, संविधान और लोकतंत्रीय सरकार का समर्थन, के विचार प्रतिपादित किए। इन विचारों का प्रचार करने के लिए उसने 1898 ई. छिंग-ई-पाआ (लोकमत), 1902 ई. में शिन मिन त्सुंग-पाओ (लोकोद्धार) और 1910 ई. में कुओ फेंग-पाओ (राष्ट्रीय आत्मा) नामक संस्था स्थापित की। छाओ ने 1907 में श्चेंगन-वेन-शे (राजनीतिक सांस्कृतिक संघ) संस्था का गठन किया। इसके बाद तो अनेक संघ, समाज और संस्थाएं स्थापित हुई। कांग-यू-वेई द्वारा श्सोसाइटी फॉर द सालवेशनश् तथा श्लर्न टू बी स्ट्रांग सोसाइटीश् की स्थापना की गई। थांग-त्साई-छांग ने त्जू-ली-हुई (स्वतंत्र समाज) संस्था का गठन चीन के होनान प्रांत में किया गया।
(4) आर्थिक अवनति एवं प्राकृतिक प्रकोप : चीनी क्रांति का एक प्रमुख कारण चीन की. आर्थिक-अवनति भी था। देशमें जो खाद्य सामग्री पैदा हो रही थी वह बढ़ती हुई आबादी के लिए पर्याप्त नहीं थी। 1910-11 ई. की बाढ़ों और अकाल ने इस प्रवृत्ति को और भी अधिक उग्र बना दिया।
(5) प्रवासी चीनियों का प्रभाव : देश की आर्थिक दुर्दशा से परेशान होकर चीन के लोग अपनी आजीविका की खोज में विदेशों में जाकर बसने लगे। लेकिन चीन जनता का यह भाग पढ़े-लिखे लोगों से भिन्न था। चीन के इन प्रवासियों के द्वारा चीन के निम्न वर्ग में क्रांति की भावना ने प्रवेश किया।
(6) क्रांतिकारी प्रवृत्ति का विकास : 20वीं शताब्दी के प्रथम दशक तक चीन में क्रांतिकारी दलों का संगठन व्यापक रूप से हुआ। बॉक्सर विद्रोह के तुरन्त बाद चीन में पुनः क्रांतिकारी दल संगठित होने लगे। चीन के क्रांतिकारी संगठनों में एक संगठन अत्यधिक महत्वपूर्ण था, जिसका नेता डॉ. सनयात-सेन था।
(7) तात्कालिक कारण : चीन में रेलवे लाइनों का निर्माण बड़ी तेजी से हो रहा था। पीकिंग सरकार से अनुमति प्राप्त करके अनेक विदेशी कम्पनियां रेलवे लाइनों का निर्माण करा रही थी। चीन के प्रान्तपति चाहते थे कि उनके प्रांतों में रेलवे लाइन के निर्माण का अधिकार उन्हें मिले। ऐसी स्थिति में जब एक विदेशी कम्पनी को एक रेलवे लाइन बनाने का अधिकार दे दिया गया तो चारों ओर क्रांति की लहर फैल गई।
क्रांति का आंरभ
विद्रोह की शुरुआत जेचुआन प्रान्त से हुई। वहां रेल निर्माण के निमित्त पूँजी का अधिकांश भाग अन्य कार्यों में लगा दिया गया। सम्राट के पास विरोध-पत्र भेजे गए तथा वहां विरोधी प्रदर्शन आरम्भ हो गए। सरकार ने दमन नीति का सहारा हो हए सितम्बर, 1911 में सभी विरोधी नेताओं को बन्दी बना लिया। उसी समय 10 अक्टूबर, 1911 को हांको की रूसी बस्ती केक घर में एक बम फट गया। यह घर क्रांतिकारियों का अड्डा था। जापान में शिक्षित एक ष्कर्नल ली यआन हंगश् ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया। ली युआन हुंग के नेतृत्व में विद्रोही सैनिकों ने वूचांग पर अधिकार कर लिया।
अक्टूबर को क्रांतिकारियों ने हांको पर अधिकार कर कामचलाऊ सरकार स्थापित करली तथा ली युआन हुंग को उसका अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इस सरकार ने सभी प्रांतों एवं नगरों के लोगों से मंचू शासन को उखाड़ फेंकने की अपील जारी की। चीन में क्रांति प्रारम्भ हो चुकी थी।

क्रांति की घटनाएं

ंक्राति की आग तुरंत ही सम्पूर्ण देश में फैल गई। इसी बीच क्रांति की ज्वाला शंघाई तक पहुंच गई और वहां सैनिक शासन स्थापित कर दिया गया। शंघाई की सैनिक सरकार ने अपने आपको समस्त क्रांतिकारियों का प्रतिनिधि होने की घोषणा कर दी।
पीकिंग में संवैधानिक सरकार रू क्रांति की घटनाओं से पीकिंग में घबराहट फैल गई। मंच सरकार में श्युआन-शिह-काईश् को सभी सेनाओं का उच्चाधिकारी नियुक्त कर दिया गया। इसी बीच 22 अक्टूबर को केन्दी विधानसभा की बैठक बुलाई गई। केन्द्रीय विधानसभा ने मांग की कि उन सभी पदाधिकारियों को पदच्युत कर दिया जाय जो विदेशियों के समर्थक हैं। मंचू सम्राट को विवश होकर ऐसा करना पड़ा। यह चीन के लोकमत की भारी विजय श्री तत्पश्चात् विधानसभा ने मांग की कि देश का शासन वैधानिक ढंग से चलाने के लिए मंत्रिमण्डल का गठन किया जाय। 1 नवम्बर, 1911 को श्युआन-शिह-काईश् प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इसी बीच विधानसभा ने 10 धाराओं का संविधान तैयार कर लिया, जिसके अनुसार चीन में वैधानिक राजतंत्र स्थापित करना था। 15 नवम्बर को शंघाई में प्रांतों की क्रांतिकारी सरकारों के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें चीनी गणतंत्र की केन्द्रीय सरकार की स्थापना की गई और इसका मुख्यालय वूचांग रखा गया। ली युआन बुंग को इसका अध्यक्ष चुना गया। युआन-शिह-काई को गणराज्य का राष्ट्रपति नियुक्त करने का निश्चय किया गया। 4 दिसम्बर को क्रांतिकारी सेना ने नानकिंग पर अधिकार कर लिया, जो अस्थायी सरकार की राजधानी बन गई।
जिस समय चीन में क्रांति का विस्फोट हुआ था उस समय डॉ. सनयात-सेन अमेरिका में था। 24 दिसम्बर, को वह शंघाई पहुंचा जहां सभी क्रांतिकारियों ने उसका स्वागत किया। 29 दिसम्बर को क्रांतिकारियों ने उसे अपना अध्यक्ष चुन लिया। 1 जनवरी, 1912 को डॉ. सेन ने अध्यक्ष पद ग्रहण कर लिया।
गणतंत्र का निर्माण : इस प्रकार अब चीन में दो सरकारें कायम हो गई-एक नानकिंग की गणतांत्रिक सरकार और दूसरी पीकिंग में मंचू सरकार। तद्नुसार 12 फरवरी, 1912 को चीन में मंचू राजवंश के शासन का अंत कर गणराज्य की स्थापना कर दी गई। तत्पश्चात् नई सरकार के गठन का कार्य युआन-शिह-काई के सुपुर्द कर दिया गया। डॉ. सेन ने राष्ट्रपति पद से अपना त्यागपत्र दे दिया तथा नानकिंग में एकत्र क्रांतिकारी नेताओं ने युआन-शिह-काई को चीनी गणराज्य का राष्ट्रपति निर्वाचित कर लिया।
इस प्रकार चीन में पिछले तीन सौ वर्षों से चला आ रहा मंचू राजवंश का अंत हो गया और चीन में गणराज्य की स्थापना हो गई। 20वीं शताब्दी में चीन एशिया का प्रथम देश था जहां गणतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई थी। युआन-शिह-काई के नेतृत्व में चीन में प्रतिक्रियावादी शासन का ही बोलबाला रहा। किन्तु युआन शि काई ने प्रतिक्रियावादी एवं दमनात्मक कदम उठाते हुए कुओमितांग दल पर प्रतिबंध लगा दिया और सनयात सेन को जापान भागना पड़ा। 1916 में युवान शि काई की भी मृत्यु हो गई। पूरा चीन अनेक युद्ध सरदारों (टूचेन) के नियंत्रण में बंट गया। 1917 ई. में कुओमितांग दल ने अराजकता के माहौल में गणतांत्रिक सरकार की स्थापना का प्रयास किया। 1923 में सनयात सेन ने रूसी साम्यवादी सरकार से सहयोगात्मक संधि कर गणतांत्रिक सरकार बनाने का प्रयास किया। इस दृष्टि से 1911 की क्रांति को एक असफल क्रांति ही कहा जा सकता है।
1911 की चीन की क्रांति एवं डॉ. सनयात सेन की भूमिका: पश्चिमी देशों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए तत्कालीन मांचू सरकार को जिम्मेदार माना गया। इस प्रकार चीन में विदेशी प्रभाव के विरुद्ध वातावरण बना। इस असंतोष के परिणामस्वरूप 1911 में चीनी क्रांति हुई। इस क्रांति का नेतृत्व राष्ट्रवादी नेता सन यात सेन (Sun-Yat-Sen) द्वारा किया गया। 1911 की क्रांति के परिणामस्वरूप चीन में मांचू वंश का अंत हुआ तथा राजतंत्र भी समाप्त हुआ।
सनयात-सेन ने 1894 ई. में शिंग-चुंग हुई (चीन नवजीवन समाज) की स्थापना की तथा 1905 ई. में उसने जापान मे धंग -मेंग हई (संयुक्त संघ) स्थापित कर उसकी ओर से मिन पाओ (लोक पत्रिका) निकालनी शुरू की। इस पत्रिका मे जो चीनी विचारकों ने अपने निबंध प्रकाशित कर यह मत प्रकट किया कि चीन विकास की मंद एवं धीमी नाति का नोटका दतक्रांति का मार्ग पकड़ कर ही पाश्चात्य देशों की बराबरी कर सकता है और उनसे आगे भी निकल सकता है। फलस्वरूप लोगों के दिमाग में नए क्रांतिकारी विचार भर गए। चेन-तू-श्यू ने श्न्य चाइनाश् समाचार पत्र का संपादन किया। न्य चाइना ने चीन में साम्यवादी सिद्धांतों का प्रचार प्रसार किया। जीन के कांतिकारियों को संगठित करने में डॉ. सनयात-सेन का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था। वह हवाई द्वीप गया और वहां प्रवासी चीनियों को श्शिंग-चुंग-हुईश् (चीनी पुनर्जागरण सभा) में संगठित किया। 1894 ई. में वह हाँगकाँग आ गया
और वहां पर उसने शिंग-चुंग-हुई का मुख्य कार्यालय स्थापित किया। कार्लमार्क्स के दास केपिटल का गम्भीरता से अध्ययन किया। तब से डॉ. सेन के विचारों में समाजवाद का पुट आ गया।
1899 ई. में डॉ. सेन जापान आए और योको-हामा में बस गए। बॉक्सर विद्रोह के बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। चीन के नवयुवक छात्रों पर डॉ. सेन का सर्वाधिक प्रभाव पडा। सितम्बर, 1905 ई. में चीन के 18 प्रांतों में से 17 प्रांतों के कई सौ छात्रों ने मिलकर डॉ. सेन के नेतृत्व में श्थंग-मेंग-हुईश् नामक दल स्थापित किया।
चीनी राष्ट्रपति यवान शिकाई ने जब शाटग प्रदेश खाली करने के लिए कहा तो तुरन्त डॉ. सनयात सेन के नेतृत्व में टोकिया में 1905 में तुग-मेंग हुई  (Tung-Meng-Hui) पार्टी स्थापित हई। इस दल का मख्य उददेश्य चीन में मंच शासन को समाप्त करना, पाश्चात्य देशों के शोषण से चीन को मुक्त कराना तथा देश की भूमि का राष्ट्रीयकरण करना था। डुंग-मंग-हुई दल ने ष्मिन पाओश् नामक एक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया और इसी पार्टी ने अपना उद्देश्य पूरा किया। इन परिस्थितियों में क्रांतिकारी भावनाओं का विकास बड़ी तेजी से हुआ और विद्रोह, साधारण घटनाएं बन गईं। 1907 ई. में क्वांगतुंग और क्वांगसी में चार असफल विद्रोह हुए। इसी बीच 1908 ई. से 1911 ई. के बीच चीन में कई विद्रोह हुए। सनयात सेन ने कोमिंगतांग दल का विकास किया और तीन सिद्धान्त दिए सन (Sun) , मिन (Min) और चू (Chu) अर्थात् राष्ट्रीयता, लोकतंत्र तथा आर्थिक उन्नती। कोमिंगताग का अर्थ है – चीनी राष्ट्रवादी दल।1911 में इस पार्टी को कुओमिगतांग पार्टी (Kuomintong Party-KMT) नाम दिया गया (Kuo-देश, Min-जनता, Tong-दल)। इसे राष्ट्रवादी पार्टी भी कहा जाता है। कुओमिंगतांग का रूस के साम्यवादी दल के नमूने पर पुनर्गठन किया गया। डॉ. सनयात सेन ने 1924 में कोदो में दिये गये सार्वजनिक भाषण में कहा था-श्विश्व के सभी अविकसित देशों को रूस के दिशा निर्देशन पर चलने की जरूरत है। मार्च, 1925 में सनयात सेन की मृत्यु हो गई। जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में सनयात सेन का चीन के इतिहास वहीं स्थान है, जो रूस में लेनिन का, तुर्की में मुस्तफा कमाल पाशा का तथा भारत में महात्मा गांधी का।

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