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1813 का चार्टर एक्ट का मुख्य उद्देश्य क्या था , 1813 charter act in hindi main objective was
पढ़िए 1813 का चार्टर एक्ट का मुख्य उद्देश्य क्या था , 1813 charter act in hindi main objective was का भारतीय व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ा ?
1813 के चार्टर एक्ट से प्रशंसनीय शुरुआत
इस चार्टर एक्ट में, भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहित करने तथा देश में आधुनिक विज्ञान के ज्ञान को प्रारंभ एवं उन्नत करने जैसे उद्देश्यों को रखा गया था। इस उद्देश्य के लिये कंपनी द्वारा प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गयी थी। किंतु इस राशि को व्यय करने के प्रश्न पर विवाद हो जागे के कारण 1823 तक यह राशि उपलब्ध नहीं करायी गयी।
इस बीच कुछ प्रबुद्ध भारतीयों ने व्यक्तिगत स्तर पर अपने प्रयास जारी रखे तथा शिक्षा के विकास एवं शिक्षा संस्थानों की स्थापना के लिये भारी अनुदान दिया। इनमें राजा राममोहन राय का नाम अग्रगण्य है। उन्होंने 1817 में कलकत्ता हिन्दू कालेज की स्थापना के लिये भारी अनुदान दिया। शिक्षित बंगालियों द्वारा स्थापित इस कालेज में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जाती थी तथा पाश्चात्य
विज्ञान और मानविकी (Humanities) पढ़ायी जाती थी। सरकार ने कलकत्ता, आगरा और बनारस में तीन संस्कृत कालेज स्थापित किये। इसके अतिरिक्त यूरोपीय वैज्ञानिक पुस्तकों का प्राच्य भाषाओं में अनुवाद करने के लिये भी अनुदान दिया गया।
आंग्ल-प्राच्य विवाद
लोक शिक्षा की सामान्य समिति में दो दल थे। एक दल प्राच्य शिक्षा समर्थक था और दूसरा आंग्ल शिक्षा समर्थक।
प्राच्य-शिक्षा समर्थकों का तर्क था कि जहां रोजगार के अवसरों में वृद्धि के लिये पाश्चात्य विज्ञान एवं साहित्य के अध्ययन को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहां इसके स्थान पर परंपराग्त भारतीय भाषाओं एवं साहित्य को प्रोत्साहित किया जागा चाहिये।
दूसरी ओर आंग्ल-शिक्षा समर्थकों में शिक्षा के माध्यम को लेकर विवाद हो गया तथा वे दो धड़ों में विभक्त हो गये। एक धड़ा, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा को बनाये जागे पर जोर दे रहा था तो दूसरा धड़ा, शिक्षा का माध्यम भारतीय (देशी) भाषाओं को बनाये जागे का पक्षधर था।
आंग्ल एवं प्राच्य शिक्षा समर्थकों के मध्य इस विवाद से शिक्षा के प्रोत्साहन का मुद्दा अप्रभावी हो गया तथा इसके कई दुष्परिणाम निकले।
लार्ड मैकाले का स्मरण-पत्र, 1835ः गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य लार्ड मैकाले ने आंग्ल-दल का समर्थन किया। 2 फरवरी, 1835 को अपने महत्वपूर्ण स्मरण-पत्र में उसने लिखा कि ‘सरकार के सीमित संसाधनों के मद्देगजर पाश्चात्य विज्ञान एवं साहित्य की शिक्षा के लिये, माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा ही सर्वोत्तम है’। मैकाले ने कहा कि ‘‘भारतीय साहित्य का स्तर यूरोपीय साहित्य की तुलना में अत्यंत निम्न है’’। उसने भारतीय शिक्षा पद्धति एवं साहित्य की आलोचना करते हुये अंग्रेजी भाषा का पूर्ण समर्थन किया।
मैकाले के इन सुझावों के पश्चात् सरकार ने शीघ्र ही स्कूलों एवं कालेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना दिया तथा बड़े पैमाने एवं अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने वाले स्कूलों एवं काॅलेजों की स्थापना की गयी। इस प्रकार सरकार जनसाधारण की शिक्षा को उपेक्षित करने लगी। सरकार की योजना, समाज के उच्च एवं मध्य वग्र के एक तबके को शिक्षित कर एक ऐसी श्रेणी बनाने की थी जो ‘‘रक्त एवं रंग से भारतीय हो परंतु अपने विचार नैतिक मापदण्ड, प्रज्ञा (intellect) एवं प्रवृत्ति (Taste) से अंग्रेज हो’’। यह श्रेणी ऐसी हो कि यह सरकार तथा जन-साधारण के बीच दुभाषिये (interpreters) की भूमिका निभा सके। इस प्रकार पाश्चात्य विज्ञान तथा साहित्य का ज्ञान जनसाधारण तक पहुंच जायेगा। इस सिद्धांत को अधोगामी ‘विप्रवेशन सिद्धांत’ (downward infiltrationtheory) के नाम से जागा गया।
थामसन के प्रयास
उत्तर-पश्चिमी प्रांत (आधुनिक उत्तर प्रदेश) के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स थामसन (1843-53) ने देशी भाषाओं द्वारा ग्राम शिक्षा की एक विस्तृत योजना बनायी। अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने वाले छोटे-छोटे स्कूलों को बंद कर दिया गया। अब केवल काॅलेजों में ही अंग्रेजी भाषा शिक्षा का माध्यम रह गयी। गांव के स्कूलों में कृषि विज्ञान तथा क्षेत्रमिति (mensuration) जैसे उपयोगी विषयों का अध्ययन प्रारंभ किया गया। अध्ययन के लिये देशी भाषाओं को माध्यम के रूप में चुना गया। इसके योजना के पीछे थामसन का उद्देश्य यह था कि नवगठित राजस्व तथा लोक निर्माण विभागों के लिये शिक्षित व्यक्ति उपलब्ध हो सकें। इसके अतिरिक्त एक शिक्षा विभाग का भी गठन किया गया।
चाल्र्स वुड का डिस्पैच, 1854
सर चाल्र्स वुड, जो अर्ल आफ एबरडीन (1852-55) की मिली-जुली सरकार में बोर्ड आॅफ कंट्रोल के अध्यक्ष थे, 1854 में भारत की भावी शिक्षा के लिये एक विस्तृत योजना बनायी। ‘भारतीय शिक्षा का मैग्ना-कार्टा’ कहा जागे वाला चाल्र्स वुड का यह डिस्पैच भारत में शिक्षा के विकास से संबंधित पहला विस्तृत प्रस्ताव था। इस डिस्पैच की प्रमुख सिफारिशें निम्नानुसार थीं
इसमें सरकार से कहा गया कि वह जनसाधारण की शिक्षा का उत्तरदायित्व स्वयं वहन करें। इस प्रकार अधोगामी विप्रवेशन सिद्धांत कम से कम कागजों में ही सिमट कर रह गया।
इसने सुझाव दिया कि गांवों में देशी-भाषाई प्राथमिक पाठशालायें स्थापित की जायें, उनसे ऊपर जिला स्तर पर आंग्ल-देशी-भाषाई हाईस्कूल तथा लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर तीनों प्रेसीडेंसी शहरों-बंबई, कलकत्ता और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित किये जायें। इन विश्वविद्यालयों में एक कुलपति, एक सीनेट और उसके अधि-सदस्य (fellows) होंगें। इन सभी की नियुक्ति सरकार द्वारा की जायेगी। ये विश्वविद्यालय परीक्षाएं आयोजित करेंगे तथा उपाधियां (degree) देंगे।
इसने उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी तथा स्कूल स्तर की शिक्षा का माध्यम देशी भाषाओं को बनाये जागे का सुझाव दिया।
इसने स्त्री शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया तथा तकनीकी विद्यालयों एवं अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की सिफारिश की।
इस क्षेत्र में गिजी प्रयत्नों को प्रोत्साहित करने के लिये अनुदान सहायता (Grant in aid) की पद्धति चलाने की सिफारिश भी इसने की।
कंपनी के पांचो प्रांतों में एक-एक निदेशक के अधीन लोक शिक्षा विभाग (Department of Public instruction) की स्थापना की गयी। इस विभाग का कार्य था शिक्षा की उन्नति एवं उसके प्रचार-प्रसार की समीक्षा करना तथा सरकार को प्रतिवर्ष इस संबंध में रिपोर्ट भेजना।
इसने इस बात पर बल दिया कि सरकारी शिक्षण संस्थाओं में दी जागे वाली शिक्षा, धर्मनिरपेक्ष (secular) हो।
इसने इस बात की घोषणा की कि सरकार की शिक्षा नीति का उद्देश्य पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार है।
1857 में कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास में विश्वविद्यालय खोले गये तथा बाद में सभी प्रांतों में शिक्षा विभाग का गठन भी कर दिया गया। 1840 से 1858 के मध्य स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में किये गये प्रयासों को सार्थक परिणति तब मिली जब जे.ई.डी. बेथुन द्वारा 1849 में कलकत्ता में बेथुन स्कूल की स्थापना की गयी। बेथुन, शिक्षा परिषद (Council of education) के अध्यक्ष थे। मुख्यतयाः बेथुन के प्रयत्नों द्वारा ही कुछ महिला पाठशालाओं की स्थापना की गयी और इन्हें सरकार की अनुदान एवं निरीक्षण पद्धति के अधीन लाया गया।
इसी काल में पूसा (बिहार) में कृषि संस्थान तथा रुड़की में अभियांत्रिकी संस्थान (engineering institute) की स्थापना की गयी।
चाल्र्स वुड द्वारा अनुमोदित विधियां एवं आदर्श लगभग 50 वर्षों तक प्रभावी रहे। इसी काल में भारतीय शिक्षा का तीव्र गति से पाश्चात्यीकरण हुआ तथा अनेक शिक्षण संस्थायें स्थापित की गयीं। इस काल में शिक्षण संस्थाओं में प्रधानाध्यापक एवं आचार्य मुख्यतया यूरोपीय ही नियुक्त किये जाते थे। ईसाई मिशनरी संस्थाओं ने भी इस दिशा में अपना योगदान दिया। धीरे-धीरे गिजीभारतीय प्रयत्न भी इस दिशा में किये जागे लगे।
हन्टर शिक्षा आयोगे
प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रारंभिक योजनाओं की उपेक्षा कर दी गयी। वर्ष 1870 से जबकि शिक्षा प्रांतों में स्थानांतरित की गयी तो प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की स्थिति और खराब हो गयी क्योंकि प्रांतों के सीमित संसाधनों के कारण वे इस दिशा में अपेक्षित व्यय नहीं कर पा रहे थे। 1882में सरकार ने डब्ल्यू.डब्ल्यू. हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया, जिसे 1854 के पश्चात् देश में शिक्षा की दिशा में किये गये प्रयासों एवं उसकी प्रगति की समीक्षा करना था। हंटर आयोग की समीक्षा का कार्य, केवल प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा तक ही सीमित था तथा विश्वविद्यालयों के कार्यों से इसका कोई संबंध नहीं था। इस आयोग ने सरकार को निम्न सुझाव दिये
ऽ सरकार को प्राथमिक शिक्षा के सुधार और विकास की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये। यह शिक्षा उपयोगी विषयों तथा स्थानीय भाषा में हो।
ऽ इसने सिफारिश की कि प्राथमिक पाठशालाओं का नियंत्रण नवसंस्थापित नगर और जिला बोर्डों को दे दिया जाये।
ऽ इसने सुझाव दिया कि माध्यमिक शिक्षा के दो खंड होने चाहिए
(i) साहित्यिक: विश्वविद्यालय शिक्षा के लिये। तथा
(ii) व्यावहारिक: विद्यार्थियों के व्यावसायिक-व्यापारिक भविष्य निर्माण के लिये।
ऽ आयोग ने प्रेसीडेंसी नगरों के अतिरिक्त अन्य सभी शहरों, कस्बों एवं गांवों में स्त्री शिक्षा का पर्याप्त प्रबंध न होने पर खेद प्रकट किया तथा इसे प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया।
हन्टर शिक्षा आयोग के सुझावों के आने के पश्चात् अगले 20 वर्षों में माध्यमिक एवं कालेज शिक्षा का तीव्र गति से विस्तार हुआ तथा भारतीयों ने इसमें सराहनीय योगदान दिया। अध्यापन एवं परीक्षा विश्वविद्यालयों की स्थापना भी की गयी। जिनमें पंजाब विश्वविद्यालय (1882) एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1887) प्रमुख थे।
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