हिंदी माध्यम नोट्स
हीनयान और महायान में अंतर बताएं | हीनयान और महायान किस धर्म से संबंधित है के संस्थापक कौन थे
हीनयान और महायान किस धर्म से संबंधित है के संस्थापक कौन थे हीनयान और महायान में अंतर बताएं ?
हीनयान बौद्धवाद
ऽ इसका अर्थ हैं कम या साधन (वाहन) रहित होना।
ऽ इस सम्प्रदाय में बुद्ध के मूल उपदेशों के अनुयायी सम्मलित हैं। यह एक रूढ़िवादी सम्प्रदाय है।
ऽ वे बुद्ध की मूर्ति या चित्रा की पूजा में विश्वास नहीं करते।
ऽ उनका व्यक्तिगत मोक्ष में विश्वास है और वे स्व-अनुशासन और ध्यान के माध्यम से व्यक्तिगत मोक्ष का प्रयास करते हैं। हीनयान का अंतिम लक्ष्य निर्वाण है।
ऽ हीनयान का एक उप-सम्प्रदाय स्थार्विवाद या थेरावाद है।
ऽ हीनयान प्राज्ञ (विद्वान) जनसंवाद के लिए पाली भाषा का उपयोग करते थे।
ऽ सम्राट अशोक ने हीनयान सम्प्रदाय को संरक्षण दिया क्योंकि महायान बहुत बाद में अस्तित्व में आया था।
ऽ वर्तमान युग में हीनयान का इसके मूल स्वरूप में अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है।
महायान बौद्धवाद
ऽ इसका अर्थ है अधिक साधन या बड़ा वाहन।
ऽ यह सम्प्रदाय अधिक उदार है एवं बुद्ध और बोधिसत्वों को बुद्ध के दिव्य प्रतीक के रूप मानता है। महायान का अंतिम लक्ष्य ‘आध्यात्मिक उत्थान’ है।
ऽ महायान के अनुयायी बुद्ध की मूर्ति या चित्र की पूजा में विश्वास करते हैं।
ऽ बोधिसत्व की अवधारणा महायान बौद्ध धर्म का ही परिणाम है।
ऽ महायान को ‘‘बोधिसत्वयान’’ या ‘‘बोधिसत्व का वाहन’’ भी कहते हैं।
ऽ कहने का अर्थ यह है कि अनुयायी, सभी प्रबुद्ध (अभिज्ञ) व्यक्तियों के उद्धार हेतु बोधिसत्व की अवधारणा में विश्वास रखते हैं।
ऽ दूसरे शब्दों में, वे सभी प्राणियों की दुखों से सार्वभौमिक मुक्ति में विश्वास करते हैं।
ऽ एक बोधिसत्व सभी प्राणियों के लाभार्थ पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति करना चाहता है। जो बोधिसत्व इस लक्ष्य को पा लेता है, उसे सम्यकसमबुद्ध कहा जाता है।
ऽ प्रमुख महायान ग्रन्थों में कमलसूत्रा, महावंश आदि सम्मलित हैं।
ऽ कमल सूत्र के अनुसार महायान सम्प्रदाय प्रत्येक व्यक्ति द्वारा छह परिपूर्णताओं (या परामित्ताओं) का पालन किए जाने में विश्वास रखता हैः
i. दान ;उदारताद्ध
ii. शील ;सदाचार, नैतिकता, अनुशासन और सदाचारद्ध
iii. शांति ;धैर्य, सहनशीलता, प्रतिग्रहद्ध
iv. वीर्य ;ऊर्जा, कर्मठता, ओज, प्रयासद्ध
v. ध्यान ;एक बिंदु पर ध्यान केन्द्रित करनाद्ध
vi. अप. प्रज्ञान ;बुद्धिमता और परिज्ञानद्ध
ऽ विद्वानों के अनुसार, बाद के समय में महायान के एक उप-पंथ ;संप्रदायद्ध के रूप में वज्रयान विकसित हुआ।
ऽ महायान विद्वानों ने प्रमुख रूप से संस्कृत भाषा का उपयोग किया।
ऽ कुषाण वंश के सम्राट कनिष्क को पहली शताब्दी में महायान सम्प्रदाय का संस्थापक माना जाता है।
ऽ वर्तमान में विश्व में बौद्ध धर्म के अधिकांश अनुयायी महायान सम्प्रदाय से सम्बन्धित हैं। (2010 की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 53.2 प्रतिशत)
ऽ अन्य राष्ट्र जहां इसका पालन होता है, उनमें नेपाल, बंग्लादेश, जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, मंगोलिया, चीन, भूटान, तिब्बत आदि सम्मलित हैं।
बौद्ध धर्म
भारतीय उपमहाद्वीप से प्रारम्भ होने वाले विश्व के प्रमुख धर्मों में से यह एक है और अब दक्षिण-पूर्व एशिया के बड़े भागों में पफैल गया है। बौद्ध धर्म की उत्पत्ति सिद्धार्थ की कहानी से जुड़ी है, जिन्हें बुद्ध के नाम से जाना गया। बौद्ध धर्म में परम्पराओं, धारणाओं और प्रथाओं का श्रेय बुद्ध को दिया जाता है। ईसाई, इस्लाम और हिन्दू धर्मों के पश्चात, यह विश्व का चैथा सबसे बड़ा धर्म है। विश्व की लगभग 7 प्रतिशत जनसंख्या ने बौद्ध धर्म को अपनाया है। भारत की 0.7 प्रतिशत जनसंख्या, या 8.4 लाख लोग, जिनमें से अधिकांश महाराष्ट्र में हैं, बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।
बुद्ध के सम्बन्ध में मूल बातें
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी वर्तमान में नेपाल, में सिद्धार्थ गौतम के रूप में हुआ था। उनकी माता माया और पिता शुद्धोधन थे। पिता शाक्य राज्य के राजा थे और क्षत्रिय जाति के थे। उनका जन्म वैशाख पूर्णिमा के शुभ दिन को हुआ था। उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ था और उनका राहुल नाम का पुत्रा था।
29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने घोड़े कन्थक पर सवार होकर अपने सारथि चन्ना के साथ सत्य की खोज के लिए अपना घर त्याग दिया था और छह वर्ष तक वे एक भिक्षु की तरह भटकते रहे। पिफर वे गया (बिहार) आये और एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गये। वहां उन्होंने प्रत्येक वस्तु पर चिन्तन किया और स्वयं को सभी बन्धनों से मुक्त कर लिया। यहीं उन्हें सत्य यानी प्रसन्नता के रहस्य की अनुभूति हुई। 35 वर्ष की आयु में उसी पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान (निर्वाण) की प्राप्ति हुई और वे बुद्ध (प्रबुद्ध व्यक्ति) बन गये।
बोध गया में निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने पहला प्रवचन अपने पांच साथियों को वाराणसी के निकट सारनाथ के मृग पार्क में दिया। इस घटना को धर्म-चक्र-परिवर्तन कहा गया।
बौद्ध धर्म के अंतर्गत अपनाये गये तीन रत्न (त्रिरत्न) इस प्रकार हैंः
बुद्ध धम्म संघ
प्रबुद्ध बुद्ध की शिक्षाएं (सिद्धांत) समूह
तीन रत्नों या त्रिरत्नों में से बुद्ध द्वारा प्रथम धर्मोपदेश देने के समय संघ (नियम) की अवधारणा प्रारम्भ की गयी थी।
उनके पांच साथी एक संघ (एक समूह) बन गये थे।
बुद्ध को महापरिनिर्वाण उत्तरप्रदेश के कुशीनगर (मल्ल महाजनपद) में 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व प्राप्त हुआ था। कहा जाता है कि उनके जीवन का अधिकांश भाग राजा बिम्बिसार के समकालीन और अंतिम वर्ष हर्यंक वंश के अजातशत्रु के समकालीन माना जाता है।
अनेक बौद्ध ग्रन्थों में बुद्ध को तथागत और शाक्यमुनि के नाम से जाना जाता है। बौद्ध धर्म के अंतर्गत बुद्ध के पूर्ववर्ती क्स्सप बुद्ध थे और उनके उनराधिकारी मैत्रोय होंगे।
प्रारम्भिक बौद्ध सम्प्रदाय
माना जाता है कि बुद्ध के प्रस्थान के पश्चात, ईसा पूर्व 383 और ईसा पूर्व 250 के बीच मूल संघ दो प्रारम्भिक सम्प्रदायों (शाखाओं) में बंट गयाः
1. स्थाविर निकायः इसके उप-पंथों में महिससक, सर्वस्तीवाद, सक्रांतिका, सौत्रांतिका, धर्मगुप्तक, वत्सीपुत्रिय, धर्मोत्तरिय, भद्रायानिया, संनाग्रिका और सम्मितीय सम्मलित थे,।
2. महासंघिकाः इसके उप-पंथ-गोकुलिका, प्राजनपतिवाद, बहुस्रुतिय, एकव्य्हारिका, चैतिका सम्मलित थे,
3. अन्य उप-पंथों को जिन्हें उपर्युक्त दो सम्प्रदायों (शाखाओं) के अंतर्गत स्थान नहीं मिला है, वे हैं-हेमावतिका, राजागिरिया, सिद्धात्थ्का, पब्बासेलिया, अपरासेलिया और अपरराजागिरिका।
बौद्ध सम्प्रदायों में थेरावाद, महायान, वज्रयान आदि बाद में जुड़ा।
बौद्ध धर्म के अंतर्गत अवधारणायें और दर्शन
बौद्ध धर्म के मूल नियमों (तत्वों या सिद्धांतों) की व्याख्या चार प्रमुख श्रेष्ठ सत्यों के माध्यम से की जा सकती है। वे इस प्रकार हैः
1. दुःख का सत्य (दुःख)
2. दुःख की उत्पति का सत्य (समुदाय)
3. दुःख की समाप्ति का सत्य (निरोध)
4. दुःख की समाप्ति के मार्ग का सत्य (मग्गा)
अर्थात्, जीवन दुःख से भरा हुआ है। जीवन के सभी पक्षों में दुःख के बीज सम्मलित हैं। दुःख इच्छाओं के कारण उत्पन्न होता है। यह हमें संसार से बांध कर रखता है, बारम्बार पुनर्जन्मों का अंतहीन चक्र, दुःख और पिफर मृत्यु को प्राप्त होना। यदि कोई अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं से मुक्त हो जाए, तो वह मोक्ष और शांति प्राप्त कर सकता है। इसे श्रेष्ठ ‘आठ-सूत्राीय मार्ग’ पर चल कर प्राप्त किया जा सकता है। इनमें सम्मलित हैंः
1. दयालुता पूर्ण, सत्यवादी और उचित सम्भाषण
2. निष्कपट, शांतिपूर्ण और उचित कर्म
3. उचित आजीविका की खोज करना, जिससे किसी को हानि न हो।
4. उचित प्रयास और आत्म-नियन्त्रण
5. उचित मानसिक चेतना
6. उचित ध्यान और जीवन के अर्थ पर ध्यान केंद्रित करना।
7. निष्ठावान और बुद्धिमान व्यक्ति का मूल्य उसके उचित विचारों से है।
8. अन्धविश्वास से बचना चाहिए और सही समझ विकसित करनी चाहिए।
बुद्ध के अनुसार, मध्यम मार्ग श्रेष्ठ आठ-सूत्री मार्ग की व्याख्या करता है, जो मोक्ष की ओर ले जाता है।
बौद्ध धर्म वेदों की प्रमाणिकता को अस्वीकार करता है, अर्थात यह उन्हें स्वीकार ही नहीं करता। यह जैन धर्म के विपरीत आत्मा के अस्तित्व को भी नकारता है।
बुद्ध ने जब ईसा पूर्व 483 में कुशीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त कर लिया, तो उनकी शिक्षाओं को संकलित करने की आवश्यकता थी, और इसलिए अगले 500 वर्षों की अवधि में इस सामग्री को पिटक में संग्रह करने हेतु चार बौद्ध संगीतियां (सम्मेलन) आयोजित की गईं। इसके परिणाम तीन प्रमुख पिटकों का लेखन हुआ.विनय, सुन और अभिधम्म। इन्हें संयुक्त रूप में त्रिपिटक कहा जाता है। इन सभी को पाली भाषा में लिखा गया था।
ऐसा लिखा गया है कि राजा कनिष्क के शासनकाल में चैथी संगीति में बौद्ध धर्म का विभाजन हो गया और दो सम्प्रदायों का जन्म हुआः हीनयान और महायान बौद्ध धर्म। बाद के समय से यह पता चलता है कि हीनयान सम्प्रदाय का पतन हुआ और बौद्ध धर्म के अंतर्गत दो नये सम्प्रदायों को जन्म हुआ। इस प्रकार, अब तक बौद्ध धर्म के अंतर्गत जो चार प्रमुख मत (शाखाएं) विकसित हुए, वे निम्नलिखित हैंः
1. हीनयान बौद्ध धर्म
2. महायान बौद्धवाद
3. थेरावाद बौद्धवाद
4. वज्रयान बौद्धवाद
बौद्ध धर्म के आचरण में बुद्ध, धर्म और संघ की शरण लेना, शास्त्रों का अध्ययन करना, नैतिक आदेशों का पालन करना, इच्छाओं और लगाव का त्याग, ध्यान का अभ्यास करना, बुद्धिमता विकसित करना, प्रेम-दया और करुणा, महायान की बोधिचिन प्रथा और वज्रयान के प्रारम्भिक और समापन चरणों का पालन सम्मलित हैं।
थेरावाद में अंतिम लक्ष्य श्रेष्ठ आठ-सूत्राी मार्ग के माध्यम से क्लेशों की समाप्ति और निर्वाण की उत्कृष्ट अवस्था की प्राप्ति है, इस प्रकार से दुःख और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
निर्वाण के स्थान पर, महायान सम्प्रदाय में बोधिसत्व के मार्ग के द्वारा बुद्धत्व की प्राप्ति की आकांक्षा की जाती है, जहाँ हम अन्य प्राणियों को जाग्रति की अवस्था तक लाने हेतु पुनर्जन्म के चक्र में बने रहते हैं।
आइए, अब हम इन चारों सम्प्रदायों की विस्तृत चर्चा करेंः
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…