JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार किसने करवाया ? मौर्य द्वारा निर्मित सुदर्शन झील की मरम्मत किसने करवाई

मौर्य द्वारा निर्मित सुदर्शन झील की मरम्मत किसने करवाई ? सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार किसने करवाया ?

प्रश्न: सुदर्शन झील (तराग तड़ाग बाँध)
उत्तर: पश्चिमी भारत में सिंचाई की सुविधा के लिए चन्द्रगुप्तमौर्य के सौराष्ट्र प्रान्त के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन नामक इतिहास प्रसिद्ध
झील का निर्माण करवाया था। यह गिरनार के समीप रैवतक तथा ऊर्जयत पर्वतों के ऊपर सिक्ता और पलासनी नदियों के जलस्त्रोतों पर कृत्रिम बाँध बनाकर निर्मित की गयी थी। मौर्य शासक अशोक के काल में सौराष्ट्र का राज्यपाल तुषास्फ हुआ जिसने इस झील का जीर्णोद्धार करवाया। अशोक मौर्य के प्रांतपति तुस्षाफ ने नहरें निकलवायी। पश्चिमी शकक्षत्रप रूद्रदामन ने इसका पुर्ननिर्माण करवाया। रुद्रदामन ने जनता पर बिना कोई अतिरिक्त कर लगाए सुदर्शन झील की मरम्मत करवायी।
जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार स्कंदगुप्त ने पर्णदत्त को सौराष्ट्र का गोप्ता नियुक्त किया तथा उसके पुत्र चक्रपालित को गिरनार का पुरपति बनाया। गुप्त संवत् 136 में सुदर्शन झील का का बाँध टूट गया और वह दुदर्शन बन गयी। गुप्त संवत् 137 में चक्रपालित द्वारा इसका पुनः निर्माण करवाया गया। गुप्त संवत् 138 में चक्रपलित द्वारा यहाँ विष्णुमंदिर का निर्माण करवाया गया।

प्रश्न: गुप्तकालीन मूर्तिकला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: गुप्त काल की शिल्प कला का जन्म विशेषतः मथुरा शैली द्वारा स्थापित प्रतिमानों पर आधारित था। मुख्यतः विष्णु के अवतारों की प्रतिमाएं
बनायी गई। कुषाणकालीन भौतिकता और यथार्थ शारीरिक अंकन के स्थान पर आध्यात्मिकता, भद्रता एवं सात्विकता दृष्टिगोचर होती है। जिसमें भारतीयकरण की पद्धति दिखाई देती है। गुप्तकालीन मूर्तियों में अलंकृत प्रभामण्डल, शालीनता दृष्टिगोचर है। जो मुख्यतः सारनाथ एवं मथुरा की पाषाण बुद्ध मूर्तियों, देवगढ़ की दशावतार मूर्तियों और मथुरा से प्राप्त विष्णु एवं महावीर की मूर्तियां आदि अलंकृत हैं। कुषाण कालीन मूर्तियों में शरीर के सौन्दर्य का जो रूप था उसके विपरीत गुप्त काल की मूर्तियों में नग्नता नहीं है। गंगा और यमुना की मूर्ति रूप गुप्त काल की ही देन है। वराह की वास्तविक आकति में निर्मित मर्ति एरण से प्राप्त हुई है जिसका निर्माण धन्यविष्ण ने किया था। गप्त मूर्ति कला के सर्वोत्तम उदाहरण सारनाथ की मूर्तियाँ और चित्रकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण अजंता बौद्ध कला के उदाहरण हैं। गुप्तकाल की अधिकतर मूर्तियाँ हिन्दू देवी-देवताओं से संबंधित हैं। शारीरिक आकर्षण को छिपाने के लिए गुप्त कलाकार ने वस्त्रों का प्रयोग किया। इसके लिए गुप्तकालीन मूर्तिकारों ने मोटे ऊनी वस्त्र का प्रदर्शन किया है।
प्रश्न: गुप्तकालीन मृण्यमूर्ति कला कहां तक लोक कला का प्रतिनिधित्व करती है?
उत्तर: गुप्तकाल में मृदभाण्डकला का भी सम्यक् विकास हुआ। गुप्त-काल की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाने वाले कलाकार सुन्दर वस्तुएं बनाते थे। मिट्टी
की वस्तुएं निर्धनों की कला बन गई! इस प्रकार गुप्त-कला सर्वसाधारण में भी लोकप्रिय बन गई। विष्ण, कार्तिकेय, दुर्गा, गंगा, यमुना आदि देवी-देवताओं की बहुसंख्यक मृण्मूर्तियाँ पहाड़पुर, राजघाट, भीटा, कौशाम्बी, श्रावस्ती, पवैया, अहिच्छत्र, मथुरा आदि स्थानों से प्राप्त हुई हैं। धार्मिक मूर्तियों के साथ-साथ इन स्थानों से अनेक लौकिक मर्तियाँ भी मिलती हैं। पहाडपुर से कृष्ण की लीलाओं से संबंधित कई मूर्तियाँ मिलती हैं। अहिच्छत्र की मूर्तियों में पदा की मर्तियाँ तथा पार्वती के सन्दर सिर का उल्लेख किया जा सकता है। श्रावस्ती से जटाजटधारी शिव के सिर की मर्ति मिली है। इसी प्रकार श्रावस्ती की मृण्मूर्तियों में एक बड़ी नारी-मूर्ति का उल्लेख किया जा सकता है। उसके साथ दो बालक बैठे हुए हैं तथा उनके समीप लड्डुओं की एक डाली रखी हुई प्रदर्शित की गयी है। यह सम्भवतः यशोदा के साथ कृष्ण तथा बलराम का दृश्य है।
ईरान और मध्य एशिया के विदेशियों की बहुत-सी आकृतियाँ भी मिली हैं। जानवरों, हाथी-सवारों, विदूषकों तथा बौनों की . बहत-सी आकतियां भी मिली हैं। राजघाट में पाई गई टेराकोटा मूर्तियाँ भी इतनी सजीव हैं कि मानो मिट्टी में गीत मुखरितहो उठे हों। गुप्तकालीन समय की प्रचलित सच्ची कला की आत्मा इन टेराकोटा की आकृतियों में पाई जाती है।
प्रश्न: गांधार शैली के विषय में लिखें।
उत्तर: कुषाण वंश के शासक कनिष्क के समय में गांधार शैली का विकास हुआ। यह शैली बुद्ध के जीवन और कार्यों की सजीव व्याख्या करती है। यह शैली रोमन साम्राज्य की कला से अवश्य प्रभावित थी, लेकिन इस शैली की आत्मा भारतीय थी। . गांधार कला के प्रमुख क्षेत्र तक्षशिला, पुरूषपुर तथा निकटवर्ती क्षेत्र थे। गांधार कला का जन्म संभवतः द्वितीय शताब्दी ई.प. तक हो चुका था और यह कनिष्क के समय में अपने चरम पर पहुंच गयी थी। इस शैली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं रू
गांधार कला के विषय भारतीय व तकनीक यूनानी है। मूर्तियां प्रायः स्लेटी पत्थर से निर्मित हैं। अधिकांश मूर्तियां महार के जीवन से संबंधित हैं। गांधार मूर्तियों में आध्यात्मिकता व भावुकता का अभाव है। यह यथार्थवादी शैली है। मूर्तियों ष् बुद्ध व सिलवटदार वस्त्र दिखाए गए हैं। यूनानी प्रभाव के कारण गांधार मूर्तियों में बुद्ध अपोलो देवता के सामान लगते हैं। मूर्तियों में अधिकांशतः उन्हें संन्यासी वस्त्रों में ही दिखाया गया है। अलंकरण में जगह-जगह भारतीय प्रभाव स्पष्टतः टार है। इसके अन्तर्गत धर्मचक्रमुद्रा, ध्यान-मुद्रा, अभयमुद्रा और वरद-मुद्रा आदि मूर्तियों का निर्माण किया गया।
प्रश्न: मथुरा शैली
उत्तर: जिस समय गांधार शैली का विकास हो रहा था लगभग उसी समय मथुरा में मथुरा शैली का आविर्भाव हुआ। मथराव की निम्नलिखित
विशेषताएं हैं – मथुरा कला की मूर्तियों का निर्माण सफेद चित्ती वाले लाल बलुए रवादार पत्थर से । है। मथुरा कला के अंतर्गत बौद्ध धर्म संबंधी मूर्तियों में महात्मा बुद्ध तथा बोधिसत्वों की मूर्तियां हैं, जिनमें बुद्ध के जीष् की प्रमुख घटनाओं को चित्रित किया गया है। महात्मा बुद्ध का सिर मुण्डित है व चेहरे पर आध्यात्मिकता का प्रदर्शित किए गए हैं। मुख के चारों ओर प्रभामंडल है, जो अलंकृत है। मथुरा कला विशुद्ध भारतीय कला है। मथुरा कला के अंतर्गत बुद्ध की धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा, अभय मुद्रा, ध्यान मुद्रा व भू-स्पर्श मुद्रा आदि मूर्तियों का निर्माण किया गया।
प्रश्न: गुहा शैलकृत स्थापत्यकला
उत्तर: गुहा शैलकृत स्थापत्य कला पूर्व मौर्यकाल में आरंभ हुई और पूर्व मध्यकाल तक विकसित होती रही। आरंभिक काल में चैत्य एवं विहार
बनाये गये तथा बाद में पल्लवों के रथ मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, दशावतार मंदिर आदि बनाये गये। अशोक एवं दशरथ मौर्य ने
आजीवक संप्रदाय के लिए भी गुहा स्थापत्य कला को प्रश्रय किया।
प्रश्न: एलोरा गुफाएँ
उत्तर: एलोरा महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। एलोरा का प्राचीन नाम वेलूर है। यहां पर 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच पत्थरों की 34
गुफायें बनाई गयीं, जिनमें 1 से 12 तक बौद्धों की, 13 से 29 तक हिन्दूओं की और 30 से 34 तक जैनों की गुफायें हैं। इस प्रकार एलोरा
की गुफायें सभी धर्मों से संबंधित हैं। एलोरा के गुहा मन्दिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों द्वारा किया गया।

प्रश्न: गांधार मूर्तिकला रोम निवासियों की उतनी ही ऋणी थी, जितनी कि वह यूनानियों की थी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गांधार कला का विकास वर्तमान पश्चिमी पाकिस्तानी तथा पूर्वी अफगानिस्तानी में सांस्कृतिक क्रांति के परिणामस्वरूप सम्राट कनिष्क के काल में हुआ। गांधार शैली की मूर्तियाँ कनिष्क काल की महत्वपूर्ण विशेषता है, जिनमें भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय
है। गांधार कला पर यूनानी तथा रोमन दोनों संस्कृतियों का विशेष प्रभाव था।
यूनानी प्रभाव को भगवान बुद्ध के धुंघराले बालों, दोनों कंधों को ढके वस्त्र विन्यास, पादुकाओं, बुद्ध को यूनानी देवता हेराकल्स के संरक्षण में
दिखाना एवं अनेक विशेषताओं द्वारा देखा जा सकता है। यहां तक कि श्ईश्वर-इन्सानश् का सिद्धात भी यूनान की ही देन है। बुद्ध की महिमामण्डित पौराणिक कथाएं भी यूनानी संस्कृति से ही संर्बोधत की जा सकती हैं।
प्रश्न: शुंग कालीन कला एवं स्थापत्य कला
उत्तर: शुंग नरेशों का शासन-काल कला एवं स्थापत्य की उन्नति के लिये भी विख्यात है। मौर्य-कला एक दरबारी-कला (ब्वनतज.ंतज) थी जिसका प्रधान विषय धर्म था। परन्तु शुंग कला के विषय धार्मिक जीवन की अपेक्षा लौकिक जीवन अधिक संबंधित हैं। इस समय की कलाकृतियों में जो विविध चित्र उत्कीर्ण मिलते हैं उनसे तत्कालीन मध्य-भारत परम्परा, संस्कृति एवं विचारधारा को प्रतिबिम्बित कर सकने में अधिक समर्थ है। इसका प्रधान विषय आध्यात्मिक अथवा नैतिक न होकर पूर्णतया मानव जीवन से संबंधित है। शुग कला के उत्कृष्ट नमूने मध्य-प्रदेश के भरहुत, साँची, बेसनगरतथा बिहार के बोधगया से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न: शंगकाल में सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में बोधगया का वर्णन कीजिए।
उत्तर: बोधगया के विशाल मंदिर के चारों ओर एक छोटी पाषाण वेदिका मिली है। इसका निर्माण भी शुंग काल में हुआ था। इस पर भी भरहुत के
चित्रों के प्रकार के चित्र उत्कीर्ण मिलते हैं। इन उत्कीर्ण चित्रों में कमल, राजा-रानी, पुरुष, पशु, बोधिवृक्ष, छत्र, त्रिरत्न, कल्पवृक्ष आदि प्रमुख
हैं। मानव आकृतियों के अंकन में कुछ अधिक कुशलता दिखाई गयी है। एक स्तम्भ पर शालभंजिका तथा दूसरे पर इन्द्र का चित्र उत्कीर्ण
है। इसी प्रकार रथारूढ़ सूर्य तथा श्रीलक्ष्मी का अंकन भी मिलता है। छदन्त, पदकुसलमाणव, वेस्सन्तर, किन्नर आदि जातक ग्रन्थों से ली
गयी कथाओं को भी उत्कीर्ण किया गया है। अनेक काल्पनिक — पशुओं (ईहा, मृगों), जैसे सपक्ष सिंह, अश्व तथा हाथी, नरमच्छ, वृषभ,
बरके, भेड़ मगरमच्छ आदि का अंकन है। एक स्तम्भ पर गजमच्छ पर सवार पुरुष तथा सिंहमुख मगरमच्छ की मूर्ति बनी है। सभी रचनायें
अत्यन्त कलापूर्ण हैं।
प्रश्न: शुंग कालीन बेसनगर का हेलियोडोरस का गरुड़ स्तम्भ ।
उत्तर: इसके अन्तर्गत बेसनगर (विदिशा) से प्राप्त हेलियोडोरस के गरुडस्तम्भ का उल्लेख किया जा सकता है जिसे जनरल कनिंघम ने 1877 ई.
में खोज निकाला था। इसके पूर्व समीपवर्ती गाँवों के निवासी इसकी पूजा किया करते थे। शिल्प कला की दृष्टि से यह स्तम्भ अत्यन्त सुन्दर तथा हिन्दू धर्म से संबंधित प्रथम प्रस्तर स्तम्भ है। इसका धुरा आधार पर अठपहला है तथा यह एकाश्मक रचना है। इसके मध्यम भाग तथा ऊपरी भाग में क्रमशः उन्नीस और बत्तीस किनारे हैं। शीर्ष भाग घण्टे के आकार का है। सबसे ऊपर मुकुट के समान ताड़ के पत्तों का अलंकरण है। सम्पूर्ण निर्माण कलापूर्ण एवं आकर्षक है।
शुगकाल में ही शोडास के शासनकाल में मथुरा मे शैल देवगृह तथा चतुःशाल तोरण बनाये गये। इस काल का एक दूसरा केन्द्र नगरी (चित्तौड़ के पास) नामक स्थान पर है जहां नारायणवाटक अथवा संकर्षणवासुदेव का खुला देवस्थल निर्मित कर उसके चारों ओर शिलाप्राकार (पत्थर की वेदिका) बनाई गयी। यह 9.6 फीट ऊँचा था। इसका निर्माता श्सर्वतातष् नामक प्रतापी राजा था। भण्डारकर की मायन्ता है कि यह संभवतः कण्ववंश से संबंधित था जो शुंगों को उत्तराधिकारी थे। हिन्दू मंदिर का आदि रूप इस श्पूजा शिलाप्राकारश् में दिखाई देता है।
प्रश्न: शुंग कालीन मृण्यमूर्ति शिल्प
उत्तर: उपर्युक्त कलाकृतियों के अतिरिक्त शुंग काल की बहुसंख्यक मिट्टी की मूर्तियाँ एवं खिलौने विभिन्न स्थलों से प्राप्त होते हैं। सबसे अधिक
संख्या में मूर्तियाँ कौशाम्बी से प्राप्त हुई हैं। पत्थर की मूर्तियाँ काफी कम मिलती हैं। उन्हें साँचे में ढालकर तैयार किया गया है। वस्तुतः कुम्भकारों ने मूर्ति बनाने के लिये साँचे का प्रयोग सर्वप्रथम शुंगकाल में ही किया। कौशाम्बी से प्राप्त सैकड़ों मूर्तियाँ इलाहाबाद संग्रहालय तथा विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। कलाविद् डॉ. एस. सी. काला ने इनका विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया है। यहां की मृण्मूर्तियों में सर्वाधिक सन्दर एवं कलात्मक मिथुन (दम्पति) मूर्तियाँ हैं। एक ठीकरे पर बना हुआ आपान गोष्ठी का दृश्य उल्लेखनीय है जिसमें स्त्री-पुरुष आमने-सामने बेंत की कुर्सी पर बैठे हुए हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न मुद्राओं में स्त्री-पुरुषों की मूर्तियां मिलती हैं। लीला कमल हाथ में लिये स्त्री, हंसती हुई नर्तकी तथा श्रीलक्ष्मी की मूर्तियाँ काफी प्रसिद्ध हैं। कौशाम्बी से श्रीलक्ष्मी की कई मण्मर्तियाँ मिली हैं। एक मूर्ति, जो ऑक्सफोर्ड के भारतीय संग्रहालय में रखी गयी है, के सिर पर कमल पुष्प का गच्छा है तथा दोनों ओर मांगलिक चिह्न बनाये गये हैं। इनसे उसका देवी होना सूचित होता है। इसे श्सौंदर्य की देवी श्रीलक्ष्मीश् कहा गया है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now