JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

सिंधु स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताएं क्या है , सिंधु घाटी सभ्यता की कला का वर्णन कीजिए विस्तार

सिंधु घाटी सभ्यता की कला का वर्णन कीजिए विस्तार सिंधु स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताएं क्या है ?

स्थापत्य एवं कला
किसी भी देश की संस्कृति स्वयं को धर्म, दर्शन, साहित्य, संगीत, स्थापत्य एवं कला के रूप में अभिव्यक्त करती है। गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति के उन्नयन एवं उसे सतत् रूप से अक्षुण्ण बना, रखने में यहां की पारम्परिक कलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कला का उद्गम, मानव विकास के साथ ही अपने सौन्दर्य बोध को अभिव्यक्ति प्रदान करने से हुआ होगा। इसके अतिरिक्त अपने चारों ओर फैली प्रकृति तथा उसके क्रियाकलापों को उपलब्ध माध्यमों द्वारा रूपाकार प्रदान कर प्रसन्न होना, भय, उत्साह, क्रोध एवं आश्चर्य इत्यादि मनोभावों को उद्दीप्त होने पर उन्हें तद्नुसार मूर्त रूप देना तथा जादू-टोने, अंधविश्वासों एवं शुभ-अशुभ की भावना से प्रेरित होकर, स्वस्तिक, हाथ के छापों, नाशदुम आदि आकृतियों का निर्माण करना, कला सृजन के अन्य कारण रहे होंगे।
कला लोगों की संस्कृति में एक मूल्यवान विरासत है। जब कोई कला की बात करता है तो आमतौर पर उसका अभिप्राय दृष्टिमूलक कला से होता है जैसे वास्तु कला, मूर्तिकला तथा चित्रकला। अतीत में ये तीनों पहलू आपस में मिले हुए थे। वास्तुकला में ही मूर्तिकला एवं चित्रकला का समावेश था।
पुरातात्विक एवं मानवशास्त्रियों द्वारा एकत्रित साक्ष्यों से अनुमान होता है कि कला का सृजन एवं उन्नयन मानव विकास के साथ-साथ होता रहा है। वास्तव में भारतीय कला हमारी संस्कृति के सभी पक्षों को प्रतिबिम्बित करने का एक सशक्त माध्यम रही है और अपनी विशेषताओं के कारण ही एशिया के अधिकांश भागों में कला की परम्पराओं को नूतन रूप प्रदान कर सकी है। सुंदरता एवं उपयोगिता कला के विशेष गुण अथवा लक्षण माने जाते हैं। अतः कलाओं को दो वर्गें में रखा गया है (प) उपयोगी कलाएं एवं (पप) ललित कलाएं। ललित कलाओं के अंतग्रत काव्य, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला तथा स्थापत्य या वास्तुकला को रखा गया है।
कला की भांति ‘वास्तु या स्थापत्य कला’ के उद्भव एवं विकास का इतिहास भी उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव-सभ्यता का। ऐसा प्रतीत होता है कि आदि मानव का ‘आश्रय-स्थल’ प्राकृतिक गुफाएं, शिलाश्रय तथा वृक्ष रहे होंगे। यूरोपीय महाद्वीप के अंतग्रत स्पेन तथा फ्रांस के समीपवर्ती प्रदेश में ऐसी अनेक गुफाएं मिली हैं, जिनमें आदि मानव के निवास करने के स्पष्ट प्रमाण प्राप्त हुए हैं। भारत में भी विभिन्न शैलाश्रयों एवं प्राकृतिक गुफाओं में आदि मानव द्वारा निर्मित चित्र, मूर्तियां तथा औजार पाए गए हैं, जो उनके ‘आश्रय स्थल होने का संकेत देते हैं। इसी प्रकार, वैदिक कालीन ‘पर्ण कुटियों’ का निर्माण तथा मौर्य एवं मौर्योत्तर कालीन ‘रिलीफ मूर्तियों’ में भी साधु-सन्यासियों के निवास हेतु निर्मित कुटियों का प्रदर्शन वास्तुकला के क्रमिक विकास को दर्शाता है।
भारतीय कला में धर्म की भूमिका अथवा आध्यात्मिकता का अत्यधिक प्रभावशाली एवं व्यापक पक्ष दृष्टिगोचर होता है। वास्तव में ‘कला और धर्म’ का घनिष्ठ संबंध था, परिणामस्वरूप कला ‘सम्प्रेषण का माध्यम’ बनकर तत्कालीन समाज की आवश्यकता की पूरक बन गई। इसलिए कलाकारों ने भौतिक एवं सांसारिक ‘विषय-वस्तु’ की अपेक्षा धार्मिक विषयों को चित्रित करने में विशेष रुचि दिखाई।
विद्वानों का मानना है कि भारतीय कला धर्म से प्रेरित हुई। वैसे इस बारे में कुछ नकारने जैसा भी नहीं है। हो सकता है, कलाकारों और हस्तशिल्पियों ने धर्माचार्यों के निर्देशानुसार काम किया हो, पर स्वयं को अभिव्यक्त करते समय उन्होंने संसार को जैसा देखा, वैसा ही दिखाया। यह सही है कि भारतीय कला के माध्यम से जो पावन दृष्टि को ही अभिव्यक्त किया गया, जो भौतिक संसार के पीछे छिपे दैव तत्वों से, जीवन और प्रकृति की सनातन विषमता और सबसे ऊपर मानवीय तत्व से हमेशा अवगत रहती है।
प्राचीन भारत में जहां एक ओर वास्तुशास्त्र विषय पर गम्भीर मौलिक ग्रंथों की रचना हुई वहीं इसके सहायक विषयों मूर्तिकला, प्रतिभा लक्षण शास्त्र एवं आलेख कल्प अर्थात् चित्रकला विषयों पर भी विस्तृत विवरण लिपिबद्ध किए गए। प्राचीन भारतीय साहित्य में वास्तुविद्या संबंधी 177 से अधिक ग्रंथों की रचना हुई है, जिनमें से निम्न गं्रथ प्रमुख एवं उल्लेखनीय हैं वृहत्संहिता, मानसार, मयमतम, समरांगण-सूत्रधार, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, शिल्परत्नसागर तथा विश्वकर्मीय प्रकाश। इनके अतिरिक्त अग्नि तथा मत्स्य पुराणों, कामिकागम, अंशुभेदागम, सुप्रभेदागम, रूपमण्डन आदि ग्रंथों में भी वास्तु संबंधी विस्तृत संदर्भ उपलब्ध हैं।
वास्तुकला एवं मूर्तिकला
प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला के बारे में एक अद्भुत तथ्य यह है कि मूर्तिकला उसका एक अविभाज्य अंग थी। इस संदर्भ में सिंधु घाटी की संस्कृति ही शायद एकमात्र अपवाद है, क्योंकि उसकी इमारतें उपयोगितावादी हैं, पर उनमें कलात्मक कौशल नहीं है। हो सकता है, समय के साथ उनकी अलंकारमय सजावट नष्ट हो गई हो। हालांकि मूर्तिकला विकसित थी।
सिंधु घाटी की मूर्तियां और मोहरें
हालांकि इसे ‘सिंधु घाटी’ या ‘हड़प्पा’ संस्कृति कहा गया, पर यह सभ्यता इससे ज्यादा दूर-दूर तक फैली हुई थी और प्रकट रूप से बहुत विकसित थी। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर, इस संस्कृति के फलने-फूलने के मुख्य काल उसके परिपक्व शहरी चरण के, 2100 से 1750 ई.पू. के बीच कभी होने का अनुमान है, जबकि सिंधु-घाटी के प्रकार की कलात्मक वस्तु,ं मेसोपोटामिया में 2300 ई.पू. के करीब तक मिली हैं। मकानों के निर्माण में सामग्री की उत्कृष्टता तथा दुग्र, सम्मेलन सभागारों, अनाज के गोदामों, कार्यशालाओं, छात्रावासों, बाजारों आदि की मौजूदगी तथा आधुनिक जल निकास प्रणाली वाले भव्य नगरों के समान वैज्ञानिक ले-आउट देखकर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उस काल की संस्कृति काफी समृद्ध थी। स्वाभाविक था कि कला और शिल्प उस समाज में उन्नत अवस्था में थे। इस सभ्यता की कला के बचे नमूनों में से सबसे खूबसूरत शायद पतली, छड़ी जैसे लड़की की लघु कांस्य मूर्ति है, जिसने अपने हाथों में एक कटोरा पकड़ा हुआ है। चूना पत्थर और लाल पत्थर के दो खंडित धड़ भी हैं, जो हड़प्पा से मिले थे।
इन सभी मूर्तिशिल्पों में से सबसे सुरक्षित हैं एक व्यक्ति का सात इंच ऊंचा सिर और कंधा, जिसके चेहरे पर छोटी-सी दाढ़ी और बारीक कटी हुई मूंछें हैं तथा उसका शरीर एक शाॅल में लिपटा है जो बाएं कंधे के ऊपर और दाईं बांह के नीचे से होकर गयी है, जो लगता है कि किसी पुजारी की छवि है। इस मूर्ति और मोहगजोदड़ो से मिले अन्य दाढ़ी वाले सिरों तथा सुमेरिया के मूर्तिसंग्रह में कुछ समानता है।
टेराकोटा की विविध वस्तुएं भी हैं, जिनमें सभी प्रकार की छोटी-छोटी आकृतियां और अलग-अलग आकारों और डिजाइनों के सेरामिक पात्र शामिल हैं। सिंधु क्षेत्र में पायी गयी अन्य बहुत सी वस्तुओं में सील (मुहर) की अनेक चैकोर छोटी-छोटी वे आकृतियां भी थीं जिन्हें कई प्रकार के डिजाइनों में अभिचित्रित किया गया था। अनुबंधों के रिकार्ड के लिए थीं। कुछ सीलों में बैल की अनेक आकृतियां बनी हुई मिलीं है, जबकि कुछ अन्य सीलों में अन्य जागवरों की आकृतियां थीं। विशेषज्ञों के मतानुसार, सीलों में अभिचित्रित आकृतियां विश्व के कुछ उन महान उद्धरणों में हैं जो तत्कालीन कलाकारों की महान क्षमता को दर्शाती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय भी कलात्मक आकार देने में कलाकारों का कोई जवाब नहीं था। यद्यपि वे किसी विशेष बैलों की आकृतियां नहीं हैं, फिर भी वे विशेष प्रकार की जातियों का प्रतिनिधित्व करती थीं। दो हजार से अधिक सीलें तथा चार सौ से अधिक विभिन्न प्रकार की सीलों के अन्य आकार सिंधु घाटी में पाये गये तथापि अभी भी उनके बारे में कोई पुष्ट अभिलेख और तत्संबंधी जागकारी अनुपलब्ध है।
सैंधव सभ्यता की ‘कला का सर्वोत्तम स्वरूप’ मोहगजोदड़ो, हड़प्पा तथा चन्हूदड़ो से प्राप्त मुहरों (ताबीज) एवं मुद्राओं पर अंकित आकर्षक दृश्यों से स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। ये मुद्राएं अधिकतर ‘साबुन पत्थर’ तथा चीनी मिट्टी से बनी हैं। जिन मुद्राओं पर ‘पशु तथा लेख’ अंकित हैं वे तो मुद्रा और ताबीज दोनों का काम देती हैं परंतु जिन पर केवल पशु की आकृति है वह संभवतः केवल ताबीज के रूप में ही प्रयुक्त होती थी। इन मुहरों पर मुद्राओं को अधिक चमकीला बनाने के लिए इस पर पुनः किसी ‘वस्तु-विशेष’ का प्रयोग किया जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि सैंधव सभ्यता के कलाविदों को इसका पूर्णरूपेण ज्ञान था कि कला का सौंदर्य से क्या संबंध है तथा उसकी अभिव्यक्ति किस रूप में होनी चाहिए।
मुहरों पर अंकित कुछ विशिष्ट दृश्यों का अंकन कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। एक मुहर पर अंकित ‘तीन सिरों वाला पशु’ उल्लेखनीय है, जिसका एक सिर हिरण का, मुख्य शरीर एक शृंगी पशु का तथा सिर भेंड़े का है। इसे स्थापत्य एवं कला 245 246 भारतीय संस्कृति संश्लिष्ट पशु की संज्ञा दी गई है। मैके को एक ऐसी मुद्रा मिली है जिसमें संभवतः ‘भगवान त्रिनयन शिव’ का चित्रण है। मुद्रा के मध्य में एक तिपाई पर पलथी मारे तथा यौÛिक आसन में त्रिमुख शिव बैठे हैं जिनके सिर के ऊपर ‘त्रिशूल’ जैसी कोई वस्तु रखी है तथा वक्ष पर तिकोना वस्त्र पड़ा है। शिव को नग्न दर्शाया गया है, जिनके दाहिने ओर हाथी अंकित है, बायीं ओर Ûैंडा और भैंस तथा सामने एक-दो शृंगी हिरण हैं। मुद्रा के ऊपरी भाग में 6 शब्दों का एक लेख है। पशुओं के मध्य संभवतः पशुपति रूप का प्रदर्शन किया गया है। सींगों का सिर पर अंकन संभवतः त्रिशूल का पूर्व रूप है। प्राचीन काल में सींगों का विशेष धार्मिक महत्व प्रतीत होता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सैंधव सभ्यता के कलाविदों ने मुद्राओं पर अंकित कलात्मक दृश्यों के माध्यम से अपने चातुर्य, सत्यनिष्ठा तथा पर्यवेक्षण शक्ति का सफल प्रयास किया है। वास्तव में इन मुद्राओं एवं ताबीजों का कलात्मक रूपायन सर्वथा अद्वितीय है।
सिंधु सभ्यता में संपादित उत्खननों पर एक विंहÛम दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि यहां के निवासी महान निर्माणकर्ता थे उनके स्थापत्य कौशल को समझने के लिए वहां की विकसित ‘नगर-योजना’ से संबंधित नगर निवेश, सार्वजनिक एवं गिजी भवन, रक्षा प्राचीर, सार्वजनिक जलाशय, सुनियोजित माग्र व्यवस्था तथा सुंदर नालियों के प्रावधान आदि का विधिवत अध्ययन आवश्यक है।
वास्तव में सैंधव सभ्यता अपनी विशिष्ट एवं उन्नत नगर योजना के लिए विश्व प्रसिद्ध है क्योंकि इतनी उच्च कोटि का बस्ती विन्यास समकालीन मेसोपोटामिया आदि जैसी अन्य किसी सभ्यता में नहीं मिलता। इस नगर निवेश के अंतग्रत सभी नगरों को समानान्तर तथा एक-दूसरे को समकोण पर काटती हुई सड़कों के आधार पर बसाया गया है। इस विधि को आधुनिक काल में ग्रिड प्लानिंग कहा जाता है।
सैंधव सभ्यता की स्थापत्य का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण ‘वृहद स्नानागार या विशाल स्नानागार’ है। संभवतः यह मोहगजोदड़ो का सर्वाधिक महत्व का स्मारक माना गया है। वास्तुकला की दृष्टि से मोहगजोदड़ो एवं हड़प्पा के बड़े धान्यागार भी उल्लेखनीय हैं। पहले इसे स्नानागार का ही एक भाग माना जाता था किंतु 1950 ई. के उत्खननों के पश्चात् यह ज्ञात हुआ कि यह अवशेष एक विशाल अन्नागार है।
सैंधव सभ्यता की नगरीय योजना में वास्तुकला की दृष्टि से मार्गों का महत्वपूर्ण स्थान था। इन मार्गों (सड़कों) का निर्माण एक सुनियोजित योजना के अनुरूप किया जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्य मार्गों का जाल प्रत्येक नगर को प्रायः पांच-छह खण्डों में विभाजित करता था। मोहगजोदड़ो निवासी नगर निर्माण-प्रणाली से पूर्णतया परिचित थे इसलिए वहां के स्थापत्यविदों ने नगर की रूपरेखा में मार्गों का विशेष प्रावधान किया, तद्नुसार नगर की सड़कें संपूर्ण क्षेत्र में एक-दूसरे को समकोण पर काटती हुई ‘उत्तर से दक्षिण’ तथा पूरब से पश्चिम की ओर जाती थीं।
वास्तव में सड़कों, जल निष्कासन व्यवस्था, सार्वजनिक भवनों आदि के विशद विवरण पर शिल्पशास्त्र विषयक ग्रंथों में अत्यधिक बल दिया गया है।
वास्तुकला की भांति सैंधव सभ्यता की विकसित एवं समुन्नत अवस्था का मूल्यांकन प्रायः उसकी मूर्तिकला के आधार पर किया जाता है। इस युग की मूर्तियों को, पाषाण मूर्तियों; धातु निर्मित मूर्तियों; और मृण्मूर्तियों में विभाजित किया जाता है।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

19 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

4 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now