Isostic in hindi समस्थिति किसे कहते हैं , परिभाषा , समस्थिति का सिद्धांत क्या है , से आप क्या समझते हैं ?
ग्लोबल समस्थिति
(Global Isostic Adjustment)
सम्पूर्ण पृथ्वी पर समस्थिति आवश्यक है। महाद्वीपों और महासागरों, पर्वतों और मैदानों को एक साथ भूपृष्ठ पर स्थिर रहना है, परन्तु इसके साथ यह भी सत्य है कि पृथ्वी की प्रकृति निरन्तर परिवर्तनशील (unresting) है। सतह पर अपरदनात्मक शक्तियाँ क्रियाशील रहती हैं तो भूगर्भ में आन्तरिक शक्तियाँ सक्रिय रहती हैं। महाद्वीपों पर विभिन्न शक्तियों से अपरदन होता रहता है और तलछट का जमाव गहरे भागों व महासागरों में होता रहता है। इस प्रक्रिया से उच्च भूभागों में भार में कमी होगी तो महासागरों में निक्षेप से भार बढ़ता जायेगा जायेगा जिससे दबाव बढ़ेगा व समस्थिति भंग होगी, परन्तु समस्थिति बनाये रखना आवश्यक है इसलिये महाद्वीपीय भाग हल्के होकर ऊपर उठेगे स्तर व महासागरीय तली में धंसाव होगा, परन्तु अचानक कोई परिवर्तन नहीं होता क्योंकि समुद्र की तली के नीचे का लचीला व अधिक घनत्व का पदार्थ महाद्वीपों के नीचे स्थानान्तरित (प्रवाहित) होगा जिससे पुनः ऊँचाइयाँ बढ़ेगी। इससे महासागरीय तली में संतुलन बना रहेगा। अगर ऐसा न होता तो पृथ्वी के इतिहास में शीघ्र वह घिसकर सपाट हो जाते या महासागर तलछट से भर जाते। ऐसे में संतुलन नष्ट हो जाता। इसलिए समस्थिति प्रादेशिक स्तर पर होती है, परन्तु क्षतिपूर्ति कितनी गहराई पर होती है इस पर विद्वानों में मतभेद है।
समस्थिति में स्थानीय रूप् से अन्तर अवश्य देखा जाता है। कभी-कभी आन्तरिक शक्तियों की तीव्रता, जलवायु परिवर्तन व मानवीय क्रियाओं से संन्तुलन से बाधा उत्पन्न होती है तथा भूपटल पर परिवर्तन दिखायी पड़ता है। अनुमान है कि हिमयुग की समाप्ति के उपरान्त फिनलैंड व स्केण्डेनेविया में 900 फीट का उत्थान हुआ है व यहाँ अभी भी ऊँचाई बढ़ रही है। इसी प्रकार रेड सागर के विस्तार से प्लेटों का भूपृष्ठ पर सरकना प्रमाणित होता है। आन्तरिक शक्तियाँ के कारण प्लेटों के विस्थापन से जब सन्तुलन बिगड़ता है तब पर्वतों का निर्माण होता है। हिमालय पर्वतों में अभी भी पूर्ण सन्तुलन को प्राप्त नहीं हुआ है। इनकी ऊँचाई भी बढ़ रही है। समस्थिति वास्तव में कोई सिद्धान्त नहीं है वरन् एक तथ्य है। जिसके द्वारा भूपृष्ठ पर जल थल के वितरण को सुचारु रूप से समझाया जा सकता है। वर्तमान में समस्थिति के लिये हेलसिंकी नगर में प्रे. डब्ल्यू हीसकेनीन के संरक्षण में परीक्षण व शोध कार्य चल रहा है।
भारत में सन्तुलन की स्थिति
सन्तुलन पर विभिन्न विद्वानों के मतों का उल्लेख करने के बाद यह जरूरी सा हो जाता है कि हम अपने देश, भारत में सन्तुलन की स्थिति पर गौर करें।
इतना तो आप जान ही गए होंगे कि पर्वत-क्षतिपूर्ति का सिद्धांत या सन्तुलन सिद्धान्त सबसे पहले भारत में ही प्रकाश में आया था, उस समय कल्याण और कल्याणा नामक स्थान पर अक्षांशीय मापन के दौरान 5.236‘‘ का अन्तर आया था, लेकिन प्राट महोदय के गणना करने पर यह अन्तर और बढ़ गया था, यानी तब यह अन्तर 15884‘‘ हो गया था। इसी तरह देहरादून में माप से अन्तर आया 36‘‘ या 36 सेकेण्ड और गणनात्मक अन्तर आया 86 सेकेण्ड इसी तरह का अन्तर तीन और स्टेशनों पर पाया गया। ये स्टेशन हैः-
(1) कुर्सियांग-सिलीगुड़ी- जलपाईगुड़ी।
(2) बिरोंड-निमकार।
(3) देहरादून- कल्याण।
इन अन्तरों को स्पष्ट करने के लिए बरार्ड (Burrard) ने 1992 में हिमालय पर्वत की उत्पत्ति पर एक लेख प्रस्तुत किया। इस लेख में बरार्ड ने सन्तलन की अवस्था का उल्लेख करते हुए बताया कि उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में गहराई पर उच्च घनत्व की एक पेटी है, जिसका विस्तार करांची से प्रारम्भ होकर जबलपुर होते हुए उड़ीसा तक है। इसे बुराई की छिपी श्रेणी कहते हैं। इस पेटी के समान्तर दक्षिण में बेलगांव और नेल्लोर से होती हुई एक निम्न घनत्व की भी पेटी पाई जाती है, इसे बुरार्ड का छिप गर्त कहते है।
बुरार्ड का छिपी श्रेणी यह स्पष्ट करती है कि इस पेटी में उच्च घनत्व के चट्टानी पदार्थ कुछ इस एकत्रित हो गए हैं कि यहाँ कटक का निर्माण हो गया है. जबकि छिपा गर्त यह स्पष्ट करता है कि इस बेटी में उच्च घनत्व वाले चट्टानों ने गर्त का निर्माण किया है, जहाँ अब निम्न घनत्व वाले चट्टान छिपा आ गये है। छिपी श्रेणी के उत्तर और दक्षिण में कम घनत्व वाले क्षेत्र पाये जाते हैं। इस सन्दर्भ में यह जानकारी बहुत रोचक है कि श्रेणी और गर्त की ये रेखायें हिमालय के लगभग समान्तर हैं और दोनों के बीच 8 से 8) अक्षांसीय अन्तर पाया जाता है। अगर यह मान लिया जाय कि हिमालय की उत्पत्ति उत्तरी अथवा उत्तरी-पूर्वी प्रवाह के कारण हुई है, तो यह कहा जा सकता है कि ये श्रेणी और गत भी इसी से उपजे होंगे।
श्रेणी और गर्त की हिमालय पर्वत से समान्तरता यह स्पष्ट करती है कि ये सब हिमालय पर्वत निर्माण से सम्बन्धित है। जैसा कि अभी हम कह चके हैं. यदि इनका सम्बन्ध भारतीय प्लेट के उत्तरी दिशा में प्रवाहित होने से है, तो इससे यह भी अर्थ निकाला जा सकता है कि प्रवाह के समय उपजी श्रेणी और गर्त अभ सभा तक पूरी तरह शांत नहीं हो पाई है और इसीलिए कई स्थानों पर सीस-रेखा में झुकाव आ जाता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घउत्तरीय प्रश्न
1. भूसंचलन का अर्थ बताकर उसकी परिभाषाएं और सैद्धांतिक रूप से विकास को स्पष्ट कीजिए।
2. भारत में भूसंचलन के संतुलन का विस्तृत वर्णन कीजिए।
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. भूसंचलन के सैद्धांतिक विकास को संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिए।
2. भूसंचलन से संबंधित प्राट की धारणा को स्पष्ट कीजिए।
3. भूसंचलन से संबंधित जार्ज एअरी की धारणा को स्पष्ट कीजिए।
4. भूसंचलन से संबंधित आर्थर होम्स की धारणा को स्पष्ट कीजिए।
5. भारत में भूसंचलन की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. भूसंतुलन शब्द का सर्वप्रथम उपयोग…
(अ) 1889 (ठ) 1901 (स) 1912 (द) 1924
2. भूसंतुलन को सैद्धांतिक स्वरूप सर्वप्रथम कहां मिला…
(अ) अमेरिका (ब) भारत (स) जापान (द) फ्रांस
3. भूसंतुलन पर जोली ने अपना मत कब रखा…
(अ) 1920 (ब) 1921 (स) 1925 (द) 1930
4. 1855 में किसकी अध्यक्षता में भारत का सर्वेक्षण त्रिभूमीकरण विधि से हुआ।
(अ) माल्थस (ब) जार्ज एवरेस्ट (स) ऐरी (द) जार्ज मिंग
उत्तरः 1.(अ), 2. (ब), 3. (य), 4. (ब)