हिंदी माध्यम नोट्स
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) : संवृद्धि का एक पैमाना क्या है | सकल घरेलू उत्पाद/राष्ट्रीय लेखा संशोधित श्रृंखला
सकल घरेलू उत्पाद/राष्ट्रीय लेखा संशोधित श्रृंखला ?
सकल घरेलू उत्पाद (GDP)ः संवृद्धि का एक पैमाना
भारत, अमेरिका और ज्यादातर दूसरे देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं में संवृद्धि मापने के लिए सकल घरेलू उत्पाद को मान्यता दी है। यहां पर हमारा ध्यान इस अध्याय के प्रारंभ में दिये हुए उत्पाद के अंतर्गत ‘‘वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य की अवधारणा‘‘ की ओर जाना चाहिए।
यह मौद्रिक मूल्य दो परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है- कारकों का मूल्य (यह उत्पादन के कारकों की आय भी है) और बाज़ार-भाव। उदाहरणस्वरूप मोटर-कार का मूल्य जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है। इसका और स्पष्टीकरण इस प्रकार किया जा सकता है कि बाजार-भाव वह मूल्य है जो वस्तुओं और सेवाओं के लिए बाजार में अदा किया जाता है।
अब हम कारक के मूल्य और बाजार-भाव के बीच अंतर की चर्चा करेंगे।
यह सर्वविदित है कि सरकारें उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं पर बाजार में पहुंचने से पहले टैक्स लगाती हैं (और रियायत भी देती है)। भारत में वस्तुओं के उत्पादन पर ‘उत्पाद-शुल्क‘ (Excise duty) और सेवाओं पर श्सेवा-करश् देना पड़ता है (इस पर आगे के अध्याय में सरकारी वित्त के अंतर्गत चर्चा की जायेगी)। अब,
कारक मूल्य + अप्रत्यक्ष कर – रियायतें = बाजार मल्य
अथवा
कारक मूल्य + शुद्ध कर (रियायतें कर से ज्यादा या उसके बराबर नहीं हो सकतीं) = बाजार भाव।
अब प्रश्न यह उठता है कि मौद्रिक मूल्य में कारकों का मूल्य अथवा बाजार भाव शामिल किया जाना चाहिए या नहीं।
अर्थव्यवस्था में बाजार भाव पर मापे गये उत्पाद पर मापे गये उत्पाद को कर वृद्धि द्वारा बढ़ाया जा सकता है, परंतु इसका आशय यह नहीं होगा कि इससे अर्थव्यवस्था में ज्यादा उत्पादन हुआ है व सेवाओं में भी वृद्धि हुई है। अर्थव्यवस्था के उत्पाद का मापन बाजार-भाव और कारक-मूल्य दोनों के आधार पर होता है. परंतु वृद्धि के निर्धारण के लिए कारक मूल्य पर आधारित उत्पाद को ध्यान में रखना होता है। अर्थात् अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के उत्पादन और प्रदत्त सेवाओं के बढ़े मूल्य की रिकार्डिंग, कारक-मूल्यों पर आधारित है, न कि बाजार भाव पर।
बाजार-भाव एवं कारक-मूल्यों पर आधारित उत्पाद निर्धारण के बीच का अंतर अर्थव्यवस्था में कर-भार के रूप में सामने आता है। यह अन्य देशों के साथ तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
क्या उत्पाद, बाजार-भाव एवं कारक- मूल्यों के आधार पर एक हो सकते हैं? इसका उत्तर है – टैक्स, सरकार द्वारा दी जा रही रियायतों के बराबर हो या आदर्शवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत टैक्स और रियासतें शून्य के बराबर हो। यह विचारधारा व्यवहार-योग्य न होकर, ज्यादातर शैक्षणिक संदर्भाे तक ही सीमित है।
जैसे ही हम बाजार-भाव या कारक-मूल्य आधारित मौद्रिक मूल्य की बात करते हैं, तब मुद्रा-स्फीति की अवधारणा महत्त्वपूर्ण हो जाती है। सामान्य शब्दों में मुद्रास्फीति का आशय बढ़ी हुई कीमतों से है जब वस्तओं की कीमतें सामान्य से कहीं अधिक होने लगती हैं। माना जाय कि मुद्रास्फीति की दर 10 प्रतिशत है. इसका अर्थ है कि वस्तुओं की कीमतें 10 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं, अर्थात् कारक-मूल्य भी बढ जायेगा जिससे उत्पाद में वृद्धि समझी जाने लगेगी, परंतु वास्तव में न ही वस्तुओं का उत्पादन बढा है और न ही प्रदत्त-सेवाओं में कोई बढ़ोतरी हुई है। इसी कारण कारक-मूल्यों पर आधारित उत्पाद का मापन नियमित या अनुकूल करना पड़ेगा ताकि अर्थव्यवस्था में वस्तुओं का उत्पादन और प्रदत्त सेवाओं का सही आकलन हो सके। यह नियमित या अनुकूल की एक सांख्यिकीय प्रक्रिया है जिसमें सकल-घरेलू-उत्पाद को अवस्फीति (defiate) करके कारक-मूल्य आधारित उत्पाद को ‘स्थिर मूल्य‘ (Constant Price) के संदर्भ में देखा जाता है।
स्थिर-मूल्य आधारित उत्पाद का आशय उस उत्पाद से है, जिसे मुद्रास्फीति को अनुकूलन करके प्राप्त किया गया है। इसका और स्पष्टीकरण इस उदाहरण से दिया जा सकता है, मान लीजिए कि मुद्रास्फीति को अनुकूल नहीं किया गया है और एक वर्ष में उत्पाद वृद्धि 9ः रिकार्ड कि गयी है, उसी प्रकार मुद्रास्फीति भी है। अर्थात् जमीन पर उत्पाद में कोई वृद्धि नहीं हुई है, परंतु उनकी कीमतें बढ़ गयी हैं। मुद्रास्फीति को अनुकूल किये बिना, उत्पाद में वृद्धि का कोई महत्त्व नहीं है और वास्तव में यह भ्रमित करने वाला है।
मुद्रास्फीति के इस अनुकूल करने (adjustment) को ‘वास्तविक‘ (Real) भी कहा जाता है, अन्यथा यह ‘नाम-मात्र‘ (Nominal) का होता है और अधिकांशतः सामान्य प्रवृत्ति की श्रेणी में आता है। वास्तविक वृद्धि को मुद्रास्फीति के विरुद्ध अनुकूल किया जाता है जबकि ‘नाम-मात्र‘ की वृद्धि में मुद्रास्फीति-अनुकूल को नकार दिया जाता है। परिभाषाओं के अनुसार वृद्धि ‘वास्तविक‘ (Real) होनी चाहिए।
इसी प्रकार ब्याज-दर, आय, मजदूरी आदि ‘नाम-मात्र‘ या ‘वास्तविक‘ हो सकती है, परंतु वृद्धि का नाम-मात्र या वास्तविक होने जैसी कोई विचारधारा नहीं है। परिभाषा के अनुसार वास्तविक वृद्धि को मुद्रास्फीति के विरुद्ध अनुकूल करना ही पड़ेगा। वृद्धि शब्द के अर्थ में यह अंतर्निहित है।
भारतीय संदर्भ में वृद्धि का आशय सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी, स्थिर मूल्य पर आधारित कर मूल्य से है।
भारत में यह पूरी संगणना (Computation) की जिम्मेदारी केंद्रीय सांख्यिकीय संस्थान (CSO) भारत सरकार की है। इस संस्था द्वारा वृद्धि का त्रैमासिक आकलन हर तिमाही के अंत में अर्थात मार्च, जून, सितंबर और दिसंबर महीनों में किया जाता है। वार्षिक वृद्धि का अनुमान प्रतिवर्ष अप्रैल से मार्च के महीनों में प्रकाशित किया जाता है, जिसे सामान्यतः वित्तीय-वर्ष कहते हैं (कलेंडर वर्ष जनवरी दिसंबर माह तक होता है)। भारत में सभी वित्तीय गणनाएं, सरकारी और उद्योग-जगत की, वित्तीय वर्ष पर आधारित होती हैं।
इस अध्याय में हमने अभी तक छात्रों के ‘राष्ट्रीय आय के कुल योग‘ (National Income Aggregate), जिसे ‘राष्ट्रीय आय गणना‘ (National Income Accounting) भी कहते हैं, की एक सामान्य झलक विशेषकर उन छात्रों को जिनका अर्थशास्त्र विषय नहीं रहा है, दिखलाई है।
यह राष्ट्रीय आय गणना की उत्पाद-विधि द्वारा संगणना करने की एक विधि है। इसके अतिरिक्त और भी विधियां हैं, जैसे ‘‘आय और व्यय विधि‘‘। यह उन छात्रों के लिए विशेष उपयोगी है जो अर्थशास्त्र में अपने लिए केरियर चुनना चाहते हैं। इस विषय पर और अधिक अध्ययन के लिए NCERT की कक्षा X और XII की पाठ्य-पुस्तकें पढ़ी जा सकती हैं।
सकल घरेलू उत्पाद/राष्ट्रीय लेखा संशोधित श्रृंखला (आधार वर्ष 2011-12)
(GDP/National Accounts Revised Series with 2011-12 as Base Year)
अर्थव्यवस्था में उत्पादन और माँग के ढांचे में परिवर्तन होते रहने के कारण, आर्थिक क्रिया-कलाप के ने में भी समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है। उत्पादन क्षेत्र में टेक्नोलोजी में परिवर्तन और अवस्था नयी पद्धतियों के समावेश से, उत्पादन के तौर-तरीकों में बदलाव होता रहता है जिसके कारण, मयान्तर पर उपभोग के तौर न तरीकों में भी बदलाव होता है। सापेक्ष कीमतों में बदलाव, उत्पादन और उपभोग के तरीकों में बदलाव प्रोत्साहित करते हैं। इस कारण, ढांचागत परिवर्तनों और मूल्य-स्थिति को तरोताजा रखने के लिए, कुछ समय पश्चात “आधार का पुनर्निर्धारण‘‘ (rebasing) आवश्यक हो जाता है। राष्ट्रीय लेखा के आधार के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया से, देश के आर्थिक ढांचे से जुड़ी नयी जानकारियाँ सामने आती हैं और यही बातें मूल्य निर्धारण के नये आधार-वर्ष के संदर्भ में भी कही जा सकती हैं। इससे अर्थव्यवस्था के आकार-निर्धारण में सहायता मिलती है, पक्षपात दोषों का शुद्धिकरण होता है और अर्थव्यवस्था के विभिन क्षेत्रों की सापेक्ष महत्ता को नये दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जारी राष्ट्रीय लेखा की नयी श्रृंखला के अंतर्गत राष्ट्रीय-लेखा सांख्यिकी का आधार वर्ष, 2004-05 से बदलकर वर्ष 2011-12 कर दिया गया है। 2004-05, आधार वर्ष का निर्धारण जनवरी, 2010 में किया गया था। आधार वर्ष में बदलाव के साथ-साथ प्रणाली संबंधी कई सुधार भी किये गये हैं।
राष्ट्रीय लेखा की नयी श्रृंखला, पुराने आधार में, सुधार लाकर, कार्पाेरेट क्षेत्र और सरकारी क्रिया-कलापों का व्यापक सर्वेक्षण करती है। इसके साथ ही राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण के माध्यम से एकत्रित आंकड़ों का भी इसमें समावेश करती हैं। नये आधार के मानकों में मूल्यांकन के तरीकों में बदलाव, आर्थिक गतिविधियों के लेखा-जोखा में सुधार और नये वर्गीकरण की अवधारणाओं की शुरुआत सम्मिलित हैं। मूलतः आधार में बदलाव, 2009-10 में होना था, परंतु विश्व वित्तीय-संकट के कारण इसे आगे के लिए टाल दिया गया।
पूर्व में, ‘‘कारक मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद‘‘ को सामान्यतः भारत में, सकल घरेलू उत्पाद के नाम से जाना जाता था। इससे आशय था दिये वर्ष में, अर्थव्यवस्था के कुल उत्पाद हेतु किया गया कारक मूल्यों का योग। अतः यह कुल मजदूरी, वेतन, ब्याज, मुनाफा इत्यादि का कुल योग था। “कारक-मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद‘‘ की अवधारणा की अभिव्यक्ति स्थिर मूल्य और चालू मूल्य, दोनों के संदर्भ में, वर्ष 2004-05 के आधार मूल्य पर की जाती थी। ज्यादातर संदर्भाे में, शामिल शैक्षाणिक कार्य, कारक-मूल्य आधारित, स्थिर मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद को ही ळक्च् या ‘सकल घरेलू उत्पाद‘ कहा और समझा जाता रहा है। साथ ही, शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अर्थात् उत्पादन कर-उत्पादन पर दी जा रहा छूट) को जोड़ कर, बाजार-मूल्य पर आधारित सकल घरेलू उत्पाद भी राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी में शामिल किये जाते थे।
परिवर्तित श्रृंखला में, अंतर्राष्ट्रीय प्रचलन के अनुरूप, उद्योगों के अनुसार अनुमानों (estimates) का प्रस्तुतीकरण ‘सकल मूल्य योगित‘ (Gross Value Added & GVA) (आधार मूल्य पर) के रूप में किया जाने लगा है, जबकि ‘‘सकल घरेलू उत्पाद-बाजार मूल्य पर‘‘, ळक्च् या ‘सकल घरेलू उत्पाद‘ कहा जायेगा। सकल मूल्य योगित (GVA), आधार-मूल्य पर निर्धारित, इसे सकल मूल्य योगित-उत्पादक मूल्य तथा बाजार-मूल्य आधारित सकल घरेलू उत्पाद को ‘‘उपभोक्ता-मूल्य आधारित सकल घरेलू उत्पाद‘‘ कहा जायेगा। कारक मूल्य आधारित ळट। का अनुमान (जिसे पूर्व में कारक मूल्य आधारित ळक्च् कहते थे) अब आधार-मूल्य (base price) और उत्पादन-कर (रियायतें छोड़ कर) के अनुसार किया जायेगा। इससे ळट। का आकार प्रभावित होगा जब उसकी तुलना कारक-मुल्य आधारित से ळक्च् से की जायेगी, जोकि विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग हो सकता है। उदाहरणस्वरूप, उत्पाद क्षेत्र में शुद्ध उत्पाद कर के सकारात्मक (च्वेपजपअम) होने पर, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में, सकता मूल्य योगित (GVA) ऊंचा प्राप्त होगा। आधार-मूल्य पर सकल मूल्य योगित की वृद्धि के नये आंकेड़े टैक्स और रियायतों का आभास भी देंगे जोकि कारक-मूल्य आधारित सकल घरेलू उत्पाद के संदर्भ में संभव नहीं था। यहाँ उत्पादन कर (Production Tax) का उत्पाद-कर (Production Tax) से भिन्न समझा गया है, अर्थात उत्पादन-कर के अंतर्गत भू-राजस्व, स्टैंप और पंजीकरण शुल्क, व्यवसाय का आदि को शामिल किया जाता है, जबकि उत्पाद-कर के अंतर्गत आबकारी टैक्स बिक्री कर, सेवा-कर, आयात-निर्यात शुल्क आदि शमिल हैं। इसी प्रकार का भेद उत्पादन और उत्पाद रियायतों (subsidiest) के संदर्भ में भी किया गया है। उत्पादन-रियायतों में शामिल हैं – रेल में दी जा रही रियायतें, किसानों की लागत में छुट, ग्राम और लघु उद्योगों को दी जाने वाली रियायतें, कोआपरेटिवस् और निगमों के दी जा रही प्रशासनिक रियायतें इत्यादि। जबकि उत्पाद रियायतों से आशय खाद्य, पेट्रोलियम उर्वरक पर रियायतें, किसानो के ऋण पर आज में छूट, बैंकों के माध्यम से घरेलू छूट, घरेलू सामानों के इंश्योरेंस की दरों में छूट इत्यादि।
बाजार-मूल्य आधारित सकल घरेलू उत्पाद, जिसे अब सकल घरेलू उत्पाद समझा जायेगा, कि गणना आधार-मूल्य निर्धारित सकल-मूल्य योगित (GVA) में शुद्ध उत्पाद-टैक्स और उत्पादन में दी जा रही रियायतों को जोड़ कर, प्राप्त किया जा सकता है।
ऽ आधार मूल्य निर्धारित सकल मूल्य योगित = कर्मचारी मुआवजा + परिचालन बचन + मिश्रित आय + अचल पूँजी उपभोग (CFC) + उत्पादन कर-उत्पादन पर दी जा रही रियायतें
ऽ कारक मूल्य आधारित सकल मूल्य योगित (जिसे पहले कारक मूल्य आधारित ळक्च् कहते थे) = आधार मूल्य निर्धारित सकल मूल्य योगित μ (उत्पादन कर-उत्पादन पर दी जा रही रियायते)
ऽ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = आधार मूल्य निर्धारित सकल मूल्य योगित + उत्पाद कर-उत्पाद रियायतें
उत्पादन/निर्माण क्षेत्र के संदर्भ में बहुतों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि जब उत्पादन कम हो रहा हो तब नयी श्रृंखला के अंतर्गत यह केसे कहा जा सकता है कि उत्पादन क्षेत्र में स्थिति इतनी खराब नहीं है? ऐसा इसलिए है कि यद्यपि उत्पाद-क्षेत्र का उत्पादन ठहर सा गया था अथवा कम हो रहा हैं, परंतु उसका योगित-मूल्य पूर्व से बेहतर था। सकल घरेलू उत्पाद, योगित मूल्य का मापन है न कि उत्पादन का। यह उत्पादन की स्थिरता के बावजूद, योगित मूल्य के ऊपर जाने के बारे में है।
पूर्व में उत्पादन-क्षेत्र के योगित-मूल्य का आंकड़ा, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किये गये त्रैमासिक औद्योगिक दृष्टिकोण सर्वेक्षण से प्राप्त किया जाता था, परंतु अब कंपनी मामलों के मंत्रालय (MCA) द्वारा कंपनी-अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत सभी कंपनियों के लिए ऑनलाइन आंकड़ों की रिपोर्टिंग को अनिवार्य कर दिया गया है। उत्पादन क्षेत्र के आंकड़ों के योगित-मूल्य के लिए MCA-21 डाटा-बेस का उपयोग किया गया है। MCA डाटा-बेस आज की तारीख में लगभग पाँच लाख कंपनियों के आकड़े जुटाता है और इसे काफी हद तक इस जगत के सही प्रतिनिधित्व का श्रेय दिया जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण, छोटे आकार के होते हैं और उन्हें क्षेत्रवार विश्लेषण के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता। इसके अतिरिक्त उत्पादन-क्षेत्र में योगित-मूल्य की उदयोगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) द्वारा प्रदत्त आंकड़ों को औद्योगिक-उत्पादन-सूचकांक (IIP) पर बहिर्वेशन (extrapolation) करके बीच की अवधि की गणना की जाती थी। इस व्यवस्था में खामी यह थी कि ASI और IIP सस्थान आधारित आता आंकडे थे, जबकि MCA डाटा-बेस, संस्थान आधारित योगित मल्य से कहीं आगे है और इसमें ब्रांड मूल्य, मार्केटिंग इत्यादि अतिरिक्त आंकड़े शामिल हैं, अर्थात इसमें वे सभी सहायक गतिविधिया शामिल की गयी है जोकि पूर्व में उत्पादन क्षेत्र के योगित मूल्य से बाहर हुआ करती थीं। साथ ही कार्पाेरेट क्षेत्र का उत्पादन-लेखा. उत्पादन क्षेत्र का लगभग 66-70ः हैं। इस प्रकार नयी श्रृंखला का आकडा-संकलन (Data collection), स्थानीय संस्थानों से संकलित डाटा भी शामिल करके अपने कार्य-क्षेत्र की व्याप्ति को 60% तक पहुंचा देता है।
‘मल्यवान‘ अनुभाग जिसमें मुख्यतः सोना और आभूषण आते हैं, पूँजी-निर्माण का महत्वपूर्ण अंश है. इसे पर्व में ‘उपयोग‘ के रूप में देखा जाता था। नयी श्रृखंला में ‘मूल्यवान‘ को घरेलू बचत से जोड़ा गया है, अतः उपयोग का स्तर कम हुआ है और बचत में वृद्धि हुई है। नये सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े. प्प्च्ए ॅच्प् और ब्च्प् श्रृंखला के आधार-वर्ष में परिवर्तन के साथ, भविष्य में बदलेंगे। ये सूचियाँ, सकल घरेलू उत्पाद के स्थिर और चालू-मूल्यों के आधार पर, गणना के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। इन सूचियों के आधार-वर्ष में परिवर्तन के कारण, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में परिवर्तन हो सकता है।
उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि-दर के बढ़ने का कारण, नया आधार ढांचागत एवं आंकड़ों के संकलन के तौर-तरीकों में बदलाव आना है। इनका विवरण निम्न है-
1. संस्थानोन्मुखी दृष्टिकोण से उद्यमोन्मुखी दृष्टिकोण में परिवर्तन- संस्थानोन्मुखी दृष्टिकोण के अंतर्गत उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण में, किसी इकाई के उत्पादन-क्रिया के अतिरिक्त और किसी क्रिया को सम्मिलित नहीं किया जाता था। जबकि एक उद्यम उत्पादन के अतिरिक्त अन्य सहायक या पूरक क्रियाओं में भी संलिप्त होता है अब, नये दृष्टिकोण के अनुसार किसी उत्पादन कंपनी की गतिविधियों में उत्पादन के अतिरिक्त अन्य गतिविधियों की भी गणना की जाती है। उद्यमोन्मुख दृष्टिकोण, MCA-21 डाटा (कंपनी मामलों का मंत्रालय) द्वारा सुविधापूर्ण बन चुका है। संभवतः इन परिवर्तनों से उत्पादन क्षेत्र की पंजीकृत इकाइयों का कवरेज बढ़ा है।
2. नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (NSSO) के सर्वेक्षणों को शामिल किया जाना- छैैव् के सर्वेक्षणों, जैसे अनइनकार्पाेरेटेड एंटरप्राइज सर्वे (2010-11) और रोजगार तथा बेरोजगारी सर्वेक्षण (2011-12) के आंकड़े अब उपलब्ध हैं, अतः उन्हें नयी श्रृंखला का हिस्सा बनाया जा चुका है। इनसे प्राप्त ताजा आंकड़ों के कारण असंगठित उत्पादन क्षेत्र के क्रिया-कलापों संबंधित आंकड़े पहले से बेहतर हुए हैं।
3. श्रम-सहयोग संबंधित तरीके में परिवर्तन-नयी श्रृंखला में “अनइनकार्पाेरेटेड मैन्युफैक्चरिंग एंड सर्विस इंटरप्राइज‘‘ के संदर्भ में ‘‘प्रभावी श्रम-सहयोग विधि‘‘- अपनायी गयी है। पुराने तरीके में सभी प्रकार के श्रमिकों को समान महत्त्व दिया गया था, जबकि नयी विधि के अंतर्गत विभिन्न श्रेणियों के श्रमिकों को उनकी उत्पादकता के आधार पर महत्त्व दिया गया है। उत्पादन कर (रियायत रहित) को शामिल किया जाना- उत्पादन कर और उत्पादन पर रियायतों का शुद्ध (Net), उत्पादन में सकारात्मक होता है, जबकि कृषि और अन्य सहायक क्षेत्र में, दूसरी बातों के साथ-साथ यह नकारात्मक होता है। अतः सकारात्मक शुद्ध उत्पादन कर, अपने क्षेत्र में ‘सकल मूल्य वर्धन‘ (GVA) का आकार, अन्य क्षेत्रों की सापेक्ष और संपूर्ण संदर्भ में, बड़ा कर देगा। इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार का परिवर्तन, चाहे वह नीतियों में ही क्यों न हो, यदि पूरे उत्पादन कर और रियायतों का स्वरूप बदलता है तब उस क्षेत्र के वृद्धि दर में यह परिलक्षित होने की संभावना रखता है।
अतः यह कहा जा सकता है कि नयी श्रृंखला के आंकड़ों में बड़ा बदलाव डाटाबेस को तरोताजा करने या उसकी विधि में बदलाव के कारण ही नही है, बल्कि आंकड़ों के स्रोत में बदलाव से भी है। नये सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों में भविष्य में बदलाव हो सकता है, यह इस पर निर्भर करेगा कि प्थ्च्ए ॅच्प् एवं ब्च्प् श्रेणी का आधार-वर्ष परिवर्तित होता है या नहीं। यह कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण सूचियाँ हैं जो चालू और स्थिर मूल्यों सकल घरेलू उत्पाद की गणना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इन चया के आधार वर्ष में परिवर्तन होने से ळक्च् की वृद्धि-दर में परिवर्तन हो सकता है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…