JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई | शिवलिंग कहां से आया स्थापना कैसे हुई रहस्य का आकार ऐसा क्यों है

shiva linga in hindi meaning and definition शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई | शिवलिंग कहां से आया स्थापना कैसे हुई रहस्य का आकार ऐसा क्यों है ?

वीरशैववाद की अनिवार्य विशेषताएँ (Essential Features of Veerashaivism)
हमने पहले जो कुछ कहा है, उसी पर पुनः जोर देते हुए कहा जा सकता है कि वीरशैववाद एक विरोध एवं सुधार का आन्दोलन था। इसने ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म के विश्वासों एवं प्रचलनों के विरुद्ध आवाज उठाई। यह हिन्दू समाज को उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों के शोषण, महिलाओं पर ढाए जाने वाले जुल्म आदि जैसी सामाजिक बुराइयों से मुक्ति दिलाना चाहता था। इसने एक ऐसे समाज की तस्वीर पेश की जिससे जीवन के हर क्षेत्र में सभी लोगों को बराबर का दर्जा प्राप्त हो।

वीरशैववाद की आवश्यक विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
प) अनेक देवी-देवाओं की पूजा को अस्वीकार करना
पप) कर्मकाण्डों का विरोध करना
पपप) प्रदूषण प्रतिरोधी विचारधारा
पअ) कायका
आइये, हम इन लक्षणों की व्याख्या करें।

 लिंग की पूजा (Worship of the Linga)
वीरशैववाद मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी देवताओं की पूजा का समर्थन नहीं करता । यह केवल एक ही देवता अर्थात भगवान शिव की पूजा पर बल देता है। लिंग की अवस्था में शिव ही सर्वोच्च सत्ता थी, जिसकी पूजा की जाती थी। वीरशैववाद बनने वाले प्रत्येक पुरुष एवं स्त्री को लिंगायत बनना अथवा लिंग को धारण करना होता था। उसे अपने शरीर पर लिंग को पहनना होता था और प्रत्येक दिन उसकी पूजा करनी होती थी। इस तरह वीरशैववाद का सबसे प्रमुख लक्षण निजी लिंगम अथा इष्टलिंगम को धारण करना था, इस विश्वास को मानने वाले सदस्यों को शरीर पर भगवान शंकर का प्रतीकात्मक चिह्न धारण करना होता था। यह सभी आयु के पुरुषों व महिलाओं पर लागू होता था, चाहे उनकी सामाजिक हैसियत कुछ भी हो।

भगवान शिव का नमन करने का सबसे महत्वपूर्ण एवं सरल रूप ‘‘नमः शिवायः‘‘ का उच्चारण करना था। इष्टलिंगम अथवा निजी लिंगम वीरशैववाद के जीवन का अभिन्न अंग था और भक्त के पास उसकी मृत्यु तक रहता था। महिलाओं के लिये, यह उनका आध्यात्मिक पति था तथा पुरुषों के लिये वह उनकी अध्यात्मिक पत्नी था। लिंग सभी चीजों का स्रोत तथा ध्येय था। लिंग ने सभी वांछित वस्तुओं को मंजूरी देने तथा अवांछित वस्तुओं को लागू करने में मदद की।

इष्टलिंग पर इस बल को समुदाय के भीतर सदस्यों की बराबर के एक प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है। चूंकि पुरुष व स्त्री, जवान व बूढ़े सभी के लिये एक निजी लिंगम को धारण करना अनिवार्य था । अतः लिंग तथा आयु वर्गों की समानता का बोध भी मौजूद था। इष्टलिंग को धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति, चाहे पेशे से वह किसी समुदाय का हो, समानता का दर्जा रखता था। वीरशैववादी समुदाय में व्यक्ति तथा सभी के लिए लिंग ही अंतिम सत्य था।

उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने के बाद आपः
ऽ 12वीं शताब्दी (ई.) के वीरशैवाओं के सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कर सकेंगे,
ऽ वीरशैववाद की सामाजिक-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या कर सकेंगे,
ऽ वीरशैववाद के बुनियादी लक्षणों को सूचीबद्ध व व्यक्त कर सकेंगे, और
ऽ वीरशैवववाद के भीतर के विचलनों तथा समकालीन घटना-विकासों को इंगित कर सकेंगे।

प्रस्तावना
पिछली इकाई में आपने सूफी तथा भक्ति आंदोलनों के बारे में जानकारी प्राप्त की थी। इस इकाई में हम वीरशैववाओं के सामाजिक आंदोलनों की व्याख्या करने जा रहे हैं। अनभाग (25.2) में इस विषय की शुरुआत इस बात की सामान्य व्याख्या के साथ करेंगे कि यह आंदोलन कुल मिलाकर है क्या? इसके बाद अनुभाग (25.3) में वीरशैववाद की सामाजिकऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं की खोज की है। अगले अनुभाग (25.4) में हम वीरशैववाद के आवश्यक लक्षणों को गिनाते हुए उनकी व्याख्या प्रस्तुत करेंगे। आंदोलन के संगठनात्मक ढाँचे के बारे में अनुभाग (25.5) में व्याख्या की जाएगी। इसके पश्चात आंदोलन के भीतर हुए घटना विकास का एक संक्षिप्त अवलोकन किया जाएगा तथा वीरशैववाद की समकालीन स्थिति पर एक टिप्पणी की जाएगी।

सारांश
इस इकाई में हमने वीरशैववाद के सामाजिक, आर्थिक आन्दोलन पर चर्चा की, जिसका उदय मध्यकालीन में कर्नाटक में हुआ था। हमने शुरू में इसे ष्कहाँ, क्या तथा कौनष् की दृष्टि से परिभाषित किया, साथ ही आन्दोलन के घटकों को परिभाषित किया, फिर हमने उत्पति सामाजिक स्थितियों तथा उत्पति से जुड़े कारकों की दृष्टि से, आन्दोलन की सामाजिक, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या की। हमने उन समानताओं को भी इंगित किया, जो कि वीरशैववाद तथा भक्ति आन्दोलन के बीच मौजूद थीं। हमारी चर्चा का बड़ा हिस्सा, उसके बाद वीरशैववाद के आवश्यक लक्षणों या विशेषताओं की तरफ मुड़ गया। इसके पश्चात इसके सांगठनिक ढाँचे की व्याख्या प्रस्तुत की गई। हमने उत्तरवर्ती घटना विकासों को जो कि वीरशैववाद की उत्पति से लेकर इसको समकालीन स्थिति तक हुए रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए इकाई का समापन किया।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now