विद्युत धारा की खोज किसने की थी , सर्वप्रथम कब और किसने की electric current discovered by in hindi

electric current discovered by in hindi विद्युत धारा की खोज किसने की थी , सर्वप्रथम कब और किसने की ?

उत्तर : विद्युत धारा की खोज का श्रेय महान वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलीन को दिया जाता है |

अध्याय  प्रत्यावर्ती धारा एवं इसकी आवृत्ति
(Alternating Current & It’s Frequency)

 विद्युत धारा (Electric Current)
विद्युत परिपथ में आवेश के प्रवाह की दर को धारा कहते हैं। .
अर्थात धारा I = dq/dt
विद्युत धारा मुख्यतः दो प्रकार की होती है- (i) दिष्ट धारा (D.C.) (ii) प्रत्यावर्ती धारा (A.C.)
(i) दिष्ट धारा (Direct Current): धारा जिसका परिमाण एवं परिपथ में प्रवाहित होने की दिशा समय के साथ परिवर्तित नहीं हो दिष्ट धारा कहलाती है। सेल, बैटरी, एलिमिनेटर एवं दिष्ट धारा जनित्र, दिष्ट धारा स्रोत हैं।
परिपथ में दिष्ट धारा स्रोत को ़- संकेत द्वारा व्यक्त करते हैं। दिष्ट धारा की आवृत्ति f = 0 होती है।
यदि परिपथ में प्रवाहित धारा की दिशा अपरिवर्ती हो परंतु धारा का परिमाण परिवर्ती हो तो इसे असमान मान की दिष्ट धारा कहते हैं। असमान मान की दिष्ट धारा के लिए आवृत्ति शून्य नहीं होती।
(ii) प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current): वह धारा जिसका परिमाण एवं दिशा समय के साथ आवर्ती रूप से परिवर्तित हो प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है। प्रत्यावर्ती धारा जनित्र, प्रत्यावर्ती धारा स्रोत है। परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा स्रोत को संकेत – द्वारा व्यक्त करते हैं। प्रत्यावर्ती धारा की एक निश्चित आवृत्ति होती है।

 प्रत्यावर्ती धारा उत्पादन (Production of AC.)
प्रत्यावर्ती धारा का उत्पादन प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (डायनेमो) द्वारा किया जाता है जिसमें एक आयताकार तांबे के तार की कुण्डली को शॉफ्ट की मदद से चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न होती है। यह प्रत्यावर्ती धारा, ज्यावक्रीय प्रत्यावर्ती धारा होती है जिसे निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है
प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल E  = E0 sin ωt
तथा प्रत्यावर्ती धारा I  = I0 sin ωt
जहां E0  = प्रत्यावर्ती वि. वाहक बल का शिखर मान तथा
I0 = प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान
ω = कोणीय आवृत्ति
द्वितीयक कुण्डली का प्रेरित विद्युत वाहक बल ES / प्राथमिक कुण्डली पर आरोपित प्रत्यावर्ती वोल्टता Ep =
-(द्वितीय क कुण्डली के कुल चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर) / -(प्राथमिक कण्डली के कुल चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर)
या ES/ Ep = -Np (dφ/dt) p / -NS (dφ/dt) s
या ES/ Ep = NS/ Np
जहाँ NP व NS क्रमशः प्राथमिक एवं द्वितीयक कुण्डली के फेरों की संख्या है तथा फ्लक्स क्षरण को शून्य
अर्थात् (dφ/dt) p = (dφ/dt) s माना गया है।)
यदि ऊर्जा हानि को नगण्य माना जाए तो
प्राथमिक कुण्डली में शक्ति = द्वितीयक कुण्डली की शक्ति ।
EPIP = ESIS
⇒ ES /Ep = Ip / IS
⇒ ES /Ep = Ip / IS = NS / Np
ट्रांसफॉर्मर दो प्रकार के होते हैं-(i) उच्चायी (step up) ट्रांसफॉर्मर (ii) अपचायी (step down) ट्रांसफॉर्मर
(i) उच्चायी ट्रांसफॉर्मर: यह निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टता को उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता में परिवर्तित करता है अर्थात
ES > Ep vr: NS > NP
अर्थात् इस ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली से अधिक होती है।
(ii) अपचायी ट्रांसफॉर्मर: यह उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता से निम्न प्रत्यावर्ती वोल्टता में परिवर्तित करता है। अर्थात् ES < Ep अत:  NS < NP
अतः इसमें द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या, प्राथमिक कुण्डली से अधिक होती है।
ट्रांसफॉर्मर की दक्षता: वास्तविक रूप से कोई भी ट्रांसफॉर्मर प्राथमिक कुण्डली की सम्पूर्ण शक्ति द्वितीयक कुण्डली को स्थानान्तरित नहीं करता। एक ट्रांसफॉर्मर जितनी मात्रा में प्राथमिक कुण्डली से द्वितीयक कुण्डली को शक्ति स्थानान्तरित करता है, इसे ट्रांसफॉर्मर की दक्षता कहते हैं।

अर्थात् ट्रांसफॉर्मर की दक्षता η = द्वितीय कुण्डली में शक्ति/प्राथमिक कुण्डली में शक्ति × 100%

 विद्युत चुम्बक (Electromagnet)
यह नमे लोहे के बेलनाकार क्रोड पर मोटे विद्यतरुद्ध तांबे के तार को कुण्डलीनुमा लपेटकर बनाई हई युक्ति है। जब प्रत्यावती धारा इस कुण्डली में होकर प्रवाहित होती है तब यह क्रोड को प्रत्यावर्ती धारा के एक चक्र में दो बार चुम्बकित-विचुम्बकित करती है।
इस प्रकार क्रोड के चुम्बकन-विचुम्बन की आवृत्ति, प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति की दो गुनी होती है।

स्वरमापी (Sonometer)
यह तनी डोरी के अनुप्रस्थ कम्पनों का अध्ययन करने का प्रायोगिक उपकरण है जिसका विस्तार से वर्णन SP की प्रायोगिक भौतिकी पृष्ठ संख्या B-41 पर किया गया है।
स्वरमापी के तार की कम्पन आवृत्ति n = 1/2l √(T/M)
जहां l = तार की प्रभावी लम्बाई (सेतुओं के मध्य की दूरी)
T  = तार में तनाव (T = Mg, तार पर लटकाया गया भार)
m = तार की इकाई लम्बाई का द्रव्यमान
तथा किसी बाह्य प्रेरक (चालक) के साथ अनुनादी अवस्था में
प्रेरक की आवृत्ति = स्वरमापी तार की कम्पन आवृत्ति।