वर्तनी किसे कहते हैं | वर्तनी का अर्थ क्या है , उदाहरण , शुद्ध , अशुद्ध शब्द गलती सुधार कीजिये , spelling meaning in hindi

spelling meaning in hindi वर्तनी किसे कहते हैं | वर्तनी का अर्थ क्या है , उदाहरण , शुद्ध , अशुद्ध शब्द गलती सुधार कीजिये | नियम |

वर्तनी की परिभाषा :-

वर्तनी का दूसरा नाम वर्ण-विन्यास है । सार्थक ध्वनियों का समूह ही शब्द कहलाता है । शब्द में प्रयुक्त ध्वनियों को जिस क्रम से उच्चरित किया जाता है, लिखने में भी उसी क्रम से विन्यस्त करने का नाम वर्तनी या वर्ण-विन्यास है । तात्पर्य यह है कि वर्तनी के अन्तर्गत शब्दग ध्वनियों को जिस क्रम से और जिस रूप में उच्चारित किया जाता है उसी क्रम से और उसी रूप में उन्हें लिखा भी जाता है। अतः शुद्ध वर्तनी के लिए पहली शर्त है शुद्ध उच्चारण करना । जैसे-्-यदि हम ‘अक्षर‘ का उच्चारण ‘अच्छर‘ करेंगे तो ‘अक्षर‘ की वर्तनी शुद्ध नहीं लिख सकते।

शुद्ध वर्तनी के लिए निम्नांकित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए-

(1) हिन्दी में कुछ वर्ण ऐसे हैं, जिनके दो रूप प्रचलित हैं, जिससे वर्तनी की एकरूपता में कमी आती है। ये वर्ण हैं-अ-अ, क्ष-ज्ञ, ख- ष, ण-ण, ल-ल । इन वर्गों में दोनों रूप प्रचलित नहीं हैं । वस्तुतः इनमें अ, क्ष, ख, ण, ल ही अधिक प्रचलित हैं । अतः इन्हें ही मानिक मानकर इनका प्रयोग करना चाहिए ।

(2) जो शब्द संस्कृत से लिये गए हैं उनकी वर्तनी भी वही होनी चाहिए जो संस्कृत में मान्य है । आज हिन्दी ऋ और ष का उच्चारण रि और श की तरह होता है । लेकिन वर्तनी में ऋ और ष ही रखा जायगा । वस्तुतः ऐसे शब्दों को स्मरण रखना चाहिए-ऋतु, ऋषि, ऋत, वृष्टि, सृष्टि, दृष्टि, पृष्ठ, कृष्ण, उत्कृष्ट, कृषि, तृषा, ऋग्वेद, ऋचा ।

(3) हिन्दी शब्दों का अन्तिम ‘अ‘ उच्चरित नहीं होता, लेकिन लिखने में ऐसे शब्दों को हलन्त नहीं किया जाता । संस्कृत में ऐसा सम्भव नहीं है । संस्कृत में यदि कोई शब्द स्वरांत है तो उसका उच्चारण किया जाता है और यदि वह व्यञ्जनांत है, तो उसे हलन्त लिखा जाता है । इसी प्रकार संस्कृत के जो शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं, यदि वे हलन्त हैं तो उन्हें हलन्त लिखना जरूरी है। ऐसा न करने से नाना प्रकार की अशुद्धियाँ हो सकती हैं । कुछ हलन्त शब्द स्मरणीय हैं.-महान, श्रीमान्, आयुष्मान, विद्यावान्, श्रद्धावान्, विद्वान्, जगत, विधिवत्, पूर्ववत्, वृहत, मनस्, पृथक् आदि ।

(4) संस्कृत में आ और ई स्वर का संयोग नहीं होता । तात्पर्य यह है कि संस्कृत के किसी शब्द के अन्त में आई नहीं होता है। स्पष्ट है कि जो शब्द संस्कृत से लिये गये हैं उनके अन्त में – आई नहीं लगेगा । जैसे-्अनुयाई, स्थाई आदि । इस प्रकार के शब्दों के शुद्ध रूप नीचे दिये जा रहे हैं-

स्थायी, अनुयायी, उत्तरदायी । इनमें यदि त्व प्रत्यय लगेगा तो रूप होगा स्थायित्व, उत्तरदायित्व ।

(5) हिन्दी के देशज और तद्भव शब्दों के अन्त में लगने वाला ‘आई‘ प्रत्यय शुद्ध है । जैसे-् भलाई, चढ$ाई, ऊँचाई, लम्बाई, चैड$ाई, लड$ाई आदि ।

(6) संस्कृत के इन शब्दों में विसर्ग लगाए जाते हैं । जैसे-अतः, पुनः, मनःस्थिति, दुःख, अन्तःस्थ, अधःपतन, छन्दःशास्त्र आदि ।

(7) सप्तम्, नवम्, प्रणाम् आदि शब्दों में अन्तिम ‘म‘ हलन्त नहीं है । अतः इनके शुद्ध रूप हैं- सप्तम, नवम, प्रणाम ।

(8) महत्व, तत्व, सत्व अशुद्ध शब्द हैं । ये यौगिक शब्द इस प्रकार बने हैं-

तत् $ त्व = तत्व

सत् $ त्व = सत्त्व

महत् $ त्व = महत्व

अतः इन शब्दों के शुद्ध रूप हैं -महत्व, तत्व, सन्व । इसी प्रकार महत्ता, महत्तम, सत्ता शुद्ध रूप हैं, लेकिन महत्तम के सादृश्य पर लघुत्तम अशुद्ध है। इसका शुद्ध रूप है- लघु $ तम = लघुतम ।

(9) संस्कृत में ये दोनों रूप हैं-कर्ता -कर्ता, कार्य-कार्य, कर्तव्य – कर्तव्य, वर्धमान-वर्द्धमान। लेकिन हिन्दी में प्रायः पहले रूप का ही प्रयोग होता है।

(10) जिन संस्कृत के शब्दों में ङ, ञ्, ण्, न्, म्, का संयोग हो उनके स्थान पर हिन्दी में प्रायः अनुस्वार ( ं ) का प्रयोग किया जा सकता है। यों संस्कृत में य, र, ल, व, श, ष, स, ह से पहले अनुस्वार ( ं ) का ही प्रयोग हो सकता है, पंचमाक्षर का नहीं । जैसे-संलग्न, संवत्, संवाद, अंश, संरक्षक, संयम, संयत, संयुक्त, संशय, संस्कृति, हंस, संसार, संस्था आदि ।

(11) अपने-अपने वर्ण के वर्गों के साथ ही पंचमाक्षरों का प्रयोग होता है । जैसे- क, ख, ग, घ से पहले इ, च, छ, ज, झ से पहले ज, ट–ड-ढ से पहले ण, त-थ-द-ध से पहले न तथा प-फ-ब-भ से पहले म जुड$ सकता है, लेकिन हिन्दी को सरल बनाने के लिए पंचमाक्षरों के स्थान पर अनुस्वार ( ं ) का प्रयोग होता है। यों सर्वत्र ऐसा करना सम्भव नहीं है । हिन्दी में जो पंचमाक्षर न, म, य, व से पहले न आए हों वे अनुस्वार के रूप में लिखे जा सकते हैं। लेकिन यदि पंचमाक्षर न, म, य, व से पहले आते हैं तो वे अनुस्वार के रूप में नहीं बदलेंगे । जैसे-अन्य, जन्म, अत्र, पुण्य, सन्मार्ग, कण्व को अंय, जंम, अंन, पुंय, संमार्ग, कंव नहीं लिखा जा सकता । ऐसे ही अन्य शब्द हैं जिनके पंचमाक्षर अनुस्वार में नहीं बदल सकते जैसे-धान्य, अरण्य, अम्ल, दिङ्मण्डल, काम्य, हिरण्य, वाङ्मय, दिङ्नाग।

कुछ ऐसे शब्द हैं जिनमें पंचमाक्षर का अनुस्वार होता है और नहीं भी होता है । जैसे- पंडित-पण्डित, अंत-अन्त, दंत-दन्त, गंभीर-गम्भीर, हिंदी-हिन्दी, संबंध-सम्बन्ध, संपादक-सम्पादक, कंप-कम्प, संत-सन्त, सुंदर-सुन्दर, अंग-अङ्ग, बंधन-बन्धन ।

(12) अनुस्वार ( ं ) का इस्व रूप अर्द्ध अनुस्वार अथवा अनुनासिक (  ँ ) है । हिन्दी में ये दो ध्वनियाँ हैं। अतः इनके प्रयोग से शब्द के उच्चारण और अर्थ दोनों में अन्तर आ सकता है । कुछ उदाहरण देखे जा सकते हैं- अंगना = स्त्री, अँगना = आँगन, हँसी – हँसने की क्रिया, हंसी = हंस का स्त्रीलिंग । स्पष्ट है कि इनके प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए । एक बात और है-जिन शब्दों में शिरोरेखा के ऊपर कोई त्रा नहीं लगी हैं उनमें चन्द्रबिन्दु लगाना सरल है, जैसे-मुँह, गाँव । लेकिन जिन शब्दों में शिरोरेखा के ऊपर कोई मात्रा लगी है उसमें चन्द्रबिन्दु लगाना श्रमसाध्य लगता है । अतः मुद्रण की सुविधा एवं लिखने में सरलता के लिए ऐसे शब्दों में चन्द्रबिन्दु के स्थान पर अनुस्वार ( ं ) का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे-्मैं, हैं, सिंचाई । यों इनके शुद्ध रूप हैं-मैं, हैं, सिँचाई । किन्तु सरलता के लिए श्मैंश् के स्थान पर ‘मैं‘ का प्रयोग हो रहा है।

(13) कारक चिह्नों (परसर्गों) को संज्ञा पदों से कटकर लिखना चाहिए तथा साथ ही उन्हें सर्वनाम पदों से सटाकर लिखना चाहिए । जैसे-मैं गाँव से आ रहा हूँ । उसने कहा ।

(14) अंग्रेजी के ठंससए ब्ंससए भ्ंससए क्वबजवतए थ्वतउए व्ििपबम आदि शब्दों को बाल, काल, हाल, डाक्टर, फार्म, आफिस रूप में लिखा एवं उच्चरित करना अशुद्ध है । वस्तुतः इनके शुद्ध उच्चारण के लिए इन शब्दों के ऊपर अर्द्धचन्द्र की आकृति बनानी चाहिए । जैसे—बॉल, कॉल, हॉल, डॉक्टर, फॉर्म, ऑफिस ।

(15) कुछ विदेशी ध्वनियाँ ऐसी हैं जिनके नीचे नुक्ता लगाना आवश्यक है । परन्तु इसके लिए अंग्रेजी, अरबी, फारसी भाषा की जानकारी आवश्यक है । जैसे–सागर में नुक्ता लगाने से अर्थ बदल जाता है । सागर = प्याला, सागर = समुद्र ।

(16) कभी-कभी शब्द के अज्ञान के कारण एक शब्द के अनुकरण पर दूसरा शब्द लिखा जाता है । जैसे- स्वर्ग के अनुकरण पर नर्क (शुद्धरूप नरक), निर्धन के अनुकरण पर निरोग (शुद्ध रूप नीरोग); वस्त्र, शस्त्र आदि के अनुकरण पर सहस्त्र, अजस्त्र (क्रमशः शुद्ध रूप-सहस्र, अजस्र), बालोपयोगी के सादृश्य पर स्त्रियोपयोगी (शुद्ध रूप-स्त्र्युपयोगी);

आर्द्र, दयार्द्र के अनुकरण पर सौहार्द्र (शुद्ध रूप सौहाद), महत्तम के सादृश्य पर लघुत्तम (शुद्ध रूप लघुतम), आम्र, नम्र के अनुकरण पर धूम्र (शुद्ध रूप धूम) । ध्यान देने की बात है कि एक शब्द के अनुकरण पर लिखा जाने वाला दूसरा शब्द प्रायः अशुद्ध होता है । जैसा ऊपर के उदाहरणों में हैं।

(17) अंग्रेजी के प्रभाव के कारण कुछ लोग अंग्रेजी के लहजे में हिन्दी शब्दों को भी बोलने लगते हैं । इससे हिन्दी शब्द अशुद्ध हो जाते हैं । जैसे-

अशुद्ध  शुद्ध

मिश्रा   – मिश्र

बाँबे    –  बम्बई, मुंबई

श्रीवास्तवा  –  श्रीवास्तव

टाटा        –  ताता

शुक्ला     –  शुक्ल

कैलकटा   –  .कलकत्ता

वर्तनी-विश्लेषण

वर्तनी-विश्लेषण से तात्पर्य है शब्दगत वर्गों को उनके स्वाभाविक क्रम में अलग-अलग करना। जैसे-मक्खन शब्द का वर्तनी-विश्लेषण इस प्रकार होगा- म् अ क् ख् अ न् अ ।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि हिन्दी पंचमाक्षरों (ङ्, ञ्, ण्, न्, म् ) का स्थान अनुस्वार ने ले रखा है । सरलीकरण के कारण हिन्दी में ऐसा किया जाता है । अतः जिन शब्दों पंचमाक्षर का स्थान अनुस्वार ने ले रखा हो वहाँ वर्तनी-विश्लेषण करते समय उक्त पंचमाक्षर को ही दिखाना चाहिए । उदाहरण के लिए पंचम शब्द द्रष्टव्य हैं- पंचम = पञ्चम = प् अ ञ् च अम् अ ।

कुछ अन्य उदाहरण- 

संचय = स् अ अ च् अ य् अ ।

बंधन = ब् अ न् ध अ न् अ ।

कंप = क् अ म् प् अ ।

वर्तनी विश्लेषण के और उदाहरण इस प्रकार हैं-

झन्झर = झ् अ ञ् अ अ र् अ ।

धर्म = ध् अ र् म् अ।

ज्ञान = ज्ञ् ञ् आ न् अ।

नक्षत्र = न् अ क् ष अ त् र् अ ।

श्रृंग = श् ऋ ङ् ग म् अ ।

हृदय = ह् ऋ द् आ यू अ ।

द्वार = द् व् आ र् अ।

पंक्ति = प् अ ड़् क् त् इ।

स्त्री = स् त् र् ई।

राष्ट्र = र् आ ष् ट् र् अ ।

ईर्ष्या = ई र् ष् ट् य् आ ।

ज्योत्स्ना = ज् य् ओ त् स् न् आ ।

संहिता = स् अ + ं ह् इ त् आ ।

संसार = स् अ + ं स् आ र् अ ।

सच्चा = स् अ च् च् आ ।

ब्रह्म = ब् र् अ ह् म् अ ।

हस्व = ह् र् अ स् व् अ ।

भक्त = भू अ क् त् अ ।

बुद्ध = ब् = उ द् ध् अ ।

कृतघ्न = क् ऋ त् अ धू न् अ ।

उच्छृखल = उ च् छ् ऋ ड़् ख् अ ल् अ ।