लाल और श्वेत पेशी तंतु में अंतर क्या है red muscle fibers and white muscle fibers differences in hindi लाल पेशी तंतु और श्वेत पेशी तंतु तंतु में विभेदन

red muscle fibers and white muscle fibers differences in hindi लाल और श्वेत पेशी तंतु में अंतर क्या है लाल पेशी तंतु और श्वेत पेशी तंतु तंतु में विभेदन  what is the difference between ?

लाल और श्वेत पेशी तंतु : पक्षी और मैमल्स अपनी कंकालीय पेशियों में दो प्रकार की रेखित पेशीय तंतु रखते है , लाल अथवा धीमे पेशी तंतु और श्वेत अथवा तीव्र पेशी तंतु |

सारणी : लाल पेशी तंतु और श्वेत पेशी तंतु तंतु में विभेदन –

लाल पेशी तन्तु श्वेत पेशी तंतु
1.       ये पतले होते हैं | ये मोटे होते हैं |
2.       ये पेशी तंतु गहरे लाल होते है जो कि लाल हीमोप्रोटीन की उपस्थिति के कारण होता है जिसे मायोग्लोबिन कहते है | ऑक्सीजन मायोग्लोबिन से जुड़ता है और लाल तंतुओं में ऑक्सीमायोग्लोबिन के रूप में संग्रहित होता है | ये पेशी तंतु रंग में हल्के होते हैं | इनमें मायोग्लोबिन नहीं होता |
3.       लाल पेशी तंतु में माइटोकोंड्रिया अधिक होते हैं | श्वेत पेशी तंतु में माइटोकोंड्रिया बहुत कम होते हैं |
4.       ये काफी अधिक वायवीय ऑक्सीकरण करते है |और पेशियों का वायवीय संकुचन लेक्टिक अम्ल के एकत्रित हुए बिना होता है | इस प्रकार लाल पेशी तंतु बिना थकावट के लम्बे समय तक संकुचित हो सकते है | ये मुख्यतः ऊर्जा उत्पादन के लिए अवायवीय ऑक्सीकरण पर निर्भर करती है और इसलिए अवायवीय कार्य के दौरान अधिक भाग में लेक्टिक एसिड एकत्रित होता है और शीघ्र ही थकान हो जाती है |
5.       इन पेशी तंतुओं में संकुचन की दर धीमी होती है | इन पेशी तंतुओं में संकुचन की तेज दर होती है |
6.       लाल पेशी तंतु धीमी दर पर लम्बे समय तक नियमित कार्य करते रहते हैं | श्वेत पेशी तंतु केवल छोटे समय के लिए बहुत तेज और भारी कार्य के लिए विशिष्ट होते हैं |
7.       मानव के शरीर के पीठ पर एक्सटेन्सर पेशियों में लाल पेशी तन्तु बहुत अधिक मात्रा में होते हैं | पक्षियों की कुछ उड़ान पेशियाँ भी लाल पेशी प्रकृति की होती है | नेत्र गोलक की गति की पेशियों के श्वेत पेशी तंतु युक्त होती है | उडन पेशियाँ जो छोटी तेज उड़ान जैसे गोरैया में होती है , सफ़ेद पेशियाँ युक्त होती है |
8.       सार्कोप्लाज्मिक रेटिकुलम मध्यम विकसित होती है | सार्कोप्लाज्मिक रेटिकुलम उच्च विकसित होती है |

 

आइसोटोनिक और आइसोमेट्रिक संकुचन : जब एक पेशी इसकी क्षमता से अधिक भार उठाती है तो यह कोई दृश्य संकुचन नहीं दर्शाती | यहाँ लम्बाई में कोई कमी नहीं होती इसलिए यहां कार्य भी लगभग शून्य किया जाता है | यह आइसोमेट्रिक संकुचन कहलाता है | आइसोमेट्रिक संकुचन के अध्ययन के लिए पेशी का एक सिरा स्थिर करते है और दूसरा सिरा एक strain gauge से जोड़ते है ताकि भारी वजन इस पर आरोपित किया जा सके | उत्प्रेरण पर पेशी की सम्पूर्ण लम्बाई अपरिवर्तित रहती है लेकिन इसमें तनाव उत्पन्न होता है |

यदि एक पेशी एक नियत भार को सहन कर सकती है जिसे यह आसानी से उठा सके तब संकुचन नियत बना रहता है | यह आइसोटोनिक संकुचन कहलाता है | आइसोटोनिक संकुचन के अध्ययन के लिए पेशी को एक भार से एक साधारण हत्थे से जोड़ा जाता है | जब पेशी को आइसोटोनिक रूप से संकुचित किया जाता है इसके तंतु छोटे हो जाते हैं | तनाव नियत रखते है | यह व्यवस्था कार्य की मात्रा के अध्ययन के लिए उपयोगी होती है जो एक पेशी भार पर निर्भर होकर कर सकती है |

Summation : यदि एक विलगित कंकालीय पेशी को उद्दीपन दिया जाता है तो यह एकल संकुचन दर्शाती है | जब पेशी को संकुचन अवस्था के दौरान द्वितीयक उद्दीपन दिया जाता है , तो तंतुओं में संकुचन अथवा छोटापन होता है | द्वितीयक उद्दीपन का प्रथम के साथ योग किया जाता है तो तंतुओं में अधिक संकुचन हो जाता हैं | यह लक्षण योग (summation) कहलाता है |

टिटेनिक संकुचन : सामान्य क्रियाविधि जैसे गमन के दौरान पेशीय संकुचन केवल कुछ क्षण अथवा एक सेकंड के लिए होता है | यह नियमित क्रिया के दौरान एक लम्बे समय तक रहता है और संयुक्त अथवा टिटेनिक संकुचन प्रदर्शित करता है | यह एक पेशी तंत्रिका के तीव्र अनुक्रमण में दो उत्तरोत्तर आवेगों के बीच के छोटे अन्तराल के साथ पेशीय तंत्रिका पर अनेक उद्दीपन के उपयोग द्वारा यह प्रायोगिक रूप से सिद्ध कर सकते है | संकुचन योग द्वारा अधिकतम संकुचन उत्पन्न करता है | यह नियमित संकुचन complete tetanus कहलाता है जो पेशियों के प्रकार और इनकी स्थिति के साथ परिवर्तित होता है | यदि एक लम्बे समयान्तराल के साथ पुनरावृति आवेग दिया जाता है तो एक छोटे शिथिलन के कारण एक संकुचन देखा जा सकता है | यह स्थिति अपूर्ण टिटेनस कहलाता है |