JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: इतिहास

यूरोपीय पुनर्जागरण के कारणों की विवेचना कीजिए | पुनर्जागरण के प्रभाव का वर्णन कीजिए

भारतीय पुनर्जागरण के कारणों का वर्णन कीजिए यूरोपीय पुनर्जागरण के कारणों की विवेचना कीजिए | पुनर्जागरण के प्रभाव का वर्णन कीजिए  19वीं शताब्दी में विवेचना कीजिए ?

पुनर्जागरण, धर्मसुधार आंदोलन और प्रबोधन
(Renaissance, Religious Reform Movement and Enlightenment)
’’’ (इस टॉपिक का संबंध सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के प्रश्नपत्र-1 से है। ‘दृष्टि‘ द्वारा वर्गीकृत पाठ्यक्रम के 15 खंडों में इसका संबंध भाग-2 से है।)
पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ होता है. ‘‘फिर से जागना‘‘। यह वह स्थिति है जब विभिन्न यूरोपीय देशों में एक लंबी अवधि उपरान्त मध्यकाल के अंधकार युग को त्याग कर आधुनिक युग में दस्तक दी। पुनर्जागरण एक बौद्धिक आंदोलन था जिसकी शुरुआत 14वीं शताब्दी में इटली से हुई तथा 16वीं शताब्दी तक इसका प्रसार विभिन्न यूरोपीय देशों जैसे- जर्मनी, ब्रिटेन आदि में हुआ।
पुनर्जागरण के विभिन्न पहलुओं में तार्किकता, मानवतावादी दृष्टिकोण, वैज्ञानिक प्रगति आदि का विशेष महत्त्व है। इससे समस्त यूरोप में सामंतवाद.के.खंडहरों पर आधुनिकता. का आविर्भाव हुआ।
पुनर्जागरण के कारण (Causes of Renaissance)
व्यापार-वाणिज्य का पतन तथा समस्त..यरोप में विकास के पुनर्जागरण की शुरुआत में व्यापार एवं वाणिज्य कारकों का विशेष महत्त्व रहा है। भूमध्यसागरीय अवस्थिति का लाभ उठाकर इटली जैसे देश में व्यापार एवं वाणिज्य का विकास हुआ। परिणामतः मुद्रा अर्थव्यवस्था, व्यापारी वर्ग एवं शहरों का उदय हुआ इटली में वेनिस फ्लोरेंस मिलान, नेपृत्स आदि जैसे शहर अस्तित्व में आए। शहरों की इस स्थिति ने सामंतवादी व्यवस्था परं चोट की, क्योंकि ये शहरी केन्द्र, सामती एवं सामंतवादी तत्वों के हस्तक्षेप से वचिंत
होकर अपना अलग स्वतंत्र अस्तित्व रखते थे। अपनी मजबूत आर्थिक स्थिति के आधार पर व्यापारी वर्ग कला एवं संस्कृति के उत्साही प्रश्रयदाता बन गए। उदाहरण के लिए इटली के फ्लोरेंस शहर के स्ट्रेजो एवं मेडिसी नामक व्यापारिक परिवार यूरोप में कलाकारों एवं
विद्वानों के सबसे प्रसिद्ध आश्रयदाता थे। फलतः ज्ञान को प्रोत्साहन देकर इन व्यापारिक वर्गों ने रूढ़िवादिता, कूपमंडूकता एवं संकीर्ण मानसिकता वाले अंधे समाज को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने में यथेष्ट योगदान दिया ।
पुनर्जागरण को बढ़ावा देने में धर्मयुद्ध (क्रुसेड) की भूमिका सराहनीय रही, यरूशलम को लेकर ईसाइयों एवं सल्जुक तुर्काे (मुसलमानों) के मध्य होने वाले इस युद्ध के परिणामस्वरूप यूरोपवासियों का पूर्वी देशों से संपर्क स्थापित हुआ तथा वैचारिक समन्वय
रथापित हुए। फलतः अरबी अंक, कागज, बीजगणित आदि का ज्ञान यूरोप के लोगों को हुआ तथा तर्कशक्ति एवं वैज्ञानिक खोजों को
बढ़ावा मिला। इतना ही नहीं, धर्मयुद्ध में असफलता से चर्च एवं पोप की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा। फलतः सामंतवादी व्यवस्था की इस मजबूत स्तंभ को जबर्दस्त आघात पहुंचा।
पुनर्जागरण को गति देने में कुस्तुनतुनिया के पतन का भी योगदान है। कुस्तुनतुनिया पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी थी जो ज्ञान-विज्ञान का एक प्रसिद्ध केन्द्र था। 1453 ई. में तुर्काे द्वारा कुस्तुनतुनिया पर आधिपत्य स्थापित कर लिए जाने के क्रम में ज्ञान-विज्ञान का यह केन्द्र इटली के विभिन्न शहरों में स्थानांतरित हो गई तथा वहाँ बौद्धिक चेतना के नए प्रतिमान स्थापित हुए। दूसरी बात यह कि पूर्व के साथ होने वाले व्यापारिक मार्ग अवरुद्ध हो गए. फलतः पूर्व के देशों से व्यापारिक संबंध बनाने की दिशा में भौगोलिक खोजों की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया की शुरुआत हो गई। इसी क्रम में अमेरिका, भारत सहित विभिन्न एशियाई तथा अमेरिकी देशों की खोज हुई एवं नवीन व्यापारिक मार्ग अस्तित्व में आए। फलतः इन देशों की आर्थिक संवृद्धि में तीव्र वृद्धि हुई।
यद्यपि यूरोपवासियों को कागज की जानकारी तो मध्यकाल में ही अरबों से हो गई थी परन्तु इसका व्यापक प्रसार तब हुआ जब 15वीं शताब्दी में जर्मनी के गुटेनबर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया। इससे ज्ञान-विज्ञान की सामग्री पुस्तकाकार रूप में सर्वसुलभ हो पायी। वस्तुतः अभी तक ज्ञान का संकेंद्रण सीमित संस्थाओं (चर्च) एवं व्यक्तियों (पादरियों) तक ही था, परन्तु अब इसका वृहत क्षेत्र में प्रसार हुआ तथा लोग रूढ़िवादिता एवं कूपमंडूकता के साये से उबरकर प्रगति की वादियों में पल्लवित एवं पुष्पित होने लगें। इतना ही नहीं, विभिन्न स्थानीय भाषाओं में विभिन्न धार्मिक एवं धर्मेतर पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। फलतः लोगों का वास्तविक एवं सत्य ज्ञान से साक्षात्कार हुआ। उनमें जिज्ञासा, वैज्ञानिकता, तार्किकता जैसी चेतन शक्ति का विकास हुआ जिससे एक आदर्श बौद्धिक वातावरण के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की जा सकी।
13वीं शताब्दी में कृबलई खों के नेतृत्व में विशाल मंगोल सम्राज्य अस्तित्व में आया। उसका दरबार पूर्व एवं पश्चिम के विद्वानो का प्रसिद्ध मिलन केन्द्र था। फलतः यहां पूर्व-पश्चिम ज्ञान का एक आदर्श समन्वयं वाली परिस्थिति उत्पन्न हो गई। प्रसिद्ध वेनिस यात्री मार्काेपोलो 1272. ई. में कुबलई खाँ के दरबार में आया था जिसके यात्रा विवरण को जानकर पूर्व के देशों के ज्ञान-विज्ञान के बार में यूरोपीय लोगों में जिज्ञासा बलवती होने लगी और इस प्रकार मौलिक चिन्तन का युग शुरू हुआ।
पुनर्जागरण के प्रभाव (effects of the Renaissance)
पुनर्जागरण महज प्राचीन रोम एवं यूनान की गौरवपूर्ण अतीत की खोज एवं विश्लेषण तक ही सीमित नहीं था वरन् इसका दायरा नवीन परिप्रेक्ष्य में अत्यंत ही विस्तृत था जिसने तत्कालीन धर्म, राजनीति समाज साहित्य, विज्ञान एवं कला आदि सांस्कृतिक क्षेत्रों में वास्तविक चिन्तन जैसे तत्त्वों को तीव्रतर किया।
पुनर्जागरण काल में अधविश्वास तथा तत्कालीन मध्ययुगीन रूढ़िवादी धर्म केन्द्रित व्यवस्था के घिनौने पक्ष पर तिखी टिप्पणी की
गई। धर्म के हरेक पहलुओं को तर्क की कसौटी पर खरा उतरने के पश्चात् ही स्वीकार किया जाता था। फलतः चर्च एवं पोप-पादरी के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों/नियमों को शक की नजर से देखा जाने लगा। अंततः धर्मसुधार आंदोलन के रूप में यह परिकल्पना अपने स्पष्ट रूप में सामने आई जिसके परिणामस्वरूप ईसाई धर्म में खोखलेपन के विरुद्ध आदोलन हुए।
वास्तव में यूरोप में मध्ययुग में सामंती व्यवस्था के अन्तर्गत सामंत एवं पादरी वर्ग को विशिष्ट स्थिति थी। परन्तु पुनर्जागरण काल नवीन परिस्थितियों में एक निरंकुश राजतंत्र की आवश्यकता महसूस की गई ताकि सामंती व्यवस्था की शोषणकारी एवं अराजकतावादी स्थिति पर काबू पाया जा सके। इस समय लोगों में राष्ट्रीय चेतना का व्यापक विकास हुआ। अंततः शक्तिशाली राष्ट्र राज्यों का उदय हुआ. जिन्होंने निरंकुश राजतंत्र की अगुवाई में स्पष्ट रूप धारण किए। मैकियावेली ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द प्रिंस‘ में शक्तिशाली निरंकुश राजतंत्र की आवश्यकता एवं उसके औचित्य का सक्रिय समर्थन किया। इस समय लोगों में अद्भुत राष्ट्र प्रेम का विकास हुआ तथा स्थानीय भाषाओं के प्रसार से यह और मजबूत हुआ।
पुनर्जागरण काल में मानवतावादी दृष्टिकोण प्रबल रूप में सामने आया। इसके अंतर्गत मानव को ईश्वर की अनुपम कृति माना गया तथा संपूर्ण गतिविधियाँ मानवीय जीवन को बेहतर बनाने की ओर केन्द्रित की गई। मनुष्य के इहलौकिक जीवन पर ही जोर दिया गया तथा साहित्य की विषय-वस्तु में मनुष्य के लौकिक जगत को प्राथमिकता दी गई। पेट्रोक को पुनर्जागरण काल का सबसे पहला मानवतावादी माना जाता है। पुनर्जागरण की अभिव्यक्ति के विभिन्न क्षेत्रों में मानवतावाद के लक्षण स्पृष्ट है, जैसे साहित्य में मानव की समस्याओं एवं उसके सुखमय जीवन को प्रमुख रूप से प्रस्तुत किया गया। इतना ही नहीं मनष्य को अपनी चिंतन शक्ति तथा बुद्धि के कारण समस्त प्राणियों में प्रमुख के रूप में स्वीकार किया गया तथा यह माना गया कि ईश्वर द्वारा इनकी क्षमताओं को किसी सीमा में नहीं बांधा गया है। चित्रकला के क्षेत्र में भी मानवीय पहलुओं को अभिव्यक्ति को अप्रतिम रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसका उदाहरण क्षेत्र में भी मानवीय पहलुओं को अभिव्यक्ति को अप्रतिम रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसका उदाहरण लियोनादो-द-विंची कृत ‘मोनालिसा‘ का प्रसिद्ध चित्र है. जिसमें मानवीय संवेदनाओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया हैै। अंततोगत्वा मानव के नागरिक जीवन का महत्त्व बढ़ने लगा।
पुनर्जागरण काल में देसी भाषाओं का साहित्य लेखन में व्यापक उपयोग होने लगा। यद्यपि अभी तक लैटिन भाषा ही वह भाषा थी जिसमें साहित्य की रचना होती थी जो जन-सामान्य की भाषा नहीं थी परन्तु पुनर्जागरण काल में इटालवी, स्पेनी, फ्रांसीसी, अंग्रेजी, जर्मन आदि क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ तथा साहित्यिक भाषा के रूप में इसे सम्मानित स्थान मिला। फलतः अधिकतम लोग ज्ञान के वास्तविक रूप से अवगत हुए एवं स्वतंत्र तर्क बुद्धि का विकास हुआ। दाँते ने इटालवी भाषा में ‘डिवाइन कॉमेडी‘ नामक महाकाव्य लिखा, जिसमें मुख्य रूप से मानव प्रेम, देश प्रेम एवं प्रकृति प्रेम का वर्णन किया गया। इसी आधार पर पेट्रार्क, जिसे मानवतावाद का जनक माना जाता है, ने इटालवी भाषा में लौकिक विषयों पर केन्द्रित काव्य की रचना की। हॉलैंड निवासी इरास्मस ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द प्रेज ऑफ फॉली‘ (मूर्खता की प्रशंसा) में चर्च की बुराईयों का खूब मजाक उड़ाया। ‘यूटोपिया‘ नामक अपनी प्रसिद्ध कृति में थॉमस मूर (इंग्लैंड निवासी) द्वारा एक आदर्श समाज का चित्र प्रस्तुत किया गया। राजनीति से संबंधित प्रसिद्ध पुस्तक ‘द प्रिंस‘ में मैकियावेली द्वारा ‘राज्य‘ की एक नवीन अवधारणा प्रस्तुत की गई जो स्वतंत्र एवं संप्रभुत्व संपन्न हो- तथा राज्य एवं धर्म दोनों अलग-अलग क्षेत्र होने चाहिए। इसी तरह प्रसिद्ध स्पेनिश सर्वातेस ने अपनी पुस्तक ‘डॉन क्विजोट‘ में मध्यकालीन सामंती शूरवीरता की खिल्ली उड़ाई। अंग्रेजी भाषा के संबंध में फ्रांसिस बेकन एवं विलियम शेक्सपीयर का नाम अग्रगण्य है। शेक्सपीयर द्वारा सभी संभव मानवीय भावों, उसकी क्षमताओं एवं दुर्बलताओं को सूक्ष्म रूप से प्रस्तुत किया गया है। इन समग्र प्रयासों से पुनर्जागरण काल में लगभग सभी यूरोपीय देशों में विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में मानवतावादो केन्द्रित साहित्यों की रचना की गई। फलतः यूरोप के विभिन्न भागों में विभिन्न भाषाओं द्वारा भाषायी एकता और अंततः राष्ट्रीय भावनाओं का विकास संभव हो पाया।
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के नए प्रतिमान स्थापित हुए। इससे पूर्व ज्ञान-विज्ञान पर चर्च एवं पोप का कड़ा नियंत्रण था। इस रूढ़िवादी व्यवस्था में प्रगतिशील विचारों का दमन किया जाता था तथा चर्च एवं पोप द्वारा प्रतिपादित प्राचीन विचारों एवं मान्यता के विरुद्ध नवीन विचार प्रस्तुत करता एक तरह से चर्च को सत्ता को चुनौती देने के समान थी। परन्तु पुनर्जागरण काल में वैज्ञानिक एवं तार्किक बुद्धि का विकास संभव हो पाया। पोलैण्ड के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री कॉपरनिकस द्वारा दिया गया यह विचार कि ‘पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है‘. कालान्तर में गैलोलियों द्वारा आविष्कृत दूरबीन से इस सिद्धान्त की पुष्टि हुई। जर्मनी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक केपलर द्वारा विभिन्न ग्रहों को गतियाँ एवं उसके कक्षाओं के बारे में नियम प्रस्तुत किया गया। आगे चलकर इंग्लैंड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने खगोलीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त को प्रस्तुत किया। चिकित्सा के क्षेत्र में बेल्जियम के प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक वेसेलियस द्वारा शल्य चिकित्सा की विशेष जानकारी प्रस्तुत की गई तथा साथ ही प्रथम बार मानव शरीर की रचना क्रिया के बारे में पूर्ण जानकारी प्रस्तुत की गई। रक्त परिसंचरण के बारे में इंग्लैंड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक विलियम हार्वे द्वारा विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई। इतना ही नहीं 13वें पोप ग्रेगरी द्वारा लीप वर्ष के आधार पर सौर वर्ष को प्रस्तुत किया गया जो ग्रेगरी कैलेण्डर के रूप में अभी मान्यता प्राप्त है।
पुनर्जागरण काल में कला के रूप में चित्रकला एवं वास्तुकला का यथेष्ट विकास हुआ जो मूलतः मानवीय पहलू पर केन्द्रित था। चित्रकला में मानव शरीर के विभिन्न अंगों को अत्यंत ही बारीक ढंग से प्रस्तुत किया गया। लियोनार्दाे-द-विंची की अनुपम कृति ‘द लास्ट सपर‘ एवं ‘मोनालिसा‘ विश्व प्रसिद्ध चित्र है। चित्र निर्माण हेतु तैल पेंटिंग (व्पस च्ंपदजपदह) का प्रयोग किया गया। इस समय माइकेल एंजेलो द्वारा निर्मित ‘डेविड‘ एवं ‘पियथा‘ मूर्तिकला के मशहूर नमूने हैं। इटली में प्रसिद्ध चित्रकार राफेल था जिसने यीशू मसीह की मां मेडोना के प्रसिद्ध चित्र बनाए। ये सभी कृति-मानवता से ओत-प्रोत थीं। इस समय स्थापत्य के क्षेत्र में गोथिक स्थापत्य कला का अवसान हुआ। कमानी छतें, नुकीले मेहराब एवं टेके पुनर्जागरणकालीन स्थापत्य की प्रधान विशेषताएँ थीं। इस संबंध में रोम के सेट पीटर का प्रसिद्ध गिरजाघर नई शैली का प्रसिद्ध स्थापत्य है।
अंततः हम कह सकते हैं कि यूरोप में पुनर्जागरण के प्रसार के फलस्वरूप प्रगतिशील विचारों को सम्मान मिला और मानवतावादी दृष्टिकोण विकसित हुआ। सामंतवाद का पतन, राष्ट्र राज्यों का उदय राष्ट्र प्रेम, व्यापारिक एवं वाणिज्यिक उन्नति तथा भौगोलिक खोजों के परिणामस्वरूप उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का विकास हुआ, धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध धर्मसुधार आंदोलन हुए तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास हुए जिसके परिणामस्वरूप कालांतर में औद्योगिक क्रांति संभव हो पाई। इन सारे प्रगतिशील तत्त्वों का बीजारोपण मूलतः पुनर्जागरण काल में ही संभव हो पाया तथा विभिन्न यूरोपीय देशों ने मुख्य रूप से प्रगतिशील विचारों को विश्वस्तर पर अगुवाई की।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now