हिंदी माध्यम नोट्स
यहूदी धर्म किसे कहते हैं ? यहूदी धर्म के संस्थापक कौन है माने जाते है ? यहूदी धर्म की पवित्र पुस्तक
यहूदी धर्म की पवित्र पुस्तक यहूदी धर्म किसे कहते हैं ? यहूदी धर्म के संस्थापक कौन है माने जाते है ? यहूदी और ईसाई धर्म में अंतर बताइए ?
यहूदी धर्म
विश्व के प्रमुख प्राचीनतम धर्मों में से एक यहूदी धर्म एकेश्वर में विश्वास रखता है। यहूदियों के इस धर्म से ही ईसाईयत और इस्लाम विकसित हुए। इस धर्म के आधारभूत नियम व शिक्षा ‘तोराह’ मूल हिब्रू बाइबिल की प्रथम पांच पुस्तकों पर आधारित हैं। यहूदियों के इतिहास, लोक जीवन के साथ-साथ विधिक एवं नैतिक उपदेशों का संकलन ‘तलमुद’ में है। यहूदियों का विश्वास है कि उनके पूर्वज अब्राहम को ईश्वर ने ऐसा वादा किया कि यदि वे ईश्वर के प्रति समर्पित रहेगें और उसकी आराधना करेगे तो कल्याण होगा। इस प्रसंविदा का नवीकरण ईश्वर ने अब्राहम के पुत्र ईसाक के साथ और उसके पुत्र जैकाॅब (जिसे इजराइल के नाम से भी जागा गया और उसकी संतति इजराइली कहलाई) के साथ किया। कालांतर में ईश्वर ने मोजेज को माउंट सिनाई पर दस कमांडमेंट प्रदान किए, जिसमें यह बताया गया है कि इजराइलियों को कैसे जीवन-यापन करना चाहिए।
भारत में यहूदियों के दो समुदाय हैं मलयालम भाषी ‘कोचीनी’ और मराठी भाषी ‘बेने इजराइल’। लगभग 2000 वर्ष पहले यहूदी शरणार्थी भारत के पश्चिमी तट पर आकर बसे थे। यद्यपि उनकी संख्या कम है, किंतु प्रारंभ से ही उन्हें अपने अंदाज में जीने, अपने सिनागाॅग (यहूदी प्रार्थना भवन) बनवाने की अनुमति प्रदान की गई है।
ईसाई धर्म
ईसा मसीह ने ईसाई धर्म की नींव डाली थी। यह धर्म चैथी शताब्दी में रोम साम्राज्य का राज्य धर्म बनाया गया था। बाद में चर्च दो समूहों में बंट गया था रोम में पोप के अधीन पश्चिमी तथा एंटीओक, अलेक्जेन्ड्रिया और कुस्तुनतुनिया के प्राधिधर्माध्यक्ष के अधीन पूर्वी। बाद में रोमन चर्च भी प्रोटेस्टेंट के रूप में टूटा और पूर्वी चर्चों में कई समुदायों ने अपने प्राधिधर्माध्यक्ष बना,।
यहूदियों की तरह ईसाइयों का भी मानना है कि प्रभु एक है और उसी ने दुनिया बनाई है एवं उसका भरण-पोषण करता है। प्रभु ने ही यीशु को अपने मसीहा के रूप में इस संसार में भेजा है। अधिकांश ईसाई यीशु को प्रभु का अवतार मानते हैं, जिन्होंने इस पूरी मानवता को पापों से बचाने हेतु प्राण गंवाए। ईसाईयत यह प्रचार करती है कि यीशु के सांसारिक जीवन के बाद भी प्रभु इस धरती पर पवित्र आत्मा के रूप में मौजूद रहे। त्रिदेव की उनकी मान्यता है कि तीन प्राणी हैं पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। ईसाई यहूदी धर्म के प्रभु के साथ ईसा की निरंतरता को स्वीकार करते हैं। ईसाइयों का न्यू टेस्टामेंट यहूदियों के ओल्ड टेस्टामेंट के साथ मिलाया गया और उसी ने बाइबल का रूप लिया। ईसाइयों की पूजा में दो बातें महत्वपूर्ण हैं बपतिस्माए जो किसी के ईसाईयत में प्रवेश का द्योतक है और यूकारिस्ट (या पवित्र कोमुन्योद्ध, जिसमें उपासक एक दूसरे और यीशु के साथ ऐक्य के प्रतीक स्वरूप ब्रेड और शराब आपस में बांटकर खाते हैं।
भारत में ईसाइयों का आगमन ईसा के जन्म के एक शताब्दी बाद का माना जाता है। प्रमाणों व साक्ष्यों से पता चलता है कि ईसा का एक पट्टशिष्य, टाॅमस, 52 ई. में भारत आया था और मालाबार (केरल) में बस गया था। ऐसी व्यापक मान्यता है कि तमिलनाडु में 72 ई. में वह हुतात्मा बन गया था और उसे माइलापुर में दफनाया गया। मद्रास एयरपोर्ट के पास एक पहाड़ी को सेंट टाॅमस माउंट के नाम से जागा जाता है। 6वीं शताब्दी में व्यापक मिशनरी आंदोलन के तहत् केरल में सीरियाई ईसाई आए थे। पुर्तगली अपने साथ एक नई व्यवस्था लेकर आए रोमन कैथोलिक। सेंट फ्रांसिस जेवियर 1542 में गोआ आए और 1557 में गोआ को महाधर्म प्रांत बनाया गया। प्रारंभिक चरणों मे गिरिजाघरों पर जाति व्यवस्था का व्यापक प्रभाव था और केरल के ईसाइयों ने उच्च जाति के हिंदुओं की भांति सामाजिक नियम अपनाए। 18वीं सदी के अंत में ही जाकर यह प्रयास प्रारंभ हुए कि जाति के आधार पर किए जागे वाले भेदभाव को मिटाया जाए। ईसाई मिशनरियों की गतिविधियां उत्तर भारत में सीमित थीं, हालांकि मिशनरी 16वीं सदी के अंत तक अकबर के दरबार में आने लगे थे। लेकिन 18वीं सदी के अंत से बंगाल में प्रोटेस्टेंट मिशन ने सांस्कृतिक एवं धार्मिक विकास को प्रभावित किया। 1793 में बपतिस्मा मिशनरी विलियम कैरे बंगाल आया। यह उसी का प्रभाव था कि शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में किए जागे वाले मिशनरी कार्यों में तेजी आई। आदिवासी इलाकों में धर्म परिवर्तन हुआ। इन्हीं मिशनरियों की बदौलत नागालैंड, मिजोरम और असम के आदिवासी पहाड़ी क्षेत्रों में ईसाइयों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। तथापि, मिशनरी शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में ही अधिक प्रभावी दिखे, न कि धर्मांतरण कराने वाली शक्ति के रूप में। मिशनरी स्कूलों में दी जागे वाली शिक्षा ने सुधारवादी आंदोलनों को और तेज होने में ही मदद की। आज भी वाई.एमण्सी.ए. (यंग मैन क्रिश्चियन एसोसिएशन), वाई.डब्ल्यू.सी.ए. (यंग वूमन क्रिश्चियन एसोसिएशन) और साल्वेशन आर्मी जैसे संगठन समाज सेवा से जुड़े हुए हैं।
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…