मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तंत्रिका की संख्या होती है how many spinal nervous system are there in human body in hindi

how many spinal nervous system are there in human body in hindi मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तंत्रिका की संख्या होती है ?

मेरू तंत्रिकाएं : आदमी में 31 युग्म मेरु तंत्रिकाएँ होती है | मेरुतंत्रिकाएं 5 समूहों में विभाजित होती है –

ग्रीवा (Cervical) = 8 युग्म (गर्दन क्षेत्र में)

वक्षीय (Thoracic) = 12 युग्म (वक्षीय क्षेत्र में)

कटि (Lumbar) = 5 युग्म (उदर का ऊपरी भाग)

(Sacral) = 5 युग्म (उदर के निम्न भाग में)

(Coccygeal) = एक युग्म (पुच्छ तंत्रिकाओं को प्रदर्शित करती है)

प्रत्येक मेरू तंत्रिका मेरू रज्जु से दो मूलों द्वारा उत्पन्न होती है –

  • पृष्ठीय अथवा पश्च अथवा संवेदी अथवा अभिवाही मूल : यह पृष्ठीय श्रृंग का continuation है और इसे धूसर द्रव्य बनाता है | यह संवेदी और अभिवाही तंत्रिका तंतुओं का बना होता है | यह मध्य में फूलकर पृष्ठीय मूल गुच्छिका (dorsal root ganglion) बनाता है जो कोशिका कार्यों का समूहन होता है | ये संवेदी तंत्रिका आवेगों का संवेदी अंग से मेरुरज्जु तक प्रसारण करते हैं |
  • अधर अथवा अग्र या चालक अथवा अपवाही मूल : यह अधर श्रृंग का continuation है और इसे भी धूसर द्रव्य बनाता है | यह केवल चालक और अपवाही तंत्रिका तन्तु बनाता है | इसमें गुच्छिका नहीं होती है | ये तंतु चालक तंत्रिका आवेग को परिधीय ऊतकों जैसे पेशी और ग्रंथि तक पहुँचती है | कशेरुक दण्ड की तंत्रिका नाल के अन्दर दोनों मूल संयुक्त होते हैं अत: सभी तंत्रिकाएं मिश्रित प्रकृति की होती है | प्रत्येक मेरू तंत्रिकाएं तीन शाखाओं में विभाजित होती है |
  • पृष्ठीय शाखा : यह पृष्ठीय सतह की पेशी और त्वचा को आपूर्ति करती है |
  • अधर शाखा : यह अधर और पाशर्व साइड की पेशी और त्वचा और ऊपरी और निचले limbs को भी आपूर्ति करती है |
  • योजक शाखा : यह ANS की अनकुंपी गुच्छिकाओं को जोडती है |

कशेरूक दंड की तंत्रिका नाल के अन्दर कटि , सैक्रल और काक्सिजियल तंत्रिका उनके उत्पत्ति स्थल प्रथम कटि कशेरूका से नीचे की तरफ विस्तारित रहती है और उचित स्तर पर इसे छोडती है | ये तंत्रिकाएँ और filum तंत्रिका नाल के अन्दर एक संरचना बनाती हुई समाप्त होती है जो घोड़े की पूंछ के निचले सिरे से समानता रखता है और यह cauda equine कहलाता है | Ventral rami और कुछ spinal nerves मिलकर प्रत्येक साइड 5 nerve plexi : Cervical plexus , Brachial plexus , Lumbar plexus , sacral plexus और Coccygeal plexus बनाती है |

Cervical plexus , प्रथम चार ग्रीवा तंत्रिकाओं के anterior rami से बनते है और गर्दन तथा डायफ्राम को आपूर्ति करते हैं | Branchial plexus , अंतिम चार ग्रीवा तंत्रिकाएं और प्रथम तंत्रिका के अग्र rami के बने होते है और छाती (chest) और भुजा (arm) को आपूर्ति करता है | Lumbar plexus , 12th वक्षीय मेरू तंत्रिका के तंतुओं और प्रथम तीन कटि तंत्रिकाओं के अग्र rami से बने होते है और leg में समावेशित होते हैं | sacral plexus , अंतिम दो कटि तंत्रिकाओं और प्रथम तीन सेक्रल तंत्रिकाओं द्वारा बना होता है और पेल्विक क्षेत्र (pelvic region) को आपूर्ति करता है | coccygeal plexus अंतिम दो सेक्रल तंत्रिकाओं के अग्र rami और coccygeal तंत्रिकाओं से बनी होती है और pelvic क्षेत्र को आपूर्ति करती है |

सिनेप्स : यह शब्द oxford के C.S. Sherrington द्वारा दिया गया है यह दो न्यूरोन्स के मध्य संधि स्थल है जहाँ एक न्यूरोन से दुसरे न्यूरोन तक सूचना स्थानांतरित होती है परन्तु दोनों न्यूरोन के मध्य जीव द्रव्यी संयोजन नहीं होता है |

  • सिनेप्स के प्रकार : सिनेप्स एक न्यूरोन के दुसरे न्यूरोन के एक्सोन , डेन्ड्राइट्स अथवा कोशिका काय के मध्य बनता है | न्यूरोन के संधि युक्त भाग के आधार पर सिनेप्स निम्न प्रकार के होते हैं –
  • Axo dendritic – इस प्रकार में एक्सोन दुसरे न्यूरोन के डेन्ड्रोन पर समाप्त होते हैं | यह सिनेप्स का सबसे सामान्य प्रकार है |
  • Axo somatic : यहाँ एक्सोन दुसरे न्यूरोन की कोशिका काय (soma) पर समाप्त होते है |
  • Axo axonic : इस प्रकार एक्सोन दूसरे एक्सोन पर समाप्त होता है |
  • Dendro dendritic : यहाँ एक न्यूरोन के डेन्ड्राइट दुसरे न्यूरोन के डेन्ड्राइट पर समाप्त होते हैं |

तंत्रिका संवहन की कार्यिकी :

  • परिभाषा : एक तंत्रिका में एक उद्दीपन के द्वारा यांत्रिक , रासायनिक और विद्युतीय विक्षोभ (disturbances) उत्पन्न करना तंत्रिका आवेग कहलाता है |
  • तंत्रिका तन्तु के गुण
  • उत्तेजनशीलता : जब एक तंत्रिका पर्याप्त क्षमता वाले उद्दीपन से उत्तेजित की जाती है तब तंत्रिका तन्तु उद्दीपन के प्रति स्थानीय उत्तेजनशीलता की अवस्था में आ जाते है |
  • All or none rule : उद्दीपन की न्यूनतम क्षमता देहली उद्दीपन (threshold stimulus) कहलाती है इसे तंत्रिका तन्तु को उत्तेजित अवस्था में लाने के लिए उपयोग करना आवश्यक है | देहली (threshold) मान से कम शक्ति वाले उद्दीपन उत्तेजनशीलता उत्पन्न नहीं करते हैं | यदि उद्दीपन की क्षमता और अवधि को बढाया जाए तो प्रतिक्रिया की क्षमता (डिग्री) में कोई परिवर्तन नहीं होता है अत: तंत्रिका तंतुओं की प्रतिक्रिया हमेशा अधिकतम होती है |
  • विभेदात्मक पारगम्यता (differential permeability) : तंत्रिका तन्तु neurolemma द्वारा आवरित होती है जो कोशिका द्रव्य को बाह्य कोशिकीय द्रव्य से पृथक करती है | बाह्य कोशिकीय द्रव्य और कोशिका द्रव्य (neuroplasm) दोनों के गुण भिन्न होते हैं | Neurolemma के ठीक निचे कोशिका द्रव्य विद्युतीयऋणात्मक जबकि बाह्य कोशिकीय द्रव्य तुलनात्मक रूप से विद्युतीयधनात्मक होता है | बाहर की तुलना में अन्दर की ओर ऋणात्मक विभव -90 mV होता है | उत्तेजन रहित तंत्रिका तन्तु में झिल्ली पर यह विभव resting potential कहलाता है और resting potential युक्त झिल्ली ध्रुवित तंत्रिका तंतु (polarized nerve fibre) कहलाती है |

यह स्थिर विभव झिल्ली के दोनों तरफ आयनों के विभेदात्मक वितरण के कारण होता है | बाह्य कोशिकीय द्रव्य में अन्दर की तुलना में दस गुना Na+ आयन होते है जबकि अंत: कोशिकीय द्रव्य में , बाह्य कोशिकी द्रव्य की तुलना में 30-40 गुना K+ आयन होते हैं | अंत:कोशिकीय द्रव्य में अत्यधिक कार्बनिक आयन होते है , विशेषत: ऋणात्मक आवेशित प्रोटीन , जो अन्दर की ओर विद्युतीय ऋणात्मकता उत्पन्न करते है |

  • चालकता : जब एक तंत्रिका तन्तु को पर्याप्त क्षमता वाले उद्दीपन से उत्तेजित किया जाता है तो इसकी ध्रुवता विपरीत हो जाती है और नवीन विभव प्रवणता action potential विकसित होती है | यह विध्रुवणता तंत्रिका तंतु में इसकी उत्पत्ति स्थल से एक निश्चित दिशा में तंत्रिका तन्तु के साथ स्थानांतरित होती है | चालन का यह गुण conductivity कहलाता है | चालकता का वेग तंत्रिका तन्तु के व्यास , प्रकृति (medullated अथवा non medullated) , लम्बाई और तापमान पर निर्भर करता है |
  • अनुक्रिया काल : उत्तेजन के बाद तंत्रिका तंतु recovery अवधि में आती है जिसमें यह अपना वास्तविक आयनिक वितरण और ध्रुवता पुनः प्राप्त करती है और अपने आप को अगले उद्दीपन के लिए तैयार करती है | तंत्रिका तन्तु की recovery की यह अवधि refractory period (अनुक्रिया काल) कहलाती है | अनुक्रिया काल का वह भाग जिसमें तंत्रिका तन्तु किसी भी क्षमता वाले उद्दीपन के प्रति प्रतिक्रिया देने में असमर्थ होता है Absolute refractory period कहलाता है | बड़े माइलिन युक्त तंत्रिका तन्तुओं के लिए यह लगभग 4 milliseconds जबकि कटे तंतुओं के लिए लगभग 4 milliseconds होता है | यह 250 आवेगों का प्रति सेकंड संवहन कर सकती है |
  • योग (summation) : यदि देहली (threshold) उद्दीपन से कम उद्दीपन तंत्रिका तन्तु पर प्रयुक्त किया जाता है तो यह प्रतिक्रिया करने में असमर्थ होता है | यद्यपि recovery अवधि के दौरान समान उद्दीपन बार बार दिए जाते है तो उद्दीपनों का योग (summation) हो जाता है उनका योग आवश्यक मान (वैल्यू) के बराबर अथवा अधिक हो जाता है |