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मामल्लपुरम कहाँ स्थित है ? mahabalipuram temple in hindi महाबलीपुरम मंदिर किस राज्य में स्थित है इतिहास
mahabalipuram temple built by which dynasty in hindi मामल्लपुरम कहाँ स्थित है ? महाबलीपुरम मंदिर किस राज्य में स्थित है इतिहास क्या हैं ?
प्रश्न: महाबलीपुरम् (मामल्लपुरम्)
उत्तर: तमिलनाडु में मद्रास से 40 मील की दूरी पर समुद्रतट पर यह नगर स्थित है। सुदूर दक्षिण में शासन करने वाले पल्लव राजाओं के काल में
यह प्रसिद्ध समुद्री बन्दरगाह तथा कला का केन्द्र था। यहां मण्डप तथा एकाश्मक मौदरों (Monolithic Temples), जिन्हें श्रथश् कहा गया है, का निर्माण हुआ। ये पल्लव वास्तु एवं स्थापत्य के चरमोत्मकर्ष के सचक हैं। मख्य पर्वत पर 10 मण्डप बने हैं जिनमें आदिवाराह, महिषमदिनी, पञ्चपाण्डव, रामानुज आदि मण्डप प्रसिद्ध हैं। इन मण्डपों में दुर्गा, विष्णु, ब्रह्मा, गजलक्ष्मी, हरिहर आदि की कलात्मक प्रतिमायें उत्कीर्ण मिलती हैं।
महाबलीपरम के रथ कठोर चट्टानों को काटकर बनाये गये हैं तथा मूर्तिकला के सुन्दर उदाहरण प्रस्तत करते हैं। इन्हें “सप्तपैगोडा” कहा जाता है। ये महाभारत के दृश्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन पर दुर्गा, इन्द्र, शिव-पार्वती. हरिहर नया स्कन्द, गंगा आदि का मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। एक रथ पर पल्लव शासक नरसिंह वर्मा की भी मूर्ति खुदी है।
महाबलीपरम समद्र पार कर जाने वाले यात्रियों के लिये मुख्य बन्दरगाह भी था। समुद्र यात्राओं की सरक्षा के निमिन सी पहाड़ी पर दीपस्तम्भ बनवाया गया था।
प्रश्न: अमरावती
उत्तर: आन्ध्रप्रदेश के गुन्टूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित अमरावती नामक नगर प्राचीन काल में आन्ध्र प्रदेश राजधानी था। सातवाहन वंश के राजा शातकर्णि प्रथम ने यहाँ अपनी राजधानी बसाई थी। सातवाहन काल में यह सांस्कृतिक एवं आर्थिक केन्द्र था। सातवाहन शासकों के समय में अमरावती में प्रसिद्ध बौद्धस्तूप का निर्माण करवाया था जो तेरहवीं शती तक अनेक बौद्ध यात्रियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहा। दुर्भाग्यवश यह स्तूप आज अपने स्था। नष्ट हो गया है किन्तु उसके अवशेष कलकत्ता, मद्रास एवं लन्दन के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। सर्वप्रथम 1797 मैकेन्जी महोदय ने इस स्तूप का पता लगाया था। स्तूप की वेष्टिनी (Railing) संगमरमर की थी तथा उसके गुम्बद को संगमरमर की पटियाओं से जोड़ा गया था। वेष्टिनी के ऊपर जातक कथाओं के अनेक दृश्यों को उत्कीर्ण किया गया है। शिलापट्टों पर बुद्ध के जीवन की विविध घटनायें अंकित है। स्तूप की वास्तु तथा तक्षण सातवाहन कला के चर्मोत्कर्ष सूचक हैं।
धार्मिक केन्द्र होने के साथ-साथ अमरावती एक प्रसिद्ध व्यापारिक नगर भी था। समुद्र से कृष्णा नदी होकर अनेक व्यापारिक जलपोत यहाँ पहुँचते थे। वस्तुतः इसकी समृद्धि का सबसे बड़ा कारण इसका व्यापार ही था। आन्ध्र सातवाहन शासन के बाद अमरावती कई सदियों तक इक्ष्वाकु राजाओं की राजधानी रही। बाद में इसका स्थान नागार्जुनीकोंड ने ग्रहण कर लिया।
प्रश्न: बोधगया
उत्तर: बिहार प्रान्त में स्थित गया अथवा बोधगया अत्यन्त प्राचीन समय से ही हिन्दुओं तथा बौद्धों का तीर्थस्थल रहा है। पुराणों में इसे गयासुर नामक
दैत्य का निवास बताया गया है जिसे विष्णु ने यहां से निकाला था। चूँकि महात्मा बुद्ध को यहां पीपल के वृक्ष के नीचे संबोधि प्राप्त हुई, अतः यह स्थान “बोधगया” के नाम से विख्यात हो गया। बुद्ध के समय यहां कोई प्रसिद्ध नगर नहीं था तथा श्उरुवेलाश् नामक गाँव यहां बसा हुआ था। उसी के पास पीपल का वृक्ष था जहां बुद्ध ने तपस्या की थी। महाभारत तथा अश्वघोषकृत बुद्धचरित से प्रकट होता है कि यहां महर्षि श्गयश् का आश्रम था। संभव है उसी के नाम पर इस स्थान का नाम श्गयाश् पड़ गया हो।. बुद्ध के पश्चात् इसे श्बोधगयाश् के नाम से प्रसिद्धि मिली। मौर्य शासक अशोक ने इस स्थान की यात्रा कर यहां स्तूप का निर्माण करवाया था। फाहियान तथा हुएनसांग यहां की यात्रा पर गर्य तथा उन्होंने अशोक द्वारा बनवाये गये स्तूप को देखा था। हुएनसांग बोधिवृक्ष का भी वर्णन करता है जिसके चारों ओर इंट की सुदृढ़ आयताकार दीवार बनी हुई थी। यहां सिंहल के राजा मेघवर्ण ने एक संघाराम का निर्माण करवाया था। इत्सिंग भी इस संघाराम का उल्लेख करता है। गया से कई महत्वपूर्ण लेख भी मिलते हैं।
गया आज भी हिन्दुओं तथा बौद्धों दोनों का पवित्र तीर्थस्थल है। हिन्दू यहां पिंडदान करने के लिये जाते हैं! गरुडपुराण में उल्लिखित है कि श्गयाश् में श्राद्ध करने से पापी व्यक्ति ब्रह्महत्या, सुरापान, स्तेय आदि कठोर पापों से मुक्त हो जाता है।श्
प्रश्न: एलिफैन्टा
उत्तर: बम्बई से समुद्र सात मील उत्तर-पूर्व की दूरी पर एलिफैन्टा नामक छोटा-सा द्वीप स्थित है। यहाँ दो पहाड़ियाँ हैं जिनके बीच में एक सँकरी
घाटी है। पहले इस स्थान का नाम पुरी था। यहाँ कोंकण के मौर्यों की राजधानी थी। ऐहोल लेखक पता चलता है कि पुलकेशिन् द्वितीय ने
इस स्थान को जीता था। सोलहवीं शती में बम्बई तट पर बसने वाले पुर्तगालिया न यहाँ से प्राप्त हाथी की एक विशाल मूर्ति के कारण इस
द्वीप का नाम एलिफैन्टा रख दिया।
एलिफैन्टा पहाड़ी से पाँच गुफायें प्राप्त होती हैं जिनका समय पाँचवी-छठी शताब्दी ईसवी है। इनमें हिन्दु धर्म से संबंधित मूर्तियाँ, विशेषकर शिव मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं। इनमें त्रिमूर्ति शिव की प्रतिमा सबसे प्रसिद्ध है जिसमें उन्हें तीन विभिन्न रूपों में दिखाया गया है। महायोगी, नटराज, भैरव, अर्धनारीश्वर, कैलाश – धारी, रावण आदि की मूर्तियाँ भी कलात्मक दृष्टि से उच्चकोटि की हैं। एलिफैन्टा की शिल्पकारी अजन्ता और एलोरा के ही समान हैं। पुर्तगाली शासन में यहाँ । अधिकांश चित्र नष्ट हो गये।
प्रश्न: एलोरा
उत्तर: महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले में स्थित एलौरा नामक स्थान अपने गुहा-मन्दिरों (ब्ंअम.ज्मउचसमे) के लिये प्रसियहाँ पहाड़ी को काटकर अनेक गुफायें बनाई गयी हैं जो बौद्ध हिन्दू तथा जैन सम्प्रदायों से संबंद्ध हैं। बौद्ध गुफायें 12 जिनमें श्विश्वकर्मा का गुहा मन्दिरश् (संख्या 10) सबसे सुन्दर है। यह विशाल चैत्य के प्रकार का है जिसमें ऊँचे बने हैं। स्तम्भों में अनेक बौनों की प्रतिमायें बनी हैं।
एलौरा के सत्रह गुहा-मन्दिर प्राप्त होते हैं जिनमें से अधिकतर राष्ट्रकूट शासकों के समय (7वीं-8वीं शताब्दी) में इनमें कैलाश मन्दिर सर्वप्रसिद्ध है। यह प्राचीन वास्तु एवं तक्षण कला का एक अत्युत्कृष्ट नमूना है। विशाल पहा, तराश कर मनुष्यों, पशुओं, देवी-देवताओं आदि की सुंदर एवं बारीक मूर्तियाँ बनाई गयी हैं। हाथियों की जो मूतियां है उनके आँखों की पलकें भी पत्थर को तराश कर अत्यन्त सक्षमता एवं कशलता से बनाई गयी हैं। मन्दिर का विशाल प्रांगण 276 फीट लम्बा तथा 154 फीट चैड़ा है। इसके ऊपर 95 फीट की ऊँचाई का विशाल शिखर है। इसका निर्माण कृष्ण प्रथम (756-793 ई.) ने अत्यधिक धन व्यय करके करवाया था। यहाँ के अन्य मन्दिरों में रावण की खाब. देववाडा. दशावतार, लम्बेश्वर, रामेश्वर, नीलकण्ठ आदि उल्लेखनीय हैं। दशावतार मन्दिर का निर्माण आठवीं शती में दन्तिदुर्ग ने करवाया था। इसमें विष्णु के दस अवतारों की कथा मूर्तियों में अंकित की गयी है। स्थापत्य एवं तक्षण की दृष्टि से यह मन्दिर भी उत्कृष्ट है।
एलौरा से पाँच जैन मन्दिर भी मिलते हैं जिनका निर्माण नवीं शताब्दी में हुआ था। इसमें श्इन्द्रसभा मन्दिरश् प्रमुख है जिसमें जैन तीर्थकरों की कई सुन्दर मूर्तियाँ हैं। तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ की समाधिस्थ प्रतिमा मिलती है। मन्दिर के स्तम्भों एवं छतों पर अद्भुत चित्रकारियाँ है। समग्र रूप से एलौरा के मन्दिर वास्तु एवं तक्षण दोनों ही दृष्टियों से प्राचीन भारतीय कला के अत्युत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं
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