हिंदी माध्यम नोट्स
मानवीय मूल्यों की परिभाषा क्या है ? मानवीय मूल्य किसे कहते हैं विशेषताएं प्रकार मूल्यों का वर्गीकरण कितने वर्ग में किया जाता है
human values and ethics in hindi मूल्यों का वर्गीकरण कितने वर्ग में किया जाता है मानवीय मूल्यों की परिभाषा क्या है ? मानवीय मूल्य किसे कहते हैं विशेषताएं प्रकार ?
मानवीय मूल्य
मानवीय मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त इच्छाएं एवं लक्ष्य हैं जिन्हें मानव समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से सीखता है और जो व्यक्तिनिष्ठ अभिलाषाएं बन जाती है। निर्णय मानवीय मूल्यों के अनुरूप भी हो सकते हैं या फिर निर्णय की प्रक्रिया में इनकी अनदेखी भी की जाती है। परन्तु मानव के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत किए गए सारे महत्वपूर्ण निर्णयों, में इन मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दूसरे शब्दों में, मानवीय मूल्य ही निर्णयों के आवश्यक एवं अपरिहार्य तत्व है। मानवीय मूल्य ही वह कड़ी है जो व्यक्तिगत अनुभवों और निर्णयों, उद्देश्यों तथा कार्यों को जोड़ता है। सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन को समझने में भी मानवीय मूल्य इसी प्रकार की भूमिका का निर्वाह करते है। मूल्य व्यक्ति व समाज के व्यवहारों को नियंत्रित व सही मार्ग की ओर निर्देशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह एक ओर मनुष्य के मानसिक तनावों व संघों को सुलझाते हुए आंतरिक संगति व सम्बद्धता को उत्पन करता है एवं दूसरी ओर आदर्श आयाम की ओर वैयक्तिक व सामाजिक जीवन की उन्नति को निर्देशित करता है।
लगभग सभी समाजों में हिंसा, युद्ध, घृणा तथा अपराध का वर्चस्व दिखाई पड़ता है तथा इतिहास के विभिन्न युगों में भी यही प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है जिससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानवीय मूल्य की सार्वभौमिकता जैसी कोई बात होती ही नहीं। परन्तु मानवीय मूल्यों की परंपरा आदि समाजों एवं धर्मों में भी देखी जा सकती है तथा मूल्यों की यह परम्परा तदन्तर आज भी जारी है जो सभी युगों एवं सभी संस्कृतियों में दृष्टिगोचर है। इस अर्थ में इन मूल्यों को सार्वभौम कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।
मानवीय मूल्यों की अन्तर्वस्तु
मानवीय मूल्यों को कई तरीके से प्रतिपादित अथवा अभिव्यक्त किया जा सकता है – अथात् इन्हें व्यावहारिक उदाहरणों से लेकर उच्च नैतिक सिद्धान्तों के रूप में भी समझा जा सकता है। मानवीय मूल्य शिक्षाविदों अथवा उपदेशकों द्वारा विकसित किया गया कोई अमूर्त सिद्धान्त नहीं है अपितु जीवन से जुड़े विचार एवं नियम हैं जिनका औचित्य कई तरह से सिद्ध किया जा सकता है। चूंकि मूल्यों का संबंध मानव से है अतः यह स्पष्ट है कि ये किसी आध्यात्मिक अथवा अतिप्राकृतिक सत्ता द्वारा निर्देशित आचरण के नियम भी नहीं हैं और न ही कोई ईश्वरीय आदेश। इनका संबंध विभिन्न संस्कृतियों, विशिष्ट व्यक्तियों तथा परिस्थितियों से है। इनका विकास ही मानव के लिए और मानवीय अर्थों में हुआ है जो मानवमात्र की आत्मसिद्धि में सहायक बने। समाज या संस्कृति मनुष्य को मूल्यों के आधारभूत प्रतिमान प्रदान करती है। समस्त माननीय इच्छाएं सामाजिक आवेगों के साथ घुली- मिली रहती है। मानवीय मूल्य मनुष्य सामाजिक संबंधों का घोतक है। यह सांस्कृतिक परंपरा व प्रशिक्षण ही है जो कि आधारभूत मूल्य व्यवस्थाओं का सृजन करते हैं। मानवीय मूल्यों में वैयक्तिकता, विभिन्नता तथा अनोखापन देखने को मिलता है। अपनी अभिरुचियों, आदतों तथा क्षमताओं में विविधता के कारण मनुष्य मूल्यों की संतुष्टि अपने-अपने ढंग से करता है।
आधारभूत मानवीय मूल्य
यहाँ मानवीय मूल्यों की एक सूची प्रस्तुत की जा रही है, जिसके प्रति आम लोग समान रूप से आस्था प्रकट करते हैं, अर्थात् इन मूल्यों को सार्वभौम व सर्वगत मूल्यों की कोटि में रखा जा सकता है। ये हैं-
ऽ सत्यता (सत्य)
ऽ प्रेम और सेवा भावना
ऽ शांति
ऽ अहिंसा
ऽ व्यय
सत्यता (सत्य)
किसी तथ्य की सत्यता किसी व्यक्ति विशेष की इच्छा या आकांक्षा पर निर्भर नहीं करती। सत्यता का अस्तित्व इच्छाओं, हितों एवं विचारों में स्वतंत्र होता है। यह सच है कि कोई भी झूठा व्यक्ति बल्कि अधिकांश झूठे लोग स्वयं को झूठा कहलवाना पसंद नहीं करते। इस बात को प्रमाणित करता है कि सत्य एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है तथा यह मानव मन में अन्तर्निहित होता है। सत्य से बौद्धिक संतुष्टि मिलती है। केवल सत्य के अस्तित्व का ही नहीं, बल्कि सत्य के ज्ञान का भी साध्यमूल्य होता है। यह सर्वविदित है कि सत्य एक साध्यमूल्य है।
प्रेम और सेवा भावना
यहा ‘प्रेम‘ शब्द का व्यापक अर्थ है। यहां ‘प्रेम‘ से अभिप्राय है स्नेह रखना, ध्यान रखना तथा किसी की सुध लेना। मानव मूल्यों में यह बेहद मौलिक है जो दूसरों के प्रति आदर तथा सेवा भावना को व्यक्त करता है। प्रेम को व्यक्ति सामान्य तौर पर ‘व्यक्तिगत‘ अर्थों में लेता है जिसमें काम विषयक भावना निहित होती है। परन्त मानव मूल्य के अर्थ में प्रेम का सार एक पवित्र भावना को परिलक्षित
करता है। यहां ‘प्रेम‘ का अर्थ निःस्वार्थ प्रेम है जो दूसरों के प्रति तथा पूरे विश्व के प्रति भी समर्पित किया जा सकता है। प्रेम में स्वार्थ की भावना जितनी ही कम होगी जीवन की गुणवत्ता में उतनी ही
अधिक वृद्धि होगी। यद्यपि ‘प्रेम‘ शब्द स्वयं में अस्पष्ट एवं झूठ है परन्तु इसे परोपकारिता, क्षमा तथा परस्पर सामंजस्य एवं तालमेल के अर्थों में भी समझा जा सकता है। प्रेम को भावना अथवा संवेग के अर्थों में नहीं लिया जा सकता बल्कि इसे सिर्फ मानव चेतना के स्तर पर ही समझा जा सकता है। वस्ततुः यह मनुष्य की आत्मा की एक अद्भुत विशिष्टता है और सार्वभौम सत्य भी।
शांति
शांति एक भावात्मक मूल्य है जो सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। शांति का अर्थ है समरसता अर्थात् द्वेष और संघर्ष का अभाव। यह एक संतुलित परन्तु गत्यात्मक मानसिक स्थिति है। मानवीय मूल्यों में एक प्रकार्यात्मक संबंध होता है। अतः व्यक्ति अथवा समाज के नियंत्रण या अनुमोदन से समस्त मानवीय अभिप्रेरणाएं मूल्यों में रूपान्तरित हो जाती है। इनमें से सभी भावात्मक मानवीय मूल्यों के सम्मिलन से ही शांति की स्थापना संभव हो पाती है चाहे वह व्यक्तिगत जीवन में हो या फिर समाज या विश्व के स्तर पर। सत्य, न्याय और प्रेम, तथा भाईचारा शांति की स्थापना के लिए आवश्यक शर्त हैं जिनके अभाव में हितों का संघर्ष शुरू होता है तथा शांति खतरे में पड़ जाती है। हालांकि शांति को उपद्रव, हिंसा युद्ध तथा दुराचार के अभाव के रूप में भी समझा जा सकता है परन्तु इसके मूर्त रूप को भी समझना मुश्किल नहीं क्योंकि व्यक्ति इसे एक-दूसरे के प्रति आदर, मित्रभाव, सहिष्णुता और मानसिक शांति के रूप में स्पष्ट रूप से महसूस करता है। मन की शांति भले ही एक व्यक्तिगत अनुभव है परन्तु समाज के संदर्भ में शांति की स्थापना सकारात्मक कार्यों से ही संभव है। ये कार्य हिंसक या विध्वंसात्मक नहीं बल्कि रचनात्मक एवं सहिष्णुतापूर्ण होते हैं।
अहिंसा
मानवीय मूल्यों में अहिंसा का महत्वपूर्ण स्थान है। अहिंसा के बिना सर्वोच्च सत्य की सिद्धि असम्भव है। अहिंसा का अर्थ है हिंसा न करना अर्थात् यह एक मानवीय प्रवृत्ति है जिसमें व्यक्ति प्राणियों तथा उनके परिवेश को हर प्रकार की हानि से सुरक्षित रखने की चेष्टा करता है। स्वार्थ और द्वेष को त्यागकर क्रोध पर विजय प्राप्त करना तथा किसी को भी किसी प्रकार का दुःख या कष्ट न पहुँचाना अहिंसा है। मूल्यात्मक अवधारणा होने के साथ-साथ अहिंसा एक व्यापक अवधारणा भी है। इस अर्थ में पर्यावरण तथा पारिस्थितिक तंत्र का शोषण तथा प्रदूषण आदि से रक्षा करना भी अहिंसा के अंतर्गत आता है। वस्तुतः इस कार्य से अहिंसा की भावना को बल मिलता है। यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जो हमें अनैतिक कार्य करने तथा प्रकृति में असंतुलन पैदा करने जैसे कार्यों से रोकता है। हिन्दू धर्म तथा गांधी दर्शन में भी अहिंसा की व्याख्या इसी रूप में की गई है। वस्तुतः अहिंसा करना आदर्शवाद नहीं है। यह एक ऐसा मूल्य है जिसे सभी धारण कर सकते हैं। पशु भक्षण से खेती की ओर, लूटपाट से व्यवस्थित जीवन की ओर बढना, व्यक्ति से परिवार की ओर, राष्ट्रीयता से अन्तरराष्ट्रीयता का विचार अहिंसा की व्यापकता के ही चिन्ह है। अतः अहिंसा के आधार पर ही आदर्श समाज का संगठन किया जा सकता है।
न्याय
यूरोपीय परम्परा के अन्तर्गत न्याय को उच्चतम मानवीय मूल्यों को कोटि में रखा गया है बल्कि सुकरात एवं प्लेटो ने तो इसे उच्चतम मानवीय मूल्य के रूप में स्वीकार किया है। ‘न्याय‘ की संतोषजनक परिभाषा देना यद्यपि मुश्किल है परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि न्याय आधार निष्पक्षता है जिसका मौलिक अर्थ यह है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान है। न्याय एक सामाजिक मूल्य है जो अहिंसा व स्नेह के नियमों से संचालित होता है। न्याय का मूल उद्देश्य है संघर्षों को कम अथवा समाप्त करना। सार्वजनिक कल्याण हेतु सामाजिक न्याय की परम्परा अत्यंत प्राचीन है जिसका उदाहरण हमें इतिहास-पूर्व काल में भी देखने को मिलता है। सभी समाजों में इसे एक केन्द्रीय विचार के रूप में अपनाया जाता रहा है। न्याय की संकल्पना प्राचीन यूनान में चिंतन का मुख्य विषय रही है और इसी से बाद में मानवाधिकारों की संकल्पना का प्रादुर्भाव हुआ। तत्पश्चात दिसम्बर, 1948 में जेनेवा कंवेंशन, के द्वारा मानवाधिकारों की विश्वजनीन घोषणा जारी की गई।
न्याय एक राजनीतिक मूल्य भी है और इस अर्थ में भी इसकी प्रासंगिकता व्यापक है क्योंकि राजनीति लोकतंत्र के साथ-साथ अन्य शासन प्रणालियों में भी राजनीतिक न्याय के आधार पर ही समतापूरक समाज और राष्ट्र की स्थापना की जा सकती है। मानवीय मूल्य होने के नाते न्याय की महत्ता इसी बात से स्पष्ट होती है कि यह सामाजिक जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है। आज न्याय के संबंध में केवल ऐसी संकल्पना को स्वीकार किया जाता है जिसका निर्माण जीवन के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक यथार्थ को सामने रखकर किया गया हो। न्याय के मूल्य को वेदों में उल्लिखित अहिंसा के अर्थ में भी समझा जा सकता है जहां अहिंसा को ‘सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और आदर‘ के रूप में स्वीकार किया गया है। यह तथ्य इस धारणा पर आधारित है कि सृष्टि सावयव है। यद्यपि भिन्न-भिन्न प्राणियों का स्वतंत्र अस्तित्व है परन्तु सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। सृष्टि एक समुच्चय है तथा सभी प्राणी इसके अंग है। सृष्टि तथा इन प्राणियों में अंग-अंगी का संबंध है। इस सृष्टि में एक विशिष्ट प्रकार की एकता है। अतः ‘न्याय‘ से अभिप्राय है इन सभी जीवों के प्रति एक समान व उचित व्यवहार। आधुनिक युग में न्याय की मुख्य समस्या यह है कि सामाजिक जीवन के अंतर्गत विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के प्रति वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों, लाभों, शक्ति और सम्मान के आवंटन का उचित आधार क्या होना चाहिए? परन्तु यह न्याय का संकुचित अर्थ है और इस परिभाषा का केन्द्रबिन्दु मानवमात्र है।
मानवीय मूल्यः महान नेताओं के जीवन से शिक्षा
समूचे विश्व में कई महान और युग प्रवर्तक नेता हुए हैं जिनमें कुछ प्रमुख है- महात्मा गांधी, अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर, नेल्सन मंडेला, वाक्लव हेवेल, मैडम आंग सा सू की तथा मदर टेरेसा। इनका नैतिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक उपलब्धियों से जिन मानवीय मूल्यों पर प्रकाश पड़ता है उसकी एक सूची यहां प्रस्तुत की जा रही है। ये हैंः
ऽ न्याय के प्रति प्रेम और लगाव
ऽ निःस्वार्थता
ऽ मानवता के प्रति आदर
ऽ प्रत्येक के लिए गरिमा
ऽ स्नेहिल और यथोचित व्यवहार
ऽ अहिंसा और शान्ति के प्रति आस्था
ऽ परोपकारिता
ऽ करुणा व सहानुभूति
महान प्रशासकों के जीवन से शिक्षा
हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारी वर्तमान पीढ़ी सौभाग्यशाली है क्योंकि उसमें विश्व के कुछ सर्वोत्तम प्रशासक पैदा हुए है। इनमें वर्गीस कुरियन, एम.एस. स्वामीनाथन, सैम पित्रोदा, ई. श्रीधरन, सी.डी. देशमुख, आई.जी. पटेल, वी.पी. मेनन तथा जीवीजी कृष्णामूर्ति का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है। इनकी उपलब्धियों से यह स्पष्ट है कि अपने कार्यो में इन्होंने मानवीय मूल्यों को हमेशा प्राथमिकता दी। यहां उन व्यावसायिक एवं मानवीय मूल्यों की एक सूची प्रस्तुत की जा रही है जो हमेशा से इन प्रशासकों के लिए मार्गदर्शक साबित हुए। ये हैं-
ऽ सत्यनिष्ठता
ऽ भेदभाव का विरोध
ऽ अनुशासन एक नागरिक के रूप में कर्तव्यपरायणता
ऽ सामाजिक समानता
ऽ कानून के प्रति सम्मान
ऽ नैतिक जवाबदेयता का बोध
ऽ साहस
ऽ आदर और भाईचारा
महान सुधारकों के जीवन से शिक्षा
भारत में कबीर, गुरूनानक देव, राजाराम मोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद जैसे कई समाज सुधारक पैदा हुए जिन्होंने समाज में व्याप्त कुप्रथाओं का पुरजोर विरोध किया तथा कई सामाजिक धार्मिक मुद्दों पर समाज को पुनर्जागृत किया। उनकी उपलब्धियों से जिन मानवीय मूल्यों पर प्रकाश पड़ता है उसकी एक सूची कुछ इस प्रकार हैः
ऽ मानवता के प्रति आदर
ऽ प्रत्येक की गरिमा का ध्यान
ऽ मानवतावाद
ऽ तर्क और अन्वेषण के सहारे सत्य की खोज
ऽ दयालुता और करुणा
ऽ आत्मसंतोष
ऽ सामाजिक समानता
मानवीय मूल्यों के आत्मसातीकरण में परिवार की भूमिका
परिवार ही वह प्राथमिक इकाई है जहां व्यक्ति का समाजीकरण होता है। बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में परिवार की अहम् भूमिका होती है। परिवार ही बालक को समाज का एक योग्य सदस्य बनाता है। परिवार उसे आचरण संबंधी नियमों से परिचित कराता है। परिवार में बालक के अनेक मानवीय मूल्यों का विकास होता है। वह प्रेम, आत्म-त्याग, परोपकार, कर्त व्य और आज्ञापालन तथा सहयोग का पाठ सीखता है। यह बालकों में सद्भावनाओं का संचार करता है। कई अध्ययनों से यह प्रमाणित हो चुका है कि जिन परिवारों में सदस्यों के बीच स्वस्थ संबंध रहते है, ज्यादातर उसी परिवारों के बच्चे सफलता और बड़ी-बड़ी उपलब्धियां कायम करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक संगठित परिवार ही अपने सदस्यों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है तथा जीवन में महान कार्य करने की असीम प्रेरणा भी देता है। परिवार के द्वारा दी गई मनोवैज्ञानिक सुरक्षा में ही बालक का मानसिक और बौद्धिक विकास हो जाता है जिससे बालक यह समझने लगता है कि व्यक्ति और समाज के प्रति उसका व्यवहार कैसा होना चाहिए।
मूल्यों के आत्मसातीकरण में समाज की भूमिका
प्रशासन से संबंधित नैतिक मूल्य व मानक उस समाज में प्रचलित सामान्य नैतिक मूल्यों व मानकों का ही एक रूप है, अर्थात् किसी समाज अथवा समुदाय एवं वहां के अभिशासकों के नैतिक मूल्यों व आदर्शों में फर्क नहीं किया जा सकता। समाज शब्द का प्रयोग बहुधा व्यक्तियों के एक ऐसे समूहों या सामाजिक साहचर्य के एक ऐसे रूप के लिए किया जाता है जिसके सदस्य एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं और जिनमें एकत्व की भावना, अन्तपरिस्परिकता, साझा संस्कृति तथा संगठित क्रियाकलापों जैसी विशेषताएँ होती है। फाइनर के शब्दों में, ‘‘सूक्ष्म विश्लेषण करने पर यह पाया जा सकता है कि किसी संस्था, संगठन या व्यवसाय से जुड़े नैतिक मापदंड उस देश में प्रचलित नैतिक मानकों व मूल्यों से कम या ज्यादा नहीं होता बल्कि उसी के अनुरूप होता है जिस देश में ये संस्था, संगठन या व्यवसाय संचालित रहते हैं, अर्थात् किसी संगठन या व्यवसाय के लिए तय किए नैतिक मूल्यों पर वहां की सभ्यता व बाह्य परिवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
किसी देश की सरकार की सफलता वहां के नागरिकों को जागरूकता एवं शासन में उनकी भागीदारी पर निर्भर करती है। यही कारण है कि नागरिकशास्त्र की सभी पुस्तकों में देश की प्रगति में वहां की जनचेतना की भूमिका को सबसे अहम बताया जाता है। जनचेतना एवं जागरूकता के माध्यम से देश की प्रगति तभी संभव है जब वहां की शिक्षा व्यवस्था तथा मीडिया नागरिकों के चरित्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का सही तरीके से निर्वाह करे। किसी देश में नागरिकों के चरित्र ही वह स्त्रोत है जिनसे देश के विकास व आधुनिकीकरण को ऊर्जा मिलती है।
ऐसे में शिक्षा, वयस्क शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से लोगों में देश प्रेम, अनुशासन व नागरिक चेतना प्रदान करने की पुरजोर आवश्यकता है। इससे लोक सेवकों को सभी समुदायों के लोगों का सहयोग मिल सकेगा तथा शासन में जनभागीदारी बढ़ेगी। ऐसे में लोक सेवक भी कठिन परिश्रम के लिए उद्यत होंगे ताकि जनता का समग्र विकास सुनिश्चित हो।
मूल्यों के आत्मसातीकरण में शिक्षण संस्थानों की भूमिका
नैतिक मूल्यों के आदान-प्रदान में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षा व्यक्ति को इस बात के लिए तैयार करती है कि वह सामाजिक परिवर्तन को नेतृत्व प्रदान करे। शिक्षा व्यक्ति में अनुकूलनकारी व्यक्तित्व का विकास करके परिवर्तन की प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करती है। यह नवीन मूल्यों एवं विचारों के आत्मसातीकरण में सहायक होती है और व्यक्ति को किसी विशिष्ट दिशा में परिवर्तन हेतु बौद्धिक एवं भावनात्मक रूप से तैयार करती है। शिक्षा समाज एवं संस्कृति की निरन्तरता के साथ-साथ उसमें वांछित सुधार एवं परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। परन्तु इसके लिए शिक्षा-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे प्रशिक्षु की स्वायत्तता व स्वतंत्रता बाधित न हो। किसी व्यक्ति के शैक्षणिक विकास के कई उद्देश्य हो सकते हैं जिनमें प्रमुख हैं- ज्ञानार्जन, संस्कृति-संरक्षण, व्यक्तित्व का विकास, सामाजिक न्याय की प्रगति, वैज्ञानिक मनोदशा का विकास, लोकतंत्र की सफलता तथा धर्मनिरपेक्ष मनोवृत्ति का विकास आदि। ये गुणात्मक रूप से उच्चतर एवं बेहतर जीवन की प्राप्ति में सहायक होते हैं। यह शिक्षा ही है जिसके माध्यम से समाज उच्च मानवीय मूल्यों का संरक्षण करती है और साथ में उन्हें प्रोत्साहन भी देती है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…