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मलयालम सिनेमा क्या हैं , पहली मलयालम फिल्म , मराठी सिनेमा किसे कहते हैं , ओडिया , प्रथम ओडिया फिल्म

पहली मलयालम फिल्म , मराठी सिनेमा किसे कहते हैं , ओडिया , प्रथम ओडिया फिल्म मलयालम सिनेमा क्या हैं ?

मलयालम सिनेमा
पहली मलयालम फिल्म गैर-मलयाली भाषा द्वारा बनाई गई। 1928 में जे.सी. डेनियल द्वारा मूक फिल्म विगथा कुमारन बनाई और यह दर्शकों को पसंद नहीं आई लेकिन यह पहली मलयालम फिल्म थी। दूसरी मलयालम मूक फिल्म मार्तंड वर्मा (1931) थी, जिसे सी.वी. रमन पिल्लई ने बनाया। एस. नोटानी द्वारा निर्देशित फिल्म बालन पहली सवाक मलयालम फिल्म थी जिसे एक बाहरी व्यक्ति, व्यवसायी एवं स्टूडियो के मालिक टी.आर. सुंदरम ने निर्मित किया। फिल्म में 23 गीत डाले गए। नेटानी ने गननम्बिका (1940) का भी निर्देशन किया। प्रह्लाद का निर्देशन गुरु गोपीनाथ एवं थाकमनी गोपीनाथ के साथ मिलकर के. सुब्रमण्यम् ने किया। पी.जे. चेरियन पहले मलयाली निर्माता थे जिन्होंने निर्मला (1949) फिल्म बनाकर मलयालम फिल्म उद्योग में पदार्पण किया। केरल का प्रथम स्अूडियो ‘उदया’ अल्लपी में बनाया गया था जिसे के.वी. कोशी और एमण् कुनचाको द्वारा स्थापित किया गया। इसने 1951 में जीवीथनुका एवं 1952 में नल्लाथंका जैसी हिट फिल्में बनाई।
1960 के दशक में, थकाझी, केसवदेव, पराप्पुरथ, बशीर, एमण्टी. वासुदेवन नायर, थोपिल भाषी तथा अन्य जैसे साहित्यिक लेखकों ने फिल्म-निर्माण को प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया। इस दशक की महत्वपूर्ण फिल्में थीं 1967 में पी. भास्करन की इरुट्टीनट अथामाऊ और 1968 में ए. विन्सेट की थुलाभरम (जिसने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता), 1961 में मुडीयानया पुथरन, 1963 में निनामनिगजा कल्पदुकल, 1964 में भाग्रवी निलायम, 1965 में मुरप्थेन्न, काव्यमेला, 1965 में ओडायिल निन्नू, 1967 में अनविशिचू कांडेथियिल्ला, 1968 में अध्यापिका और 1967 में कवलम चुनदन। 1965 में रामू करियात द्वारा निर्मित फिल्म चेम्मीन ने राष्ट्रपति स्वर्ण पदक जीता।
1970 के दशक में, अडूर गोपालाकृष्णन की स्वयंवरम् (1972) और एमण् टी. वासुदेवन नायर की निर्मलयम् (1973) जैसी फिल्में ‘नवीन सिनेमा’ की अग्रदूत बनीं जिसने खूबसूरत अनुभव पर जोर दिया। इस दशक की अन्य गौरतलब फिल्में थीं जी. अरविंदन की उत्तरायणम (1974), के.जी. जाॅर्ज की स्वप्नंदनम् (1975), पी.ए. बेकर की चुवना वुथुकल (1976), सी. राधाकृष्णन की अग्नि (1978), अडूर की कोड्डियट्टम (1977), अरविंदन की कंचन सीता (1977) और थेम्प (1978), के.आर. मोहनन की अश्वत्थामा (1978), जी.एस. पन्निकर की इकाकिनी (1978) पी. पद्मराजन की पेरूवझियमबलम (1979) और ओरीदाथोरू फयालवन, और भारथन की प्रयाणम।
1980 के दशक की बेहतरीन एवं स्मरणीय फिल्म अरविंदम की चिदंबरम थी जिसने 1985 में सर्वोच्च फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया। इस दशक के बेहद कुशाग्र फिल्म निर्माता जाॅन अब्राहम थे जिन्होंने चेरीयाचंटे कुरूरा क्रिययांगल (1983) और अम्मा अरियन (1986) फिल्में बनाईं जो माक्र्सवादी विचारधारा से प्रभावित थीं और केरल की संस्कृति एवं धर्म के पहलुओं को प्रस्तुत करती थीं।
1990 के दशक में महत्वपूर्ण कलाकार एवं अभिनेत्रियां दिखाई दींः सुरेश गोपी, जयराम,शोभना, उर्वशी, कार्तिक, मेनका, जलजा,गीथा, ललिथा, श्री विद्या, माधवी, सान्थी कृष्णा, फिलोमिना, सुकुमारी एवं कवियूर पोन्नम्मा। थिलाकन, भारत गोपी, नेदुमुदी वेणु, नरेंद्र प्रसाद, जगथी श्रीकुमार, इन्नोसेंट, मुरली, श्रीनिवासन, बालचंद्र मेनन, जगदीश, सिद्धीकी, मुकेश, ओडुविल उन्नीकृष्णन, राजन पी. देव एवं मामुकोया जैसे अभिनेताओं को उनकी योग्यता ने पहचान दिलाई। प्रमुख पाश्र्व गायकों में पी. जयाचंद्रन, एमण्जी. श्रीकुमार, जी. वेणुगोपाल, उन्नीमेनन, के.एस. चित्रा और सुजाता मोहन शामिल हैं। गायक के.जे. यसुदास ऐसे गायक हैं जिन्होंने लंबे समय तक मलयालम सिनेमा को अपनी आवाज दी। इस दशक की प्रसिद्ध फिल्मों में वस्थुहरा (अरविंदन), मथिलिकुल, विधेयन और कोथापुरुषन (अडूर गोपालाकृष्णन) इन्नेल, गिजन गंधर्वन (पद्मराजन), थजुवरम, अमाराम एवं वेन कालेम (भर्थन), देवासुरम, वमनापकिटू (आई.वी. सासी), स्वाथम, वनप्रस्थम (शाजी एन. करुण), पेरूमथाचन (अजयान), अद्वेथम, किलिकम्, थेनमाविन कोम्बाथ, कालापानी (प्रियदर्शन), सरगम, परिनायम, ऐन्नू स्वाथम जनकिकुट्टू (हरिहरन), पोंथान्मदा, मक्कम्मा (टी.वी. चन्द्रन), मझयेथुम मुनपे, उल्लादक्कम, ऐ पुझयुम कडानू, निरम (कमल), सुकरूथम (हरिकुमार) अभयम (सिवान), गुरु (राजीव अंचल), कझाकम (एमपी. सुकुमारन नायर), समंथरंगल (बालचंद्र मेनन), बूथकन्नाड़ी, ओर.माचेपु, कन्मडम (लोहिता दास), सोपनम, पेथरूकम, देसदानम, कलियट्टम एवं करुनमन (जयराज), देवथिनटे विकरूथिकल, कुलम (लेनिन राजेंद्रन), मागरीब, गरशोम (पी.टी. कुंजु मुहम्मद), इल्लायम मुल्लम (के.पी. सासी), पविथरम्, कन्नेजुथि पोतुमथोटू जलमरमारम (राजीव कुमार), सेसनेहम, थलायिना, मंथरम, थूवल कोट्टारम, वीनदुम चिल वेट्ट करयांगल (सथयन अंथिकाउद्ध, पुथिरूवथिरा नलि (वी.आर. गोपीनाथ), जनामदिनम (सूमा जोसोन), एवं कमिश्नर, इकालविमन, आरम यमपुरम (शाजी कईलास)।
2000 के दशक ने बीजू मेनन, मनोज के. जायन, दिलीप, कुनचाको बोबन, पृथ्वीराज, विनीथ, सुधीश, इंद्रजीथ, जयसूर्या, कलाभवन मानी, कृष्णा, मंजूर वारियर, समयुक्था वर्मा, दिव्या उन्नी, प्रवीणा, जोमोल, कात्या माधवन, मीरा जैसमिन, नव्या नायर, नयनथरा, भावना, समवुरूथ सुनील, ज्योथिरमयी, सूजा कर्थिका, पद्मप्रिया और लक्ष्मी गोपालरत्नामि जैसे कलाकारों एवं निर्देशकों के उत्थान को देखा। एक नई प्रवृत्ति देखने को मिली कि मलयालम फिल्मों की अभिनेत्रियां अक्सर गैर-मलयाली पृष्ठभूमि से आने लगीं। यह प्रवृत्ति अन्य दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में भी देखने को मिलने लगी। लाल जोस (अचनूरंगाथा वीडू, क्लामेट्स) बलेसी (कझचा, थनमात्रा, पालुंकू), रोशन एंड्रयूज (उदयनानू, थारम, नोटबुक) और मेजर रवि (कीरथी चक्र) द्वारा निर्मित फिल्मों ने हाल के समय में बेहद प्रभाव छोड़ा है। इनमें से अधिकतर फिल्में सामाजिक रूप से सशक्त हैं।
मराठी सिनेमा
मराठी सिनेमा भारत में जड़ें जमाने वाले शुरुआती प्रादेशिक फिल्म उद्योगों में से एक था। मूक फिल्में पुंडलिक एवं राजा हरीशचंद्र महत्वपूर्ण फिल्में थीं जो हर तरीके से पूरी तरह मराठी थीं। प्रसिद्ध फिल्म निर्माता वी. शांताराम ने 1927 में अपनी पहली फिल्म बनाई; उनकी फिल्म अयोध्याचा राजा पहली सवाक मराठी फिल्म थी (1932)। इसे हिंदी में भी निर्मित किया गया। 1930 के दशक की मराठी फिल्मों को हिंदी में भी बनाया गया और वे मराठी थियेटर से प्रभावित थीं। 1935 में, मराठी में पहली सामाजिक सवाक फिल्म विनायक द्वारा निर्देशित विलासी ईश्वर थी। उन्होंने छाया, धर्मवीर, देवता, ब्रह्मचारी, अर्द्धगिनी, सरकारी पहुंने एवं अन्य सामाजिक फिल्में भी बनाईं। सामाजिक फिल्म सूनबाई (भालजी पंधेरकर द्वारा निर्मित) बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुई। सवकारी पाश को भारत में पहली यथार्थवादी फिल्म के तौर पर देखा गया। इसका निर्माण 1930 के दशक में बाबूराव पेंटर ने किया।
फिल्म निर्माण के लिए लाइसेंस व्यवस्था 1940 के दशक में लागू की गई जिसने मराठी फिल्म निर्माण को प्रभावित किया। स्वतंत्रता पश्चात् के समय ने शांताराम, बेडेकर, जागीरदार, वसंत जोगलेकर, आचार्य अत्रे, भालजी पंधेरकर एवं बाबूराव पंधेरकर जैसे निर्देशकों को देखा जिन्होंने अमर भूपाली, वासुदेव बलवंत, मीठ भाकर और शायमची आई जैसी फिल्मों का निर्माण किया। इस समय राजा परांजपे, दत्ता धर्माधिकारी, राम गाबले, अनंत माने, राजा ठाकुर एवं माधव शिंदे जैसे नये निर्देशक उदित हुए।
1960 के दशक में, महाराष्ट्र (गुजरात से पृथक्) का सृजन एक महत्वपूर्ण घटना थी। मराठी फिल्मों के लिए राज्य पुरस्कार की पहल की गई। राज्य पुरस्कार प्राप्त प्रथम फिल्म प्रपंच थी। राजा ठाकुर की रंगयालया रात्रि आशा, इक्ती, मुम्बाईचा जबाई, भालजी पांधारकर की साधी मानसे, वसंत जोगलेकर की श्वेतचा मालूसारा, माधव शिंदे की कन्यादान और धर्मकन्या, राम गबाले की छोटा जवान और एन.बी. कामत की वावताल इस दशक की प्रसिद्ध फिल्में थीं। 1980 के दशक ने शपित, भास्कर चंदावरकर की अत्याचार एवं श्रीराम लागू की झाकोट जैसी फिल्मों का निर्माण देखा।
1990 के दशक में संजय सुरकार की चैकट राजा और कैफ, जव्बार पटेल की एक होता विदूषक और मुक्ता, महेश कोठारी की मजा चैकुला, आमोल पालेकर की बंगारवदी, सुमित्रा भावे की दोघी, पुरुषोत्तम बेर्डे की भाषम, संजय रावल की वजीर और अरुण खोपकर की कथा दोन गणपत रावचिं जैसी फिल्मों की सफलता देखी।
1990 के दशक में और 2000 के दशक के प्रारंभ में संजय सुरकार (घर-ए-बहार), आमोल पालेकर (ध्यासपर्वा), समित्रा भावे-सुनित सुक्थानकर (वास्थुपरुष, देवराति) गजेंद्र अहीरे (नाॅट ओनली मिसेज राउत), संदीप सांवत (श्वास), विपिन नडकरनी (उत्तरायण) तथा चित्रा पालेकर (मति माया) जैसे फिल्म-निर्माताओं ने अविस्मरणीय फिल्में बनाईं।
ओडिया सिनेमा
1934 में, काली फिल्म स्टूडियो में बनी प्रथम ओडिया फिल्म सीता विवाह रिलीज हुई। इसे पुरी के मोहन सुंदर देब गोस्वामी द्वारा बनाया गया। इस समय तक ओडिया सिनेमा में कई पेशेवर मंच कलाकार काम करने लगे, जिनमें प्रमुख हैं मनोरंजनदास, रामचंद्र मिश्रा, गोपाल चोटराई, श्रद्धा प्रसन्ना नायक, भंजकिशोर पटनायक, बसंत कुमार महापात्रा और विश्वजीत दास। दूसरी ओडिया फिल्म ग्रेट ईस्टर्न मूवीटोन के बैनर तले कालीचरण पटनायक द्वारा निर्मित ललिता थी।
1950 का दशक सामाजिक-मीमांसिक था जिसमें रोल्स-28, अमारी गान झिया, केदार गौरी, साप्ता सैया और भाई.भाई जैसी फिल्में बनीं।
पी.के. सेनगुप्ता 1960 के दशक के एक महत्वपूर्ण निर्देशक थे जिन्होंने श्री लोकनाथ, सूर्यमुखी एवं अरुंधती जैसी फिल्में बनाई जिन्होंने प्रशंसा प्राप्त की और सूर्यमुखी तथा अरुंधती को नेशनल अवाॅर्ड प्राप्त हुआ।
1975 में ममता फिल्म के हिट हो जागे से ओडिया फिल्म जगत को नई ऊर्जा प्राप्त हुई। 1980 के दशक में सिनेमा की एक नई लहर देखी जा सकती थी। मगधेहन महापात्रा को 1982 में उनकी फिल्म सीता रति के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्होंने नीराबा झाडा (1984), क्लांता अपहरण (1985), मझी पहचा (1987) और अंधा दिगांत (1989) भी बनाई। नीरद महोपात्रा की माया मृगा और सागर अहमद की धारे अलुबा को 1984 के मुम्बई के फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया गया। महमूद हुसैन की अनवांटेड को भी प्रशंसा प्राप्त हुई।
ओडिया फिल्म उद्योग 1990 के दशक से विशेष तौर पर आगे बढ़ा लेकिन आलोचकों ने फिल्मों की गुणवत्ता में हृास की बात कही। आजकल फिल्म-निर्माण में व्यवसायीकरण एक महत्वपूर्ण कारक बन गया है। इस कारण अधिकतर फिल्मों की शूटिंग विदेशी लोकेशंस पर होने लगीं (मोटे बोहू, करी ने जा पहली फिल्म थी जिसकी पूरी शूटिंग विदेशी लोकेशंस पर हुई)। प्रसिद्ध अभिनेताओं एवं अभिनेत्रियों में सिद्धांत महापात्र, अनुभव, सब्यसाची, बुद्धादित्य, आकाश, अरिंदम, अरचिता एवं बरशा प्रियदर्शिनी हैं।
पंजाबी सिनेमा
पहली पंजाबी सवाक् फिल्म शैला, जिसे पिंड दी कुड़ी के तौर पर भी जागा जाता है, थी और इसमें प्रसिद्ध अभिनेत्री नूरजहां ने अभिनय किया तथा 1936 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में के.डी. मेहता द्वारा निर्मित इस फिल्म को लाहौर में प्रदर्शित किया गया। यह फिल्म बेहद लोकप्रिय हुई। के.डी. मेहता ने 1938 में हीर सियाल भी बनाई जिसमें नूरजहां के साथ-साथ नए कलाकार बालो एवं एमण् इस्माइल थे, और यह फिल्म भी काफी सफल हुई। उनकी फिल्मों में दूसरों को भी प्रेरित किया। स्टूडियो खोले गए और कई कलाकार, फिल्म निर्माता, निर्देशक और तकनीशियन बाॅम्बे (अब मुम्बई) और कलकत्ता (अब कोलकाता) से लाहौर आ गए, जिनमें शांता आफ्टे, मोतीलाल, चंद्रमोहन, हीरालाल, नूरजहां, मुमताज शांति, वली, सैयद अताहुल्लाह शाह हाश्मी और शंकर हुसैन प्रमुख थे। 1947 के विभाजन ने पंजाबी सिनेमा को बेहद प्रभावित किया अधिकतर मुस्लिम कलाकार एवं निर्देशक पाकिस्तान चले गए। फिल्म निर्माताओं में पोश्ती, दो लछियां, भांगड़ा जैसी फिल्में बनाईं जिन्हें कुछ सफलता प्राप्त हुई। 1950 के दशक में, काॅमेडी का ट्रैंड प्रमुख हो गया थाः मुल्क राज भाखरी की भांगड़ा (1958) को मोहन भाखरी ने जट्टी के नाम से 1980 में दोबारा बनाया, तथा जाॅनी वाकर (1957) बेहद हिट हुई।
1960 के दशक में, सतलज दे कंडे (1964) एक बड़े बजट की रोमांटिक फिल्म थी जिसे फिल्म निर्देशक पद्म प्रकाश माहेश्वरी ने बनाया, और जो बेहद हिट हुई और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किया। 1969 में धार्मिक फिल्म नानक नाम जहाज है स्वतंत्रता पश्चात् भारत में वास्तविक रूप से पहली बेहद सफल पंजाबी फिल्म थी।
1970 के दशक में, पंजाबी वंश के हिंदी अभिनेता पंजाबी फिल्म में बेहद महत्वपूर्ण बन गए। इस दशक की महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय फिल्मों में, मेले मितरन दे (1972), मन जीते जग जीते (1973), धार्मिक फिल्म, दो शेर (1974), भगत धन्ना जट, सच्चा मेरा रूप है, और बेहद सफल फिल्मों, दुख भंजन तेरा नाम, दाज गिछा, मैं पापी तुम भक्षणहार, पापी तरे अनेक, संतो-बंतो, सरदार-ए-आजम, सवा लाख से एक लड़ाऊं, साल सोलहवां चढ्या, सत श्री अकाल, और शहीद करतार सिंह सरभा जैसी फिल्में हैं। विलायती बहू (1978) पंजाबी सिनेमा में अभी तक की पहली रीमेक फिल्म है। धार्मिक फिल्म गुरु मान्यो ग्रंथ तुरंत हिट हुई। तिल-तिल दा लेखा ने सर्वोत्तम कहानी के लिए पंजाब राज्य सरकार का पुरस्कार जीता और 1979 की सबसे अच्छी फीचर फिल्म बनी।
1980 के दशक में, चन परदेशी, पहली पंजाबी फिल्म थी जिसने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और 1980 में रिलीज हुई। फौजी चाचा, मुल्क राज भाखरी की भांगड़ा (1958) और जट्टी को जबरदस्त सफलता मिली। ऊंचा दर बेबे नानक दा (1985) एक धार्मिक फिल्म थी जिसने गुरदास मान को बतौर स्टार पहचान दिलाई। इस दशक की अन्य फिल्में सरपंच, यारी जट दी, मामला गड़बड़ है, मुहम्मद सादिक की गुड्डो, और वीरेंद्र की बेरी और लोंग दा लटकारा थीं। इस समय गुग्गू मिल और योगराज सिंह ने प्रमुख भूमिका,ं अदा कीं।
1990 के दशक में, कुर्बानी जट्ट दी, दुश्मनी दी आग, बदला जट्टी दा, उडीकन सों दियां, सों मैनु पंजाब दी, फिल्मों ने प्रशंसा प्राप्त की। सुखदेव आहलुवालिया बेहद सफल निर्देशक के तौर पर उदित हुए। कचहरी (1994) जिसमें गुरदास मान ने अभिनय किया, ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।
2000 के दशक में, दर्द परदेशां दी, खालसा मेरा रूप है खास, जी आंय नू, असा नू मान वतन दा (2004), जीजा जी, देश होया परदेस, मैं तू असि तुसि, यारां नाल बहारां, और नालायिक (सभी 2005 में रिलीज), कम्बदी कलाई (2006), रूस्तम-ए-हिंद और मिट्टी वजन मरदी (2007), यारियां, मेरा पिंड, लख परदेशी हो,, हेवन आॅन अर्थ, और सतश्री अकाल (2008), जग ज्योदये देह मेले और तेरा मेरा कि रिश्ता (2009) प्रदर्शित हुईं। चविन दरिया, ईश अमितोज कौर द्वारा निर्देशित, फिल्म सितंबर, 2011 में रिलीज हुई। ईश अमितोज और पंजाब फिल्म उद्योग में पहली महिला थीं जिन्होंने फिल्म निर्देशन, निर्माण एवं लेखन किया।
तमिल सिनेमा
तमिल सिनेमा (इसे कोलीवुड के नाम से भी जागा जाता है) फिल्म निर्माण, राजस्व और विश्वभर में वितरण के संदर्भ में भारत का दूसरा बड़ा फिल्म उद्योग है। इसके दर्शक मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक-से हैं। तमिल सिनेमा ने भारत के अन्य फिल्म निर्माण उद्योगों को सदैव प्रभावित किया है, और चेन्नई तेलुगू सिनेमा, मलयालम सिनेमा, कन्नड़ सिनेमा और हिंदी सिनेमा के लिए सदैव एक दूसरा स्थान रहा है। आधुनिक समय में, तमिल फिल्मों का चेन्नई से सिंगापुर, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, जापान, ओशनिया, मध्य-पूर्व, पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के सिनेमा घरों में वितरण किया जा रहा है। तमिल फिल्म उद्योग ने विश्व के अलग-अलग कोनों में रहने वाले तमिल लोगों में फिल्म निर्माण को प्रोत्साहित किया है।
यह 1897 का समय था जब एक यूरोपियन एक्जिविटर ने मद्रास (अब चेन्नई) में विक्टोरिया पब्लिक हाॅल में मूक लघु फिल्मों का चयन प्रदर्शन के लिए किया। मद्रास में (अब चेन्नई) मूक फिल्मों के प्रदर्शन के लिए इलेक्ट्रिक थियेटर स्थापित किया गया। लिरिक थिएटर, जो माउण्ट रोड पर बनाया गया, ने अंग्रेजी में नाटकों का मंचन, पश्चिमी शास्त्रीय संगीत आयोजन, और बाॅलरूम नृत्य का आयोजन किया। यहां पर मूक फिल्मों का भी प्रदर्शन किया गया।
1916 में, कीचक वधम, पहली मूक दक्षिण भारतीय फिल्म थी जिसे रिलीज किया गया। इसे आर. नटराज द्वारा निर्मित एवं निर्देशित किया गया, जिन्होंने भारतीय फिल्म कंपनी लिमिटेड की स्थापना की।
1940 के दशक ने निर्देशकों के पर्दापण का दौर देखा जिसमें एस.एसबासन भी शामिल हैं। उनकी अलौकिक फिल्म चंद्रलेखा 1948 में रिलीज हुई, जो लंबे समय तक सबसे महंगी फिल्म बनी रही। इसका वितरण जैमिनी स्अूडियो द्वारा किया गया जिसकी स्थापना वासन ने 1940 में की थी।
शिवाजी गणेशन (वीरापांड्या कट्टाबोम्मन, कप्पालोट्टिया धामिझन, पसमलार, बसंथ मालीगाई, थंगपथकम, पटिकाडा पट्टानामा, नवराथरी, वियतनाम बिडू, मुथल मरियाथाई) और एमण्जी. रामचन्द्रन या एमजीआर (मलाईक्कालन, नाडोली मन्नम, अइराथिल ओरूवन, रिक्शाकरन) के उदय ने व्यक्ति पूजा को जन्म दिया जिनकी लोगों द्वारा पूजा की जागे लगी (एमजीआर बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने)। दोनों अभिनेताओं ने 1950 और 1960 के दशकों में तमिल फिल्म उद्योग पर राज किया। जैमिनी गणेशन रोमांटिक फिल्मों के मुख्य अभिनेता थे। इस समय के विशिष्ट निर्देशकों में कृष्ण पंजू, श्रीधर, पी. माधवन, पीनीलकांतन, ए.पी. नाग्रजन, ए.सी. त्रिलोकचंद्र, के.एस. गोपालकृष्णन और सी.वी.राजेंद्रन शामिल थे।
1970 के दशक ने भारथी राजा (16 व्याथिनिले, पुथिया वरपुका, सिगप्पू रोजक-कल, किझके पोकुम रेल, वेदम पुटिथू, और मुधल ममरियाथे) जैसे फिल्म-निर्माताओं का उत्थान देखा, जिन्होंने विजुअल तकनीक का प्रयोग किया।
इस समय बालू महेंद्रू (अजीयाथा कोलांगल, मूंद्रम पिराई, मूदू पानी, वीडू) ने नए ट्रेंड को स्थापित किया जिनकी फिल्मों में काफी विजुअल अपील, गजब का चरित्र-चित्रण और भाव-चित्रण प्रस्तुत किया गया।
1980 के दशक से, रजनीकांत और कमल हासन लोकप्रिय हुए और सुपर स्टार बन गए।
1990 के दशक में, अरविंद स्वामी, विजय, अजित एवं प्रभुदेवा जैसे अभिनेताओं ने तमिल फिल्म परिदृश्य में प्रवेश किया। खुश्बू, राधिका, गोथामी, सरन्या, रूपिनी, सुकन्या, देवयानी, रम्भा, ज्योतिका, मीरा जैसमिन, भावना, नव्या नायर, ज्योथिरमयी, स्नेहा लोकप्रिय अभिनेत्रियां रहीं। नगमा, रम्भा, सौंदर्या, रोजा एवं सिमरन ने प्रमुख भूमिका,ं निभाईं। सुंदर सी.ए. राजीव मेनन, एस इजहिल, सोल्वा एवं चेरान ने फिल्म उद्योग में प्रवेश किया।
तमिल सिनेमा ने भारत में बेहद प्रतिभाशाली संगीत निर्देशकों को जन्म दियाः इल्लयाराजा, ए.आर. रहमान, हरीस जयराज, देवा, युवान शंकर राजा और श्रीकांत देवा।
2000 के दशक ने नए अभिनेताओं का पदार्पण देखाः जयराम रवि, धनुष, विशाल, आर्य, जीवा भरथ, जयप्रकाश राज, पशुपथि एवं काॅमेडियन विवेक और साथ ही वेदिवेलू। असिन, नयनतारा, त्रिशा कृष्णनन, तमन्ना भाटिया, संध्या, रीमा सेन, भूमिका एवं नमिथा प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से थीं; और पी. वासू ए गौथन मेनन, चेरान, हरि, सारन, एमण् राजा, सुसी गणेशन, सेल्वा, अमीर एवं बूपथि पंडियन प्रसिद्ध निर्देशकों में से हैं।

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