हिंदी माध्यम नोट्स
मधुमक्खी पालन कौन सा कल्चर है क्या है कैसे करे | मधुमक्खी पालन के लाभ किसे कहते हैं कहलाता है
मधुमक्खी पालन के लाभ किसे कहते हैं कहलाता है मधुमक्खी पालन कौन सा कल्चर है क्या है कैसे करे ?
मधुमक्खी-पालन
मधुमक्खियों के छत्ते बहुत प्राचीन काल से स्लाव लोगों को जंगली मधुमक्खियों के पालन का विचार सूझा और वे उन्हें कृत्रिम खोंडरों में रखने लगे। शुरू शुरू में मधुमक्खी-घरों का काम बीच में पोले किये गये पेड़ों के तनों के हिस्सों से लिया जाता था। इनमें तल , छप्पर और प्रवेशद्वार की व्यवस्था की जाती थी। ये खोंडर उपयोग की दृष्टि से बहुत ही असुविधाजनक थे। शहद और मोम प्राप्त करने के लिए मधुमक्खियों को मार डालना पड़ता था।
अलग की जा सकनेवाली चौखटों वाले छत्तों (आकृति ६३ ) की खोज ने मधुमक्खी-पालन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण क्रांति ही कर डाली। चौखटें आसानी से अलग की जा सकती हैं और बिना किसी कठिनाई के शहद निचोड़ लिया जा सकता है।
मधुमक्खी-पालन में मधुमक्खी पालन मक्खियों के परिवार और चौखटों की बराबर देखभाल , मधुमक्खी-घरों की सफाई, पुराने छत्तों को हटाना इत्यादि बातें शामिल हैं। यदि जाड़ों में छत्ते में रखा हुआ सारा भोजन खाया जा चुका हो और मक्खियों का परिवार कमजोर हो गया हो तो छत्ते में चौखट के ऊपर खुराक की एक ताक रख दी जाती है जिसमें शहद या चाशनी डालते हैं। जाड़ों में जिन परिवारों की बहुत-सी मधुमक्खियां मर जाती हैं उन परिवारों को एकत्र कर दिया जाता है और गरमियों में जो परिवार बहुत बड़े हो जाते हैं उन्हें विभक्त कर दिया जाता है।
मधुमक्खी-पालक सिर पर एक रक्षक जाली ओढ़ते हैं और एक धूम्र-पात्र का उपयोग करते हैं। यदि धूम्र-पात्र से धुएं का प्रवाह छत्ते में छोड़ दिया जाये तो मक्खियां छत्तों में से शहद इकट्ठा करना शुरू करती हैं और मनुष्य की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखतीं। छत्ते के पास साफ कपड़े पहनकर जाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पसीने की गंध मधुमक्खियों को उत्तेजित कर देती है।
पंुज रानी ‘महल‘ छोड़ने से पहले जवान रानी गुंजार करने लगती है। बूढ़ी रानी इसका जवाब देती है। मधुमक्खी-पालक यह ‘संगीत‘ सुनने के लिए बड़े उत्सुक रहते हैं। बूढ़ी रानी जवान रानी के ‘महल‘ पर डंक मार मारकर उसे मार डालने की कोशिश करती है। मजदूर मक्खियां उसे रोक डालने की कोशिश करती हैं और उत्तेजित होकर वे भी गुनगुन शुरू कर देती हैं।
यदि बूड़ी रानी जवान रानी को मार डालने में असफल रही तो वह कुछ मधमक्तियों को साथ लिये उस छत्ते को छोड़कर चली जाती है। आसपास ही किनी पेड़ की शाखा पर यह रानी उतर आती है। वाकी मधुमक्खियां उसके चारों और ठसाठस भीड़ या पुंज (आकृति ६४) लगाये खड़ी रहती हैं। यदि इस पुंज को पकड़कर खाली मधुमक्खी-घर में रख दिया जाये तो मधुमक्खी-पालन केंद्र में एक नया परिवार वसता है। यदि यह अवसर हाथ से चला गया तो मधुमक्खियां पुराने खोंडर आदि जैसी सुविधाजनक जगह ढूंढकर वहां अपना कुनबा बसाती हैं।
आम तौर पर मधुमक्खी-पालक पुंज के बाहर उड़ आने की प्रतीक्षा नहीं करते बल्कि कृत्रिम रीति से पुंज बनाने का तरीका अपनाते हैं। शाम को जब सारी मधुमक्खियां घर पर होती हैं उस समय रानी के साथ कुछ मक्खियां और आधी चौखटें वहां से निकालकर खाली मधुमक्खी-घर में रख दी जाती हैं। पुराने मधुमक्खी-घर में रानी-महल सहित एक चौखटा रह जाता है। वहां नयी रानी का राज शुरू होता है । इस हालत में पुंज उड़कर बाहर नहीं आता जबकि पालनकेंद्र के परिवारों की संख्या बढ़ जाती है।
परागीकरण के लिए मधुमक्खियों का उपयोग
फूलों के यहां मेहमानी करते समय मधुमक्खियां पौधों का परागीकरण करती हैं। इससे मनुष्य को शहद और मोम से अधिक लाभ मिलता है। अतः मधुमक्खी-पालक अक्सर फसल की वृद्धि के लिए पालन-केंद्र रखते हैं। मधुदायी पौधों की बहार के समय छत्ते खेतों में ले जाये जाते हैं। जिनका परागीकरण करना है उन पौधों की ओर मधुमक्खियों को आकृष्ट किया जा सकता है। इसके लिए चाशनी का एक बरतन मधुमक्खी-घर में चौखटों के ऊपर रख दिया जाता है। पहले इस चाशनी में उन पौधों के फूल डालकर सुगंधित काढ़ा बनाया जाता है जिनका परागीकरण करना है। इस चाशनी की चाट लगी हुई मधुमक्खियां उसी सुगंध के फूल ढूंढने लगती हैं। इस तरीके से परागीकरण और उपयुक्त पौधों की फसल सुधारी जा सकती है। इसके अलावा इससे छत्तों में शहद का संचय भी बढ़ता है।
प्रश्न – १. मधुमक्खियों का संवर्द्धन कैसे किया जाता है ? २. मधुमक्खियों की सहायता से हम फसल किस प्रकार बढ़ा सकते हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – १. सेव , नाशपाती , बर्ड-चेरी, लिलैक इत्यादि कीट-परागीकृत पेड़-पौधों की कलियों का खिलना शुरू होने से पहले एक टहनी के चारों ओर जालीदार कपड़ा बांध दो ताकि कीट उन फूलों के पास न आ सकें। देखो इस टहनी में फल लगते हैं या नहीं। २. गरमियों में मधुमक्खीपालन केंद्र में जाकर मधुमक्खी-पालक के काम का निरीक्षण करो।
भारत का कीट -संसार
भारत के कीट भारत में ऐसे बहुत-से कीट हैं जो अन्य देशों में नहीं पाये जाते। उनमें से कुछ तो बहुत ही सुंदर होते हैं-उदाहरणार्थ नीबू की तितली जिसके चौड़े , मजबूत पंख होते हैं और नन्ही-सी अवावीली पूंछ। उष्णकटिबंधीय समृद्ध वनस्पति संसार में विचरनेवाली ये तितलियां सुंदरता में अक्सर फूलों से भी इक्कीस रहती हैं। भारत के वीटल भी तितलियों से उन्नीस नहीं हैं। उदाहरणार्थ दमकीला सुवर्ण वीटल बुप्रेस्टिस और चमकीला सेटोनिया बीटल। बारहसिंगा बीटल और गेंडा वीटल जैसे कुछ भारतीय कीट तो आश्चर्यजनक रूप में बड़े होते हैं। वहां जोरों से झनकारते हुए कई झींगुर बड़ी भारी संख्या में मिलते हैं। रात में आसमान जगमगाते जुगनुओं से भरा रहता है। कुछ कीटों का आकार-प्रकार बड़ा विचित्र होता है। उदाहरणार्थ , यष्टिका कीट की शकल टहनी जैसी होती है तो पर्ण कीट के पंख पेड़ की पत्तियों के समान होते हैं य गांगिलस गांगिलाउस के पैरों और सीने पर के उभाड़ भी पत्तियों से लगते हैं (आकृति ६५)।
भारत में बहुत-से उपयुक्त कीट पाये जाते हैं। मधुमक्खियों और रेशमी कीड़ों के अलावा भारतीय लोग सफलतापूर्वक शल्की कीटों का भी पालन करते हैं।
शल्की कीट नन्हे नन्हे प्राणी होते हैं जो वयस्कता में पूर्णतया गतिहीन होते हैं । गैरजानकार व्यक्ति शायद ही विश्वास करेगा कि ये जीवित हैं। मादा शल्की कीट अपनी सूडें पौधे में गड़ाकर उसका रस बिल्कुल बिना रुके चूस लेती है। इस कारण वे लगभग अपना सारा जीवन एक स्थान में बिताती हैं। यहीं वे पैदा होती हैं और यहीं मर जाती हैं। मोमिया कीट के शरीर से मोम के शल्क रसते हैं और वे उसके शरीर पर बढ़ते हैं। ये शल्क इकट्ठे किये जाते हैं और उनसे तथाकथित सफेद मोम बनाया जाता है जो दवाएं बनाने और पत्थर तथा लकड़ी की पालिश करने के काम में आता है। लाक्षा-कीट के स्राव से लाख बनाते हैं जिसका उपयोग कीमती वार्निशों के उत्पादन में किया जाता है।
मलेरिया के मच्छर और गरम आबोहवावाले देशों में शीघ्रता से बढ़नेवाले अन्य रक्तशोषक कीड़े-मकोड़े बीमारियों के फैलाव में सहायक होते हैं। इसके अलावा कई कीट खेती के लिए बड़े नुकसानदेह होते हैं।
भारत के कई कीट जंगलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसका एक उदाहरण हरकुलस बीटल है। इसका बड़ा और मोटा-सा डिंभ काकचेफर के डिंभ से मिलताजुलता होता है और अक्सर नारियल के पेड़ों के तनों को भारी नुकसान पहुंचाता है।
भारत में उगाये जानेवाले खट्टे फलों के पेड़ों को विभिन्न कीटों और तितलियों के डिंभ हानि पहुंचाते हैं। खट्टे फलों का रस चूसनेवाले नन्हे नन्हे गलभ और नीबू की बड़ी और खूबसूरत तितली इसके उदाहरण हैं।
दीमक ( प्राकृति ६६) तो भारत के मकानों के लिए एक सचमुच भयंकर अभियाप है। वे अपना अधिकतर जीवन बड़े बड़े परिवारों के रूप में जमीन के अंदर वांबियों में बिताती हैं। परिवार में एक रानी , नर, बहुत-से मजदूर और मिपाही होते हैं। रानी एक विशाल उदरवाली बड़ी-सी मादा होती है। मादा अत्यंत बहुप्रम् होती है और लगभग १० वर्ष के अपने जीवन-काल में दस करोड़ अंडे देती है। मजदूर , रानी और बच्चों का पालन-पोषण करते हैं । सिपाही-दीमकों के सुपरिवर्दि्धत मजबूत जबड़े होते हैं। ये सिपाही वांवी की रक्षा करते हैं। बांबी में जवान नर-मादाओं के इकट्ठा होने के बाद उनके पुंज बनते हैं। इस समय बांबी की मिट्टी की दीवार टूट जाती है। सूराख्खों में पहले पहल रक्षक दिखाई देते हैं और फिर एक के बाद एक नर और मादा। वे इतनी बड़ी संख्या में बाहर पड़ते हैं कि दूर से दीमकों का यह पुंज नन्हे नन्हे रुपहली पंखों के कारण चमकनेवाली धूम्र-रेखा-सा लगता है।
पुंजीभवन के बाद नर-मादा जमीन पर गिरते हैं और अपने पंख खा जाते हैं। अब हर जोड़ा जमीन में सूराख खोदकर एक नयी वांबी की नींव डालता है। जब दीमकें जमीन पर रेंगती रहती हैं उन्हें छिपकलियां, पंछी और दूसरे दुश्मन चट कर जाते हैं।
दीमकें भोजन के लिए रात में बाहर निकलती हैं। आदमियों के अनजाने में वे मकानों के लकड़ी के हिस्सों, टेलेग्राफ के खंभों, रेलवे के स्लीपरों और लट्ठों को खोद-खरोंचकर खोखला बना देती हैं। कभी कभी तो वे पूरे के पूरे मकान को ढेर कर देती हैं। दीमकें ऊन , चमड़ा और कपड़ा भी खा जाती हैं।
भारत के बहुत-से कीट खेती को बड़ी हानि पहुंचाते हैं। उदाहरणार्थ स्वार्मिंग कैटरपिलर (आकृति ६७ ) धान का नाश करती हैं। ये इल्लियां धान की पत्तियां खा डालती हैं और बहुत बड़ी संख्या में उनके नवांकुरों पर धावा बोल देती हैं। दिन में वे जमीन की दरारों में छिपी रहती हैं और रात में भोजन के लिए बाहर आती हैं। इस कारण वे कभी कभी तो सारी की सारी फसल बरबाद कर देती हैं और किसान को कानों खवर नहीं होती। धान को वाद की अवस्था में स्कोकनोलिस विपन्स्टिफायर और भी गंभीर हानि पहुंचाती है (आकृति ६८)। ये धान की डंडियों में रहती हैं और अंदर ही अंदर उन्हें खाती जाती हैं । डंडी के निचले हिस्से में इनके प्यूपा बनते हैं। झींगुरिया छछूदर (प्राकृति ६९) अक्सर धान की जड़ों को बरबाद कर डालते हैं। यह जमीन में घुसकर सूराख बनाता है। अपने चौड़े अगले पैरों का उपयोग करते हुए वे बड़ी तेजी के साथ जमीन में सुरंगें बनाते हैं और पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। कई किस्मों की टिड्डियां भी धान तथा दूसरे अनाजों को नष्ट कर देती हैं।
हानिकर कीटों से धान के खेतों की रक्षा करने के लिए फसल कटाई के फौरन बाद उन्हें फिर से जोतना चाहिए और काफी देर तक पानी के नीचे रखना चाहिए। इस काम में बत्तखों का भी उपयोग किया जा सकता है। ये बेहद पेटू जीव कीटों को बड़ी भारी संख्या में खा डालते हैं। हानिकर कीटों के लिए भोजन का काम देनेवाले मोथों को नष्ट कर देना भी महत्त्वपूर्ण है। कई कीटों को डी० डी० टी० पाउडर ऋऋ की सहायता से सफलतापूर्वक नष्ट किया जा सकता है।
भारत के दूसरे कीमती पौधों को भी तरह तरह के हानिकर कीटों से नुकसान पहुंचता है। चाय शलभ चाय बगानों को बरबाद कर देता है। छोटे छोटे समूहों में बसते हुए ये शलभ चाय की पत्तियों में सुरंगें बना डालते हैं और उन्हें इस हद तक दूषित कर देते हैं कि वे आखिर किसी काम की नहीं रहतीं।
धान की तरह ऊख की फसल को भी डंठल-खोर कीट नुकसान पहुंचाते हैं।
गुलाबी डोड़ा कृमि कपास का सबसे खतरनाक दुश्मन है। कपास के डोड़े में घुसकर यह रेशों और विनौलों को खा जाता है। बिनौलों में जोकि आम तौर पर जोड़ों के रूप में होते हैं , यह इल्ली प्यूपा में परिवर्तित होती है। भारत में ये कपास की कुल फसल के एक चौथाई हिस्से को बरबाद कर देती हैं। डोड़ों में होते हुए इन इल्लियों को मार डालना बहुत कठिन है। उन्हें तभी मार डालना चाहिए जब वे विनौलों में होती हैं। इस काम के लिए बिनौलों को बंद जगह में विषैली गैसों या ऊंचे तापमान में रखा जाता है। फसल कटाई के बाद खेतों में जो इल्लियों सहित डोड़े विखरे रहते हैं उनका उपयोग चारे के रूप में करना चाहिए। ऐसे खेतों में चरते हुए जानवर इन्हें खा लेते हैं या पैरों तले कुचल डालते हैं। बची हुई इल्लियां दोहरी जुताई के समय आंशिक रूप में मारी जाती हैं।
प्रश्न – १. लाक्षा-कीट किस प्रकार उपयोगी है ? २. खट्टे फलों के वृक्षों को कौनसे कीट नुकसान पहुंचाते हैं ? ३. दीमकों को हानिकर कीट क्यों मानते हैं ? ४. धान बोये गये खेतों को कौनसे कीट हानि पहुंचाते हैं ? ५. गुलाबी डोड़ा कृमि के खिलाफ क्या कार्रवाइयां की जाती हैं ?
रीढ़धारी
प्राणियों में सबसे अधिक संगठित रीढ़धारी या कशेरुक दंडी होते हैं। इन्हें ऽ यह नाम इसलिए. दिया गया कि उनकी रीढ़ पृथक् कशेरुकों की बनी हुई होती है। कशेरुक दंडियों में निम्नलिखित वर्ग शामिल हैं – मछली , जल-स्थलचर, उरग (रेंगनेवाले), पंछी, स्तनधारी।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…