हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
भारत के प्रसिद्ध व्यक्तित्व कौन कौन है के बारे में लेख ? भारत के प्रसिद्ध व्यक्तित्व इतिहास के महत्वपूर्ण
भारत के प्रसिद्ध व्यक्तित्व इतिहास के महत्वपूर्ण भारत के प्रसिद्ध व्यक्तित्व कौन कौन है के बारे में लेख ? famous personality names india in hindi
व्यक्तित्व
अंदालः मध्यकालीन दक्षिण भारत के अलवार (वैष्णव) सम्प्रदाय की साध्वी कवयित्री अंदाल अपने भावपूर्ण भक्ति गीतों के लिए जागी जाती हैं।
गुरु अर्जुन देवः गुरु पंरपरा की कड़ी में पांचवें और गुरु रामदास के सबसे छोटे पुत्र गुरु अर्जुन देव को आदि ग्रंथ के संकलन का श्रेय जाता है। अमृतसर में अपने पिता द्वारा बना, जा रहे पवित्र सरोवर का निर्माण इन्होंने पूरा किया और हरमंदिर साहिब भी बनवाया। 1606 ई. में मुगल सम्राट जहांगीर ने अपने शहजादे खुसरो द्वारा विद्रोह किए जागे के समय उसकी मदद करने के कारण गुरु अर्जुन देव को लाहौर में फांसी पर चढ़वा दिया था।
चैतन्यः विश्वम्भर मिश्रा, जो बाद में चैतन्य (1485-1533) के नाम से जागे गए, मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन्होंने अपना आंदोलन बंगाल से प्रारंभ कर पूरे पूर्वी भारत में फैलाया। ये कृष्ण के अनन्य भक्त थे। इनका मानना था कि कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार मात्र नहीं थे, बल्कि दिव्य शक्ति के प्रतीक थे, ईश्वरीय सत्व थे। इसी रूप में उनका राधा से मिलन हुआ। भक्त भक्ति के माध्यम से परमानंद की उस स्थिति में पहुंचता है, जिसमें वह स्वयं को राधा पाता है और कृष्ण से उसका उसी रूप् में मिलन होता है।
चैतन्य ने संकीर्तन के द्वारा भक्ति भाव का प्रचार-प्रसार किया। चैतन्य द्वारा चलाए गए भक्ति आंदोलन ने बंगाली जीवन, साहित्य को प्रभावित किया तथा बाद के सामाजिक-धार्मिक सुधारकों के लिए प्रेरणास्रोत बना। चैतन्य ने जाति-पांति, ऊंच-नीच, वेद व वेदांतों को नहीं माना और भक्ति को सर्वोपरि मानते हुए समाज को एक नया माग्र दिया।
चंडीदासः बंगाल के भक्ति साहित्य में चंडीदास का नाम अग्रदूतों में लिया जाता है। चैदहवीं सदी इनका समय माना जाता है। इनका कहना था कि एकमात्र भक्ति ही ऐसा माग्र है, जो मुक्ति दिला सकता है। ईश्वर के प्रति यह प्रेम किसी व्यक्ति के लिए सांसारिक अनुराग पर आधारित होना चाहिए, किंतु, चूंकि इस अनुराग का परिष्कार आवश्यक है, इसका विषय कोई ऐसा होना चाहिए, जो सुलभ न हो। राधा-कृष्ण के प्रेम को समर्पित उनके कृष्ण कीर्तनों में भावों की गहराई और गूढ़ प्रतीकवाद के दर्शन होते हैं।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्तीः भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की स्थापना का श्रेय इन्हें ही जाता है। सन् 1206 के आसपास ये अजमेर में जाकर बस गए थे।
शेख गिजामुद्दीन औलियाः दिल्ली को चिश्ती सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र बनाने में इनका सर्वप्रमुख योगदान था।
शेख सलीम चिश्तीः ये अकबर के समकालीन थे। इन्होंने सम्राट के तीन पुत्रों के जन्म की भविष्यवाणी की थी। यही वजह थी कि अकबर ने अपने सबसे बड़े बेटे का नाम सलीम रखा था। इस सूफी संत के निवास सीकरी के पास अकबर ने फतेहपुर सीकरी बसाई।
दादूः निर्गुण पंथ के महत्वपूर्ण एवं सम्मानित संत दादू मूलतः अहमदाबाद के जुलाहे थे। ये कबीर के शिष्यों में से एक थे। 16वीं सदी में इन्होंने जाति भेद को नकारते हुए ईश्वर के प्रति प्रेम एवं भक्ति का प्रचार किया। ये हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर थे।
एकनाथः वैष्णव भक्ति सम्प्रदाय के संतों में एकनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। महाराष्ट्र के इस मराठी संत का समय 16वीं सदी का माना जाता है। इनकी विद्वता उल्लेखनीय थी। इन्होंने ज्ञानदेव की ज्ञानेश्वरी का प्रथम संस्करण निकाला था। इन्होंने रामायण पर टीका भी लिखी। इन्होंने जाति-पांति को समाज के लिए अनावश्यक और हानिकारक बताया। इनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति अपनी सामान्य दिनचर्या का पालन करते हुए धर्म की गहरी अनुभूति प्राप्त कर सकता है। भक्ति गीतों के लिए भी इनका काफी सम्मान है। इनके गीत मराठी भाषा की धरोहर के रूप में हैं।
गोकुलनाथः मध्यकालीन भारत के उल्लखेनीय धामिर्क सुधारक गोकुलनाथ वल्लभ सम्प्रदाय की आचार्य परम्परा से सम्बंध रखते हैं। हिन्दी साहित्य के वार्ता साहित्य में इनका प्रमुख स्थान है। चैरासी वैष्णवों की वार्ता और दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता के रचयिता यही थे।
गोरखनाथः कनफटा योगी संप्रदाय के संस्थापक गोरखनाथ 12वीं सदी के संत थे। इनके अनुसार तत्वज्ञानी होने के लिए तप आवश्यक था। इनका प्रचार क्षेत्र वर्तमान गोरखपुर का इलाका था। संभवतः उन्हीं के नाम पर इसका नाम गोरखपुर पड़ा होगा। कालांतर में उनका सम्प्रदाय काफी बदनाम हो गया था क्योंकि कर्मकाण्ड के नाम पर भयंकर और असाध्य कृत्य किए जागे लगे थे।
गुरु गोविन्द सिंहः सिक्खों के अंतिम व दसवें गुरु गोविन्द सिंह (1656-1708) ने 1699 में ‘खालसा’ पंथ की स्थापना की थी। इसमें शामिल होने के लिए कुछ बातें अनिवार्यतः करनी पड़ती थीं, जैसे केश रखना, कंघा लगाना, कच्छा पहनना, कड़ा पहनना और कृपाण रखना। अपने पिता गुरु तेग बहादुर को मुगल सम्राट द्वारा दी गई फांसी का बदला लेने हेतु उन्होंने मुगलों से जमकर लोहा लिया। बाद में नान्देड़, महाराष्ट्र में उनकी हत्या कर दी गई।
ज्ञानदेवः 13वीं सदी में ज्ञानेश्वर ही पहले ऐसे संत थे, जिन्होंने मराठी में सर्वप्रथम ‘भक्ति’ का प्रयोग किया। उन्होंने मराठी में भगवद्गीता पर टीका लिखी, जिसे ज्ञानेश्वरी के नाम से जागा गया। पंडरपुर स्थित विठोबा मंदिर में नियमित रूप से आराधना व अर्चना हेतु जागे वाले वरकारी सम्प्रदाय से जुड़े होने के कारण ही उनकी ‘भक्ति’ प्रमुखता से उभरी थी। ज्ञानेश्वरी में बोलचाल की भाषा होने के कारण जनसाधारण ने इसे सीधे तौर पर ग्रहण किया। गांव के सादे जीवन के दृष्टांतों व रूपकों की सहायता से उन्होंने कीर्तनों की रचना की।
कबीरः 15वीं शताब्दी में हुए कबीर के विषय में माना जाता है कि वे जन्म से जुलाहे थे, किंतु उनका भरण-पोषण मुसलमान परिवार में हुआ। वैष्णव सुधारक रामानंद के वे शिष्य थे। उनका कहना था कि यदि ईश्वर को प्राप्त करना है तो भक्ति ही एकमात्र माग्र है। नेकी, विनय, अनुशासन, प्रेम और ईश्वर के कीर्तन व चिंतन से ही मनुष्य अपनी आत्मा की शुद्धि प्राप्त कर सकता है, ऐसा उनका मानना था। उन्होंने धर्म में फैले आडम्बर, कर्मकाण्ड, विरोधाभास, अंधविश्वास, मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा इत्यादि की जमकर आलोचना की। जाति पर आधारित सामाजिक असमानता व अन्याय के भी वे विरोधी थे। उन्होंने भाईचारे की वकालत की और कहा कि सब कुछ ईश्वरीय प्रतिबिम्ब ही है। हिंदू और मुसलमानों, दोनों ने उनको सम्मान दिया । सिक्खों के ‘आदिग्रंथ’ में उनके गीत शामिल किए गए। कबीर निर्गुण पंथी थे। कबीर की उलटबांसी काफी प्रसिद्ध हुई। इनके अनुयायी बाद में कबीरपंथी कहलाए। इनके गीतों का संकलन ‘बीजक’ में किया गया है।
लोकाचार्यः वैष्णववाद के तेंगाली सम्प्रदाय के प्रवर्तक लोकाचार्य 12-13वीं सदी में थे। इनका मानना था कि ईश्वर की कृपा भक्ति व प्रयास से हासिल करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे स्वीकार भी किया जागा चाहिए।
माधवः आदि शंकराचार्य के अद्वैत सिद्धांत से हटकर द्वैत दर्शन की व्याख्या करने वाले माधव कर्नाटक के ब्राह्मण थे और इनका समय था तेरहवीं सदी का। इन्होंने अपने जन्म स्थान उदिपि में माधव सम्प्रदाय की नींव डाली। ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम धर्मवेत्ताओं से तर्क करने और अपने दर्शन को सही साबित करने के लिए उन्होंने फारसी भी सीखी थी। इन्होंने भारतीय दर्शन का विश्लेषण और व्याख्या करने हेतु ‘सर्व-दर्शन संग्रह’ की रचना की।
मीराबाईः कृष्ण के अनन्य भक्तों में मीरा का नाम आता है। मीरा राजपूत राजा की कन्या थी और उनका विवाह मेवाड़ के राणा से हुआ था। कृष्ण की भक्ति में डूबे होने के कारण राणा ने संदेहवश उन्हें जहर भी दिया था। किंतु, कहा जाता है कि श्री कृष्ण की कृपा से वह जहर बेअसर रहा। बाद में इन्होंने महल त्याग दिया और पूरी तरह से भक्ति में लीन हो गईं। घूम-घूमकर भजन गाने लगीं। इन्होंने अपने ‘गिरिधर नागर’ को अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। ब्रजमिश्रित राजस्थानी में अनेकों गीत इन्होंने रचे। उनमें से कई ‘आदिग्रंथ’ में भी लिए गए हैं। अपने रिश्ते को ‘आध्यात्मिक प्रणय’ मानते हुए उन्होंने अपना अंतिम समय मथुरा में बिताया।
नागार्जुनः आंध्र प्रदेश में जन्मे नागार्जुन (लगभग 150 ई.), भारत के महान दार्शनिक माने जाते हैं, जिन्होंने महायान बौद्ध धर्म के ‘मध्यमिका सम्प्रदाय’ को व्यवस्थित रूप प्रदान किया। ये कुषाण राजा कनिष्क के समकालीन थे। उनका मानना था कि ब्रह्मांड में घटित होने वाली सारी घटनाएं और उसकी अनुभूति करने वाली चेतनताए सभी अवास्तविक हैं। ‘शून्य’ ही एकमात्र सत्य है। इस जगत का आधार यह शून्य ही आदियुगीन बुद्ध, निर्वाण है। उन्होंने रसरत्नाकर, द्वादश शास्त्र और सत शास्त्र की रचना की।
नामदेवः पेशे से दर्जी नामदेव (1270-1350) ज्ञानेश्वर के समकालीन थे। महाराष्ट्र के भक्ति मार्गी कवियों में इनका प्रमुख स्थान था। उनकी भक्ति के केंद्र में विठोबा थे, जिन्हें विष्णु का रूप माना जाता है। पंडरपुर में इनका मंदिर है। विठोबा वरकारी पंथ के देवता माने जाते हैं। यह पंथ जप-तप का घोर विरोधी है और इसमें हर जाति के व्यक्ति शामिल हैं। नामदेव और ज्ञान देव ने इस पंथ को पूरे महाराष्ट्र में फैलाया। गुरुदासपुर, पंजाब में भी इन्होंने एक पंथ चलाया था।
गुरुनानकः सिख धर्म के संस्थापक एवं उनके प्रथम गुरु गुरुनानक देव का जन्म 1469 ई. में तलवंडी (अब ननकाना, पाकिस्तान में) हुआ था। कबीर से प्रभावित नानक ने कबीर की ही भांति जातिवाद, ऊंच-नीच, बहुदेववाद और पुरोहिताई की घोर आलोचना की। उन्होंने मुसलमानों और हिंदुओं को एक करने के प्रयास किए। अपने साथी मरदाना के साथ वे भ्रमण करते रहे। उन्होंने ईश्वर को निरंकार, अकाल और अलख माना। ईश्वर अपनी हर रचना में व्याप्त है। ईश्वर अपने रहस्यों को गुरु के माध्यम से ‘शबद’ के रूप में कहता है। गुरु की प्रेरणा से प्रबुद्ध हुए व्यक्ति को अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है और इसी में मुक्ति का माग्र छिपा है। जनम साखी में गुरु नानक के जीवन के विषय में विस्तार से दिया गया है।
Recent Posts
द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi
अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…
नियत वेग से गतिशील बिन्दुवत आवेश का विद्युत क्षेत्र ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi
ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi नियत वेग से…
four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं
चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…
Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा
आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…
pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए
युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…
THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा
देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…