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भारतीय क्रांति के जनक कौन थे ? who was The father of the Indian unrest in hindi

who was The father of the Indian unrest in hindi भारतीय क्रांति के जनक कौन थे ?

उत्तर : स्वतंत्र सेनानी बाल गंगाधर तिलक जी को ही भारतीय क्रांति के जनक भी कहा जाता है , यह उपाधि उन्हें नेहरू जी ने दी थी |

प्रश्न: बाल गंगाधर तिलक का राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख योगदान रहा। व्याख्या कीजिए।
उत्तर: बाल गंगाधर तिलक (23 जुलाई, 1856-1 अगस्त 1920) भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी था ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज्य की मांग उठाई। इनका कथन ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा‘ बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से ‘लोकमान्य‘ (पूर ससार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें ‘‘हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता‘‘ भी कहा जाता है। अग्रजा शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे। तिलक ने मराठी में केसरी तथा अंग्रेजी में मराठा नामक दैनिक समाचार पत्र शुरू किए जो जल्दी ही जनता में बहुत लोकप्रिय हो गए। तिलक ने अंग्रेजी सरकार की क्रूरता आर भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने मांग की कि ब्रिटिश सरकार तुरंत भारतीयों को पण स्वराज दे। तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए।
राष्ट्रीय आंदोलन में तिलक की गणना उग्रवादी नेताओं में होती है। एक अंग्रेज पत्रकार वेलेनटाइन शिरोल ने लिखा कि लक ‘भारत में अशांति के नायक‘ थे। 1896 में पूना षड़यंत्र काण्ड हो गया जिसमें रेन्ड व आयरिष्ट की हत्या हो गई
जिसकी वजह से चापेकर बंधुओं को फाँसी की सजा दी। लेकिन तिलक को भी डेढ़ साल का कारवास मिला। 1901 में तिलक ने नेपाली षडयंत्र रचा अर्थात नेपाल के राजा की मदद से भारत में विद्रोह की योजना बनाई लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। 1905 में उन्होंने लेनिन से गुप्त पत्र व्यवहार किया ताकि विध्वंसकारी साधनों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सके।
जब 1905 में स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन चला उसमें भी तिलक ने अपनी भूमिका निभाई। 1906 के कलकत्ता अधिवेशन में तिलक ने स्वदेशी, बहिष्कार, स्वराज व राष्ट्रीय शिक्षा के चार प्रस्ताव पास होने के पीछे तिलक का दबाव देखा जा सकता है। 1907 के सूरत अधिवेश में उग्रवादियों ने हंगामा खड़ा किया जिसमें तिलक की मुख्य भूमिका थी। तिलक ने महाराष्ट्र में शिवाजी मेला व गणेश उत्सव शुरू किये, अखाडे खोले ताकि युवकों को लाठी व तलवार चलाना सिखाया जा सके। 1908 में भारतीय प्रेस अधिनियम में कहा कि किसी अखबार में विद्रोह फैलाने वाली सामग्री नहीं छप सकती। तिलक ने अपने अखबार श्केसरीश् में उत्तेजक लेख छापे इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर 6 वर्ष का कारावास दिया। उन्हें बर्मा की माण्डले जेल में रखा गया।
लेकिन जब 1914 में तिलक भारत लौटे तो वे उदारवादी हो गये उन्होंने एनी बीसेन्ट को अपना नेता मान लिया व उनके गृह स्वराज आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। 1916-18 में ऐनी बीसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की। 1916 लखनऊ अधिवेशन में तिलक ने हिन्दू नेताओं को समझाया जिससे मुस्लिम लीग से समझौता हुआ उसे लखनऊ समझौता कहते है। अब तिलक ऐसे स्वराज के पक्षधर थे जिसे साम्राज्य के भीतर स्वराज कहा गया ।
इसलिए जब दिसम्बर, 1919 के अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन में गाँधीजी ने यह विचार रखा कि ब्रिटिश राज को कोई सहयोग न दिया जाये तो तिलक ने उसका कड़ा विरोध करते हुये कहा कि इससे भारत का इंग्लैण्ड से नाता टूट जायेगा। इसके स्थान पर तिलक ने संवेदनशील असहयोग का सुझाव दिया अर्थात् जहां ब्रिटिश सरकार ठीक काम करे उसे सहयोग दिया जाये। इसलिए गाँधीजी का सुझाव पारा नहीं हो सका। 1 अगस्त, 1920 ई. में बंबई में तिलक की मृत्यु हो गई। उन्हें श्रंद्धाजलि देते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें “आधुनिक भारत का निर्माता‘‘ और नेहरू जी ने ‘‘भारतीय क्रांति के जनक‘‘ की उपाधि दी। भारतीय संस्कृति, परम्परा और इतिहास पर लिखे उनके लेखों से भारत के लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत हुई।

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