ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की और कब की | ब्रह्म समाज के संस्थापक कौन थे नाम क्या है

ब्रह्म समाज के संस्थापक कौन थे नाम क्या है ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की और कब की ?

ब्रहम् आन्दोलन
इसकी स्थापना राजा राममोहन राय द्वारा हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों के विरोध में की गयी। इन मुद्दों का समाधान करने तथा वेदान्त के सत्य का साक्षात्कार करने की इच्छा से उन्होंने 1828 में ब्रहम् समाज की स्थापना की। उन्होंने
मूर्ति-पूजन को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसका एक लम्बे अभियान के पश्चात् उन्मूलन हो गया। उन्होंने जन-साधारण को शिक्षा से जोड़ने के लिए दो विद्यालयों की स्थापना की।
उनकी मृत्यु के पश्चात् इस मिशन को 1843 में देवेन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा आगे बढाया गया। वह एक प्रखर लेखक थे जिन्होंने निर्धन लोगों का धर्म परिवर्तन कराने के लिए ब्रितानी तथा ईसाई मिशनरियों की आलोचना की। उन्होंने लोगों को धर्म छोड़ कर अन्य धर्म अपनाने से रोकने के लिए हिन्दू धर्म में बड़े स्तर पर परिवर्तन लाने का आग्रह किया।
एक अन्य सदस्य केशवचंद्र सेन ने बाल विवाह, बहु विवाह तथा जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाना आरम्भ किया। केशवचंद्र सेन तथा उनके कुछ अनुयायी उग्र सुधारवादी थे तथा उन्होंने आर्य समाज से अलग हो कर भारतीय ब्रहम् समाज की स्थापना की। शीघ्र ही आदि ब्रहम् समाज में फूट पड़ गई तथा साधारण ब्रहम समाज की स्थापना हुई। इन सभी बिखरावों के कारण वे आन्दोलन को जारी नहीं रख सके।

अन्य हिंदू परंपराएं
श्रोतः इस दुर्लभ समुदाय में केरल के अति-रूढ़िवादी नम्बूदरी ब्राह्मण सम्मिलित हैं। अन्य ब्राह्मणों द्वारा पालन किए जाने वाले वेदांत दर्शन के विपरीत वे दर्शन की ‘पूर्व-मींमांसा’ पद्धति का पालन करते हैं। वे वैदिक बलि (यज्ञ) के निष्पादन की महत्ता पर बल देते हैं। नम्बूदरी ब्राह्मण अपने उन प्राचीन सोमयागम, अग्निचयन अनुष्ठानों को संरक्षित किए रहने के लिए प्रसिद्ध हैं जो भारत के अन्य भागों में लुप्त हो चुके हैं।
दक्षिण भारत में, वैष्णव आन्दोलन बहुत सशक्त अवस्था में था तथा इसका प्रभाव 13वीं ‘शताब्दी तक रहा। ‘अलवार’ कहलाने वाले ये संत विष्णु के भक्त थे तथा उनके गाए गीतों को प्रबन्ध् नाम से संकलित किया गया। दक्षिण में एक और शक्तिशाली समूह शैव मत के लोगों का था, जो शिव की उपासना करते थे। इस परम्परा का पालन करने वाले संतों को ‘नयनार’ कहा गया तथा हमें 63 मुख्य तमिल संतों के बारे में ज्ञात है।
आधुनिक काल में, हिन्दू धर्म की उच्च अनुष्ठानिक प्रकृति को परिवर्तित करने की आवश्यकता पड़ी। ब्राह्मणों का वर्चस्व, सती प्रथा, बाल विवाह, इत्यादि अनेक कुप्रथाएं हिन्दू धर्म का अंग बन चुके थे तथा जाति प्रथा के कारण बड़े पैमाने पर भेद-भाव होने लगा था। ब्रितानियों के आगमन तथा समानता के पश्चिमी आदर्शों के प्रकट होने के पश्चात् कई विचारक इस स्थिति को बदल डालने को प्रेरित हुए तथा उन्होंने हिन्दू धर्म में व्याप्त समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए कुछ आन्दोलनों का सूत्रापात किया जो निम्नलिखित हैंः

स्वामी विवेकानंद तथा रामकृष्ण मिशन के द्वारा आयोजित आन्दोलन
कुछ ऐसे भी आन्दोलन थे जिन्होंने रामकृष्ण मिशन की भांति हिन्दू दर्शनों को भीतर से परिवर्तित करने पर बल दिया। उन्होंने ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि ईश्वर निराकार भी हो सकता है या किसी वस्तु में भी समाहित हो सकता है किन्तु मनुष्य का उद्देश्य उसे खोजना है। इसे कभी-कभी ‘‘नव-हिन्दुत्व’’ भी कहा जाता था। उनके मुख्य अनुयायियों में एक थे स्वामी विवेकानंद या नरेद्रनाथ दन। वह चाहते थे कि मनुष्य शरीर तथा मन की शक्ति के एकीकरण के द्वारा हिन्दू धर्म में परिवर्तन लाए। रामण्ष्ण मिशन की स्थापना 1897 में की गयी तथा इसका त्रि-आयामी दर्शन थाः वेदान्त में निहित आध्यात्मिकता का प्रसार करना, विश्व के सभी धर्मों के सह-अस्तित्व के लिए प्रयास करना तथा मानव की सेवा को ईश्वर की सेवा समझना।