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बौद्ध धर्म के विकास क्रम में अशोक मौर्य एवं कुषाण शासक कनिष्क का योगदान , श्रमणवाद के प्रभाव

प्रश्न: बौद्ध धर्म के विकास क्रम में अशोक मौर्य एवं कुषाण शासक कनिष्क का योगदान बताइए।
उत्तर: महात्मा बुद्ध के जीवन काल में ही बौद्ध धर्म अत्यधिक लोकप्रिय धर्म बन गया था। उन्होंने लगभग समस्त उत्तरी पूर्वी भारत में इसे प्रमुख धर्म बना दिया। बुद्ध का व्यक्तित्व, इसके सिद्धान्तों की सरलता एवं सुबोधता, बौद्ध संघों का, राजकीय संरक्षण, लोक भाषा का प्रयोग, जाति-पाँति व ऊँच-नीच का अभाव आदि इसके फैलाव के प्रमुख कारण प्रथम बौद्ध संगीति में धर्मग्रंथों एवं सिद्धान्तों को लिपिबद्ध किया गया। इस धर्म से मगध, अवंति, कोशल आदि अधिक प्रभावित हुए और उन्होंने भारत में इसके प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया। अशोक मौर्य का योगदान : कालाशोक के समय में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन आंतरिक मतभेदों को दूर करने के लिए किया गया था लेकिन सफल नहीं हुआ। मौर्य सम्राट अशोक के समय तक आते-आते आपसी संघर्ष और मतभेट । उभरे ही, साथ ही 18 सम्प्रदायों में बौद्ध धर्म विभक्त हो गया। अशोक ने व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म अपनाया। अत. उसने आतरिक संघर्षों, विवादों एवं उप सम्प्रदायों को समाप्त कर एकता स्थापित करने के लिए तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन पाटलीपुत्र में मोगलीपुत्र तिस्स की अध्यक्षता में करवाया। जिसमें सभी विवादों को समाप्त कर दिया। समार अशोक मौर्य ने बौद्ध धर्म ग्रहण करके बुद्ध के उपदेशों एवं वचनों को न केवल भारत में ही अपितु बाहर भी जैसे – लंका, बर्मा, कम्बोडिया आदि में प्रचारित-प्रसारित किया और इसे एक विश्वधर्म बनाने का प्रयास किया। इसलिए बौट धर्म के इतिहास में महात्मा बुद्ध के बाद मौर्य सम्राट अशोक का स्थान अद्वितीय है।
कुषाण सम्राट कनिष्क का योगदान : कुषाण सम्राट कनिष्क स्वयं बौद्ध धर्मानुयायी था। उसने बौद्ध धर्म के आंतरिक मतभेदों को दूर करने के लिए कश्मीर में चैथी बौद्ध महासभा का आयोजन किया। यहाँ बौद्ध धर्म हीनयान व महायान सम्प्रदायों में बँट गया। कनिष्क ने महायान सम्प्रदाय को राजकीय संरक्षण प्रदान किया।
उसने भारत एवं भारत के बाहर-काशगर, खोतान, कूँचा, तारिम घाटी, तुखार देश, चरमदान, बामियान आदि स्थानों पर सैकड़ों बौद्ध विहारों, स्तूपों आदि का निर्माण करवाया जहाँ हजारों की संख्या मे बौद्ध भिक्षु रहा करते. थे। जिन्होंने बौद्ध धर्म एवं भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रचार किया एवं सम्पूर्ण पश्चिमी एवं मध्य एशिया में बौद्धधर्म को स्थापित किया। इसकी सूचना हमें फाह्यान देता है।
प्रश्न: बौद्ध धर्म के प्रसार में श्रमणवाद के प्रभाव की समीक्षा कीजिए।
उत्तर: बुद्ध ने अपने भिक्षुओं का गणतंत्रतात्मक आधार पर एक संघ बनाया था। जिसमें श्परिव्राजकश् रहते थे। इसमें निवास करते वाले भिक्षु समान अधिकार सम्पन्न, भेदभाव की भावना से रहित, त्यागी, सच्चरित्र, अध्यवसायी और निर्मल हृदय हात. ये नियम और आचार के पक्के अनुयायी होते थे। प्रवज्जा ग्रहण करने वाला भिक्षु श्श्रामणेरश् (श्रमण) कहलाता था। किसी उपाध्याय या आचार्य के निरीक्षण में जाना पड़ता था। जो गुरू- शिष्य परम्परा के अनुसार रहते था गु. अनुपस्थिति में यह आचार्य का पद सम्भालता था। दूरवर्ती प्रत्यक्ष प्रदेशों में उपसम्पदा के निमित्त प्रत्याशी परिव्राजक लिए एक विनय घर और चार भिक्षुओं की उपस्थिति अनिवार्य की गयी। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि दूल पोगों में बौद्ध धर्म का प्रसार हो सके। शिष्टाचार का संघ में बहुत ध्यान रखा जाता था। ये बौद्ध भिक्षु विहार, संघाराम (आराम) में निवास करते थे। जो नगर और ग्राम से अधिक दूर नहीं होते थे। वे ऐसे स्थान पर होते थे जहाँ ग्राम और नगर की भक्त जनता सुविधानुसार आ जा सकती थी तथा भिक्षगण भी आसान। परिचारिका कर सकते थे।
वर्षा काल में ये बौद्ध विहारों, संघारामों के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करते थे। जन सामान्य को बार उपदेश दिया करते थे। ये भिक्षुगण विभिन्न स्थानों पर निवास करते हुए सुबह से शाम तक बौद्ध धर्म का हा करते थे। मानवता और जीवन कल्याण के लिए ये भ्रमण किया करते थे और अपने धर्म में जिज्ञासुओं को करते थे। सम्पूर्ण भारतीय जनमानस न बौद्ध भिक्षुअेा के चरित्र, पवित्रता. ज्ञान, सेवाभाव आदि को स्वीकार किया और बहुत ही उत्कंठा के साथ उन्हें सुना तथा उनके प्रभाव से जनता बौद्ध धर्म स्वीकार करने लगी। इस प्रकार विकास और फैलाव में श्रमणवाद का अत्यधिक प्रभाव पड़ा।
लेकिन बौद्व संघ में स्त्रियों के भिक्षुणी बन जाने से वहाँ का वातावरण धीरे-धीरे दूषित और कलंकित होने लगा तथा भिक्षुओं का जीवन पावन और पवित्र नहीं रह सका। जब बाद में बौद्ध धर्म में तंत्रवाद का प्रवेश हुआ तो भिक्षुओं का जीवन अत्यन्त ही कलुषित, विलासमय और कामकतापूर्ण हो गया। श्धार्मिक क्रियाओं के नाम पर विलासी और मैथुन क्रियाएँ की जाने लगी। इस चरित्रहीनता और आचरणहीनता का बौद्ध धर्म में कोई स्थान नहीं था। अब जनसाधारण का बौद्ध धर्म के प्रति लगाव कम होने लगा तथा वे उससे दूर हटने लगे। यहाँ तक कि जो बौद्ध बन गये थे, वे अब पुनः हिन्दू बन गये। इस प्रकार इसका धीरे-धीरे लोप हो गया।
प्रश्न: बौद्ध धर्म की भारतीय चिंतन एवं संस्कृति को क्या देन रही ? विवेचना कीजिए।
उत्तर: बौद्ध धर्म ने भारतीय संस्कृति को अत्यधिक उन्नत किया। सामूहिक रूप से भिक्षुओं के रहने की प्रणाली का विकास बौद्ध धर्म ने किया। बौद्ध भिक्षु निस्वार्थ भाव से धर्म प्रचार में संलग्न रहते थे। जनता के कष्टों को दूर करने का प्रयास करते थे। भारतीय समाज में निस्वार्थ सेवा भावना और धर्म भावना का प्रारम्भ बौद्ध धर्म ने किया।
चिंतन की स्वतंत्रता पर बल दिया। भारतीय दर्शन में तर्कवाद को आगे बढ़ाया। शून्यवाद व विज्ञानवाद का प्रभाव न केवल कुमारिल भट्ट व शंकराचार्य पर ही पड़ा बल्कि विश्व को भी प्रभावित किया। बौद्ध धर्म ने अपने अहिंसा और प्राणियों के प्रति दया भावना से न केवल सामान्य जन को ही प्रभावित किया वरन् बड़े-बड़े शासकों ने इस भाव से प्रभावित होकर अपने सम्पूर्ण जीवन को ही परिवर्तित कर लिया। आचार-विचार के क्षेत्र में नैतिक जीवन एवं सदाचार को ऊँचा उठाया तथा परोपकार, त्याग, सच्चरित्रता और अहिंसा, सहनशीलता, सहअस्तित्व आदि गुणों का जनता में प्रचार प्रसार कर जनमानस में इसकी मान्यता स्थापित की।
एक आडम्बरहीन एवं सरल व सुबोध सिद्धान्तों वाला धर्म दिया। जिसमें कर्मकाण्डों, मूर्तिपूजा, बलिप्रथा, वर्णाश्रम व्यवस्था आदि का अभाव था। इसने जाति प्रथा के कठोर बंधन को तोड़कर जन्म के स्थान पर कर्म की मान्यता स्थापित की और मनुष्य के कर्तव्य का महत्व दर्शाया। बौद्ध धर्म ने अति और प्रभावी रास्तों के बीच मोक्ष प्राप्ति के लिए भारतीय दर्शन एवं चिंतन् को मध्यममार्ग दिया। जो बाद में विश्व का लोकप्रिय चिंतन बन गया।
साहित्य के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति को एक विशाल साहित्य प्रदान किया। बौद्ध ग्रंथ पालि और संस्कृत दोनों ही भाषा में रचे गये।
लोक भाषाओं का विकास किया गया। दिड्नाक ने भारतीय तर्कशास्त्र का विकास किया और न्याय प्रवेश तथा आलम्बन परीखा नामक ग्रंथ लिखे। काव्य, नाटक, इतिहास ग्रंथ आदि अनेक साहित्यिक उपलब्धियाँ बौद्धधर्म की देन रही है।
काव्य (बुद्धचरित्र), नाटक (महावस्तु, मिलिंदपनोह), कला के क्षेत्र में मूर्तिकला, विहार, संघाराम, स्तूपं, चैत्य आदि की देन से भारतीय संस्कृति को उन्नत किया। अजंता जैसी अनेक गुफाएँ निर्मित की गई। जिनकी दीवारों पर विविध प्रकार के रंग-बिरंगे सजीव चित्र बनाये गये। जिन्होंने भारतीय चित्रकला को सराबोर कर दिया। इस धर्म की प्रेरणा से प्राचीन भारत में चित्रकला, वास्तुकला, मूर्तिकला एवं स्थापत्य आदि का अद्भुत विकास हुआ।
भारत के अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित करवाये। बौद्ध भिक्षुओं, व्यापारियों एवं विभिन्न शासकों के प्रयासों से यह धर्म एशिया में फैला। वहां से अनेक विद्वानों का भारत आना जाना हुआ। जिससे सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित हुए। वहाँ भी अहिंसा, दया, भ्रातृत्व भाव एवं सहअस्तित्व आदि का आदर्श स्थापित हुआ। वस्तुतः बौद्ध धर्म के द्वारा भारतीय संस्कृति, विभिन्न धर्म एवं विश्व के विभिन्न देश किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित हुए।

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