JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: indian

फूलों की घाटी कहां स्थित है , फूलों की घाटी की खोज किसने की थी , जिले फूलों की घाटी किसे कहा जाता है

फूलों की घाटी की खोज किसने की थी , फूलों की घाटी कहां स्थित है , जिले फूलों की घाटी किसे कहा जाता है

फूलों की घाटी
फूलों की घाटी उत्तराखंड राज्य के पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में स्थित है। यहाँ पाये जाने वाली वनस्पतियों की अवर्णनीय (अद्वितीय) किस्मों और एल्पाइन फूलों की खूबसूरत मैदानों/चारागाहों के कारण घाटी को राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया। नंदा देवी मंदिर परिसर के साथ-साथ 1988 में इस घाटी को यूनेस्को विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया।

यह घाटी भी दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवरों जैसे एशियाई काला भालू, कस्तूरी मृग, लाल लोमड़ी, हिम तेंदुआ आदि का गृह स्थान है। वर्ष के अधिकांश महीने में जलवायु अनुकूल न होने के कारण यहां जानवरों की संख्या सीमित है। यहाँ ऐसे अनेकों पक्षी हैं जो फूलों की घाटी को अपना घोंसला बनाने के लिए चुनते हैं। उनमें हिमालयन मोनल तीतर और उँचाई वाले क्षेत्र में पाये जाने वाले अन्य पक्षी विशेष रूप से होते हैं।

इस क्षेत्र को एक जैवमंडल निचय (बायोस्फेयर रिजर्व) भी बनाया गया है क्योंकि यह हिमालय और जास्कर पर्वत शंखलाओं के बीच एक महत्वपूर्ण संक्रमण क्षेत्र है। वर्ष 1862 में सम्पूर्ण हिमालय के भ्रमण पर निकलने वाले कर्नल एडमंड स्मिथ ने इस घाटी से लोगों का परिचय कराया था। जैसा कि उद्यान में वर्ष के अधिकांश महीनों में भारी बर्फबारी होती है, राष्ट्रीय उद्यान में किसी भी बस्ती की अनुमति नहीं है और 1983 से इस क्षेत्र में सरकार ने जानवर चराने को भी प्रतिबन्धित कर दिया है। यह सार्वजनिक रूप से केवल ग्रीष्मकाल अर्थात् जून से अक्तूबर तक खुला रहता है।

नागालैण्ड
यह एक राज्य है जो पश्चिम और उत्तर में असम और अरुणाचल प्रदेश से और दक्षिण में मणिपुर से घिरा है। पूर्व में यह वर्मा के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है। यह भारत में सबसे छोटे राज्यों में से एक है और 16 मुख्य जनजातियों जैसे अंगामी, लोथा, सुमी आदि के लोगों को समाविष्ट करता है। प्रत्येक जनजाति की अपनी भाषा, पोशाक और प्रथाएँ हैं जो एक बहुआयामी नागा संस्कृति को जन्म देती हैं।

भारत के बाकी हिस्सों के विपरीत, नागालैंड भारत में तीन राज्यों में से एक है जहाँ इसाई प्रधान धर्म है और संदेश के लिए अंग्रेजी मुख्य भाषा है। इन जनजातियों के संस्कृति का मुख्य निर्गमन नागालैंड का परंपरागत हस्तकला है। नागालैंड से सबसे विशिष्ट हस्तकला बाँस की कलायें हैं। विभिन्न प्रकार के विशेष शालों को कुल के रंगों से कटवाचित किया जा सकता है, जैसे कि:
आओ जनजाति सुगकोटेप्सी
रोंग्सु
संगथाम जनजाति सुनपोंग
लोथास जनजाति सुतम
इथासु
लौंगपेन्सु
अंगामी जनजाति लोहे
यिमचुंगेर जनजाति रोंगखिम
सुंगरेम खिम

नागाओं की विभिन्न जनजातियों के संस्कृति को गीतों और लोक कथाओं से भी प्रदर्शित किया गया है जो कि मौखिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे हैं। नागा जनजातियों के जनजातीय नृत्य में दैनिक जीवन और युद्ध कलाओं का समावेश है। अधिकतर गीतों में इन छोटे समुदायों का कृषि आकर्षण भी शामिल है, जो उनके अस्तित्व और जीविका के लिए एक-दूसरे पर आश्रित हैं।

राँची
यह झारखण्ड राज्य की राजधानी है। ‘राँची‘ शब्द को क्षेत्रीय भाषा ओरांव के ‘आर्ची‘ शब्द से लिया गया है। यह एक काष्ठिका या बाँस के उपवन को सांकेतिक करता है। नगर गोंडा पर्वत पर स्थित है और जिसके पास विशाल वन आच्छादन है। राँची का प्रसिद्ध शैल उद्यान गोंडा पर्वत को उत्कीर्ण करके बनाया गया है। पर्वत पर अनेकों जलप्रपात चिन्हित हैं लेकिन उनमें सबसे ज्यादा चित्रात्मक हुण्डू जलप्रपात है।

राँची में अन्य प्राचीन स्थल जगन्नाथपुर मंदिर है जिसका वर्ष 1691 में ओडिशा के जगन्नाथपुरी के जैसा अभिकल्पित निर्माण किया गया था। राँची में भी इसी भाँति रथ यात्रा होती है। भारतीय क्रिकेट कप्तान एम.एस. धोनी, अंतर्राष्ट्रीय स्तर की तीरंदाज दीपिका कुमारी, अंग्रेज इतिहासकार और पत्रकार पीटर मैन्सफिल्ड आदि का गृह नगर होने के कारण नगर को खेल के क्षेत्र में मान्यता प्राप्त हो रही है।

रामेश्वरम्
रामेश्वरम शहर ‘चार धाम‘ या हिन्दुओं के चार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है। यह मन्नार की खाड़ी में एक द्वीप की मुख्यभूमि के सबसे दक्षिणी सिरे पर स्थित है। शहर में मंदिरों और तीर्थ स्थलों की बहुलता की वजह से इसे ‘दक्षिण का वाराणसी‘ भी कहा जाता है। इस शहर में आने वाले तीर्थयात्रियों के अधिकतर जत्थे सीधे पवित्र रामनाथस्वामी मंदिर जाते हैं। मंदिर का एक बहुत ही दिलचस्प इतिहास है। चोल ‘शासकों ने इसकी आरंभिक इमारत का निर्माण आरम्भ किया, लेकिन मंदिर के मुख्य भागों के निर्माण को 16-17वीं सदी में नायकों के शासनकाल में पूरा किया गया।

मंदिर का गर्भगृह और केन्द्रीय मीनार 45 मीटर ऊँचा है और भवन में खूबसूरती से शिल्पित खम्भे और लम्बे गलियारे हैं जो नक्काशी और बनावट से युक्त हैं जो देवियों और देवताओं के जीवन को चित्रित करते हैं। हिन्दुओं के इतिहास में मंदिर का एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह रामायण में उस स्थान के रूप में प्रमुख रूप से लक्षित है जहाँ भगवान राम रावण को पराजित करने के बाद भगवान शिव की पूजा के लिए रुके थे।

रामेश्वरम में अनेकों स्थान ऐसे हैं जहाँ पर नृत्य और रंगशाला धर्म के साथ परस्पर मिश्रित हैं और वहां संस्कृति को एक अद्वितीय मोड़ देते हैं। नृत्य शैली में विभिन्न विस्तृत वेशभूषा और ढोल पर नृत्य और रावण और राम के बीच हुए महाकाव्य युद्ध का अभिनय समाहित है। शहर की संस्कृति वहाँ पर होने वाले धार्मिक पूजा के अनेक स्थलों पर प्रतिबिम्बित होती है। अन्य प्रमुख स्थल जो रामेश्वरम के धार्मिक संस्कृति को प्रदर्शित करता है वह कोठान्दरास्वामी मंदिर है।

राखीगढ़ी
शहर को राखी-गढ़ी के रूप में भी जाना जाता है और हरियाणा के हिसार गाँव में स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे बड़ी बस्तियों में से एक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसकी खोज वर्ष 1963 में की। तब से लेकर अनेक उत्खनन हो चुके हैं। पुरातत्वविदों ने तर्क दिया है कि यह स्थल लोगों के वास करने के जो चिन्ह दर्शाता है. वे हडप्पा और मोहनजोदडो के बस्तियों से भी पूर्व के हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के समूह में से सबसे बड़ा स्थल होने के कारण, इस स्थल को अगले वर्ष तक युनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में स्थान मिल सकेगा।

पुरातत्वविदों द्वारा यह भी तर्क दिया है कि राखीगढ़ी सरस्वती नदी के निकट स्थित है जो अवश्य उस स्थल से बहती होगी लेकिन ईसा पर्व 2000 में यह सूख गयी। नदी के सूखने की स्थिति भी राखीगढ़ी बस्ती के समाप्त होने का एक कारण रहा होगा। 1997 के बाद किये गए अनेकों उत्खनन ने यह उद्घाटित किया है कि राखीगढ़ी, घघ्यर बेसिन में स्थित विशाल सिंधु घाटी सभ्यता का केन्द्र रहा होगा।

उत्खनन ने ‘हकरा पात्र‘ की मोटी परतें प्रस्तुत की हैं, जो सिंधु घाटी सभ्यता के पूर्व की बस्तियों में पाये जाने वाले मिट्टी के बर्तनों का एक प्रकार है। इन मिट्टी के बर्तनों की उपस्थिति ने सिंधु घाटी सभ्यता को ईसा पूर्व 3000-2500 के तिथि तक पीछे धकेल दिया है। यहाँ पायी गई अन्य कलाकृतियों में मिट्टी की ईंटें, कीमती धातु, शंख, उप-रत्न आदि हैं। पक्की सड़कें, एक बड़ी वर्षा जल संग्रहण प्रणाली और एक जल निकासी प्रणाली के प्रमाण हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं यह एक अच्छी तरह से निर्मित स्थल था।

साँची
साँची मध्य प्रदेश में स्थित है और बौद्ध स्मारकों के कारण विश्व में प्रसिद्ध है। वर्ष 1989 में युनेस्को ने बौद्ध स्तूपों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में अपनाया। विहार के विशाल स्तूप को सम्राट अशोक के द्वारा ईसा पूर्व तीसरी सदी में उद्घाटित किया गया था। इसी कारण से इसे भारत में पत्थर के बने स्मारकों में सबसे पुराना माना जाता है। स्तूप के केन्द्र में बुद्ध के अवशेष और छत्रक जैसा छत्र हैं जो स्मारक की तुलना में अवशेषों के उच्च स्थान का द्योतक है।

ईसा पूर्व पहली सदी के बाद में, एक वेदिका (खंभे का घेरा) और चार अलंकृत नक्काशीदार द्वारों ( तोरण ) को संरचना में जोड़ा गया। यह मान्यता है कि अशोक की पत्नी, देवी, ने इस स्तूप के निर्माण के लिए साँची के स्थल का चयन किया क्योंकि यह उसकी जन्मभूमि थी और सम्राट के साथ उसके विवाह का यह स्थल था।

ऐतिहासिक रूप से स्मारक बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें शुंग और सातवाहन काल के अवशेष और विस्तार हैं, जो हमें इतिहास के परिवर्तन को समझने में सहायता करती है। भवन के परिसर में अशोक के शिलालेख (पंथ धर्मादेश) वाला एक खंभा है। इसके अतिरिक्त, वहाँ गुप्त काल का भी एक अत्यधिक सुलेखित शिलालेख है जो संख लिपि में है। अंग्रेजों ने स्मारक की पुनः खोज की, लेकिन सर जान मार्शल ने 1910 में इसे पुनर्जीवित कर दिया।

श्रवणबेलगोला
यह शहर कर्नाटक के हासन जिले में स्थित है और जैन धर्म के सबसे प्राचीन एवं श्रद्धेय तीर्थ स्थलों में से एक है। यह शहर जैन गुरु बाहुबली की 17 मीटर ऊँची नग्न प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। बाहुबली प्रथम तीर्थंकर के पुत्र थे। यह एक अखंड प्रतिमा है, अर्थात् इसे केवल एक लम्बवत पत्थर से तराशा गया है और यह इन्द्रगिरि पर्वत के शिखर पर स्थित है।

प्रतिमा बाहुबली की तब की अवस्था को दर्शाती है जब उन्होंने ज्ञान की द्य प्राप्ति की थी और सभी सांसारिक मोहमाया का त्याग कर दिया था। प्रतिमा पूरे विश्व में इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि यह विश्व की सबसे ऊँची अखण्ड प्रतिमा है। यह महामस्तकाभिषेक या प्रतिमा के पवित्र मस्तक अभिषेक के उत्सव के लिए प्रसिद्ध है।

इस उत्सव में प्रतिमा को दूध, घी और नारियल पानी के मिश्रण से नहाया जाता है। इस अनुष्ठानिक स्नान के बाद, हल्दी का लेप, सिंदूर का चूर्ण और सुगंधित पुष्प भी इस पर डाले जाते हैं। यह अनुष्ठान प्रत्येक 12 वर्षों में जैन पंचांग के अनुसार एक शुभ दिन आयोजित किया जाता है। इस पवित्र अवसर का साक्षी बनने के लिए हजारों जैन तीर्थयात्री इस छोटे से शहर की यात्रा करते है।

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है। यह सिर्फ एक राष्ट्रीय उद्यान ही नहीं है अपितु एक मान्यता प्राप्त जैवमंडल संरक्षित क्षेत्र (बायो रिजर्व) के साथ-साथ बाघों के लिए एक विशेष संरक्षित क्षेत्र या रिजर्व है। बंगाल टाइगर के साथ अपने चिरस्थाई संबंध के कारण इसे वर्ष 1987 में युनेस्को विश्व विरासत स्थल बनाया गया। गंगा डेल्टा पर स्थित सुंदरवन में यह उद्यान स्थित है। यह उद्यान को मैंग्रोव और दलदली वनों के लिए एक आदर्श स्थल बनाता है। सुंदरवन में कई लुप्तप्राय प्रजातियाँ निवास करती हैं, जैसे रिवर टेरापिन, ओलिव रिड्ले कछुआ, गंगा नदी के डॉल्फिन, हॉकबिल कछुआ और मैंग्रोव घुड़नाल केकड़े।

उद्यान कई आधिकारिक चरणों से गुजरा हैः सर्वप्रथम वर्ष 1973 में इसे टाइगर रिजर्व बनाया गया। जब अधिकारियों को बाघों के अतिरिक्त अन्य जीव-जन्तुओं का एहसास हुआ तो पक्षियों और सरीसृपों की विभिन्न प्रजातियों को भी यहाँ परिरक्षित किया गया। इसे 1977 में वन्यजीव अभ्यारण्य बनाया गया। इसके पश्चात् उद्यान भारतीय वनस्पतियों और जीवों के परिरक्षण के लिए एक मुख्य स्थान बन गया तो इसका उन्नयन कर दिया गया और 1984 में इसे सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित कर दिया गया। वर्तमान में, उनके पास खारे जल के मगरमच्छ, मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ, तेंदुआ, मकाक, उड़न लोमड़ी, पैंगोलिन और चीतल जैसी दुर्लभ प्रजातियाँ मौजूद हैं।

राष्ट्रीय उद्यान में 400 से ज्यादा बाघ हैं, लेकिन रॉयल बंगाल टाइगर सबसे दुर्लभ है। वे अद्वितीय हैं क्योंकि वे उद्यान के खारे पानी में तैर सकते हैं। सामान्यतरू वे नवम्बर से फरवरी के बीच जनता को दिखायी देते हैं। वर्तमान में, वे उद्यान की दीवारों के भीतर नियंत्रण की समस्या का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनमें आदमखोर प्रवृत्ति है और शहर में कानून और व्यवस्था के लिए एक समस्या बन जाते हैं। उद्यान ने पर्यटकों और स्थानीय लोगों को संरक्षण प्रक्रिया के बारे में जागरूक बनाने के लिए मैं ग्रूव व्याख्यान केन्द्र की स्थापना की है।

तंजावुर
इसे तंजौर के रूप में भी जाना जाता है और यह तमिलनाडु में स्थित है। यह शहर महान चोल मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जिसे वर्ष 1987 में युनेस्को के द्वारा जीवन्त विरासत की मान्यता दी गई थी। युनेस्को ने उन्हें विश्व विरासत स्मारक का दर्जा दिया है। शहर में सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक वृहदेश्वर मंदिर है जो प्रतीकात्मक रूप से शहर का केन्द्र है। इस मंदिर को चोल राजा, राजाराज चोल-प्रथम ने बनवाया था। यह भगवान शिव को समर्पित है और विश्व के अधिकांश हिन्दू अनुयायियों को आकर्षित करता है।

शहर का नाम यहां उत्पन्न चित्रकला की अद्वितीय शैली ‘तंजोर चित्रकला‘ से प्रेरित है। तंजावर को ‘कर्नाटक का चावल का कटोरा‘ के रूप में भी कहा जाता है क्योंकि यह कावेरी नदी के डेल्टा में स्थित है और राज्य के सर्वाधिक उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। चोल शासकों ने शहर में प्रमुख निर्माण 11वीं सदी में किया।
वर्ष 1647 से 1855 तक तंजावुर क्षेत्र पर शासन करने वाले मराठों के भोंसले परिवार ने आवासीय क्षेत्र का विस्तार किया। इसके बाद ब्रितानियों ने इस पर आधिपत्य कर लिया और यह मद्रास प्रदेश का हिस्सा बन गया। वर्तमान में, शहर सांस्कृतिक विरासत से भरा हुआ है। भरतनाट्यम और कर्नाटक संगीत के कई विशेषज्ञ (उस्ताद) यहां पैदा हुए।

चित्रकला के तंजावुर शैली (जिसमें सुनहरे और लाल रंग की भरपूर मात्रा होती है) के कलाकार यहाँ पाये जाते हैं। शहर के प्रमुख स्थलों में से एक सरस्वती महल पुस्तकालय है जो महल परिसर में है। वहां बड़ी संख्या में संस्कृत, तमिल और तेलुगू में प्राचीन और मध्यकालीन पांडुलिपियाँ हैं।

वाराणसी
ऐतिहासिक रूप से इसे ‘बनारस‘ और ‘काशी‘ के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित है। यह उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। समस्त शहर गंगा नदी के समानान्तर बसा है। यह वह ईष्टतम स्थान है जो वाराणसी को विश्व के सबसे प्राचीन नगरों में एक बनाता है क्योंकि लोग यहां लगातार बसे रहे हैं। इसे भारत की ‘आध्यात्मिक राजधानी‘ भी कहा जाता है क्योंकि यह अनेकों हिन्दू मंदिरों और बौद्ध मठों का गृहस्थान है।

यह नगर विशेष रूप से भगवान शिव अराधना से जुड़ा है। यहां कई मठ और मंदिर हैं। आदि शंकर या उच्च पुजारी ने वाराणसी के आधिकारिक पंथ के रूप में शैव पंथ की स्थापना की।

शिव का काशी विश्वनाथ मंदिर इस शहर की संस्कृति को परिभाषित करता है जो भगवान शिव की पूजा के लिए देश में सात मुख्य धार्मिक स्थलों में से एक है। इसे अनेक घाटों जैसे मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, आदि के लिए भी जाना जाता है।

सांस्कृतिक रूप से, यह शहर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के बनारस घराने का भी गृहस्थान है जिसने बिस्मिल्लाह खान, सितारा देवी, गिरिजा देवी आदि जैसे रत्नों को पैदा किया। यह अनेकों उदार और अग्रवर्ती सोच वाले लेखकों और राजनीतिज्ञों, जैसे हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य शुक्ल, बलदेव उपाध्याय, देवकी नंदन खत्री आदि के जन्म स्थान के लिए भी प्रसिद्ध है। यह शहर एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय में से एक- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का भी गृहस्थान है। यह शहर पुरातन शैली और आधुनिक प्रवृत्तियों का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है।

 

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now