हिंदी माध्यम नोट्स
प्रिज्म के लिए आपतन कोण एवं विचलन कोण (i-δ) के मध्य ग्राफ खींचकर न्यूनतम विचलन कोण तथा प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक ज्ञात करना ।
प्रयोग सख्या
Experiment No –
उद्देश्य (Object):
प्रिज्म के लिए आपतन कोण एवं विचलन कोण (i-δ) के मध्य ग्राफ खींचकर न्यूनतम विचलन कोण तथा प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक ज्ञात करना ।
उपकरण (Aparatus):
प्रिज्म, ड्राईग बोर्ड, सफेद कागज, आलपिनें, ड्राईंग बोर्ड पिनें, पेंसिल तथा चांदा आदि।
किरण चित्र (Ray Diagram):
सिद्धान्त (Theory) : प्रिज्म के एक अपवर्तक पृष्ठ पर आपतित प्रकाश किरण दूसरे अपवर्तक पृष्ठ से आधार की ओर कुछ झुककर निर्गत होती है। आपतित किरण एवं निर्गत किरण के मध्य बनने वाला कोण विचलन कोण δ कहलाता है विचलन कोण का मान प्रकाश किरण के आपतन कोण पर निर्भरकरता है तथा प्रारंभ में आपतन कोण के बढ़ने पर विचलन कोण कम होता है तथा एक निश्चित आपतन कोण के लिए विचलन कोण न्यूनतम हो जाता है न्यूनतम विचलन कोण को δm से प्रदर्शित करते हैं। इसके पश्चात् आपतन कोणका मान बढ़ाने पर पुनः विचलन कोण का मान बढ़ने लगता है।
यदि प्रिज्म कोण A है तथा प्रिज्म न्यूनतम विचलन स्थिति में है अर्थात् आपतन कोण का मान इतना है कि विचलन कोण न्यूनतम δm प्राप्त हो तो प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक
μ = sin (A़ δm /2) /sin (A/2)
प्रयोग विधि:
1. सर्वप्रथम बड़ा सफेद कागज लेते हैं तथा उसे ड्राईंग बोर्ड पर, ड्राईंग बोर्ड पिनों की सहायता से लगा लेते हैै।
2. अब हम कागज पर कागज की लम्बाई के अनुदिश तथा कागज के मध्य में एक सीधी रेखा X-Y खींच लेते है।
3. इस रेखा पर परस्पर लगभग 7-8 सेमी. की दूरी पर Q1, Q2, Q3, Q4….. बिन्दु चिन्हित कर लेते हैं तथा प्रत्येक बिन्दु पर रेखा X-Y पर अभिलम्ब क्रमशः N1Q1, N2Q2, N3Q3, N4Q4 …. खींच लेते हैं।
4. अब प्रत्येक अभिलम्ब के साथ चांदे की सहायता से 5-5 डिग्री के अन्तर से बढ़ते कोण बनाती हुई (जैसे 30°, 35°, 40, 45°,50°,55°, 60° आदि) रेखाएं क्रमशः P1Q1, P 2Q2, P 3Q3, P 4Q4 ….. आदि खींच लेते हैं।
5. अब प्रिज्म के एक शीर्ष को चिन्हित कर इसे प्रिज्म शीर्ष । बना लेते हैं तथा प्रिज्म को रेखा X-Y के सहारे इस प्रकार रखते हैं कि इसकी एक अपवर्तक पृष्ठ AB रेखा X-P पर हो तथा बिन्दु Q1, AB के लगभग मध्य में हो। पेन्सिल से प्रिज्म की परिसीमा खींच लेते हैं।
6. अब रेखा P1Q1 पर परस्पर 2-3 सेमी. की दूरी पर दो आलपिनें I1 व I2 ठीक ऊर्ध्वाधर गढ़ाते हैं तथा प्रिज्म के दूसरे अपवर्तक पृष्ठ AC की ओर से इन पिनों को देखते हुए. दो अन्य आलपिनें I3 व I4 परस्पर 2-3 सेमी. की दूरी पर इस प्रकार एवं ठीक ऊर्ध्वाधर गड़ाते हैं कि पिन I1 I2 I3 एवं I4 एक सीध में दिखें तथा इनके मध्य लम्बन न रहे।
7. अब पिनों को हटाकर उनके स्थान पर पेन्सिल से गोलाकार निशान बना लेते हैं। पिन I3 व I4 के निशानों को मिलाते हुए निर्गत किरण R1 S1 खींच लेते हैं।
8. अब आपतित किरण P1 Q1, को ज् तक तथा निर्गत किरण R1S1 को V1 तक बढ़ाकर इनके कटान बिन्दु पर बने विचलन कोण δ1 को चांदे की सहायता से माप लेते हैं।
9. अब अन्य आपतन कोणों के लिए प्रिज्म को उपरोक्तानुसार क्रमशः बिन्दु Q2, Q3, Q4a…. आदि पर रखकर प्रत्येक आपतन कोण के लिए विचलन कोण ज्ञात कर लेते हैं तथा प्रेक्षणों को प्रेक्षण सारणी में लिख लेते हैं।
10. अब प्रिज्म की कागज पर बनी परिसीमा में बिन्दु A पर < BAC को चांदे की सहायता से माप लेते है। यह प्रिज्म कोण A का मान है।
प्रेक्षण (Observations):
प्रिज्म कोण A = ….
सारणी:
क्रम संख्या आपतन कोण i (डिग्री) विचलन कोण 8 (डिग्री)
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7. 300
350
400
450
500
550
600
गणना (Calculations):
(i) X-अक्ष पर आपतन कोण प तथा ल अक्ष पर विचलन कोण δ लेकर उचित पैमाना मानत हुए i – δ ग्राफ खींचते हैं तथा ग्राफ से न्यूनतम विचलन कोण δm का मान (ग्राफ के निम्नतम बिन्दु के संगत) ज्ञात कर लेते हैं।
(ii) अब सूत्र μ = sin (A़ δm /2) /sin (A/2)
में प्रिज्म कोण A तथा न्यूनतम विचलन कोण δm का मान रखकर प्रिजम के पदार्थ का अपवर्तनांक ज्ञात कर लेते हैं।
परिणाम (Result):
दिए गए प्रिज्म के लिए न्यूनतम विचलन कोण δm = …. तथा प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक μ = …. प्राप्त होता है।
सावधानियाँ (Precautions):
आपतन कोणों के मान 30° से 60° के मध्य ही रखने चाहिए।
पिनों को परस्पर अधिक दूरी पर (1 सेमी. से कम नहीं) तथा ठीक ऊर्ध्वाधर गाड़ना चाहिए।
प्रत्येक बार मापन करने में, प्रिज्म के किसी एक शीर्ष पर बनने वाला कोण ही प्रिज्म कोण के रूप में प्रयुक्त होना चाहिए।
प्रिज्म के अपवर्तक पृष्ठ साफ होने चाहिए तथा इन पर हाथ नहीं लगाना चाहिए, प्रिज्म को शीर्षों से पकड़कर ही उठाना
चाहिए।
आपतित एवं निर्गत किरण पर दिशा व्यक्त करने वाले तीर के चिन्ह लगा देने चाहिए।
त्रुटि स्त्रोत (Sources of Error):
कोणों के मापन में त्रुटि रह सकती है।
i – δ वक्र बनाते तथा इसमें न्यूनतम विचलन स्थिति अंकित करने में त्रुटि रह सकती है।
3. पिनों को गाड़ने में यदि वे पूर्णतः ऊर्ध्वाधर नहीं हैं तो त्रुटिपूर्ण परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…