JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: chemistry

प्रभावी परमाणु संख्या EAN क्या है एक उदाहरण देकर समझाइए , निम्नलिखित में केन्द्रीय धातु परमाणु के प्रभावकारी परमाणु संख्या (ean) निकाले

निम्नलिखित में केन्द्रीय धातु परमाणु के प्रभावकारी परमाणु संख्या (ean) निकाले प्रभावी परमाणु संख्या EAN क्या है एक उदाहरण देकर समझाइए ?

 प्रभावी परमाणु संख्या नियम (Effective Atomic Number (EAN) Rule)

वर्नर ने उपसहसंयोजन यौगिकों के लिए अति उत्तम सुव्यवस्थित प्रणाली प्रदान की तथा उनके गुण व त्रिविमरसायन को समझाया। वास्तव में यह सिद्धान्त आधुनिक उपसहसंयोजन रसायन की नींव हैं लिंकिन उस समय में परमाणु की इलेक्ट्रॉनिक धारणा विकसित नहीं हो पाई थी। इसलिए यह सिद्धान्त द्वितीयक संयोजकता की प्रकृति अर्थात् धातु तथा लिगेण्डों के मध्य बन्ध की प्रकृति समझाने में असफल था। उपसहसंयोजन यौगिकों के निर्माण को इलेक्ट्रॉनों की भाषा में समझाने के लिए सर्वप्रथम एक सफल प्रयास सिजविक ने 1923 में किया था ।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सिजविक ने लूइस द्वारा 1916 में प्रस्तावित संयोजकता के इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त का वर्नर के संकुलों के लिए उपयोग किया। लूइस के अनुसार, एक सहसंयोजन आबन्ध दो परमाणुओं के मध्य एक इलेक्ट्रॉन युग्म के सहभाजन से बनता है जिनमें प्रत्येक परमाणु एक इलेक्ट्रॉन जुटाता है। सिजविक ने पाया कि उपसहसंयोजन अणु या आयनों यानि लिगण्डों में बंध बनाने वाले परमाणु पर कम से कम एक इलेक्ट्रॉन युग्म होता है। उसने सुझाव दिया कि वह परमाणु जिसके पास इलेक्ट्रॉन युग्म होता है, आबन्ध बनाने के लिए दोनों इलेक्ट्रॉन प्रदान करता है। इस प्रकार से बना आबन्ध भी एक इलेक्ट्रॉन युग्म या सहसंयोजक आबन्ध होता है। लेकिन, क्योंकि दोनों इलेक्ट्रॉन लिगण्ड से ही प्राप्त होते हैं, आबन्ध को उपसहसंयोजी आबन्ध (coordinate covalent bond) कहते हैं। इस आबन्ध का सामान्य सहसंयोजन आबन्ध से अन्तर स्पष्ट करने के लिए उसने इसे एक तीर से प्रदर्शित किया। उदाहरणार्थ, अमोनियम आयन के निर्माण को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है। जिसमें N परमाणु अपना इलेक्ट्रॉन युग्म H परमाणु से साथ सहभाजित करता है।

इस प्रकार, एक धातु आयन हाइड्रोजन आयन का स्थान लेकर धातु ऐम्मीन बन्ध बना देता है-

इस प्रकार, [Co(NH3)6 ]3+ आयन को साथ में दिये गये चित्रानुसार प्रदर्शित किया जा सकता है।

ऊपर दी गई अभिक्रियाएँ लूइस की अम्ल-क्षार अभिक्रियाएँ है, जहाँ लिगण्ड एक दाता (लूइस क्षार) तथा धातु आयन शाही (लूइस अम्ल) का कार्य करता है :

इलेक्ट्रॉन युग्म उपसहसंयोजन बंध की धारणा के आधार पर सिजविक ने वर्नर की द्वितीय संयोजकता की इलेक्ट्रॉनिक व्याख्या करते हुए बताया कि धातु ← लिगण्ड के मध्य निर्मित उपसहसंयोजन बंध ही धातु की द्वितीयक संयोजकता है तथा किसी धातु आयन के चारों ओर निर्मित कुल उपसहसंयोजन बंधों की संख्या ही धातु की समन्वय संख्या है। संकुलों के स्थायित्व को समझाने के लिए उन्होंने प्रभावी परमाणु संख्या नियम का सुझाव दिया। इस नियम के अनुसार, एक धातु परमाणु या आयन दाता समूहों के साथ इतनी संख्या में बन्ध बनायेगा (समन्वय संख्या) जिससे संकुल में धातु के चारों ओर कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या, जिसे प्रभावी परमाणु संख्या कहते हैं, आगामी उत्तम गैस के इलेक्ट्रॉनों की जितनी हो जाये। उदाहरण के लिए, [Co(NH3) 6]3+ संकुल आयन में Co3+ आयन के EAN की निम्न प्रकार गणना की जाती है-

Co की परमाणु संख्या = 27, अर्थात् इसमें 27 इलेक्ट्रॉन हैं

Co3+ में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 27-3= 24

छ: NH3 समूहों से आये इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 2×6=12

[Co(NH3)6]3+ आयन में Co3 + आयन की EAN = 24 + 12 = 36

[Co से आगे वाली उत्तम गैस क्रिप्टॉन की परमाणु संख्या = 36]

सिजविक तथा बेली (Sidgwick and Baily) ने 1938 में इस नियम को धातु कार्बोनिलों तथा उनसे संबंधित यौगिकों पर लागू किया तथा अधिकांश उदासीन एकलक धातु कार्बोनिलों के लिए इस नियम को सफल पाया।

कार्बोनिल यौगिकों में धातु सामान्यतः शून्य ऑक्सीकरण अवस्था में पायी जाती है। अतः इन यौगिकों मैं धातु में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या उसके परमाणु क्रमांक (Z) के बराबर होती है। प्रत्येक कार्बन मोनोऑक्साइड अणु धातु को दो इलेक्ट्रॉन दान कर उपसहसंयोजन आबन्ध बनाता है। यदि धातु से जुड़े हुए कार्बन मोनोऑक्साइड अणुओं की संख्या y हो तो इनके द्वारा दिए गए कुल इलेक्ट्रॉनों की संख् 2y होगी। इस प्रकार धातु कार्बोनिल में धातु पर कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या निम्न प्रकार ज्ञात की सकती है-

प्रभावी परमाणु क्रमांक (EAN) = Z+ 2y

उदाहरण के लिए Cr(CO)6 के लिए EAN की गणना निम्न प्रकार की जा सकती है-

Cr का परमाणु क्रमांक, Z = 24

6 CO अणुओं (y = 6) से प्राप्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या (2y) = 12

Cr का EAN ( Z+2y) = 36

चूँकि आगामी अक्रिय गैस, Kr का परमाणु क्रमांक 36 हैं, अतः कहा जा सकता है कि इस यौगिक में EAN नियम का पालन होता है। कुछ सकुलों में EAN की गणना सारणी 3.4 में दी गई है।

स्पष्ट है कि जिन धातु परमाणुओं में उपस्थित इलेक्ट्रॉन संख्या विषम है वे एक केन्द्रीय (mononuclear) कार्बोनिल यौगिकों में EAN नियम का पालन नहीं कर सकते क्योंकि CO अणुओं की संख्या चाहे कुछ भी क्यों न हो (स्मरण रहे कि प्रत्येक CO अणु दो इलेक्ट्रॉनों का दान करता है)। इलेक्ट्रॉनों की संख्या विषम ही रहती है, जिससे अक्रिय गैस विन्यास प्राप्त नहीं हो पाता है क्योंकि अक्रिय गैसों में इलेक्ट्रोनों की संख्या सम ही पाई जाती है।

ऐसी धातुओं के पास विषम इलेक्ट्रॉन के युग्मन से EAN प्राप्त करने की एक विधि यह है कि ऐसे विषम इलेक्ट्रॉन वाले दो अणु अपने-अपने अयुग्मित इलेक्ट्रॉन का युग्मन कर द्विलकी अणु बनाते हैं। इस प्रकार इन अणुओं में धातु-धातु बन्ध का निर्माण होता है। उदाहरणार्थ, Mn (CO)5 तथा Co(CO)4 अस्थाई हैं क्योंकि इनमें धातु का का EAN विषम होता है जो अगली उत्तम गैस में इलेक्ट्रॉनों की संख्या के समान होता है। तथापि, इनके द्विलक (Mn2 (CO)10] तथा [Co2 (CO)8] स्थाई हैं।

इन बिन्दु को स्पष्ट करने के लिए हम काल्पनिक कार्बोनिल अणु Mn (CO) को उदाहरण स्वरूप लेकर इसके EAN की गणना करते हैं-

‘ Mn की परमाणु संख्या Z = 25

5CO अणुओं द्वारा इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2y = 10

Mn का EAN ( Z+ 2y) = 35

स्पष्ट है कि Mn(CO), EAN नियम का पालन नही करता क्योंकि इसमें Mn का EAN 35 है जो आगामी उत्तम गैस क्रिप्टॉन की परमाणु संख्या (Z= 36 ) से एक कम है। तथापि, इस इलेक्ट्रॉन की कमी को पूरा करने के लिए Mn – Mn बंध बन जाता है जिससे दोनों Mn परमाणुओं पर उपस्थित विषमे हो जाता है तथा इस प्रकार से निर्मित द्विलक Mn2 (CO)10 में EAN नियम का पालन हो जाता है जैसा कि नीचे बताया गया है:

प्रत्येक Mn परमाणु पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 25

5CO अणुओं से प्राप्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 10

M-Mn बन्ध से प्राप्त अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन = 1

पत्येक Mn परमाणु पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या (EAN) = 36

यहाँ यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि धातु धातु बंध का निर्माण तभी होता है जब संकुल में धातु के EAN आगामी उत्तम गैस की परमाणु संख्या से एक कम हो । उदाहरण के लिए Fe(CO)5 परमाणु एक स्थाई यौगिक है जो EAN नियम का पालन करता है, फिर भी यह Fe2 (CO)9 तथा Fe3(CO) 12 का निर्माण करता है। इन यौगिकों के स्थायित्व की व्याख्या भी EAN नियम के आधार पर की जा सकती है। यह सुझाव दिया गया है कि इन यौगिकों में Fe(CO)5 के द्विलकीकरण तथा त्रिलकीकरण के साथ-साथ उतने ही CO अणु निकल जाते हैं जितने Fe-Fe बंधों का निर्माण होता है। Fe2 (CO)9 तथा Fe3(CO)12 में Fe परमाणुओं के EAN की गणना निम्न प्रकार की जा सकती है-

EAN नियम के अपवाद : कार्बोनिल में वैनेडियम हैक्साकार्बोनिल, V(CO)6 एक अपवाद है जिसमें वैनेडियम की प्रभावी परमाणु संख्या 35 (23+2×6=35) है। यद्यपि, Mn(CO)6 की भाँति यह यौगिक भी अस्थायी होना चाहिए, V(CO)6 एक स्थाई अनुचुम्बकीय (Paramagnetic) यौगिक है जिसका सिद्धान्तः अपेक्षित द्विलकीकरण नहीं होता है। सामान्यतः संकुल EAN नियम का पालन नहीं करते हैं। अतः यह नियम अब उपयोगी नहीं रह गया है। इस प्रकार के कुछ यौगिक सारणी 3.5 में दिये गये हैं :

प्रभावी परमाणु क्रमांक नियम में एक दोष यह प्रतीत होता है कि यह प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय संक्रमण श्रृंखलओं के तत्वों के लिए भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, इस नियम की अनुपालना के लिए प्रथम द्वितीय तथा तृतीय श्रृंखलाओं के तत्वों के प्रभावी परमाणु क्रमांक क्रमश: 36 ( Kr), 54(Xe) तथा 86(Rn) होने चाहिए ।

18 इलेक्ट्रॉन नियम

इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों से स्पष्ट है कि इनका बाह्यतम इलेक्ट्रॉन विन्यास (n-1)dons – np होता है। संक्रमण तत्वों में ये सभी कक्षक बंधन में भाग लेते हैं तथा इनमें 18 इलेक्ट्रॉन आ सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यदि किसी यौगिक में संक्रमण धातु परमाणु के संयोजकता कोश में 18 इलेक्ट्रॉन हो तो प्रभावी क्रमांक नियम की अनुपालना का होना माना जाएगा। अतः प्रभावी परमाणु क्रमांक नियम को 18 इलेक्ट्रॉन नियम के नाम से जानना उचित है। यहाँ यह बतलाना संभवतया अनावश्यक है कि किसी यौगिक में यदि कुल संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या 18 है तो भी वह 18 इलेक्ट्रॉन नियम का पालन करता है।

इस नियम की विशेषता यह है कि तीनों संक्रमण श्रृंखलाओं की धातुओं के लिए कुल संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान, 18 होती है, इस संख्या को ध्यान में रखना भी सरल है, क्योकि यह संख्या संयोजकता कक्षकोंns (एक), np (तीन) तथा (n-1)d (पाँच) को उनकी पूर्ण क्षमता तक भरने से प्राप्त होती है। धातु कोर्बोनिल चूंकि EAN नियम का पालन करते हैं। अतः निश्चत ही वे 18 इलेक्ट्रॉन नियम का पालन भी करते हैं। कार्बोनिक यौगिकों में धातु के शून्य ऑक्सीकरण अवस्था में होने के कारण धातु में स्वयं के संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या वही होती है जो इसकी निम्नतम अवस्था में होती है। प्रत्येक CO अणु धातु के संयोजकता कोश में दो इलेक्ट्रॉन प्रदान करता है। यदि धातु में संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या n तथा उससे जुड़े CO. अणुओं की संख्या y हो तो M(CO)y प्रकार के एक केन्द्रक कोर्बोनिल यौगिकों में कुल संयोजी इलेक्ट्रॉन संख्या निम्न सूत्र द्वारा निकाली जा सकती है-

कुल संयोजकता इलेक्ट्रॉन संख्या = n+2y

यह नियम Cr(CO)6 का उदाहरण लेकर भली-भाँति समझा जा सकता है। क्रोमियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d5 4s’ होता है । अतः क्रोमियम में छः संयोजकता इलेक्ट्रॉन (n) होते हैं। क्रोमियम के साथ छः COअणु जुड़े हैं अर्थात् y = 6 | Cr(CO) में Cr के संयोजकता कोश में पाए जाने वाले इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या =6+2×6=18 होती है। स्पष्ट है कि Cr(CO), 18 इलेक्ट्रॉन नियम का पालन करता है।

विषम परमाणु क्रमांक वाली धातुओं में संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या विषम होती है। अतः इस प्रकार की धातुओं के कार्बोनिल यौगिकों में धातुं परमाणु से चाहे जितनी भी संख्या में COअणु क्यों न जुड़े हों, धातु के संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या सदैव विषम ही रहेगी। अर्थात् ये यौगिक 18 इलेक्ट्रॉन नियम का पालन नहीं करेंगे। परिणामस्वरूप, ऐसी धातुएँ एकल – केन्द्रक कार्बोनिल यौगिक नहीं बनाती हैं तथा इनके स्थान पर धातु धातु बंधयुक्त द्वि- नाभिकीय अथवा बहुकेन्द्रक कार्बोनिल यौगिक का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, Co के संयोजकता कोश में 9 इलेक्ट्रॉन (इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d7452) होते हैं। Co का एककेन्द्रक कोर्बोनिल यौगिक Co(CO), ज्ञात नहीं है बल्कि Co2 (CO)g ज्ञात है। इस तथ्य को 18 इलेक्ट्रॉन नियम से आसानी से समझा जा सकता है । यदि काल्पनिक अणु Co(CO)4 के संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉनों की गणना की जाए तो यह संख्या 17 आती है।

कोबाल्ट के संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 9

4CO अणुओं द्वारा इलेक्ट्रॉनों की संख्या = 8

Co (CO)4 में कुल संयोजी इलेक्ट्रॉन = 17

स्पष्ट है कि 18 इलेक्ट्रॉन नियम का पालन करने के लिए इसे एक इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता हैं यदि दो Co(CO)4 इकाइयों के Co परमाणुओं में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युग्मन कर लें तो प्रत्येक इकाई में एक संयोजकता इलेक्ट्रॉन बढ़ जाएगा तथा परिणामी द्विनाभिकीय यौगिक Co2 (CO)8 प्राप्त होगा जिसमें एक धातु-धातु बन्ध पाया जाता है।

वैनेडिनम, जिसमें 5 संयोजकता इलेक्ट्रॉन (इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d34s2) पाए जाते हैं, इस नियम के अपवाद के रूप में एककेन्द्रक कार्बोनिल यौगिक V(CO)6 बनाता है, यद्यपि इसके संयोजकता कोश में 17 इलेक्ट्रॉन ही पाए जाते हैं (5+6×2=17)।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

15 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

15 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now